जन मन गण गाओ

jan gan man
झूठों, पर‌ चाबुक बरसाओ,
सच को ही बस गले लगाओ|
परम्परायें जो भारत की,
लोगों को जाकर समझाओ|

हरिश्चन्द्र की कथा कहानी,
एक बार फिर से बतलाओ|
नवल धवल है कोरी चादर,
इस पर काजल नहीं लगाओ|

झाँसी की रानी के किस्से,
भूलों भटकों को सुनवाओ|
गौतम गाँधी महावीर पर,
एक चित्त हो ध्यान लगाओ|

वीर शिवाजी छत्रसाल को,
अपने जीवन में अपनाओ|
लोभ मोह मद म‌त्सर को तो,
मार मार कर दूर भगाओ|

बन तालाब ठहर न जाना,
निर्झर बनकर बहते जाओ|
राहें सब टेढ़ी मेढ़ी हैं,
ध्यान रहे कि भटक न जाओ|

फूल नहीं मिल पाते तो क्या,
कांटों को ही गले लगाओ|
जब मन में हो कोई दुविधा,
हाथ जोड़ जन मन गण गाओ|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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