जब सुतल तब अंधेरा –

सिद्धार्थ मिश्र “स्‍वतंत्र”

 

गुरू बनारस के बारे में एक बात बहुत मशहूर है कि ये मिजाज का शहर है। बेधड़क और बेबाक मिजाज ये है काशी की विशेषता । इस मिजाज में कई बार उलटबासियां भी जन्‍म ले लेती हैं । यथा कबीर बाबा की एक उलटबांसी लें लें —

बरसे कंबल भींगे पानी ।

शायद आपने सुनी हो या न सुनी हो पर इस बात से इस उलटबांसी पर कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता । संवाद शैली में अनूठे वाक्‍यांशों का प्रयोग अन्‍यत्र किसी भी शहर में दुर्लभ है । इस कारण ही काशी का अस्‍सी मोहल्‍ला नामक उपन्‍यास ने साहित्‍यप्रेमियों को काशी के कई दुर्लभ मुहावरों से परिचित कराया । यथा…….. दुनिया,हम बजायें हरमुनिया । तो गुरू इ है रजा बनारस । भंग की तरंग में पान का बीड़ा जमाया नहीं कि बैठे बिठाये ही मिजाज जम जाता है । यही है अस्‍सी की अड़ीबाजी की परंपरा । इस परंपरा में फलनवां के मामा से लगायत बराक ओबामा तक सभी पर समभाव से गंभीर चर्चा होती ही रहती है । ये चर्चाएं कई बार करूण रस तक तो कई बार वीर रस और अधिकांश अग्नि रस तक पहुंच जाती हैं । इस अंतिम प्रक्रिया को झंटुआना की संज्ञा से नवाजा गया है ।

अब आज ही चर्चा हो रही थी,लोकसभा चुनावों के संदर्भ में । आते आते बात काशी के वर्तमान सांसद मुरली मनोहर जोशी जी तक पहुंची । इस प्रक्रिया के जोशी जी तक पहुंचते पहुंचते लोग बाग जोश में आ गये थे । संक्षेप में चर्चा वीर रस की ओर बढ़ चली थी । मामला लच्‍छेदार मुहावरों तक पहुंचता इसके पूर्व ही साथ ही बैठे एक पुरनीये ने बात को संभाल लिया । उन्‍होने जो अंतिम बात कही वो थी, जब जागो तब सवेरा । हांलाकि उन्‍होने ये बात सामान्‍य संदर्भों में कही थी किंतु इस मुहावरे ने मुझे सोचने पर विवश कर दिया । इस पूरी प्रक्रिया पर चिंतन की उच्‍चतम स्‍तर तक चिंतन के बाद एक उलटबांसी का जन्‍म हुआ जो मैं आप सब से साझा करूंगा । शायद आपको को कुछ बोध हो जाये ।

जब सुतल तब अंधेरा । अर्थात हमारी आंखे बंद करने के साथ ही सर्वत्र अंधेरा हो जाता है । इस प्रक्रिया की तुलना मूंदहूं आंख कतहूं कुछ नाहीं से भी कर सकते हैं ।

बहरहाल यहां चर्चा का उद्देश्‍य इस हालिया खोजी गयी उलटबांसी के लाभ से पाठकों को अवगत कराना है । अब आप ही देखीये अंधेरा से तात्‍पर्य है वह काल जब समग्र समाज घोड़े बेचकर सो जाता है । इस काल में सामान्‍यतया तीन या चार प्रकृति के लोग ही जगते हैं ।

१. चोर-चकार (धंधे के जुगाड़ में,)

२. पुलिस वाले भईया (हिस्‍से के चक्‍कर में,चोर-चकारों से लगायत ट्रैक्‍टर ट्रालियों और ट्रकों से मिलने वाली असहाय अनुदान राशि की वसूली में ।)

३. उल्‍लू जी (चना चबेना या कीड़े मकोडों के चक्‍कर में,)

४. कवि एवं प्रेमी प्रकृति के लोग (कवि का चक्‍कर कविता तो प्रेमी आज भी छुप-छुपकर मोबाईल पर मिलने की तरंग के चक्‍कर में ।)

ये आंखे मूंदने के सामान्‍य और प्रत्‍यक्ष लाभ हैं जिससे हम सभी परिचित हैं । अब सूतने के कुछ अन्‍य लाभ पर चर्चा कर लें । इस प्रक्रिया में हम एक बड़का बाबा का उदाहरण लेंगे-

एक दिन भरी दोपहरी बाबा के पास पहुंचे तो देखा बाबा चित्‍त और बेसुध से पड़़े हैं । चिंता हुई तो बाबा को दो एक बार हिलाया ड़ुलाया ,इस प्रक्रिया से बाबा थोड़ी चेतना में आये तो उन्‍होने मुर्दानी आवाज में कहा-

क्‍या है बाबू ?

मै-अरे क्‍या महाराज ?

बाबा- कुछ नहीं साधना बाबू साधना के क्रम दो फूंक लड़ा ली है जो अब लड़ गयी है । तुम अभी जाओ । शाम को बात करेंगे ।

मैं क्‍या करता चला आया । शाम को बाबा से मिला तो पूछा बाबा काहे ऐसी खतरनाक साधना कर रहे है कि आंखे ही नहीं खुल पाती ।

बाबा- तुम समझते नहीं हो बाबू । इ पूरी दुनिया ही बंद आंख का कारोबार है । तुमको नहीं पता आंख बंद करना तो बस बहाना होता है । इ गुप्‍त साधना है ।

मैं- कैसी साधना गुरूदेव ।

बाबा- किसी से कहना नहीं बाबू,आंख बंद करके हम इहीं बैठै बैठे चांद-तारे की सैर करते हैं ।

मैं- वो कैसे ?

बाबा- गीता नहीं पढ़ी है । अरे बाबू आत्‍मा गमन करती है । अब दोपहर में ही मेरी आत्‍मा सैर पर निकली थी लेकिन तूने हिलाकर सब रायता फैला दिया मूरख ।

अब मैं क्‍या करता महाराज से क्षमा मांगी और निकल लिया । शाम को काशी जी के चाय पी रहा था कि उमेश जी आ पहुंचे । मैने उनसे बाबा वाले विषय पर चर्चा की । उनके अद्भुत जवाबों से तो मैं और भी हैरान हो गया ।

उमेश जी- अरे स्‍वतंत्र जी सूतने की प्रक्रिया का अद्भुत महात्‍मय है । शायद आपको पता नहीं । दिन दहाड़े सूतने वालों के लिये जगत में कुछ भी अप्राप्‍य नहीं है ।

अब बात अबूझ हो रही थी इसलिये मैने टोका ।

गुरूदेव वो कैसे,

उमेश जी- अरे महाराज अगर हमें जागते में प्रधानमंत्री बनने की इच्‍छा हो तो क्‍या होगा ? इच्‍छा तो ठीक है यार दोस्‍तों में चर्चा कर दी तो उपहास । ये उपहास आखिरकार डिप्रेशन ले आयेगा । इस बात को आज के युवाओं के चरित्र से बेहतर समझ सकते हैं ।

अब तो गुरू शान की बात हो गयी थी मैं झूंझला गया । मैने कहा युवाओं के चरित्र से आपका क्‍या तात्‍पर्य है ?

मेरे रूख से सहमे उमेशजी ने कहा अरे गुरू बात को पर्सनल मत लीजीये । रोज इ आत्‍महत्‍या का समाचार नहीं पढ़ते का । प्रेमिका नाराज तो आत्‍महत्‍या रिजल्‍ट खराब तो फांसी लगा ली । अब इ डिप्रेशन नहीं तो और क्‍या है ? पुरनियों में देखीये अरे अपने नेता लोग को ही ले लीजीये । चारा-कोयला जूता चप्‍पल सब कुछ खाया पर कोई मरा । याद करीये । और तो अउर देश भी खाके लोग चौड़े ही किसी को कोई डिप्रेशन नहीं । इसलिये कहा आप अन्‍यथा न लीजीये ।

मैं- हां इ थोड़ा ठीक है गुरू ।

उमेश जी -महाराज इ कौन सी बड़ी बात है । आजकल तो इससे बड़े बड़े वाकये हैं । समाज में कुछ कामी प्रकृति के भी लोग हैं । इन लोगों का अउर भी ज्‍यादा भला हुआ है इस गुप्‍त ज्ञान से ।

मैं- उ कैसे गुरू ?

उमेश जी- डीयर इस देश में सपनों पर कोई पाबंदी नहीं । तो सपनों में आप विश्‍व सुंदरियों के साथ रमण भी कर सकते हो । पर प्रक्रिया तो वहीं रहेगी । जब सुतल तब अंधेरा ।

अब ई उलटबांसी मेरी भी पूर्णतया समझ में आ गयी है । इसीलिये तो सरकार हमें पूरे पांच साल आश्‍वासन के हिंडोले में वाणी व्‍यायाम की लोरी से सुलाने का प्रयत्‍न करती है । इसलिये तो गांजा-चरस का कारोबार फैल रहा है । ताकी लोग बाग चैन से सो सकें । आंखे मूंद कर अप्राप्‍य भी प्राप्‍त कर सकें । अउर साला एक हम लोग हैं निरे लंपट जो सरकार को गरियाते हैं । सचै हो गुरू-

जब सुतल तब अंधेरा ।

 

saint

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