घुसपैठ के मामले में अव्वल रहा 2009

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-लिमटी खरे

देश को अस्थिर करने के मामले में पडोसी देश पाकिस्तान की करतूतों में तेजी से इजाफा हुआ है। पिछले साल पाकिस्तान की ओर से आने वाले घुसपैठियों की तादाद में रिकार्ड इजाफा हुआ है। भारत की सीमा पर चोकस सिपाही भी इन घुसपैठों को रोकने में नाकामयाब रहे हैं। पाकिस्तान में आतंकवादियों ने अपने ठिकानों को बहुत सशक्त, समृध्द और सुरक्षित बना लिया है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय की आंतरिक रिपोर्ट कुछ इसी तरह का खुलासा कर रही है। आंतरिक प्रतिवेदन में कहा गया है कि पकिस्तान की ओर जम्मू काश्मीर के रास्ते घुसपैठ को जबर्दस्त बढावा दिया जा रहा है। मंत्रालय के सालाना प्रतिवेदन में कहा गया है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने का काम अनवरत जारी है। वर्ष 2008 में जहां घुसपैठ की घटनाएं 342 थी, वह 2009 में बढकर 485 हो गई है।

प्रतिवेदन इशारा कर रहा है कि पिछले सालों की तुलना में देश में अशांत करने की कवायद कुछ ज्यादा ही हुई है। इसमें हिंसक घटनाओं की संख्या बढी है। इतना ही नहीं नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों को मौत के घाट उतारने की वारदातों में इजाफा हुआ है। इसकी चपेट में नक्सलप्रभावित सूबे विशेषकर आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ, झारखण्ड, उडीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र इनके निशाने पर रहे हैं।

मजे की बात तो यह है कि इतना सब होने के बाद भी केंद्रीय गृह मंत्रालय का यह वार्षिक प्रतिवेदन स्थिति को पूरी तरह नियंत्रण में ही बता रहा है। देश में विदेशी ताकतें आकर तांडव मचा रही हैं। देश की आर्थिक राजधानी पर अब तक का सबसे बडा आतंकी हमला होता है, संसद पर हमले होते रहे हैं। नक्लसवादी पूरे शबाब पर हैं, अमन चेन कहीं नही है, फिर भी पलनिअप्पम चिदंबर के नेतृत्व वाला केंद्रीय गृह मंत्रालय स्थिति नियंत्रण में बताकर बरगलाने से नहीं चूक रहा है।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

1 COMMENT

  1. YE BAAT HAMKO APNE DIMAG ME ACHCHE SE BETHA LENA CHAHIYE KI PAKISTAN APNI AADAT SE KABHI BAJ NAHI AAYEGA ,,,IS LIYE PAKISTAN KO ET KA JAWAB PATHAR SE HI DENA CHAHIYA SAAALE KO ,,KAMINE KO,,,,

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