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कविता : एक थी आरुषि - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
एक थी आरुषि हंसती खिलती एक सुकुमारी, माता-पिता की संतान वो प्यारी, एक रात न जाने कौन कंही से आकर, उसको मार गया। मां बाप को उसकी मौत पर, रोने का अवसर भी न मिला। बिन जांचे परखे ही पुलिस ने बेटी का चरित्र हनन किया। जो भी सबूत मिले…