अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है ….

(गुजरात की स्वर्ण जयंती पर विशेष)

-वीरेन्द्र सिंह परिहार

बहुत पुरानी कहावत है कि ”अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता।” कहने का आशय यह कि एक नेता या शासक चाहे वह कितना भी शक्तिशाली और सक्षम क्यो न हो, अकेले कोई बुनियादी परिवर्तन नही कर सकते, जब तक कि जनता उक्त परिवर्तन के लिए मानसिक रुप से तैयार नही हो। अक्सर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरु अथवा श्रीमती इंन्दिरा गांधी के सन्दर्भ में यही कहा जाता है कि भले ही वह कितने शक्तिशाली रहे हो, पर ”अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता।” लेकिन अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है, यह साबित कर दिखाया है- गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। अपने दस वर्ष के कम समय में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होने गुजरात का जिस ढंग से कायाकल्प किया है, और गुजरात को विकास की नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया है, वह सचमुच में चमत्कृत कर देने वाला है।

कभी वर्ष 1960 में बाम्बे स्टेट को समाप्त कर अलग महाराष्ट्र और गुजरात प्रान्त बनाये गये थे। गुजरात वर्ष 2010 में अपनी स्थापना की गोल्डेन जुबली मना रहा है। गुजरात आज देश में सर्वाधिक कपास उत्पादन करने वाला राज्य है। इसके साथ वह सर्वाधिक मूंगफली उत्पादक राज्य भी है। कपास भी इतनी उत्कृष्ट उत्पन्न करता है कि विदेशो खासकर चीन में उसकी मांग है। गुजरात का गन्ना और दूध उत्पादन में भी प्रमुख स्थान है। उसके दूध के उत्पाद तो पूरे देश में अपनी विशिष्ट बाजार बनाये हुए है। 196024 वर्ग किमी0 क्षेत्रफल वाला एवं 50671017 जनसंख्या वाले गुजरात में आज देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में हिस्सेदारी 39 प्रतिशत है। देश का 80 फीसदी नमक उत्पादन गुजरात में है तो कपड़ा उत्पादन में गुजरात की भागीदारी 25 फीसदी की है। देश के कुल निर्यात में बीस प्रतिशत गुजरात का योगदान है तो देश में 40 फीसदी दवाओं का निर्माण एवं उत्पादन गुजरात में हो रहा है। पेट्रोलियम उत्पाद के क्षेत्र में गुजरात की भागीदारी 67 फीसदी की है। देश के आठ फीसदी गुजरातियों की ये उपलब्धियां निश्चित रूप से अविश्वसनीय लगती है। बेहतर सड़क, दूरसंचार, मजबूत आधारभूत ढांचे, सटीक वैज्ञानिक सलाह और सुगम बिक्री तंत्र के चलते गुजरात का कृषि उत्पादन पचास हजार करोड़ रूपये के पार पहुंच गया है। पूरे देश की कृषि विकास दर जहां दो से ढ़ाई प्रतिशत के आसपास है, वही गुजरात में कृषि विकास दर दस प्रतिशत पहुंचने की संभावनाएं जताई जा रही है, यह कृषि विकास दर विश्व में सर्वाधिक है। लेकिन यह सब ऐसे नही हुआ। कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये बंजर भूमि विकास अनुबंध कृषि, कृषि बिक्री तंत्र नियमन, भूमि एवं जल संरक्षण, लघु सिचाई एवं आपदा प्रबंधन सम्बन्ध उपाय किए गए है। बिक्री तंत्र को मजबूती देने के लिये कृषि आधारित निर्यात क्षेत्र बनाए गए है। मृदा संरक्षण और परीक्षण, सिंचाई प्रबन्धन, ज्योतिग्राम योजना के तहत किसानों को 24 घंटे बिजली, बिक्री तंत्र और अन्य प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है। इसके अलावा खेती आधारित उद्योग धंधों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

पूरे गुजरात में रिकार्ड 200 लाख पशु है। बनास, साबर, और सहयोग जैसी डेयरियों ने विश्वस्तर पर अपनी पहचान बनाई है। लगभग 13 जिलों में 12 हजार 792 दुग्ध सहकारी समितियां है जिनसे 26 लाख परिवार जुड़े है। वर्ष 2001 में राज्य में कृषि उत्पादन मात्र नौ करोड़ रूपए था जो वर्ष 2007-08 में 34 हजार करोड़ रूपये तक पहुंच गया। सरकार ने ऐसे इन्तजाम किए जिससे किसानों की लागत में कमी आई, और उनका उत्पाद समय पर बाजार में पहुंचने लगा। गांवो को सड़कों से जोड़ा गया। एक अध्ययन के अनुसार गुजरात की ग्रामीण सड़के पूरे देश में सर्वश्रेष्ठ है और राज्य के तकरीबन 98.7 प्रतिशत गांवो को पक्की सड़कों के जरिये जोड़ा जा चुका है। एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी है कि गुजरात में 87 प्रतिशत कृषि क्षेत्र की सिंचाई भूमिगत जल से की जाती है, मात्र 13 प्रतिशत की सिंचाई भूतल के जल स्रोतो से होती है। कृषि के अलावा राज्य मे 7 हजार हेक्टेयर भूमि पर फूलों की खेती होती है, इसके अलावा औषधीय पौधों की भी खेती होती है। राज्य सरकार 12 फलों की खेती पर विशेष ध्यान दे रही है, जिनमें चीकू, केला, आम, पपीता और नींबू इत्यादि प्रमुख है।

भारत सरकार विगत कई वर्षो से गंगा-काबेरी समेत देश की प्रमुख नदियों को जोड़ने की बात करती रही है। एन.डी.ए. शासन के दौरान अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस दिशा में गंभीरता से विचार करते हुए इस चिरप्रतीक्षित योजना को साकार रुप देने का प्रयास किया था, लेकिन वर्ष 2004 में एन.डी.ए. सरकार जानें और यू.पी.ए. सरकार आने पर इस महत्वाकांक्षी योजना को तितांजलि दी गई। बावजूद इसके गुजरात मे नरेन्द्र मोदी ने नदियों को जोड़ने की योजना को साकार कर दिखा दिया। जो साबरमती नदी गर्मियों में सूख जाती थी, और नर्मदा का पानी ब्यर्थ समुद्र में बह जाता था, उस साबरमती नदी को नर्मदा नदी से जोड़ने का परिणाम यह हुआ कि साबरमती नदी से अहमदाबाद शहर को भरपूर पानी मिल रहा है। इससे गुजरात में जो अन्य नदिया भी सूखी रहती थी वह भी जलमग्न रहती है, क्योंकि नर्मदा में जब कभी बाढ़ आती है तो वह पानी नहरों के माध्यम से दूसरी नदियों में डाल दिया जाता है। गुजरात में इन नदियों को जोड़ने का दूरगामी परिणाम यह हुआ है कि सिर्फ नदियां ही जल से भरपूर नही रहती, बल्कि अन्य जलाशय, कुंए एवं टयूबबेल भी रिचार्ज रहते है। उत्तर गुजरात का बनासकाठा जिला सदैव सूखा पीड़ित रहता था, मगर अब ऐसा नही है। नर्मदा परियोजना के माध्यम से गुजरात की 23 नदियां जुड़ जाने से गुजरात में एक क्रान्तिकारी बदलाव हो गया है और गुजरात पूरी तरह सूखा बाढ़ एवं जल संकट से मुक्त हो चुका है। जैसा कि कहा गया है कि ”प्रत्यक्षं किं प्रमाणम” और इससे केन्द्र सरकार भी प्रेरणा लेकर इस दिशा में आगे बढ़ सकती थी। पर ऐसी महत्वाकांक्षी योजनाओं का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन नरेन्द्र मोदी जैसा राजनेता ही कर सकता है। जो दावे के साथ कह सकता है – मैं न खाता हूं और न खाने देता हूं।

वर्ष 2002 के गुजरात दंगो को लेकर मोदी के विरुद्ध बहुत कुछ अब तक प्रचारित किया जा रहा है। लेकिन यह एक अहम सच्चाई है कि सन 1970 से 2002 के बीच 443 दंगों का इतिहास रखने वाला गुजरात आज पूरी तरह दंगा मुक्त हो चुका है। जैसा कि वीर संघवी ने 21 अप्रैल 2002 को हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा था – यह दंगे गोधरा के जवाब में थे। जहां तक गोधरा का सवाल है तो यह सभी को पता है कि अयोध्या में रामजन्म भूमि में प्रतीकात्मक कारसेवा करके लौट रहे 58 रामभक्तों को जिनमें महिलायें एवं बच्चे भी थे, साबरमती एक्सप्रेस में 27 फरबरी को मुस्लिम अतिवादियों द्वारा जिंदा जला दिये गये थे। असलियत यह भी है कि 2002 के गुजरात दंगे वर्ष 1984 के सिक्ख विरोधी दंगो की तरह एकतरफा नही थे, क्योंकि इनमें जहां 662 मुस्लिम मारे गये थे वही 190 हिन्दू भी मारे गये थे जबकि इनमें 80 हिन्दू पुलिस की गोली से मारे गये थे। जबकि 1968 के अहमदाबाद के दंगो में ही 1800 लोग मारे गये थे।

अब 2002 के गुजरात दंगो को लेकर चाहे जितना हो-हल्ला मचाया जावे, पर असलियत यह है, कि मोदी के विरुद्ध इतने घनघोर मुस्लिम विरोधी प्रचार के बावजूद पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हे 24 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिला था। यहां तक वर्ष 2008 के नगर निगम चुनावो में गोधरा जैसे नगर निगम में भी जो मुस्लिम बाहुल्य है, और जहां पर सदैव कांग्रेस जीतती थी वहां के नगर निगम में भाजपा को बहुमत मिला। आने वाले समय में इस बात की पूरी संभावना है कि मुस्लिमो में मोदी के प्रति पूरी तरह भ्रान्तियां दूर हो सके, और वह राष्ट्रवादी अधिष्ठान के आधार पर हिन्दु-मुस्लिम एकता के सच्चे सेतु बन सके।

यह भी सभी को पता होगा कि गत वर्षो आतंकवादियों ने अहमदाबाद में विस्फोट कर लोगों की जाने ली थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि अमूमन आतंकवादियों ने इधर 2-3 वर्षो में पूरे देश में जितनी बडी वारदातें की थी, उन सभी के सूत्र मिल गए, और आतंकवादी पकडे गए। तभी से गुजरात में ही नही, बल्कि पूरे देश में कोई बड़ी आतंकी घटना नही हुई। कहने का आशय यह है कि जिन आतंकवादियों को पकडना तो दूर उनके सुराग तक नही मिल पाए थे उन्हे नरेन्द्र मोदी के चलते गुजरात पुलिस ने धर दबोचा और आतंकवादियों की कमर तोडने में अहम रोल निभाया।

कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि – अकेला चना भी भाड़ फोड सकता है। इतिहास में इस बात के उदाहरण है, जब कमाल अतातुर्क ने कठमुल्लापन से ग्रस्त टर्की को एक विकसित और आधुनिक राष्ट्र में बदल दिया था। लेकिन कमाल अतातुर्क और नरेन्द्र मोदी में बड़ा फर्क है । कमाल अतातुर्क पूरे तुर्की के तानाशाह थे, जिन्हे कुछ भी करने में कोई रोक-टोक नही थी। जबकि नरेन्द्र मोदी ठहरे मात्र एक राज्य के मुख्यमंत्री, जिनके सिर पर सदैव केन्द्र सरकार की तलवार लटकी रहती है। फिर भी नरेन्द्र मोदी ने गुजरात का जिस ढंग से कायाकल्प किया है, उससे इस बात का एहसास तो हो ही जाता है, कि यदि राम जैसे राजा हो जिनका लक्ष्य लोक आराधना हो तो रामराज्य आने में कोई समस्या नही है। इसी तरह से कहा जा सकता है कि मोदी जैसे राष्ट्र एवं जनता के लिए प्रतिबध्द शासक हो तो इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी आमूल-चूल परिवर्तन होना असंभव नही है।

1 COMMENT

  1. भ्रष्टाचार को भी घटाया पर कैसे?
    पढिए।”– अकेला चना भी भाड़ फोड सकता है|” एक अनुकरणीय उदाहरण।
    “स्वागत” नामक एक अनूठी पहल है, जो गुजरात के नागरिकों एवं मुख्यमंत्री के बीच, सीधे संवाद की सुविधा प्रदान करती है।
    (१) गान्धीनगर में, प्रत्येक माह का चौथा गुरुवार स्वागत दिन होता है, जिसमें प्रशासन का उच्चतम कार्यालय, आम जनता की शिकायतों के बारे में, सुनता है और उनपर कार्यवाही करता है।
    (२) सत्र के समयमें –
    (३) * शिकायतें लॉगइन की जाती है, और सम्बद्ध अधिकारियों को ऑनलाइन प्रेषित कर उपलब्ध कराई जाती है, जिन्हें 3 से 4 घंटों में उत्तर तैयार करना होता है।
    (४)* इसके बाद सम्बद्ध विभागों को दोपहर के तीन बजे से पहले उत्तरों के साथ तैयार रहना पडता है, जब मुख्यमंत्री, सम्बन्धित ज़िलों के साथ विडियो कॉन्फ्रेंस करते हैं।
    (५) * अर्ज़ियां एक के बाद एक प्रस्तुत की जाती है, एवं, मुख्यमंत्री प्रत्येक शिकायत का विस्तार से परीक्षण करते हैं।
    (६)* विभाग द्वारा भेजी गई जानकारी का पुनरावलोकन भी शिकायतकर्ता तथा जिलाधीश/ज़िला विकास अधिकारी/पुलिस अधीक्षक एवं अन्य सम्बन्धित अधिकारियों की उपस्थिति में किया जाता है।
    (७) * उचित एवं मान्य हल उसी दिन प्रदान किए जाने का प्रयास किया जाता है तथा आजतक कोई भी शिकायतकर्ता कभी भी उसकी शिकायत के प्रति ठोस जवाब के बिना नही लौटा है।
    यदि मु. मंत्री व्यक्तिगत रूपसे भ्रष्ट ना हो,तो यह हो सकता है। मैने यह भी सुना, पढा है, कि शिवराज चौहानभी कुच ऐसा कर रहे हैं।
    सारी पार्टीयां ऐसी कार्यप्रणालीसे, निश्चित लाभान्वित होंगी।देश आगे बढेगा।

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