मंगल अभियान : दूसरी धरती की खोज

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mission mangalप्रमोद भार्गव

दूसरी धरती की खोज में भारतीय अंतरिक्ष यान अपने पूर्व निर्धारित समय 2.38 पर छोड़ दिया गया। इस गरिमापूर्ण उपलब्धि को अंजाम चेन्नर्इ से 100 किलोमीटर उत्तर में श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से दिया गया। इस मंगलयान को पीएएलववी-सी-25 राकेट की पीठ पर सवार कराकर धरती की कक्षा में प्रक्षेपण किया गया। पृथ्वी-कक्ष पहुंचने में, मसलन 383 किमी की उंचार्इ तय करने में मंगलयान को महज 44.17 मिनट लगे। इस यान की सफलता की यह पहली सीढ़ी थी। दूसरी बड़ी सफलता इसे तब मिलेगी जब यह 25 दिन तक पृथ्वी के चक्कर लगाते रहने के बाद 30 नवंबर और 1 दिसंबर 2013 की दरम्यानी रात 12.42 बजे पृथ्वी की कक्षा पार कर लेगा। यहां से करीब 40 करोड़ किमी की लंबी यात्रा मंगल ग्रह के लिए शुरु होगी। यात्रा बिना किसी बाधा के तय दिशा में जारी रही तो 300 दिन की उड़ान जारी रखने के बाद मंगलयान 24 सितंबर 2014 को अपने गंतव्य, यानी मंगल की कक्षा में प्रवेश कर जाएगा। यह अभियान सफल रहा तो वाकर्इ भारत उन चंद देशो की कतार में शामिल हो जाएगा, जो मंगल पर अंतरिक्ष यान भेजने की कामयाबी हासिल कर चुके हैं। विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारत की यह उपलब्धि 1974 में किए गए प्रथम परमाणु परीक्षण और फिर 1998 में परमाणु हथियार संपन्न देश घोषित करने के वक्त जैसी है।

ऐसा नहीं है कि भारत का नर्इ धरती की खोज में यह पहला कदम है। इसी हरिकोटा में 13 जुलार्इ 1988 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों ने पहली बार इस दिशा में कदम बढ़ाया था। लेकिन प्रक्षेपण यान से छूटे धुंए के गुब्बारे का अंधेरा छटा भी नहीं था कि मात्र साढ़े तीन मिनट बाद एकाएक यान का अंतरिक्ष नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट गया और यह प्रक्षेपण यान बंगाल की खाड़ी में जा गिरा। चंद पलों में वैज्ञानिकों के स्वप्न चकनाचूर हो गए। लेकिन अब इसरो किसी दूसरे ग्रह यानी मंगल पर यान भेजने की दिशा में सफल होता दिखार्इ दे रहा है। यह सफलता अभी तक रुस, अमेरिका और योरोपीय संघ के ही खाते में दर्ज है। जापान और चीन इस मुहिम में नाकामी के शिकार हो चुके हैं। जाहिर है, भारत यदि अपने लक्ष्य में सफल हो जाता है तो चौथे देश की श्रेणी में आ जाएगा। लेकिन मंगल ग्रह पर यान उतारना एक कठिन चुनौती होने के साथ, बड़ी जोखिम भी है। अब तक कुल जमा 51 मंगल यान पूरी दुनिया में छोड़े गए हैं, जिनमें से विजयश्री केवल 20 अभियानों को ही मिली है। मसलन सफलता की उम्मीद 42 फीसदी है।

इस लिहाज से इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन की इस राय से सहज ही सहमत हुआ जा सकता है कि इससे देश की तकनीकी क्षमता के प्रति भरोसा और अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के आत्मविश्वास को अभूतपूर्व बल प्राप्त होगा। राधाकृश्णन और इसरो के ही पूर्व अध्यक्ष व वैज्ञानिक कस्तूरीरंगन ने इस उद्देश्य का उददेष्य निर्धारित करते हुए दावा किया है कि मंगल की धरती पर मानवीय जीवन की संभावनाएं तलाशी जाएंगी। क्योंकि ब्रह्रमाण्ड में पृथ्वी के अलावा ज्यादातर समानताओं वाला कोर्इ दूसरा ग्रह है, तो वह मंगल ही है। यह संभावना तब पूरी होगी, जब मंगल पर पानी और मीथेन गैसों की उपलब्धता होगी। बहरहाल मंगल पर जीवन की तलाश पूरी होने से पहले ही उत्साही 8000 भारतीयों ने अपनी जगह आरक्षित करा ली है। दरअसल, वैज्ञानिकों ने उम्मीद जतार्इ है कि 2023 तक मंगल की धरती पर इंसानी बसितयों में मंगल के वातावरण के अनुरुप घर बनाने का काम जापान कर लेगा। हालांकि फिलहाल ये दावे कल्पना की कोरी उड़ान लगते है।

किंतु इन कल्पनाओं के उलट एक दूसरी तस्वीर भी प्रस्तुत की गर्इ है। इसरो के ही पूर्व प्रमुख रहे जी माधवन नायर ने दावा किया है कि मंगल पर जीवन की संभावना तलाशने की बात न केवल बेमतलब है, बलिक मूर्ख बनाने जैसी है। क्योंकि मंगल यान के साथ ‘मीथेन सेंसर नामक जो उपकरण भेजा गया है, उसकी क्षमता नगण्य है। इसके जरिए मंगल की धरती पर जीवन के लक्षण नहीं खोजे जा सकते हैं, कयोंकि इस लघु उपकरण से जीवन की संभावना के लिए जरुरी मीथेन गैस खोजने की कोशिश करेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी। यह सेंसर गैस की उपस्थिति को तलाशने में सक्षम नहीं है। उन्होंने अपने मत के समर्थन में कहा कि मार्स रोवर के आकलन के आधार पर नासा सार्वजनिक तौर से कह चुका है कि मंगल पर जीवन की रत्ती भर भी उम्मीद नहीं है। इस षोध के बाद जब कोर्इ जीवन तलाशने की बात करता है, तो वह देश को मूर्ख ही बना रहा है।

डा माधवन के इसी बयान के आधार पर यह सवाल उठा है कि आखिरकार 460 करोड़ रुपए की धनराशि खर्च करके इस मंहगे अभियान से क्या हासिल होने वाला है ? इससे अच्छा तो यह धन शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़कों का ढांचा खड़ा करने में किया जाता। यहां गौरतलब है कि विकास चतुरमुखी और हर क्षेत्र में होना चाहिए, तभी कोर्इ देश बहुउददेशीय सफलताएं हासिल कर सकता है। सवाल उठाया जा सकता है कि राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हमने 450 करोड़ रुपए खर्च किए, आखिर इन खेलों से हमें क्या हासिल हुआ ? इसमें भी एक बड़ी धनराशि भ्रश्टाचार के जरिए कालाधन के रुप में विदेशी बैंको में पहुंचा दी गर्इ।

कोर्इ भी बड़ा मिशन शुरु होता है, तो उस पर व्यावहारिक सवाल खड़े करना बुरी बात नहीं है, लेकिन अनर्गल सवाल उठाना भी ठीक नहीं है। यदि मंगल पर जीवन संभव नहीं भी होता तो इस यान के सफल प्रक्षेपण होने पर मौसम व उपग्रह संबंधी यंत्र बनाने में सहायता मिलेगी। पृथ्वी की सतह और समुद्र में होने वाले परिवर्तनों की पड़ताल करने में मदद मिलेगी। यदि कालांतर ये जानकारियां सटीक मिलने लग जाएंगी तो भूकंप, समुद्री तूफान और मानसून की भविष्यवाणियां भी विश्वसनीय साबित होने लग जाएंगी।

एक प्रश्न यह भी उठाया गया है कि ‘चंद्रयान-1 के सफल अभियान के बाद यदि इसरो इसी मुहिम में लगा रहता तो भारी यानों के अंतरिक्ष में प्रक्षेपण में सफल हो जाता। क्योंकि क्रायोजेनिक इंजनवाला जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लान्च व्हीकल ;जीएसएलवीद्ध को स्वदेशी तकनीक के जरिए विकसित करने में हम अभी तक सफल नहीं हुए हैं। यह सफलता हाथ लग जाती तो चंद्रमा पर जिस हीलियम गैस के विपुल मात्रा में होने की संभावना जतार्इ गर्इ है, उसका निर्मल उर्जा के रुप में दोहन शुरु हो गया होता ? जबकि मंगल पर अभी तक कोर्इ ऐसे तत्व या गैस मौजूद होने के संकेत नहीं मिले हैं, जिनसे धरती पर रहने वाले मनुष्य के जीवन को कोर्इ नया आधार मिले।

लेकिन किसी भी देश को इस बात पर गौर करने की जरुरत है कि नए आविष्कार और अनुसंधानों का महत्व तात्कालिक लाभ से जुड़ा न होने की बजाय, दीर्घकालिक लाभ से जुड़ा होता है। ब्रहमाण्ड के खगोलीय रहस्यों को खंगालने की पहली शुरुआतें भारतीय उपनिषदों में मिलती हैं। और इनकी उपलब्धियां रामायण एवं महाभारतकाल के युद्धों में देखने में आती हैं। राकेट, मिसाइलों और वायुयानों के उपयोग इन्हीं कालखण्डों में किए गए। ग्रहों पर मानव बसितयों के होने और उन पर आवाजाही के ब्यौरे भी रामायण व महाभारत में दर्ज है। अंतरिक्ष में सर्वसुविधायुक्त महल बनाने का भी उल्लेख है। जाहिर है, ये ब्यौरे कवि की कोरी कल्पना नहीं हैं, एक जमाने में ये हकीकत में थे। हजारों साल के अंतराल के बाद यह पहला अवसर है, जब भारत के वैज्ञानिक पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से बाहर किसी खगोलीय पिंड, मसलन मंगलग्रह की नर्इ धरती पर जीवन की तलाश में निकले हैं। यहां किए अध्ययन जीव जगत के लिए कितने लाभदायी साबित होते हैं, यह तो समय तय करेगा, लेकिन फिलहाल इन अंतरिक्ष अभियानों को प्रोत्साहित करने की जरुरत है, जिससे भारत वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल करने में समर्थ साबित हो सके।

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  1. मैं भूल नहीं पाता जब २००३ में लालकिले की प्राचीर से अटल बिहारी जी ने चंद्रयान मिशन की शुरुवात की घोषणा की थी, यह वह सपना था जो सफल हुआ और उसी की निरन्तरता मंगलयान मिशन है. इस मिशन को यहाँ तक पहुंचाने वाले वैज्ञानिक एवं राजनेताओं को धन्यवाद.

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