खड़ी परीक्षा सिर पर थी,
दिन शेष बचे थे चार|
भालू को पढ़ने न देता,
रूम पार्टनर सियार|
नोट्स किया करता था भालू,
जैसे ही तैयार|
फाड़ फूड़ कर सियार भाई,
कर देते बेकार|
कड़क जेब थी भालूभाई,
लाये पेन उधार|
जैसे मौका मिला सियार को,
पेन कर दिया पार|
कष्ट देखकर भालूजी का,
सबने किया विचार|
भालू दादा सीधे सादे,
सियार बड़ा मक्कार|
सबने डांटा बेईमान को,
न बन तू होशियार|
अगर नहीं तू अब भी सुधरा,
तुझे पड़ेगी मार|
जिसे नहीं है शालाओं में,
अनुशासन से प्यार|
उसे हटाने प्रिंसपाल को,
मिला हुआ अधिकार|
समझाने पर भी ना माना,
जब वह ढीठ गवांर|
प्रिंसपाल वन के राजा ने,
उसको किया डिबार|