सिद्धार्थ मिश्र “स्वतंत्र”
क्या क्या अभी है बाकी,
इस अंजुमन में दोस्त ,
चाहत भी मोहब्बत भी,
तेरे चमन में दोस्त………….
इस ओर सियासत है,
और बेरहम है दोस्त,
उस ओर अदावत है,
और बस चुभन है दोस्त,
कहते हैं जिसको अच्छा,
वो बदचलन है दोस्त,
मुझको जो मयस्सर है,
वो बस घुटन है दोस्त,
माना कि मैं “स्वतंत्र” हूं,
ये आदतन है दोस्त,
तुम जो भी समझते हो,
वो आकलन है दोस्त ।