बदहाली का जीवन जीने को मजबूर है करोड़ों बच्चे

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बाल दिवस पर विशेष

– प्रो. ब्रह्मदीप अलुने

imagesभारत की कुल आबादी में 18 वर्ष से कम आयु की संख्या लगभग 42करोड़ है। यहां प्रतिवर्ष जन्म लेने वाले कुल 2.6करोड़ बच्चों में से लगभग 20लाख से अधिक बच्चों की मृत्यु हो जाती है, जिनमें से 40प्रतिशत बच्चो की मृत्यु कुपोषण के कारण होती है । यहां नवजात शिशुओं में प्रतिरक्षी टीकाकरण वैश्विक मानक से बहुत कम है ।

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश में छह से चौदह साल के आयु वर्ग के बच्चों की संख्या 22करोड़ के लगभग है और उसमें करीब एक करोड़ ऐसे है, जो अपनी सामाजिक, पारिवारिक, और आर्थिक समस्याओं के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं। स्कूल से दूर अधिकांश बच्चें बहुत कम उम्र में ही जीवन यापन के लिए काम की तलाश में जूट जाते है । ऐसे बच्चे कूड़े के ढेर से कचरा बीनने, सब्जी के ठेले लगाने, चाय बांटने एवं झूठे बर्तन साफ करने, पालतू पशुओं को चराने, र्इधन बीनने या अभिजात्य घरों में घरेलू नौकर के रूप में काम करते हैं।

सरकारी व गैर सरकारी संगठन बाल विकास के नाम पर करोड़ो रूपये डकार रहे हैं, लेकिन वे बच्चों का न तो पुनर्वास कर पाये हैं न ही उन्हें स्वरोजगार से जोड़ पाये है । बालश्रमिकों में 95प्रतिशत से अधिक बाल श्रमिक अनुसूचित जातियों एवं पिछड़ा वर्ग के है । बाल श्रमाधिक्य वाले शहरी, अद्र्धशहरी, ग्रामीण क्षेत्रों के प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विधालयों में पढ़ार्इ अधूरी छोड़कर बैठ जाने वाले बच्चों में 85 प्रतिशत से अधिक बच्चें अनुसूचित जातियां अन्य पिछड़ी जातियो या निर्धन परिवारों के है । गरीबी और बेबस का जीवन जीने का मजबूर इन परिवारों एवं इनके नौनिहालों के लिए सकल घरेलू उत्पाद अथवा प्रति व्यकित आय में उच्च वृद्धि दर का कोर्इ अर्थ न कभी पहले था न आज है।

बच्चों के लिए सर्वप्रथम राष्ट्रीय नीति 22 अगस्त 1974 को अंगीकृत की गर्इ थी । इसके अन्र्तगत प्रावधान किया की शासन बच्चों को उनके जन्म से पूर्व और उसके बाद तथा उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास के लिए बढ़ती उम्र के दौरान उपयुक्त सेवाएं उपलब्ध कराएगा । इसके अन्र्तगत सुझाए गए उपायो में से एक समग्र स्वास्थ्य कार्यक्रम माताओं ओर बच्चो हेतु पूरक पोषण 14वर्ष की आयु तक सभी बच्चो के लिए नि:शुल्क शिक्षा और अनिवार्य शिक्षा, शारीरिक शिक्षा तथा मनोरंजन गतिविधियो को बढ़ावा, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति जैसे कमजोर वर्गो के बच्चो की विशेष देखभाल बच्चो के शोषण की रोकथाम आदि शामिल है । 30 जनवरी 2006 को पृथक महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का गठन भी किया गया । राष्ट्रीय बाल नीति 2012 तो 18वर्ष से कम आयु के देश के सभी लोगों को मान्यता देती है तथा उनके संरक्षण के लिए स्वास्थ्य पोषण, शिक्षा प्राथमिकता वाले क्षेत्रो में रखा गया है । लेकिन इन तमाम उपायो के बावजूद नेहरू के आधुनिक भारत के बच्चे बदहाल है । रोटी की तलाश में उनकी जिन्दगी शुरू होती है और यह अन्तहीन सफर कभी थमने का काम नही लेता ।

आर्थिक विकास की चकाचौंध में उपेक्षित एवं शोषित बच्चे चौराहो पर भीख मांगते, भगवान की तस्वीर को थाली में रखकर, भेंट की आस में भटकते लोगों के सामने गिड़गिड़ाते, मंदिर के आसपास फूल लेकर घिघयाते, पटाखा, चुड़ी या पाऊच कारखाने के बोझ तले दबे जा रहे है । ये चमकते भारत की बदतरीन तस्वीर है, जिसे भूलाना आत्मघाती होगा । नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा पाने का बच्चो का अधिकार 2009 भी बेमानी सिद्ध हो रहा है । पबिलक स्कूल इन गरीब बच्चो को अपने आधुनिकतम शिक्षा संस्थानो से दूर रखना चाहती है अपने कुतिसत इरादो को पूरा करने के लिये वे इन बच्चों को शिक्षा देने के विरोध में सर्वोच्च न्यायालय चले गये, उनकी याचिका तो खारिज हो गर्इ लेकिन शिक्षा का ये अभिजात्य वर्ग व्यावहारिक धरातल पर इस प्रकार हावी है कि कानून भी बेबस हो गया है ।

यह चमकते भारत की वह कड़वी सच्चार्इ है जिससे आधुनिकता के पैरोकार आंख मूंदें हैं और एक बड़ी समस्या को नजर अंदाज करने के शर्मनाक कृत्यो में शामिल है। दुनिया में आर्थिक विकास के बड़े बड़े दावें किये जाते है, देश विदेश में इणिडया शाइनिंग और समावेशी विकास के नारे गूंजते है, लेकिन हकीकत में भारत में करोड़ो बच्चें बुनियादी सुविधाओ से वंचित है, वे दर-दर की ठोकरें खानें को मजबूर है। इन नौनिहालो की बदहाली जन्म से शुरू होकर जीवन पर्यन्त चलती है ।

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  1. आपकी हर बात मे सच्चाई है, हर आंकडा सही है। सरकारी मदद उन तक नहीं पंहुच पाती है पर कोई
    भी मदद कुछ दिन बाद कम पड़ जायेगी क्योंकि समाज का ग़रीब और अनपढ़ तबका ही जनसंख्या की वृद्धि अधिक कर रहा है।परिवार नयोजन की बात कोई करना ही नहीं चाहता,वोट तो यहीं से आते हैं। हर प्रसूति पर उन्हे नक़द और मदद मिलने से ग़लत संदेश जाता है।हम या कोई सरकार या ऐन.जी. ओ. कुछ भी करले जब तक परिवार नियोजन कार्यक्रम को सख़्ती से लागू नकिया गया हालात सुधरने की उम्मीद नहीं की जा सकती।

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