अनुराधा की मौत आधुनिक समाज पर तमाचा

शादाब जफर ”शादाब”

कहते है कि इन्सान एक सामाजिक प्राणी है। अल्लाह ने इन्सान को दुनिया में सब चीजों में श्रेष्ट बनाया है। पर आज इन्सान का इन्सान के प्रति जो नजरिया सामने आ रहा है उससे नहीं लगता कि आज इन्सान इन्सान कहलाने के लायक रहा है। क्योंकि ये सब बाते गुजरे जमाने की कहानियों और किस्सों में सुनने सुनाने तक ही रह गई है। आज आधुनिक समाज में रिश्‍ते-नाते केवल पैसे और मतलब के रह गये है। हमारे अपने और समाज के प्रति आज हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है। पड़ोस और पड़ोसी से हमारा रिश्‍ता कैसा होना चाहिये आज बडे़ बडे़ शहरों में पढे़ लिखे पॉश कालोनियो में रहने वालों का इस बात से कोई मतलब वास्ता नहीं होता। इस बात को यूं भी कहा जा सकता है कि आज शहरों में बसने के बाद आदमी अपनी और अपने पूर्वजों की पहचान मिटाने पर तुला है। महानगरो में आदमी की पहचान आज सिर्फ और सिर्फ कोठी नम्बरों से की जाती है। गुजरे कुछ वर्षों में शहरी घर परिवारों की तस्वीर तेजी से बदली है। आज रिश्‍तों में असामाजिकता इतनी बढ़ गई है कि एक दूसरे का ख्याल रखना, उनके सुख-दुख में शिरकत करना धीरे धीरे कम होता जा रहा है। लोग अपने आप अपने सुख दुख बाटते है। शहरी जिन्दगी में किसी को इतनी फुरसत ही नहीं कि वो अपने पड़ोस में देखे कि क्या हो रहा है। दरअसल आज महानगरों में जो अर्पाटमेन्ट कल्चर विकसित हुआ है उसमें अपने अड़ोस पड़ोस में ताक-झाक करना बुरा माना जाता है। यदि कोई अपने पड़ोसी से संबंध बनाने, मिलने उस के बारे में जानने की कोशिश करता है तो ये सब आज बहुत बुरा और किसी की निजी जिन्दगी की स्वतंत्रता का हनन माना जाता है।

नोएडा के सेक्टर-29 के एक मकान में पिछले सात महीनों से बिना कुछ खाये पिये जिन्दा लाश की तरह जी रही अनुराधा और सोनाली हमारे पूरे समाज पर जहां एक जोरदार तमाचा है। वही प्रगतिशील और तरक्की कर रहे भारत देश के तमाम सामाजिक संगठनों एनजीओ के कार्य पर सवालिया निशान लगा रहा है। पिछले साथ महीनों से अपने ही घर में कैद माता-पिता की मृत्यु व भाई के साथ छोड़ देने के बाद डिप्रेशन में आई दोनों बहनों का दुनिया और जीवन से ऐसा विश्‍वास टूटा कि लगभग तीन महीनों से थोड़ा बहुत कुछ खा पीकर घर के एक कमरे में बंद बेसुध और गुमनाम जिन्दगी गुजार रही थी। मंगलवार 12 अप्रैल 2011 को आर.डब्लू.ए सेक्टर-29 के अध्यक्ष रिटायर्ड लैफ्टिनेंट कर्नल एच.सी शर्मा की शिकायत पर जब पुलिस ने घर का दरवाजा तोड़कर बाहर निकाला तो दोनों बहने जिस हालत में थी वह वाकई में दिल दहलाने वाला मंजर था। बडी बहन अनुराधा बेहोशी की हालत में सोफे पर पूरी तरह मरणासन्न थी। इन दोनों बहनों का शरीर बदबू देने लगा था वही गर्मियों के दिनो में तीन तीन स्वेटर साफ दर्शा रहे थे कि इन्होंने जिन्दगी और दुनिया से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है। महीनों से इन दोनों ने सूरज नहीं देखा। दोनों के शरीर बिना खाये पिये अपनी उम्र से कहीं अधिक के हो चुके थें। घर से निकाल कर पुलिस ने दोनों को अस्पताल में भर्ती कराया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डाक्टरों की काफी कोषिषों के बाद भी बड़ी बहन अनुराधा ने अगले दिन सुबह दम तोड़ इस संसार से मुक्ति पाली पर सोनाली अभी भी गम्भीर हालत में आई.सी.यू में उपचाराधीन है। ये घटना हमारे देश या समाज के लिये कोई पहली घटना नही है अभी कुछ समय पहले दिल्ली के कालका इलाके में ऐसे ही तीन बहनो ने दुनिया और समाज से न जाने किस बात पर मुंह मोड़ कर खुद को इसी तरह अपने घर में कैद कर लिया था। जिन में से एक कि मौत होने पर लड़की की लाश सड़ी और कालोनी में बदबू फैली, लोगों ने पुलिस को बुला कर दरवाजा खुलवाया तो लड़की की मौत का पता चला। यदि अनुराधा और सोनाली के घर के दरवाजे को 24 घन्टे बाद तोड़ा जाता तो यकीनन इसी हादसे की पुर्नवत्ति होती।

बाप की एक सड़क दुर्घटना में घायल होने के बाद मौत हो गई। फिर कुछ दिनों बाद अवसाद के कारण मॉ की भी मौत हो गई। माता पिता की मौत के बाद जिस भाई को इन बहनों ने कभी मॉ, कभी बाप, कभी बहन और कभी दोस्त बनकर पाला, पोसा, पढाया, लिखाया, शादी की, जिस भाई पर अपनी जिन्दगी न्यौछावर की। जिस भाई के हाथ पर कई सालों तक राखी बंधी और जिस भाई ने न जाने कितनी बार इन की रक्षा की कसम खाई होगी। वो भाई शादी के बाद दोनों बहनों को छोड़ अपनी पत्नी के साथ अलग रहने लगा। उस भाई का अपनी इन सगी बहनो से बरसों बाद जब सामना हुआ तो उस में से एक बहन लाश बन चुकी थी और दूसरी जिन्दा तो थी मगर कंकाल के रूप में। बहन की लाश देख विपिन अपने ऑसू नही रोक पाया। पर अब पछताए क्या होत जब चिडिया चुग गई खेत। सवाल ये उठता है कि क्यों विपिन ने अपनी जिन्दा बहनों को मरा मान उन से नाता तोड लिया था। क्यों विपिन ने बहनो की खबर नही ली। भाई की शादी के बाद हो सकता है कि घर में कुछ बातो को लेकर विवाद झगडे या आपस में बहन भाई या फिर भाभी के साथ अनबन हुई हो। पर हाथों की लकीरों को यूं नहीं मिटाया जा सकता। यहा सवाल ये भी उठता है कि केवल एक भाई से तो नाता टूटा था पर एक टेक्सटाइल इंजीनियर और दूसरी चार्टड एकाउंटेंट के समाजिक दोस्त, रिष्तेदार, रिष्ते के भाई भाभी, ताऊ, चाचा, कामकाजी संबधी लोग दफतर के यार दोस्त फ्लैट वाले परिसर के रैजीडेंट वेलफैयर एसोसिएशन के तमाम लोग आखिर सात आठ महीनो से कहा थे। इन लोगो ने आखिर इन दोनो बहनो की सुध क्यो नही ली। इस पूरे हादसे के बाद एक गम्भीर सवाल यहां ये भी उठता है कि क्या ये दोनों बहने भी व्यवहार कुशल व सामाजिक नहीं थी।

अनुराधा की मौत और इस पूरे हादसे ने हमारी तरक्की और आधुनिक समाज पर कई सवाल खडे़ कर दिये है। आज भागम-भाग की इस जिन्दगी में हमने रिश्‍तों को सीढी बना लिया है जिसे इस्तेमाल करने के बाद हम लोग घर की अंधेरी कोठरी में डाल देते है जैसा विपिन ने अपनी बहनो के साथ किया। एक विपिन ही नहीं, न जाने कितने लोग अपने मॉ बाप भाई बहनों के साथ ऐसा कर रहे है। आज हमारे आधुनिक समाज में ये सब फैशन बनता चला जा रहा है। इन्टरनेट पर फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल नेटवर्क तो जोर पकड़ रहे है, लेकिन हमारे परंपरागत सामाजिक नेटवर्क आपस में टूट रहे है। आपने फेसबुक और ट्विटर पर रिश्‍ते तो बना लिये पर इन्सानी जीवन में एक वक्त ऐसा आता है जब इन्सान को इन्सानी स्नेह, स्पर्श, और दिलासे की जरूरत होती है जो आदमी आदमी से मिलकर ही दे सकता है। कम्प्यूटर के सामने आप रो रहे है या गा रहे है बीमार है इस का पता फेसबुक और ट्विटर पर दूर बैठे व्यक्ति को नहीं चलता। आधुनिक शहरीकरण में सब से ज्यादा नुकसान हमारी साझी परम्पराओं, संवेदनशीलता, अपनेपन और इन्सानियत का हुआ है ये हादसा तो महज एक मिसाल है।

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