बदलावों के बीच मानसिकता में बदलाव कब?

download (1)लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की विश्वसनीयता इन दिनों संदेह के घेरे में है| खोजी पत्रकारिता को नया आयाम देने वाले तरुण तेजपाल जहां यौन उत्पीड़न के मामले में फंसे हुए हैं वहीं दीपक चौरसिया तथा अनुरंजन झा आम आदमी पार्टी के कथित फ़र्ज़ी स्टिंग ऑपरेशन को लेकर सवालों के दायरे में हैं| तीनों की साख और आम आदमी से इनका जुड़ाव इन्हें पत्रकारों की भीड़ से अलहदा रखता है| फिर तीनों ही ढाढी वाले हैं गोयाकि ढाढी वालों का समय इस वक़्त ठीक नहीं चल रहा| दीपक चौरसिया तथा अनुरंजन झा पत्रकारिता के राजनीतिक गठजोड़ के मारे हैं तो इनकी बात फिर कभी| फिलहाल तो सर्वाधिक सुर्खियां तरुण तेजपाल द्वारा तहलका की कनिष्ठ पत्रकार के यौन उत्पीड़न की खबर बटोर रही है| यह कितना हास्यास्पद है कि जो सम्पादक कभी टीआरपी की जंग का अगुआ हुआ करता था, आज उसकी खबर मीडिया घरानों के लिए टीआरपी बटोर रही है| तेजपाल मामले में सबसे दुखद पहलू खुद तरुण का अपनी गलती को स्वीकार कर खुद ही खुद के लिए सज़ा का चुनाव करना रहा| कोई कितना भी बड़ा व्यक्तित्व क्यों न हो, कानून के रहते खुद के लिए सज़ा का चुनाव कैसे कर सकता है? खैर बात यहीं तक रहती तो भी ठीक था किन्तु होश आने के बाद तेजपाल द्वारा पीड़िता पर यह आरोप लगाना कि वह दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रेरित होकर आरोप लगा रही है, शर्मनाक है| मैं तरुण तेजपाल से पूछना चाहूंगा कि यदि पीड़ित पत्रकार दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रेरित हैं और आप पर आरोप लगा रही है तो आप क्या कांग्रेस के दलाल हैं? ज़ाहिर है विचारधारों के द्वंद्व में आरोप-प्रत्यारोप उसी पर लगाए जाते हैं तो आपका विरोधी व प्रखर आलोचक हो। ज़ाहिर है तरुण तेजपाल निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए काम कर रहे थे या यूं कहें कि अपनी पत्रकारिता को कांग्रेस के हाथों बेच चुके थे तभी उन्हें पीड़िता दक्षिणपंथियों द्वारा प्रभावित दिखी| तेजपाल को कम से कम यह तो सोचना था कि कोई किसी भी विचारधारा से प्रभावित क्यों न हो, अपने शील से समझौता नहीं करेगा| फिर तेजपाल की बेटी तक पीड़िता की दोस्त थी| कम से कम तेजपाल को उस एक रिश्ते की पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए था| फिर जिस तरह से तेजपाल कानून से बचने के नित नए हथकंडे अपना रहे हैं, उससे साबित  होता है कि वे गुनहगार हैं और उनकी खोजी पत्रकारिता अब उन्हीं के अपराध को खोज रही है। कानून तेजपाल का क्या करेगा, उन्हें सज़ा मिलेगी या नहीं, पीड़िता को न्याय मिलेगा या नहीं, तहलका का क्या होगा जैसे अनगिनत सवाल वातावरण में गूंज रहे हैं जिनके उत्तर आसान तो कतई नहीं हैं| तहलका प्रकरण ने राजनीति में भी भूचाल का दिया है| चूंकि तेजपाल ने ही नोट फॉर वोट काण्ड को दुनिया के समक्ष पेश किया था और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को हाशिये पर जाना पड़ा था लिहाजा बीजेपी किसी भी सूरत में तेजपाल पर कानून का शिकंजा ढीला नहीं पड़ने देना चाहती| वहीं कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के व्यावसायिक हित तहलका से जुड़े हुए हैं लिहाजा वे परदे के पीछे ही सही किन्तु तेजपाल का बचाने का प्रयास कर रहे हैं| राजनीतिक चालों के चलते तेजपाल मामला राजनीति में भी भूचाल लाए हुए है और इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि राजनीति के चलते पीड़िता को शायद ही इन्साफ मिल पाए?

 

इस पूरे मामले में तेजपाल जितने दोषी हैं उतनी ही तहलका की प्रबंध सम्पादक शोमा चौधरी भी जिम्मेदार हैं| महिला हितों और उनकी स्वतंत्रता की पुरज़ोर पैरवी करने वाली शोमा ने जिस तरह मामले के सामने आने के बाद तेजपाल को बचाने और पीड़िता को चुप रखने के जतन किए, उससे एक बात तो साबित हुई ही है कि महिला ही महिला की सबसे बड़ी दुश्मन होती है| हालांकि तेजपाल को बचाने के आरोपों को नकारते हुए शोमा ने भले ही तहलका के प्रबंध संपादक पद से इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन उनके लिए मामले से पल्ला झाड़ना आसान नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को देखें तो शोमा का जवाबदेही से बचना मुश्किल है। सहकर्मी के यौन उत्पीड़न की शिकायत पुलिस को न देने पर वह कानून के शिकंजे में फंस सकती हैं। शोमा ने मामले से निपटने में की गई कमियों पर राष्ट्रीय महिला आयोग से माफी भी मांगी है किन्तु आयोग उनकी सफाई से संतुष्ट नहीं है। तहलका की प्रबंध संपादक होने के नाते सहकर्मी की शिकायत पर कानूनन शोमा को मामले की शिकायत सक्षम अथॉरिटी यानी पुलिस से करना चाहिए थी किन्तु शोमा ने ऐसा कुछ नहीं किया। उलटे वे मामले की लीपापोती में लगी रहीं| वैसे भी कानूनन यदि किसी को अपराध की जानकारी है और वह पुलिस को सूचित करने को बाध्य है, फिर भी वह पुलिस को जानकारी नहीं देता है तो वह धारा-२०२ के तहत अपराध करता है। इस अपराध में उसे छह महीने तक जेल या जुर्माने अथवा दोनों हो सकते हैं। शोमा इस दायरे में आ रही हैं। वह पुलिस को अपराध की सूचना देने को बाध्य थीं। उनके खिलाफ कोर्ट के फैसले की अवहेलना का भी मामला बनता है। हालांकि शोमा ने आरोपी को बचाने की कोशिश करने से साफ इंकार किया है। शोमा ने जो किया या जो करना चाहती थीं वह एक महिला होने के नाते उन्हें तो कतई शोभा नहीं देता| अब यह कानून तो तय करना है कि वह शोमा की भूमिका को किस तरह निर्धारित करता है? इस तरह के गंभीर मामले में तहलका प्रबंधन द्वारा अपना कर्तव्य न निभाकर ‘आंतरिक जांच’ बिठाना अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आता है| इस तरह के कृत्य को स्वीकार नहीं किया जा सकता और वह भी तब जबकि मीडिया की साख का सारा दारोमदार इस मामले से जुड़ा है| यह संस्थागत विफलता का एक स्पष्ट मामला है और इस मामले में देश के कानून के अनुसार चलना ही न्यायोचित होगा| देखा जाए तो तहलका मामला मीडिया के लिए भी एक ‘वेक अप कॉल’ है कि संस्थागत तंत्र को दिशानिर्देशों के उल्लंघन के छोटे से मामलों का भी संज्ञान लेते हुए कानून को अपना कार्य करने देना चाहिए। सरकार को भी अपने स्तर पर तत्काल प्रभाव से प्रभावी कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए एक सुदृढ़ तंत्र विकसित करना चाहिए। पूरे मामले में अब सवाल यह नहीं कि तेजपाल और शोमा को बचना चाहिए, सवाल यह यह है कि क्या देश में महिला को हमेशा ही उपभोग की वस्तु समझा जाएगा और कथित मठाधीश जब मन चाहे उनका शोषण करते रहेंगे? क्या इतने बदलावों के बीच इस सोच में बदलाव आएगा?

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

1 COMMENT

  1. ALL IS FOR SELL IN ALL FIELD ! CAN U IMAZINE, THAT MINE FRIEND’S HAWKER OF NEWS PAPER IS TAKING 20RS EXTRA PER MONTH FOR A NATIONAL PAPER & WHEN COMPLAINT TO THAT NATIONAL PAPER’S OFFICE THAN THEY IGNORED, AFTER THAT THEY ASKED —– KI JO KARNA HAI VO KAR LO , I HAVE ALL PROOFS WITH AVIDENCE ! WILL ANY ONE HEAR FOR THIS “BIG SCANDEL” ?????????????

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