प्यार के धागों में बिंधा पर्वः रक्षाबंधन

-लक्ष्मी जायसवाल-
Raksha Bandhan
हमारा देश पर्वों का देश है, हमारे त्योहार न केवल हमारी आस्था व संस्कृति का हिस्सा हैं, बल्कि ये हमारे जीवन में खुशियों की सौगात लाने का एक अवसर भी हैं। आज जहां मनुष्य अपने जीवन में चारों ओर से भागम-भाग से घिरा हुआ है, उसके पास खुद के लिए भी समय नहीं है, ऐसे में त्यौहार ही वह कड़ी है जो हमें हमारे रिश्तों की डेार में बांधे रखते हैं। हमारे यहां सभी रिश्तों को सम्मान देने व उनका महत्त्व समझाने के लिए किसी न किसी पर्व की उपस्थिति देखने को मिल जाती है। भाई-बहन के रिश्ते की बुनियाद को और भी मजबूत बनाने वाला तथा हमारी धर्म व संस्कृति से जुड़ा ऐसा ही एक पर्व है रक्षाबंधन, जो कि भाई-बहन के अटूट प्यार का प्रतीक है। भाई-बहन के स्नेह का परिचायक और कच्चे धागों के पवित्र बंधन ‘रक्षाबंधन’ का अपना ही एक विशेष महत्व है। यह पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, इसी कारण इसे ‘श्रावणी’ भी कहते हैं। एक तरफ जहां यह स्नेह तथा उत्साह का पर्व है वहीं दूसरी तरफ यह बलिदान, साहस, विजय तथा प्रतिज्ञा का भी उत्सव है।
ऐतिहासिक महत्त्व
पुराणों के अनुसार देव तथा असुरों में बारह साल तक भयंकर युद्ध हुआ लेकिन इतना समय बीत जाने पर भी हार-जीत का निर्णय नहीं हो पा रहा था तब देवताओं के गुरु बृहस्पति जी ने देवताओं को रक्षा सूत्र बंधवाने की सलाह दी। उनकी सलाह को मानते हुए देवराज इन्द्र के देवासुर संग्राम में जाते समय उनकी पत्नी शची ने पूरे विधि-विधान से विजय की कामना करते हुए इन्द्र तथा सारे देवताओं की कलाई में रक्षा सूत्र बांधा और उनके मंगल व विजय की कामना की। इससे देवताओं को युद्ध में विजय मिली। इसके अलावा पूर्व समय में यज्ञ के मौके पर हाजिर लोगों की कलाइयों पर एक सूत्र बांधा जाता था। यह सूत्र यज्ञ में उपस्थिति का सूचक माना जाता था, साथ ही यज्ञ से प्राप्त ऊर्जा का आधार भी था। इस संदर्भ में एक और घटना महत्त्वपूर्ण है। अपनी विपत्ति के समय चित्तौड़ की महारानी कर्णवर्ती ने हुमायूं को राखी भेजकर गुजरात के बादशाह जफर के विरुद्ध सहायता मांगी थी। हुमायूं ने राखी को पूरा मान देते हुए उनकी रक्षा की तथा अपने धर्म को निभाया। महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की एक उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया, इस अवसर पर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को उसकी रक्षा करने का वचन दिया। और उन्होंने अपने वचन को निभाया भी। द्रौपदी के चीर हरण के समय कृष्ण ने अपनी लीला से उसकी लाज बचाकर अपना धर्म व वचन दोनों निभाया। इस तरह ऐतिहासिक घटनाएं यह साबित करती हैं कि रक्षाबंधन भाई-बहन के निःस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है।
समय के साथ बदला इसका रूप
प्राचीन काल से मनाए जाने वाले पर्व रक्षाबंधन के रूप व उसको मनाने के ढंग में समय के साथ कई परिवर्तन आए लेकिन फिर भी इस पर्व का उत्साह व मिठास कम नहीं हुई है। कभी यज्ञ में सभी को सूत्र बांधा जाता था, कभी पत्नी पति को रक्षा सूत्र बांधती थी, कभी तो आज बहन भाई को राखी बांधती है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को राखियां बांधती हैं। इस अवसर पर बहनें इस सुबह-सुबह पूजा- अर्चना करके भगवान से भाई की दीर्घायु तथा सुखद व निरोगी जीवन की कामना करती हैं। इसके बाद अपने भाइयों के दाहिने हाथ की कलाइयों में पवित्र स्नेह का बंधन बांधती हैं तथा अपने हाथों से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। इस दिन तो ऐसा लगता है, जैसे संपूर्ण वातावरण ही भाई-बहन के स्नेह बंधन के रूप में बंध गया हो।
बदलाव की है आवश्यकता
समय के साथ हमारे देश की परिस्थितियों में भी अनेक परिवर्तन हुए हैं। आज हमारे यहां महिलाओं व लड़कियों की दशा पहले जैसी नहीं है। आज हर तरफ उनके अस्तित्व को रौंदने की कोशिश की जा रही है। हमारे यहां लोगों को सिर्फ अपनी बहनों की परवाह है, वे दूसरों की बहनों को अपनी बहन जैसी इज्जत नहीं दे पाते, बल्कि उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने के मौके ढूंढते हैं। आज हमें न केवल अपनी बहन की रक्षा करनी है बल्कि दूसरों की बहनों के आत्मसम्मान को भी सहेज कर रखना है। जब तक इस देश की महिलाएं व लड़कियां सुरक्षित नहीं होंगी, तब तक इस पर्व का कोई महत्त्व नहीं। राखी का यह धागा सिर्फ रेशम की डोर नहीं है, बल्कि बहन के स्नेह व विश्वास का बंधन है, जिसे किसी भी भाई को टूटने नहीं देना चाहिए। इस पावन पर्व के अवसर पर सभी भाइयों को अपने आस-पास की बहनों के आत्मसम्मान की रक्षा का दायित्व व संकल्प लेना होगा, तभी इस खूबसूरत पर्व की महक से ये देश महक उठेगा। भाइयों की तरफ से मिला सुरक्षा का यह विश्वास न केवल इस पर्व को बल्कि बहनों के जीवन को भी खुशियों की सौगात व महक से भर देगा।

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  1. “इसके अलावा पूर्व समय में यज्ञ के मौके पर हाजिर लोगों की कलाइयों पर एक सूत्र बांधा जाता था। यह सूत्र यज्ञ में उपस्थिति का सूचक माना जाता था, साथ ही यज्ञ से प्राप्त ऊर्जा का आधार भी था” – यह जो आपने लिखा, इसमें क्या प्रमाण? किस आधार प्रमाण पर आपने ऐसा लिखा; यह भी तो आपको बतलाना चाहिये था।

    इसके आगे आपने लिखा है — “कभी पत्नी पति को रक्षा सूत्र बांधती थी, कभी तो आज बहन भाई को राखी बांधती है”। परन्तु यह भी कैसे; किस प्रमाणाधार पर — क्या स्पष्ट करने की कृपा करेंगे?

    डा० रणजीत सिंह

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