दूध की शुद्धता को बचाने हेतु अदालती संज्ञान

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तनवीर जाफ़री

स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक गत् कई दशकों से अपने ही देशवासियों को नकली व मिलावटी खाद्य पदार्थ परोसते आ रहे हैं। और इस गोरखधंधे से होने वाली अपनी काली कमाई को मानवता के यह दुश्मन मां लक्ष्मी की कृपा मानते हैं। मिलावटखोरों का यह कारोबार जहां अन्य और कई प्रकार की खाद्य सामाग्री को ज़हरीला बना रहा है वहीं दूध जैसी बेशकीमती खाद्य सामाग्री भी मिलावटखोरों से अछूती नहीं रह सकी है। भारतवर्ष को जहां कृषि प्रधान देश के रूप में जाना जाता है वहीं दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में भी भारतवर्ष विश्व में अपना प्रमुख स्थान रखता है। पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों का नाम तो देश में दूध की नदियां बहने वाले राज्यों के रूप में लिया जाता है । हरियाणा राज्य के लिए तो बड़ी प्रसिद्ध कहावत भी कही जाती है देसां में देस हरियाणा सै। जहां दूध-दही का खाणा सै। परंतु इन हरामखोर नकली दूध बनाने वालों तथा इसके विक्रेताओं ने तो इस प्रकृति प्रदत बहुमूल्य खाद्य पदार्थ में ज़हर घोल कर रख दिया है। त्यौहारों के अवसर पर बार-बार ऐसी खबरें देश के विभिन्न राज्यों से आती रहती हैं कि कहां-कहां कितनी बड़ी मात्रा में मिलावटी व रासायनिक दूध,घी,खोया, पनीर तथा दूध से बनने वाले खाद्य पदार्थ व मिठाईयां आदि पकड़ी गईं।
देश की संसद भी इस विषय पर चर्चा कर चुकी है। ऐसे कारोबार में संलिप्त लोगों को फांसी दिए जाने की मांग तक उठाई जा चुकी है। इसके बावजूद सरकार द्वारा इस दिशा में अब तक कोई भी सकारात्मक क़दम नहीं उठाया गया है। परंतु देश के सर्वोच्च न्यायालय ने देश की जनता की पीड़ा को महसूस करते हुए मिलावटी व नकली दूध बेचने वालों के विरुद्ध शिकंजा कसने का मन बना लिया है। इस संबंध में दायर की गई जनहित याचिकाओं पर दिए गए अपने निर्देश में उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकारों को यह हिदायत दी है कि वे मिलावटी दूध तैयार करने तथा इसकी बिक्री करने वालों को उम्र कैद दिए जाने के संबंध में कानून में उचित संशोधन करें। उच्चतम न्यायालय की जस्टिस के एस राधाकृष्णन एवं जस्टिस ए के सीकरी की खंडपीठ ने यह बात स्पष्ट रूप से कही कि ऐसे अपराध के लिए खाद्य सुरक्षा कानून में प्रदत 6 महीने की सज़ा अपर्याप्त है। अदालत ने देश के अन्य राज्यों से कहा कि वे उत्तर प्रदेश,पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा की ही तरह अपने-अपने राज्यों में कानून में उचित संशोधन करें। गौरतलब है कि गत् वर्ष भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानाक प्राधिकरण ने देश के 33 राज्यों के शहरी व देहाती सभी क्षेत्रों से दूध के 1791 नमूने इक_ किए थे। इसकी जांच के बाद पाया गया कि भारत में बिकने वाला लगभग 70 प्रतिशत दूध खाद्य सुरक्षा के निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करता। राष्ट्रीय स्तर पर किसी केंद्रीय संस्था द्वारा पहली बार इतने बड़े पैमाने पर किए गए इस  प्रकार के सर्वेक्षण की रिपोर्ट ने पूरे देश के लोगों को चिंतित व आश्चर्यचकित कर दिया था। उसी समय संसद में भी ऐसे कुकर्मियों को फांसी देने तक की मांग उठी थी।
हमारे देश में जहां दूध की शुद्धता को तथा दूध के व्यापार को एक पवित्र व्यापार माना जाता है वहीं इसमें मिलावटखोरी करने वाले लोगों को आम लोगों की जान की कीमत के बदले में चंद पैसे कमाने से कोई गुरेज़ नहीं। नकली दूध के व्यापारी केवल दूध में पानी ही नहीं मिलाते बल्कि पशुओं में ज़हरीला इंजेक्शन लगाकर ज़बरदस्ती पशु का दूध उतारने से लेकर रासायनिक व सिथेंटिक दूध बनाने तक का कारोबार करते हैं। नकली दूध के निर्माण में पाऊडर दूध व ग्लूकोज़ के अतिरिक्त डिटर्जेंट पाऊडर, यूरिया खाद तथा हाड्रोजन पराक्साईड जैसी बेहद ज़हरीली चीज़ों का इस्तेमाल किया जाता है। ज़ाहिर है अनजाने में लगातार काफी दिनों तक ऐसे रासायनिक नकली दूध का सेवन करने के बाद कोई भी मनुष्य किसी भी भयंकर रोग का शिकार हो सकता है। यहां तक कि वह कैंसर जैसी बीमारी का भी शिकार हो सकता है। परंतु जानबूझ कर मात्र अपने आर्थिक लाभ के कारण इस प्रकार के अपराधों को अपराधियों द्वारा लगातार अंजाम दिया जा रहा है। मुंबई,जम्मू,राजस्थान तथा हरियाणा सहित और कई राज्यों में कई बार इस प्रकार के नेटवर्क रंगे हाथों पकड़े गए हैं जहां कि ऐसे रासायनिक दूध तैयार किए जाते हैं। त्यौहारों के अवसर पर मिलने वाली नकली मिठाईयों का जनता पर इतना अधिक दुष्प्रभाव पड़ा है कि जागरूक लोगों ने तो अब त्यौहारों के अवसर पर मिष्ठान भंडारों से अपना मुंह ही फेर लिया है। पंरतु देश में यह ज़हरीला कारोबार अब भी धड़ल्ले से चल रहा है।
ज़ाहिर है यह अपराधी बेधडक़ व निडर होकर ऐसे अपराधों को प्रशासनिक संरक्षण में ही अंजाम देते हैं। और दूसरी बात यह भी है कि अपराधियों को यह बात भी खूबी मालूम है कि यदि पकड़े भी गए तो भी एक तो मुकद्दमा चलने व जुर्म साबित होने में ही वर्षों बीत जाएंगे। और यदि वर्षों बाद जुर्म साबित हो भी गया तो भी खाद्य सुक्षा कानून के अनुसार मात्र 6 महीने की ही सज़ा तो होगी। यही सोच अपराधियों के हौसलों को और बढ़ाती है। परंतु यदि आम लोगों के स्वास्थय से खिलवाड़ करने वाले मिलावटखोरों के सिर पर आजीवन कारावास जैसी सज़ा के डर की तलवार लटकेगी तो इस बात की संभावना है कि ऐसे अपराधों में कुछ न कुछ कमी तो ज़रूर आएगी। ऐसे अपराधियों को यदि फांसी की सज़ा दिए जाने का कानून बनाया जाता तो भी देश की जनता को कोई एतराज़ नहीं होगा। क्योंकि मिलावटी व नकली ज़हरीली खाद्य सामाग्री बनाने वालों में से ही वहीं मिलावटखोर भी हैं जोकि मंहगी से मंहगी जीवनरक्षक दवाईयों यहां तक कि इंजेक्शन में भी मिलावट करने से नहीं चूकते। जब इन्हें अपने चंद पैसों की खातिर किसी दूसरे की जान की कोई परवाह नहीं फिर आख़िर समाज में ऐसे खतरनाक लोगों के जि़ंदा रहने का भी क्या औचित्य है?
हमें यह समझना चाहिए कि एक व्यक्तिगत परिवार से लेकर देश व सरकारों तक का संचालन अनुशासन व सख्ती के बिना नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र व आज़ादी का मतलब तथा उसके रचनात्मक परिणाम किसी से छुपे नहीं हैं। बड़े से बड़े जि़म्मेदार पद पर बैठे लोग, बड़े से बड़े धर्माधिकारी स्वतंत्रता का ही लाभ उठाकर क्या-क्या गुल खिलाते नज़र आ रहे हैं। इसका कारण यही है कि इन सब को मालूम है कि व्यवस्था को कैसे मैनेज किया जाता है तथा कानून इन्हें किस अपराध की अधिकतम क्या सज़ा दे सकता है। और इसी वजह से देश में मिलावटखोरी,जमाखोरी,आर्थिक घोटालों जैसे अपराध बलात्कार, छेड़छाड़ जैसी संगीन घटनाएं प्रतिदिन पूरे देश में कहीं न कहीं घटित होती ही रहती हैं। इन अपराधों में संलिप्त लोगों को इसके नतीजों के बारे में भी बखूबी मालूम रहता है। आज चीन जैसे देश में कहीं भी नकली व मिलावटी दूध बेचते या बनाते कोई भी व्यक्ति नज़र नहीं आएगा। इसका कारण यह है कि कुछ समय पूर्व ऐसे दो व्यक्तियों को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया था जिन्होंने मात्र 6 महीने तक चीन में नकली दूध बनाकर बाज़ार में बेचने का अपराध किया था। इनको मिली सज़ा के बाद चीन में किसी दूसरे व्यक्ति की हिम्मत अब तक नहीं हुई कि वह फांसी के फंदे पर जाने की तैयारी करते हुए नकली दूध तैयार कर सके।
लिहाज़ा किसी भी अपराध करने वाले अपराधी को यदि इस बात का ज्ञान बोध है कि उसे उसके अपराध की क्या सज़ा मिल सकती है फिर निश्चित रूप से वह उस अपराध विशेष को अंजाम देने से पहले कई बार सोचेगा। परंतु यदि उसे मालूम है कि वह अपनी जेब में रिश्वत के लिए बांटने हेतु थोड़े से पैसे रखने के बाद कोई भी अपराध अंजाम दे सकता है तथा यदि रिश्वत से भी काम न चला और पकड़ा भी गया तो अधिकतम सज़ा दो-चार या 6 महीने तक की ही हो सकती है। फिर उसे ऐसे अपराध को अंजाम देने में उतनी हिचकिचाहट नहीं महसूस होगी। आज अरब सहित और कई देशों में जहां कानून का सख्ती से पालन होता है वहां अपराध व अपराधियों की संख्या अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। भारत में भी जन संरक्षण के लिए केवल देश की अदालतों को नहीं बल्कि केंद्र व राज्य सरकारों को भी जनहित में खुलकर सामने आना चाहिए तथा अपराधों की गंभीरता व उनके दूरगामी परिणामों को मद्देनज़र रखते हुए सख्त से सख्त कानून बनाने चाहिए। ताकि घोर मंहगाई के इस दौर में आम लोग अपने चुकाए गए मूल्य के बदले कम से कम शुद्ध वस्तुएं विशेषकर खाद्य पदार्थ तो प्राप्त कर सकें। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कली दूध बनाने वाले तथा इसमें मिलावट करने वाले लोगों के विरुद्ध आजीवन कारावास की सज़ा दिए जाने संबंधी जो निर्देश दिए गए हैं उनका सर्वत्र स्वागत किया जाना चाहिए।

 

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