सत्येंद्र गुप्ता
तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती
वक़त के हाथ की शमशीर नहीं बदलती।
मैं ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी तलाशता रहा
ज़िन्दगी , अपनी ज़ागीर नहीं बदलती।
कितने ही पागल हो गये ज़ुनूने इश्क़ में
मुहब्बत अपनी तासीर नहीं बदलती।
प्यार ,वफ़ा,चाहत ,दोस्ती व आशिक़ी
इन किताबों की तक़रीर नहीं बदलती।
अपनी खूबियाँ, मैं किस के साथ बाटूं
अपनों के ज़िगर की पीर नहीं बदलती।
कईं बार आइना भी मुझसे लड़ा लेकिन
मेरी सादगी ही ज़मीर नहीं बदलती।
बहुत ग़ुरूर है, चाँद को भी चांदनी पर
चांदनी भी अपनी तस्वीर नहीं बदलती।
पड़ गई आदत मुझे साथ तेरे चलने की
मेरी बेरूख़ी भी , ज़ागीर नहीं बदलती।
मेरा वायदा है , मैं निभाऊंगा भी ज़रूर
मेरे मनकों की भी तनवीर नहीं बदलती।
मैं भी अपनी गजले आपको भेजना चाहता हूँ मार्गदर्शन करे |