भोपाल गैस हादसा अब भी लोगों के जेहन में है। घटना की 25 वीं बरखी पर हर साल की तरह रैली व प्रदर्शनों का दौर चल पड़ा है। इसके आगे जारी रहने की संभावना है। 2-3 दिसंबर 1984 की रात को याद कर लोग अब भी सहम जाते हैं। नई पीढ़ी उस बारे में सोच कर कांप जाती है।
आज पर उस भीषण घटना के 25 वर्ष पूरे हो रहे हैं तो तमाम गैर सरकारी संगठन रैली और गोष्ठी का आयोजन कर लोगों को आगाह कर रहे हैं कि वे इससे सबक लें।
गौरतलब है कि भोपाल में यूनियन कार्बाइड संयंत्र से गैस रिसने से सैकड़ों लोगों को मौत हो गई थी। हजारों लोगों पर इसका प्रभाव पड़ा था। इसके 25 साल होने पर भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन, भोपाल ग्रुप आफ इंफोर्मेशन एंड एक्शन, गैस पीड़ित संघर्ष सहयोग समिति आदि संगठनों ने कार्यक्रमों का आयोजन किया है।
इस मौके पर भोपाल स्थित राष्ट्रीय विधि संस्थान विश्वविद्यालय में पांच और छह दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया है।
अचानक पी.एण्ड.टी कॉलोनी के पास से गुजरते हुए याद आया कि दुर्ग स्टेशन पर एक मित्र छोटू ने कहा था..भाई भोपाल जा रहे हो वहाँ कॉलोनी मेरे एक रिश्तेदार रहते हैं कदीर अहमद ..हो सके तो..। हम लोग उसी कॉलोनी के भीतर थे ,कदीर अहमद का मकान मिल गया .. हम उन्हे देख रहे थे लेकिन घर का कोई सदस्य हमें नहीं देख पा रहा था , गैस की वज़ह से सभी की आँखें सूजी हुई थी । अचानक याद आया ..अरे आज तो ईदे-मिलादुन्नबी है.. मैने जैसे ही आदतन ईद मुबारक कहा वे फूट फूट कर रोने लगे पता चला कि उस घर के बाकी लोग तो बच गये थे लेकिन बुज़ुर्ग जो भाग नहीं पाये थे वे बच नहीं पाये थे ।और कमोबेश हर घर का यही हाल था । सबसे ज़्यादा मारे गये वे ग़रीब जो खुले में रहते थे । जो लोग बन्द कमरों मे सो रहे थे वे बच गये । हाँलाकि कौन बच गया और कौन नहीं बच सका इसका कोई मापदंड नहीं था । कुछ लोग आँख में जलन की वज़ह से पानी के छींटे मारते रहे सो गैस के पानी में घुलनशील होने की वज़ह से बच गये । कुछ लोग भागकर सुरक्षित स्थानो पर चले गये सो बच गये तो कुछ भागने के कारण ज़्यादा गैस साँस के साथ लेने की वज़ह से मर गये ..। सब कुछ गड्डमडड हो रहा था .. लोग इतने असहाय थे कि किसीकी समझ मे यह नहीं आ रहा था कि इन मौतों का असली ज़िम्मेदार तो यह मल्टीनेशनल है ..यह यूनियन कार्बाइड का खूनी कारखाना ।——शरद कोकास