वेब पत्रकारिता : चुनौतियाँ और संभावनाएँ- डॉ. सीमा अग्रवाल

    डॉ. सीमा अग्रवाल

    ”सूचना से अधिक महत्वपूर्ण सूचनातंत्र है।”

    ”माध्यम ही संदेश है” नामक पुस्तक में प्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ मार्शल मैक्लूहन की लिखी उक्त उक्ति आज के दौर में नितान्त प्रासंगिक और समसामयिक है। यह सार्वकालिक सत्य है कि सूचना में शक्ति है। पत्रकारिता तो सूचनाओं का जाल है, जिसमें पत्रकार सूचनाएँ देने के साथ-साथ सामान्य जनता को दिशा निर्देश देता है। उनका पथ प्रदर्शन करता है। एक प्रकार से कहा जाए तो पत्रकारिता वह ज्ञान चक्षु है जिसके माध्यम से पत्रकार अपने विचारों को व्यक्त करता है।

    प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों के बारे में जानने की खास दिलचस्पी होती है और इसके लिए माध्यम सदा ही उपलब्ध रहे हैं। पहले अखबार, फिर टी. वी. और अब इंटरनेट। आज खबरों को जानने का टेस्ट बदल गया है। पहले सिर्फ खबरें जान लेना महत्वपूर्ण होता था, बाद में उनके बहुआयामी पक्ष को जानने की ललक बढ़ी और आज तो खबरों का पोस्टमार्टम ही शुरु हो गया है। निश्चित रुप से इस प्रवृत्ति ने कहीं न कहीं लीक से हटकर कुछ नया करने को बाध्य किया है। इसका एक ताजातरीन उदाहरण है- वेब पत्रकारिता। एक उंगली की क्लिक और पूरी दुनिया आपके सामने। वह भी आपकी अपनी क्षेत्रीय भाषा में। एक जिज्ञासु मन को और क्या चाहिए। उसमें भी अगर टी. वी. और अखबार का आनंद बिना रिमोट का बटन दबाए मिल जाए या फिर अखबारों के पन्ने पलटकर शेष अगले पृष्ठ पर देखने से मुक्ति मिल जाए तो उपभोगवादी समाज के लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। शायद आरामतलबी के आदी हो चुके अभिजात्य वर्ग के लिए यह एक वरदान है। वेब पत्रकारिता आज मीडिया का सबसे तेजी से विकसित होने वाला माध्यम बन गया है। अखबारों की तरह वेब पत्र और पत्रिकाओं का जाल अंतर्जाल पर पूरी तरह बिछ चुका है। छोटे बड़े हर शहर से वेब पत्रकारिता संचालित हो रही है। छोटे बड़े सभी शहरों के प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया भी वेब पर हैं। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में थोड़े ही समय में इसने बड़ा मुकाम पा लिया है। हालांकि इसे अभी और आगे जाना है।

    आज मीडिया के पूरे बाजार की नजर हिंदी वेब पत्रकारिता पर है। एक अध्ययन के अनुसार योरोप के लोग सही खबरों के लिए समाचार चैनलों और समाचार पत्रों पर कम, ब्लॉगरों पर अधिक विश्वास करते हैं क्योंकि ब्लॉग के माध्यम से आप न सिर्फ दूसरों की विचारधारा से परिचित होते हैं वरन उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर सकते हैं और अपने ब्लॉग के माध्यम से विश्व के कोने-कोने तक अपनी विचारधारा और लेखनी से लोगों को परिचित करा सकते हैं।

    इसमें दोराय नहीं कि जितना अधिक पढ़ा जाए उतनी ही बहतर लेखन क्षमता का विकास होता जाता है। अंतरजाल और चिट्ठे इसमें भरपूर योगदान कर रहे हैं। हर विषय पर सामग्री प्राय: मुफ्त में उपलब्ध है।

    मुद्रित पत्रिकाओं और साहित्य का दायरा आज अंतरजाल के सामने बहुत सीमित हो गया है क्योंकि इनका एक विशिष्ट पाठक वर्ग है किंतु अंतरजाल की कोई भौगोलिक सीमाएँ नहीं हैं और यह विश्व के कोने कोने में लगभग छपते ही तुरंत उपलब्ध हो जाता है। शायद यही इसकी जीत का मार्ग भी प्रशस्त कर रहा है। हर क्षण कुछ न कुछ नया जुड़ रहा है। अनेक पत्रिकाएँ हैं जो एक स्तरीय सामग्री संयोजित कर पठकों तक ला रही हैं। अंतरजाल पर हिंदी सामग्रियों की संख्या और स्तर दोनों ही बढ़ते जा रहे हैं। हिंदी साहित्य में सूचनाओं का यह माघ्यम प्राण फूँक सकता है। इस भागती दौड़ती दुनिया में सभी के पास समय का अभाव है। किसी को इतनी फुर्सत नहीं कि वह पहले बाजार जाकर पसंद की पत्रिका जगह जगह ढूँढे और फिर उसे खरीदे। आज इंटरनेट पर अभिव्यक्ति, अनुभूति, प्रवक्ता और सृजन गाथा जैसी ऑनलाइन पत्रिकाएँ हैं जिनसे कविताएँ, गज़लें, काहानियाँ आदि सभी विषयों पर प्रचीनतम और नवीनतम दोनों प्रकार की सामग्री बहुतायत में मिल जाती है।

    तेजी से बदलती दुनिया, तेज होते शहरीकरण और जड़ों से उखड़ते लोगों व टूटते सामाजिक ताने बाने ने इंटरनेट को तेजी से लोकप्रिय किया है। कभी किताबें, अखबार और पत्रिकाएँ दोस्त हुआ करती थीं किन्तु आज का दोस्त इंटरनेट है क्योंकि यह दुतरफा संवाद का भी माध्यम है। लिखे हुए की तत्काल प्रक्रिया ने इसे लोकप्रिय बना दिया है। आज का पाठक सब कुछ इंन्स्टेंट चाहता है। इंटरनेट ने उसकी इस भूख को पूरा किया है। वेबसाइट्स ने दुनिया की तमाम भाषाओं में हो रहे काम और सूचनाओं का रिश्ता और संपर्क भी आसान बना दिया है। एक क्लिक पर हमें साहित्य और सूचना की एक वैश्विक दुनिया की उपलब्धता क्या आश्चर्य नहीं है। नयी पीढ़ी आज ज्यादातर सूचना या पाठय सामग्री की तलाश में वेबसाइट्स पर विचरण करती है।

    भारत जैसे देश में जहाँ साहित्यिक पत्रिकाओं का संचालन बहुत कठिन और श्रमसाध्य काम है वहीं वेब पर पत्र-पत्रिका का प्रकाशन सिर्फ आपकी तकनीकी दक्षता और कुछ आर्थिक संसाधनों के माध्यम से जीवित रह सकता है। यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि वेब पत्रिका का टिका रहना उसकी सामग्री की गुणवत्ता पर निर्भर करता है, न कि विपड़न रणनीति पर। जबकि मुद्रित पत्रिकाएँ और अखबार अपनी विपड़न रणनीति और अर्थ प्रबंधन के बल पर ही जीवित रह पाते हैं।

    अखबारों के प्रकाशन में लगने वाली बड़ी पूंजी के कारण उसके हित और सरोकार निरंतर बदल रहे हैं। इस दृष्टिकोण से भी इंटरनेट ज्यादा लोकतांत्रिक दिखता है। वेबसाइट बनाने और चलाने का खर्चा भी कम है और ब्लॉग तो नि:शुल्क है ही। यहाँ एक पाठक खुद संपादक और लेखक बनकर इस मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। स्वभाव से ही लोकतांत्रिक माध्यम होने के नाते संवाद यहाँ सीधा और सुगम है। भारतीय समाज में तकनीक को लेकर हिचक के कारण वेब माध्यम अभी इतने प्रभावी नहीं दिखाई देते परंतु यह तकनीक सही अर्थों में निर्बल का बल है। इस तकनीक के इस्तमाल ने एक अंजाने से लेखक को भी ताकत दी है जो अपनी रचनाशीलता के माध्यम से अपने दूरस्थ दोस्तों को भी उससे जोड़ सकता है। वेब पत्रकारिता करने वालों का दायरा बहुत बड़ा हो जाता है। उनकी खबर एक पल में सारी दुनिया में पहुंच जाती है, जो कि अन्य समाचार माध्यमों के द्वारा संभव नहीं है। मीडिया का लोकतंत्रीकरण करने में वेब पत्रकारिता की मुख्य भूमिका दिखई देती है। विकसित तकनीक की उपलब्धता के कारण वेब पत्रकारिता को नित नये नये आयाम मिल रहे हैं। पहले केवल टेक्स्ट ही उपलब्ध हो पाता था परंतु अब चित्र, वीडियो व ऑडियो आदि भी बड़ी आसानी से विश्व के किसी भी कोने में भेजे जा सकते हैं।

    एक सीमित संसाधन वाला व्यक्ति भी हाई स्पीड सेवाओं को आसानी से प्राप्त कर लेता है। अंतर्जाल पर उपलब्ध साहित्य और पत्रिकाओं को कहीं भी देखा जा सकता है। यहाँ तक कि काम के बीच बचे खाली समय का इस्तेमाल भी इस तरह से बखूबी हो सकता है जबकि मुद्रित पत्रिकाओं को साथ में लेकर चलना हर वक्त संभव नहीं होता।

    जहाँ तक वेब पत्रकारिता में चुनौतियाँ और संभावनाओं का सवाल है, तो इसका भविष्य उज्ज्वल है और इसमें विकास की प्रबल संभावनाएँ हैं। देश में शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है और शहरीकरण तेजी से हो रहा है। साथ ही तकनीक के विकास ने आज शहरों में हर घर में अपनी पहुंच बना ली है। तकनीक के लिए रोने वाला देश अब भारत नहीं रहा। कंप्यूटर, लैपटॉप, पामटौप घर घर की मूल आवश्यकता हो गयी है। तकनीक का रोना कहीं नहीं है। रोना उस पहल का है जहाँ अंतर्जाल भी हिंदी पत्रकारिता का इस्तंभ बन कर निकले।

    आज अखबारों की तरह वेब पत्र और पत्रिकाओं का जाल अंतर्जाल पर पूरी तरह बिछ चुका है। इस बात से अनुमान लगाया जा सकता हे कि भारत में थोड़े ही समय में इसने बड़ा मुकाम पा लिया है, हालांकि समय अभी शेष है और इसे अभी बहुत दूर जाना है। भारत में अभी भी वेब पत्रकारिता की पहुंच प्रथम पंक्ति में खड़े लोगों तक ही सीमित है। धीरे धीरे मध्यम वर्ग भी इसमें शामिल हो रहा है। जहाँ तक अंतिम कतार में खड़े लोगों तक पहुंचने की बात है तो अभी यह बहुत दूर है।

    भारत में वेब पत्रकारिता का विकास तो हो रहा है लेकिन कुछ समस्याएँ इसके तेजी से विकसित होने में आड़े आ रही हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसके लिए एक कंप्यूटर और इंटरनेट सेवा का होना आवश्यक है और इन पर कए अच्छी खासी लागत आती है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग गाँवों में रहता है। शहरी बाजार की तुलना में ग्रामीण बाजार बहुत बड़ा है लेकिन गाँवों के समुचित विकास और पिछड़ेपन की वजह यहाँ का आर्थिक संकट है। साथ ही भारत में बिजली की समस्या गंभीर है। इसकी वजह से साइबर कैफे ठीक से कार्य नहीं कर पाते और लोग इसका समुचित लाभ नहीं ले पाते। वेब पत्रकारिता का सबसे ज्यादा फायदा विदेशों में रहने वाले लोग उठा रहे हैं। हिंदी फॉन्ट की समस्या भी हिंदी वेब पत्रकारिता के विकास को धीमा कर रही है। इसी समस्या की वजह से हिंदी ऑनलाइन वेब पत्रकारिता देर से शुरु हो पायी। हालांकि अब लगभग सभी ई अखबार अपने अपने संसकरण के साथ डाउनलोड करने के लिए फॉन्ट भी देने लगे हैं।

    वेब पत्रकारिता के मार्ग में एक समस्या अलग से टीम न होने की भी है जिसकी वजह से मौलिकता का ईभाव रहता है और खबरें अपडेट नहीं हो पातीं। वेब पत्रकारिता को व्यापक बनाने के लिए आवश्यक है कि इसके लिए अलग से रिपोर्टर रखे जाएँ जो ऑनलाइन रिपोर्ट फाइल तैयार करें। वेब पत्रकारिता को स्थायी रूप से स्थापित करने के लिए इसमें मौलिकता का होना अति आवश्यक है।

    इन कतिपय कमियों के बावजूद इतना निश्चित है कि आने वाले दिनों में वेब पत्रकारिता को वह सम्‍मान हासिल होगा जो प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने पाया है। वेब पत्रकारिता जो व्यवहार में प्रिन्ट और इलेक्ट्रोनिक दोनों पत्रकारिताओं को समेटे हुए है और जिसकी गति के आगे बाकी सारी तकनीकें कहीं नहीं ठहरतीं, अन्य पत्रकारिताओं के लिए एक चुनौती से कम नहीं है। इसके विकास की गति बताती है कि जल्दी ही यह बाकी माध्यमों को पीछे छोड़ देगी। हाँ, इतना अवश्य है कि जहाँ कंप्यूटर या इंटरनेट की सुविधा ही न हो, बिजली या वैसी उर्जा की व्यवस्था न हो, मॉडम न हो वहाँ यह प्रणाली नहीं जा सकती। पर जहाँ ये सुविधाएँ हैं वहाँ वेब पत्रकारिता के लिए अलग से कुछ ज्यादा करने की जरुरत नहीं होती। एक बार ये सुविधाएँ मिल जाने पर काम इतना सस्ता, सुविधाजनक ओर तेज होता है कि अन्य माध्यमों पर जाने की इच्छा ही नहीं होती। वेब पत्रकारिता में संभावनाएँ इस दृष्टि से और भी प्रबल हो जाती हैं कि प्रिन्ट मीडिया की किसी भी खबर के लिए अखबार में कम से कम आठ घन्टे तक समाचारों के लिए इंतजार करना पड़ता है, दूसरी ओर इलेक्ट्रोनिक मीडिया में समय को लेकर कोइ पाबंदी नहीं है। ऐसे में समय और उपलब्धता के साथ ही तात्कालिकता के लिहाज से मीडिया का यह माध्यम ज्यादा कारगर साबित हो सकता है।

    और, अभी चाहे मात्र प्रसार पाने की अभिलाषा हो या इस नये धंधे में उतरने की संभावनाएँ परखने की इच्छा हो, आज शायद ही कोइ अखबार, पत्रिका, रेडियो या टी. वी. चैनल होगा जो वेब पर उपलब्ध न हो और वह भी लगभग मुफ्त। टी. वी. पर विचार पक्ष कमजोर पड़ जाता है और प्रिन्ट में दृश्य श्रव्य की अनुपस्थिति जैसी कमियाँ खटकती हैं लेकिन वेब माध्यम इन दोनों ही कमियों को एक साथ पूरा करता है। यह पढ़ने की सामग्री भी दे सकता है और चलती तस्वीरें और आवाज भी। इसमें पाठक या दर्शक की भगीदारी किसी भी अन्य माध्यम की तुलना में ज्यादा होती है। इसमें काइ संदेह नहीं कि वेब पत्रकारिता समाचार माध्यमों के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में सामने आ रही है, खासकर मुद्रित माध्यमों के लिए। हो सकता है कि इलेक्ट्रोनिक माध्यम मुद्रित माध्यमों को बहुत अधिक नुकसान न पहुंचा पाये हों लेकिन यह माध्यम मुद्रित व इलेक्ट्रोनिक दोनों के लिए चुनौती साबित हो रहा है। जिस तरह से वेब पत्रकारिता में राष्ट्रीय या बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ निवेश कर रही हैं और वेब पत्रकारिता ने जिस तरह अपनी प्ररंभिक अवस्था में ही अपनी खबरों को विशिष्ट रूप देना प्ररंभ कर दिया है वह परंपरागत माध्यमों के लिए खतरे की घंटी है। इसका उदाहरण तहलका डॉट कॉम की मैच फिक्सिंग और रक्षा सौदों में घूसखोरी की कवरेज को कहा जा सकता है। अभी तक विशिष्ट समाचारों के लिए इलेक्ट्रोनिक माध्यम भी अखबारों आदि पर निर्भर थे लेकिन अब विशेष खबरों के लिए आम पाठक वर्ग तथा परंपरागत माध्यम वेब पत्रकारिता के मोहताज हो जायेंगे।

    संक्षेप में आज के आपाधापी के युग में रफ्तार का बहुत महत्व है और वेब पत्रकारिता उस पैमाने पर खरी उतर रही है। वो पाठकों को हर जानकारी उस जगह और उस वक्त सुलभ कराती है जिस जगह और जिस वक्त वे उसकी मांग करते हैं। इस प्रकार वेब पत्रकारिता अन्य माध्यमों को सशक्त चुनौती दे रही है। उसके विकास की अपार संभावनाएँ हैं। वस्तुत: वेब पत्रकारिता ने ”वसुधैव कुटुम्बकम्” के नारे को चरितार्थ कर दिया है।

    (लेखिका गोकुलदास हिंदू गर्ल्स कॉलेज, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश के हिंदी विभाग में वरिष्ठ असिस्टेंट प्रोफेसर है।)

    1 COMMENT

    1. प्रवक्ता.कॉम पर डॉक्टर सीमा अगरवाल जी का लेख पढ़ा अच्छा लगा लेकिन बात यही ख़तम नहीं हो जाती क्यूंकि प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक पत्रकारिता के लिए तो इतने सारे संसथान खुले हैं जिनकी गिनती भी अपने आप में एक शोध का विषय हो सकता है. पर वहीँ वेब पत्रकारिता जिसके बारे में सीमा जी कहती हैं की इनमे संभावनाएं भी बहुत हैं तो उसी हिसाब से संसथान भी तो होने चाहिए क्यूंकि जहाँ तक मेरी जानकारी है उनमे तो देश के जो नामी गिरामी संसथान हैं उनमे अभी तक वेब पत्रकारिता एक छोटे से विषय के रूप में ही पढाया जाता है मुझे लगता है इस और भी ध्यान देना चाहिए की ज्यादा से ज्यादा वेब संसथान खुले और साथ ही उनकी फीस भी कम हो नहीं तो गरीब छात्रों को प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक की ही तरह इनसे भी अछुता रहना पड़ेगा वैसे भी मीडिया के बारे में कहा जाता है की यह भाई भतीजावाद के रिश्तों पर टिका हुआ संगठन है जो अपने को लोकतंत्र का फौर्थ पिलर कहता है. मुझे लगता है की मीडिया पर ये आरोप गलत नहीं है.

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