नवरात्र के नौ रंग…

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navratriपरमजीत कौर कलेर

 

हर ऋतु अपने साथ खुशियों की बहार लेकर आती है…शरद ऋतु अपने साथ लेकर आती है मस्ती और खुशियां … ऐसे लगता है जैसे शरद ऋतु के स्वागत करने के लिए ही ये त्यौहार बने हों …जो हमारे जीवन में लेकर आते हैं खुशियों की बहार…शरद ऋतु शुरू क्या होती है वो अपने साथ लेकर आती है त्यौहार का तोहफा…ये त्यौहार ही है जो जरिया बनते आपस में मेल मिलाप का… शरद ऋतु के आगाज़ के साथ और इस सुहावने मौसम के दौरान आती है वो नौ रातें और दस दिन जो मानो हम में जोश भरते हैं …इन नौ रातों का संबंध हमारी आस्था और श्रद्धा से जुड़ा है…वहीं आस्था के पर्व में हर कोई लबरेज नज़र आता है मस्ती में चूर…. त्यौहार और पर्व ही है जो जरिया बनते हैं…एक दूसरे के मेल मिलाप का…आस्था , श्रद्धा और भक्ति के प्रतीक नौ दिन जो हमें अंधकार से प्रकाश अमंगल से मंगल की ओर ले जाते हैं…जी हां हम बात कर रहें हैं देवी के महापर्व नवरात्रि की…इस दौरान दुर्गा माता के नौ रूपों की पूजा की जाती है…पूरे देशभर में नवरात्रों की धूम है ….आस्था और श्रद्धा के पर्व को देशभर में अपने- अपने अंदाज में मनाया जाता है…मंदिरों की शोभा तो देखते ही बनती है…आस्था के इस पर्व पर कई सांस्कृति कार्यक्रम पेश किए जाते हैं …कहीं दुर्गा माता की पूजा की जाती है तो कही दुर्गा माता की कृपा पाने के लिए कई तरह के नृत्य पेश किए जाते हैं तो कहीं मेलों का आयोजन भी किया जाता है…छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग इन नौ दिनों में भक्ति और मस्ती में लबरेज नज़र आते हैं…मंदिरों और घरों की शोभा तो इन दिनों देखते ही बनती है…मंदिरों में बजती सुमधुर घंटियों की आवाज से मानो सारा वातावरण ही भक्तिमय नज़र आता है…मां दुर्गा को अपने घर में पाकर श्रद्धालुओं की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता…मां के दीदार कर कई श्रद्धालुओं की आंखों में से तो आसुओं का सैलाब बहने लगता है ये अश्रु धारा होती है खुशी की..मां के दीदार और दर्शन की।

दुर्गा मां के नौ दिनों को देश भर में अपने अपने अंदाज से मनाया जाता है…कहीं इस अवसर पर देवी के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए कई तरह के नृत्य पेश किए जाते हैं तो कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा दुर्गा पूजा होती है। नवरात्रि जो कि नाम से ही जाहिर है …नव जिसका मतलब है नौ और रात्रि का अर्थ है रातें …पूरे नौ दिन और दस दिन की जाती मां दुर्गा की पूजा…जिसे बड़ी ही श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है…दसवें दिन मनाई जाती है विजयदशमी यानि कि दशहरा…पूरे भारत में मनाए जाने वाले नवरात्रि पर्व को लेकर श्रद्धालुओं के उत्साह और जोश के तो क्या कहनें ? भारत के पश्चिमी राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में होता है पारम्परिक गरबा और डांडिया… अब ये गरबा और डांडिया कुछ ही सूबों तक सीमित न रहकर पूरे देश के अलग- अलग राज्यों बिहार , बंगाल मध्यप्रदेश में भी इसकी धूम रहती है…वैसे तो नवरात्रि का शुभ मौका साल में पांच बार आता जिसे अलग – अलग नामों से जाना जाता है…जिसे हम वसंत नवरात्रि, (अशाध )गुप्त नवरात्रि, शरद नवरात्रि, पोष और माघ नवरात्रि के नाम से जाना जाता है… मगर साल में दो बार आने वाले नवरात्रों को बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाया जाता है… ये हैं वसंत नवरात्रि और शारदीय नवरात्र । शारदीय नवरात्र का तो सभी इंतजार करते हैं बड़ी ही बेसब्री से …इस मीठी और प्यारी ऋतु में हर कोई रम जाना चाहता मां दुर्गा के रंग में …इसके लिए तो लोग महीनों पहले ही तैयारियां करनी शुरू कर देते हैं…उतर भारत जैसे यू पी , पंजाब , हरियाणा में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने के साथ साथ रखे जाते हैं व्रत …जिसका अपना ही अहम महत्व होता है… जिसमें सभी धर्मों के लोग शरीक होते हैं और विभिन्न जाति के लोग ऐसे लगते है मानो वो एक ही परिवार के सदस्य हों। यही नहीं इस दौरान जगह – जगह राम लीला का आयोजन किया जाता है…देश की राजधानी दिल्ली में भी राम लीला के लिए खास स्टेज शो किए जाते है…जिसकी शोभा तो देखने लायक होती है …हर राम लीला का अपना ही अहम महत्व होता है और हर बार इस राम लीला में होता है कुछ खास और कुछ हट के…

भारत विभिन्न संस्कृतियों वाला देश है…जिसके पर्व मनाने का अंदाज होता है अलहदा…पर मक्सद एक होता है आपस में मेल जोल बढ़ाना…लोग इन दिनों का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार करते हैं…क्योंकि डांस मस्ती और श्रद्धा के इस पर्व में हर कोई रोमांचित हो जाता है मानो हर कोई फूलों के सामान महक उठा हो…कोई भी इन हसीन रातों को विदा नहीं करना चाहता …मगर जो समय है जो चलता रहता है अपनी चाल पर..इन हसीन और रंगीन रातों को कोई भी धुंधलके में नहीं खोना चाहता ।पश्चिम भारत गुजरात और मुंबई में तो डांडिया गरबा की धूम रहती हैं वहीं पूरे देश में इसका अलग ही खुमार देखने को मिलता है… विदेशों में बसते भारतीय भी मां के रूपों की पूजा करते हुए डांडिया और गरबा का ये नृत्य करते हैं…सारस्वत के मंदिरों की आभा तो देखते ही बनती है..जिसमें देवी की प्रतिमाओं, मूर्तियों को बड़े ही शानदार ढंग से सजाया जाता है…इन मूर्तियों को चन्दन , हल्दी और कुमकुम के फूलों से श्रृंगार किया जाता हैं…नवरात्रि के दिनों में देवियों के दर्शन कुछ खास होते हैं…उपासक , भक्त , श्रद्धालु नवरात्र के अवसर पर मिलने कोल प्रसाद का भी बेसब्री से इंतजार करते हैं…ऐसा विश्वास किया जाता है कि देवी देवता खुद इस प्रसाद को देते हैं…उपासक देवियों को सजाने के लिए फूलों का इस्तेमाल करते हैं इस त्यौहार की आखिरी रात को फूलों का प्रसाद श्रद्धालुओं को बांटा जाता है…सारस्वत ब्राहमण इस पर्व को दस मैतृक या गोआ में इसे दस बहनों के नाम से भी जाना जाता है…जिसमें देवी के दस रूपों की पूजा की जाती है।…दक्षिण भारत में तो देवियों की मूर्तियों को स्थापित किया जाता हैं…जिसे गोलू नाम से जाना जाता है…तामिलनाडू में भी गोलू पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है….पूरे दक्षिण भारत में इसी अंदाज में नवरात्रि मनाई जाती है…कर्नाटक में तो नवरात्रि पर्व होता है सबसे अलहदा …सबसे हट कर.. जिसे आयुद्ध पूजा के नाम से जाना जाता है…नौवे दिन मैसूर का दशहरा मनाया जाता है तो उसी दिन की जाती है आयुद्ध पूजा… रोजाना जीवन में इस्तेमाल में होने वाली चीजों जैसे कम्प्यूटर , किताबों, वाहनों और किचन के सामान की पूजा की जाती है…रोजाना जीवन में इस्तेमाल होने वाली चीज़ों की पूजा करके देवी मां से कामना की जाती है…उनकी रोजी रोटी में ये औजार दरूस्त रहें और इसे इस्तेमाल करने वाले भी…ज्ञान का प्रकाश पुस्तकें , पैन , कम्पूयटर , किसानों की खेती में इस्तेमाल होने वाले हल ,और खेतीबाड़ी के सामान, ट्रांसपोर्टेशन में काम करने वाले कर्मचारी जैसे कार , बस, ट्रक को फूलों से सजाते हैं और उनकी पूजा फूलों से करते हैं कि ईश्वर उन्हें आने वाले साल में सफलता की बुलंदियों पर पहुंचाए…यही नहीं इन दिनों में कोई नया काम और व्यापार करना भी शुभ माना जाता है…केरला में तीन तीन दिन तक अष्टमी, नवमी और विजयदशमी में नवरात्रि मनाई जाती है और सरस्वती मां की पूजा अर्चना की जाती है…यही नही ज्ञान की प्रतीक पुस्तकों को पूजा वाली जगह पर रखा जाता है और घरों , स्कूलों , मंदिरों में सरस्वती मां की पूजा की जाती है…विजयदशमी वाले दिन सबसे पहले बच्चे पढ़ने और लिखने का काम करते हैं जिसे विद्यारम्भ के नाम से भी जाना जाता है…तेलंगाना के आंध्र प्रदेश में बत्थुकामा के नाम से नवरात्रि को मनाया जाता है।

हर तरफ डांडिया रास और गरबा की धूम हैं… ये डांस तो मानो हर एक में नया जोश और उत्साह भरता है…युवाओं में तो इस पर्व को लेकर कुछ खासा ही उत्साह देखने को मिलता है…यही वजह है कि आज देश भर में इस अवसर पर मेलों और सांस्कृति कार्यक्रमों के आयोजन किए जाते हैं। नवरात्र के इस शुभ अवसर पर गुजरात के प्रसिद्ध लोक नाच की धूम केवल गुजरात में ही नहीं बल्कि देशभर में रहती है…आम तौर पर सितम्बर और अक्तूबर के महीने में आने वाले नवरात्र के तो भई क्या कहनें…डांडिया और गरबा डांस में हम मां दुर्गा का प्रति आस्था और श्रद्धा प्रकट करते हैं…डांडिया की तैयारी शाम से ही शुरू हो जाती है …जिसकी शुरूआत धार्मिक रीति रिवाज के मुताबिक होती है…गरबा के दौरान मां दुर्गा जी की अराधना की जाती है…अब इस पर्व को पूरे मस्ती और बड़े ही जोशो खरोश के साथ मनाया जाता है…इन नौ रातों के दौरान मां के अलग -2 रूपों की पूजा की जाती है…जैसे मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी और सरस्वती…हर देवी की तीन दिन के लिए पूजा की जाती है… नवरात्रों के आरम्भ में हम मां दुर्गा की पूजा इसलिए करते हैं कि हम में जो बुराईयां , नाकारात्मकता हैं वो निकल जाए…अगले दिन लक्ष्मी मां से अराधना की जाती है कि अच्छाईयां और साकारात्मकता का बल उन्हें देवी मां बख्शे…अन्तिम दिनों में मां दुर्गा के सरस्वती रूप की पूजा की जाती है…मां उन्हें बुद्धि , विवेक और आत्मिक ज्ञान दें….मां पर उनकी कृपा हमेशा बनी रहे…मां की अराधना और उनकी स्तुति में ही किए जाते हैं गरबा और डांडिया नाच …जिसको औरतें और मर्द बड़ी ही शिद्दत से करते हैं…मां दुर्गा की अराधना के लिए गरबा और डांडिया के लिए खुले मैदान में किया जाता है…ताकि श्रद्धा और मस्ती के पर्व को मनाने में किसी को किसी प्रकार की कोई दिकक्त पेश न आए….कई जगहों पर डांडिया शाम चार बजे से लेकर रात नौ बजे तक होता है …जिसमें सभी मां की पूजा अर्चना के साथ गलतान नज़र आते हैं मानों वो खुशी से झूम रहें हों…

नवरात्रि के इस पर्व में होता है सब कुछ रंगीन तभी तो हर कोई रंग जाना चाहता है इस कलरफुल त्यौहार में…यहां सब कुछ होता रंगीन…रंगीनी और मस्ती के इस आलम में हर कोई चूर हो जाना चाहता है…डांडिया आमतौर पर बड़े-बड़े ग्रुप में किया जाता है…आज का आधुनिक युग है तो जाहिर सी बात है कि नवरात्रि पर भी इसका रंग चढ़ना जाहिर सी बात है…फिर भला गरबा और डांडिया पर क्यों न माडर्ननाईजेशन का रंग चढ़ेगा…हर उम्र की लड़कियों औरतों और मर्दों में गरबे और डांडिया का रंग चढ़ा नज़र आता है…पहले यहां लोक गीत इस नृत्य पर गाए जाते थे वहीं इसकी जगह ले ली है डी जे ने…डी जे की धुनें हर एक को थिरकने पर मजबूर कर देती हैं…औरतें गरबा करती हुई अपने सिर पर बड़े सुन्दर तरीके से सजे हुए बर्तन रखती हैं और देवी मां की प्रशंसा में गीत गाती हुई झूमती नज़र आती है…डांडियां के लिए दो सर्किल बनाए जाते हैं…एक घड़ी की सुई का दिशा में तो दूसरा सर्किल घड़ी की उल्ट दिशा में घूमता है…जिसे ताल के साथ ताल और लय के साथ लय मिलाकर बड़े ही जोशों खरोश के साथ खेला जाता है….रिवायती तरीके के साथ साथ नवरात्र पर भी गलैमर और माडर्नाइजेशन का रंग चढ़ता जा रहा है…यही नहीं इन नृत्यों में रिमिक्स बीट और हिन्दी पॉप म्यूजिक की धुनों पर ये लोग थिरकते नज़र आते हैं…इस पर्व में हर कोई दिखाई देता है कलरफुल..डांडिया और गरबा में महिलाएं सर से लेकर पांव तक सज धज कर आती हैं …गरबा और डांडियां में पहने जाते है गहरे और चटक रंग ….फीके रंगों का गरबा में कोई स्थान नहीं है…इस नाच में औरतें लड़कियां बड़े ही पारम्परिक तरीके से सज धज कर आती है…महिलाएं यहां कढ़ाई वाली घागरा चोली और शीशों से जड़ी बंधनी दुप्पटा ओढ़ती हैं ऊपर से हैवी ज्वैलरी उनके रूप को चार चांद लगा देती है…भई डांडिया में भाग लेने वाले लड़के और मर्द भी कम नहीं हैं…वो भी पारम्परिक परिधानों में सज धज कर आते हैं…रिवायती धोती,कुर्ते में शीशों से जड़ित चमकीले कपड़े गरबा के मैदान में पहुंचते हैं…यहां तक कि डांडिया नाच में इस्तेमाल की जाने वूडन स्टिक भी कलरफुल होती हैं…जिन पर रंगीन कपड़ा लपेटा गया होता है…अब आपको बताते हैं कि आखिर डांडिया दुर्गा माता के गौरव , प्रतिष्ठा में क्यों खेला जाता है….और नवरात्रि में डांडिया का क्या महत्व है…डांडिया का नवरात्रि के दिनों का अपना ही महत्व है…जो दुर्गा माता के मान सम्मान में ये नृत्य किया जाता है…डांडिया पर कलाकार जब अपनी प्रस्तुति देते हैं तो लय में बजती ये स्टिक सबका मन मोह लेती हैं…इसको तलवार नृत्य के नाम से भी जाना जाता है…ऐसा माना जाता है कि डांडिया में देवी और महिसासुर राक्षस में जबरदस्त लड़ाई होती है …सच में डांडिया रास के बिना तो नवरात्रि की कल्पना ही नहीं की जा सकती। चारों ओर रोशनी और रंगीनी के इस पर्व में हर कोई मंत्र मुग्ध और मस्त नज़र आता है… संस्कृति और पारम्परिक लोक धुनों पर गरबा और डांडिया करते सारा वातावरण ही इन लोक धुनों पर गूंज उठता है…ये पर्व हसते गाते नाचते कब बीत जाता है इसका अहसास हमें तब होता है जब ये शानदार नौ रातें गुजर जाती है …डांस मस्ती और श्रद्धा के इस पर्व में हर कोई रोमांचित हो जाता है मानो हर कोई महक उठा हो…कोई भी ये नहीं चाहता ये हसीन रातें कभी न जाएं…न ही ये धुंधलके में खोए…कोई भी इससे अलग नहीं होना चाहता और इस आस के साथ कि अगले बार फिर मां नवरात्रे आए जल्दी से…क्यों कि मां की पूजा उपासना करके जो आनंद डांडिया और गरबा करके आता उससे हर एक को मिलता है परमानंद…

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