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मानवाधिकार के ग्लोबल पैराडाइम के अंतर्विरोध - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
जगदीश्‍वर चतुर्वेदी लोकतंत्र की मानवाधिकारों के बिना कल्पना असंभव है। भारत में लोकतंत्र पर बातें होती हैं लेकिन मानवाधिकार के परिप्रेक्ष्य में बातें नहीं होतीं। हमारे यहां का अधिकांश लेखन संवैधानिक नजरिए और उसके विकल्प के वाम-दक्षिण दृष्टियों के बौद्धिक विभाजन या दलीय वर्गीकरण में बंटा है।इसके अलावा मानवाधिकारों पर…