कसमें वादे निभायेंगे न हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम
जनता ने चुनकर भेजा है
चुन- चुनकर खायेंगे
पांच साल बाद खाने का कारण
विस्तार से उन्हें बतायेंगे
कसमें वादे निभायेंगे न हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम
हीरा-मोती, सोना-चांदी तो है ही
बस थोड़ा और रुक जाइये
जंगल,जमीन के साथ साथ
कोयला भी सब खा जायेंगे
कसमें वादे निभायेंगे न हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम
छोड़ दिया जब लज्जा व शर्म
तब काहे का कोई गम
जारी रहेगा यूँ ही खाने का खेल
फूटे करम तभी जाना पड़ेगा जेल
कसमें वादे निभायेंगे न हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम
खाने का अब चल पड़ा एक सिलसिला है
सचमुच,खाना विज्ञानं नहीं एक कला है
खाते- खाते लोग कहाँ – कहाँ पहुँच जाते हैं
क्या ऐसे पराक्रमी लोग कभी पछताते हैं ?
कसमें वादे निभायेंगे न हम
मिलकर खायेंगे जनम जनम !