इंसान हूं नादान हूं…
बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं…
अपनी दुआओं पर है मुझको ऐतबार,
तेरे रहमों करम पर भी है मुझको इख्तियार,
तू सोचता होगा है, तुझ पर यकीन,
फिर भी क्यों अंजान हूं…
कहा न इंसान हूँ नादान हूं…
बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं…
इंसान हूं नादान हूं…
बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं…
अपनी दुआओं पर है मुझको ऐतबार,
तेरे रहमों करम पर भी है मुझको इख्तियार,
तू सोचता होगा है, तुझ पर यकीन,
फिर भी क्यों अंजान हूं…
कहा न इंसान हूँ नादान हूं…
बेसब्र हूं क्योंकि फिक्रमंद हूं…
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता ने जन-जागरण में अहम भूमिका निभाई थी लेकिन आज यह जनसरोकारों की बजाय पूंजी व सत्ता का उपक्रम बनकर रह गई है। मीडिया दिन-प्रतिदिन जनता से दूर हो रहा है। ऐसे में मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाजिमी है। आज पूंजीवादी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की जरूरत रेखांकित हो रही है, जो दबावों और प्रभावों से मुक्त हो। प्रवक्ता डॉट कॉम इसी दिशा में एक सक्रिय पहल है।