गाय का दूध और हमारा स्वास्थ्य

indian cowराकेश कुमार आर्य
गाय का दूध मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए अमृत माना गया है। आजकल तनाव का रोग बहुत मिलता है, इसका प्रभाव हमारी स्मरण शक्ति पर भी पड़ता है। तनाव के कारण अथवा चिड़चिड़ाहट मानसिक दुर्बलता, शारीरिक थकान, कार्य की अधिकता, मस्तिष्क में अपेक्षा से अधिक कार्यों को समेटकर रखने की हमारी प्रवृत्ति के कारण हमारी स्मरण शक्ति दुर्बल हो जाती है। मनुष्य प्रात:काल से सायंकाल तक ध्यान अथवा प्रभु भजन के लिए समय ही नही निकाल पाता। यदि हम प्राणायाम एवं व्यायाम नित्य प्रति करें तो हमारी मानसिक दुर्बलता दूर हो सकती है, परंतु उसके लिए भी आजकल मनुष्य के पास समय नही है। इसीलिए प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी प्रकार के रोग से पीड़ित है, परंतु स्मरण शक्ति की दुर्बलता तो अधिकांश लोगों में मिल जाती है।
स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए यों तो कई प्रकार के आसन, प्राणायाम, व्यायाम, प्रात:काल की सैर, प्रात:काल की ओसयुक्त घास पर टहलना जैसे उपाय तो हैं ही परंतु गाय का दूध इन सबसे बढ़कर प्रभाव दिखाने वाला है।
नेत्र ज्योति एवं स्मरण शक्ति बढ़ाने में सहायक गाय का दूध : सौंफ, बादाम, मिश्री इन तीनों को समभाग लेकर कूटपीस कर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को रात्रि में गाय के दूध के साथ सोने से पहले अंतिम खाद्य पदार्थ के रूप में 10 ग्राम (एक तोला) सेवन करें। 40 दिन के सेवन से नेत्रों के विकार दूर हो जाते हैं, यथा आंखों में खुजली होना, असमय चश्मे चढ़ जाना, पढ़ते पढ़ते आंखें दुखने लगना इत्यादि। यह योग चश्मे छुड़ाने तक में सहायक है। परंतु इस योग को करने से पहले यह देखना आवश्यक है कि रोगी को नजला न होता हो, क्योंकि ठंडी चीजों का सेवन करने के उपरांत ऐसे लोगों को नजला हो सकता है। तब ऐसे रोगियों को सौंफ, बादाम और मिश्री के साथ कुछ कालीमिर्च डाल लेनी चाहिएं।
चबच्चों को उक्त दस ग्राम की मात्रा का आधा ही दें। इस योग से जहां नेत्र ज्योति बढ़ती है वहीं स्मरण शक्ति में भी वृद्घि होती है।
चआंखों को स्वस्थ रखने के लिए चार बादाम रात्रि में पानी में भिगोयें और सुबह पीसकर चार काली मिर्च के साथ मिश्री के साथ चाटें और ऊपर से गाय का दूध ले लें। इस योग से कभी भी दृष्टिï मंद नही होगी। गाय का दूध सोने पर सुहागे का काम करेगा।
चसात दाने बादाम गिरी सांयकाल किसी कांच के बर्तन में जल में भिगो दें। प्रात: उनका लाल छिलका उतारकर बारीक पीस लें। यदि आंखें कमजोर हों तो साथ ही चार काली मिर्च पीस लें। इसे उबलते हुए 250 ग्राम गाय के दूध में मिलायें, जब तीन उफान आ जाएं तो नीचे उताकर एक चम्मच देशी गाय का घी और दो चम्मच बूरा डालकर ठंडा करें। पीने योग्य गर्म रह जाने पर इसे आवश्यकतानुसार 15 दिन से 40 दिन तक प्रयोग करें। इस प्रकार लिया गया गाय का दूध मस्तिष्क और स्मरण शक्ति की दुर्बलता को दूर करता है और मनुष्य में ओज, तेज एवं वीर्य की वृद्घि करता है।
चयह बादाम का दूध सर्दियों में विशेषकर लाभप्रद है, और जो लोग मस्तिष्क और बुद्घि का अधिक कार्य करते हैं उनके लिए अत्यंत उपयोगी है। प्रात:काल यदि आप इस दूध को लेते हैं तो दूध लेने के दो घंटे पश्चात तक कुछ न खायें पियें। उपरोक्त बादाम का दूध तीन चार दिन पीने से ही आधे सिर के दर्द में लाभ होने लगता है। यहां पर यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बादाम को चंदन की भांति जितना अधिक बारीक रगड़-रगड़कर पीस लिया जाएगा, उतना ही हमारे लिए लाभकारी होगा।
च आधे सिर का दर्द : गाय का ताजा घी सुबह शाम दो चार बूंद नाक में रूई से टपका लें अथवा सूंघते रहने से आधा सीसी अथवा आधे सिर का दर्द हो जाता है। साथ ही इस योग से नाक से रक्त आ जाने की बीमारी का भी जड़मूल से नाश हो जाता है। (सात दिन तक लें)
च कोष्ठबद्घता या कब्ज: गाय के गर्म दूध के साथ यदि रात्रि में सोते समय एक तोला ईसबगोल का प्रयोग किया जाए तो पेट में कभी कोष्ठबद्घता अथवा कब्ज का रोग नही हो सकता। इसके नियमित सेवन से प्रात:काल पेट सहजता के साथ साफ हो जाता है और मल बंधा हुआ आता है। पेट के रोगियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि मल कभी भी ना तो अधिक ढीला हो और ना ही अधिक कठोर हो। मल यदि बंधा हुआ लोचदार आता है तो समझना चाहिए कि आंतों में खुश्की नही है, ना ही आंतों में मलावरोध है, और ना ही पेट में गैस बनती है। इसलिए आंतों को इन रोगों से बचाए रखने के लिए ईसबगोल और गाय का दूध रामबाण औषधि है।
च दस्त होने पर : एक कटोरी गाय के दही में यदि एक तोला ईसबगोल मिलाकर रोगी को दे दिया जाए तो रोगी के दस्त बहुत शीघ्र शांत हो जाएंगे। लेखक के द्वारा यह योग कितनी ही बार अनुभूत है। आजकल के चिकित्सक दस्तों के रोगियों से चिकित्सा के नाम पर बहुत सा धन ऐंठ लेते हैं, परंतु यह योग बहुत ही सस्ता और अतीव गुणकारी है।
च मूत्र कम आने का रोग:ऐसे रोग अक्सर वृद्घावस्था में होते हैं। इन रोगों से पीड़ित कितने ही वृद्घ हमें मिलते रहते हैं, ऐसे लोगों को यदि दो छोटी इलायची पीसकर गाय के दूध के साथ देदी जाएं तो उन्हें पेशाब खुलकर आने लगता है और मूत्रदाह (पेशाब में जलन) का रोग भी शांत हो जाता है।
च खूनी और बादी बवासीर : गाय के दूध की छाछ खूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर में लाभकारी है। सूखे नारियल की जटा को जलाकर राख बनाकर छानकर रख लें। इस नारियल जटा भस्म को तीन-तीन ग्राम की मात्रा में दिन में तीन बार, खाली पेट कप डेढ़ कप छाछ या गाय के दही के साथ केवल एक दिन ही सेवन करायें। गाय का दही या छाछ खट्टा नही होना चाहिए। खूनी और बादी दोनों प्रकार की बवासीर इस योग से शांत हो जाती हैं। दोबारा लेने की आवश्यकता बहुत कम पड़ती है। यदि फिर भी आवश्यक हो तो और मात्रा भी ली जा सकती है।
च गठिया रोग : जोड़ों के दर्द से भी आजकल बहुत लोग पीड़ित हैं। इसके लिए नागौरी स्गंध की जड़ और खान दोनों समभाग लेकर कूट पीसकर कपड़े से छानकर बारीक चूर्ण बना लें और पिसी कांच के पात्र में रख लें। प्रतिदिन प्रात: सायं 4 ग्राम चूर्ण गाय के गर्म दूध के साथ सेवन करें। आवश्यकतानुसार तीन सप्ताह से छह सप्ताह तक लें। इस योग से गठिया का वह रोगी भी स्वस्थ हो जाता है, जिसने रोग शैय्या पकड़ ली हो।
वैसे ये रोग आहार विहार में असावधानी बरतने के कारण होते हैं, यदि हम अपने आहार विहार पर उचित ध्यान दें और पेट में गैस न बनने दें तो यह रोग निकट नही आ सकता। गठिया रोग के रोगियों के लिए आवश्यक है कि असगंध का प्रयोग करने से पहले इसे दूध में उबाल कर साफ कर लेना चाहिए और सुखाकर तब चूर्ण बनाना अच्छा रहता है। इस प्रयोग शीतकाल में किया जाए तो ही उत्तम है। तलीय हुई वस्तुएं या तेल, खटाई और बादी कारक वस्तुएं न खायें। आंव की शिकायत में इसे न लें। असगंध का चूर्ण दो चम्मच की मात्रा में गाय के घी से बनाये गये गुण के हलवे में 15 दिन प्रात: खाली पेट लेने से गठिया रोग ठीक हो जाता है।
(अधिक जानकारी के लिए चिकित्सकीय परामर्श आवश्यक है।)

1 COMMENT

  1. माननीय राकेश जी,

    महत्त्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद ! क्या आप सहमत हैं, कि देशी गाय के दूध के प्रयोग से ही ये सभी ओषधियाँ उपयोगी होंगी ? मैंने अन्यत्र बहुत स्थानों पर पढा है, कि जर्सी आदि विदेशी गाय के दूध से लाभ नहीं होता, अपितु हानि होती है । क्या ओषधियों के सन्दर्भ में भी यह सत्य है ?

    सादरम् ।

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