आप की अग्नि परीक्षा

-रवि श्रीवास्तव-
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एक साल पहले बनी आम आदमी पार्टी ने राजनीति में उथल-पुथल कर दिल्ली में अपनी सरकार बना तो ली थी, पर पहले ही दिन से उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अपने वादों को लेकर दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप ने कांग्रेस जैसी बड़ी राजनीतिक पार्टी को मात दिया। और उसी दिन से आप की अग्नि परीक्षा शुरु हुई। पहले सरकार बनाने के लिये वह गठबंधन किससे करे। इस बात पर उसे राजनीति का ताना झेलना पड़ा। जब कांग्रेस से गठबंधन कर सरकार बनाई, तो राजनीतिक दलों ने आप की खिल्ली उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। एक तरफ कांग्रेस को भ्रष्ट बताने वाली पार्टी ने उसी से समर्थन ले सरकार बनाई।

सरकार बनाने के बाद आप की असली परीक्षा शुरू हुई जिसमें ज़नता से किये हुये वादे जल्द से जल्द कैसे पूरे किये जायें। मंत्रिमंडल के गठन को लेकर पहला विवाद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में उठा। मंत्रिमंडल में शामिल न होने से विधायक विनोद कुमार विन्नी पार्टी से काफी ख़फ़ा नज़र आये। ख़ैर मामला थोड़ा ठंडा पड़ा। पर कुछ ही दिनों में कानून मंत्री बने सोमनाथ भारती पर कोर्ट द्वारा सबूतों से छेड़-छाड़ का आरोप लगा जिसे लेकर विपक्ष और समर्थन दे रही कांग्रेस ने उनके इस्तीफे की मांग की। कानून मंत्री के बचाव में खुद मुख्यमंत्री मैदान में उतरे। इस वाकिये को बीते अभी कुछ ही दिन गुजरे थे। दोबारा से कानून मंत्री आरोपों के घेरे में आ गिरे। इस बार का मामला विदेशी महिला से छेड़-छाड़ और पुलिसकर्मी से बदसुलूकी से बात करने का था। जिसे लेकर राजनीतिक दलों ने आप पर फिर से चढ़ाई कर दी। बात तो साफ थी कानून मंत्री के द्वारा कानून की धज्जियां उड़ाना किसी भी तरह से शोभा न देता। दिल्ली में 49 दिन तक चली आप की सरकार से लोगों को उम्मीद बंधी थी। पर क्या हुआ, वादों के अनुसार घोषणा तो की पर नतीजा शून्य निकला और केजरीवाल ने अपने मंत्रिमण्डल सहित मुख्यमंत्री पद से राजीनामा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद केजरावाल लोकसभा चुनाव की तैयारी में जरूर व्यस्त रहे, पर उनके इस फैसले से ज़नता अपने आप को ठगा महसूस कर रही थी। जिसका पूरा ख़ामियाजा लोकसभा चुनाव में आप को भुगतना पड़ा। चुनाव में करारी शिकस्त के बाद आप के अंदर कहर सा टूट पड़ा। पार्टी के मची कलह से पार्टी चितर-वितर होने लगी। पार्टी नेताओं ने आप से अपना नाता तोड़ना शुरू किया। पहले गाजियाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ी शाजिया इल्मी ने पार्टी को अपना इस्तीफा भेजा। साथ आरोप भी लगाया की पार्टी में सिर्फ चंद लोगों की चलती है।

पार्टी के अंदर तानाशाही रवैया अपनाया जा रहा है। इसके पार्टी की गतिविधियों से नाराज हो आम आदमी पार्टी की नेता अंजिल दामानिया ने भी अपना इस्तीफा दे दिया था, पर जब उन्हें आश्वस्त किया गया कि नए सिरे से एक पारदर्शी प्रदेश कार्यकारिणी का गठन किया जाएगा तो उन्होंने इस्तीफे का अपना फैसला वापस ले लिया है। चुनाव के बाद पार्टी पर आरोप लगाने वाले आप नेता योगेंद्र यादव तीसरे व्यकित थे, जिन्होंने पार्टी के ऊपर सवालिया निशान उठाए कि पार्टी के अंदर सारी शक्तियां एक जगह सीमित होती जा रही है। इस बात को लेकर आप में काफी बवाल भी मचा। और योगेंद्र यादव ने भी आलाकमान के सामने अपने इस्तीफे की पेशकश की हालांकि उसे न मंजूर कर दिया गया। यादव ने कहा कि मनीष कि कोई बात मुझे बहुत बुरी लगी, इस वजह से मैंने ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया है। पार्टी को सजोने में जुटे केजरीवाल ने भी ट्वीट किया था कि योगेंद्र मेरे अच्छे मित्र हैं। उन्होंने कुछ अहम सवाल उठाए हैं जिस पर हम सब काम कर रहे हैं। आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल पार्टी के कार्यकर्ताओं का टूटता मनोबल देख पार्टी को बचाने के पहल में जुट गए है। दिल्ली में पत्रकार वार्ता कर केजरीवाल ने कहा कि हम पार्टी का नए सिरे फिर से गठन करेंगे। साथ ही पार्टी छोड़ चुकी आप नेता शाजिया इल्मी को मनाकर पार्टी में दोबारा वापस लाने की बात भी की। बात कुछ भी हो पर इस नवेली पार्टी को दिल्ली में कामयाबी पहली बार में मिल गई थी। उस कामयाबी का फायदा न उठाने का केजरीवाल को अब अफ़सोस भी हो रहा है। बात तो साफ है कि आम आदमी पार्टी (आप) जब दिल्ली में सरकार में थी, तब अपने वादों को पूरा करने के लिए अग्नि परीक्षायें दे रही थी और अब लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद खुद केजरीवाल ने कबूल किया की दिल्ली में सत्ता में आने के बाद जल्दवाजी में गद्दी छोड़कर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। पर हाल तो वही हुआ जो कहावत कही गई है (अब पछताए हो क्या जब चिड़िया चुग गई खेत। हरियाणा के विधानसभा के चुनाव को मद्देनज़र अब केजरीवाल और उनके पार्टी के नेता ज़नता का भरोसा जीतने की कोशिश कर रहे हैं। अब पार्टी के हरियाणा प्रभारी योगेंद्र यादव ने भी कह दिया कि लोकसभा चुनाव में करारी हार का कारण दिल्ली में केजरावाल का मुख्यमंत्री के पद को त्यागना है। सच बात तो है इसमें ज़नता का क्या कसूर जिस तरह से उसमें दिल्ली की सत्ता आप के हाथों में दी थी, तो उसके विश्वास को तोड़ना कहा तक सही है, पर शुरू से केजरीवाल के बातों पर ध्यान दिया जाए तो वो तो पहले भी कह दिए थे कि सरकार 48 घंटे की है ये लोग सरकार गिरा देंगे। अब 48 घण्टे न सही 49 दिन ही सही सरकार तो गिर ही गई। अब आप की निगाह हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। पर अब देखने वाली बात यह है कि आम आदमी पार्टी इस विधानसभा के चुनाव में ज़नता का भरोसा कितना जीत पाती है।

1 COMMENT

  1. भाजपा से निराश लोग आप का हो दामन थामने जा रहे हैं देखते जाइये

  2. लेखक का विश्लेषण बहुत हद तक सही है.ऐसे अपने समर्थकों के निराशा और क्रोध के मद्दे नजर अरविन्द केजरीवाल माफ़ी अवश्य मांग रहे हैं,पर उनकी सरकार का उसी अंतराल में जाना एक तरह से निश्चित था.आअप सरकार का दोष यही था कि इस्तीफा देने के पहले उन्होंने जनता का मन फिर नहीं टटोला.इसको अधिक से अधिक एक नीतिगत (Tactical) भूल कहा जा सकता है.
    रही बात हरियाणा में चुनाव जीतने की,तो आज के माहौल में आआप के चुनाव में जीतने की केवल वहीँ उम्मीद की जा सकती है,जहां ऐंटि इन कोमबेंसी फैक्टर भाजपा या उसके सहयोगियों के विरुद्ध जा रहा हो. केवल दिल्ली इसका अपवाद हो सकता है.

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