यहां शराब से तेज नहीं है शिक्षा की लौ

अनीता कुमारी 

images (1)कुछ महीने पहले राष्ट्री्य राजधानी क्षेत्र दिल्ली से सटे गुड़गांव के एक पब में स्कूली छात्र-छात्राओं द्वारा शराब का सेवन करते हुए पकड़े जाने के बाद से मौलिक शिक्षा पर फिर से बहस शुरू हो गई है। पकड़े गए बच्चे क्षेत्र के प्रतिष्ठित स्कूल के विद्यार्थी निकले। जहां प्रवेश पाने के लिए मोटी रक़म और उंची पहुंच होना जरूरी है। विद्यार्थियों द्वारा किए गए इस कुकृत्य को किसी भी सभ्य समाज में बर्दाशत नहीं किया जा सकता। इस खबर ने यह साबित कर दिया है कि शराब का सेवन आज समाज को दीमक की तरह चाट रहा है। भले ही सरकार को इससे करोड़ों और अरबों रूपये का राजस्व प्राप्त हो रहा है। लेकिन इसके सेवन से नई पीढ़ी पथभ्रष्टी हो रही है। इसके उपयोग ने कई घरों के चूल्हे को बुझा दिया है तो इसके दुरूपयोग ने कई घरों के चिराग को बुझा दिया है। शराब पीना हाई प्रोफाईल के लिए महज़ एक फैशन होगा लेकिन समाज के निचले तबक़े द्वारा इसके सेवन ने उनकी आर्थिक स्थिती को बद से बदतर ही किया है। ज्यादा शराब बेचने की लालच में शराब माफियाओं द्वारा कई बार नकली शराब परोसने के कारण लोगों की जान जाती है और मरने वालों में अधिकतर रिक्शा चालक और दिहाड़ी मज़दूर जैसे आम लोग ही लोग होते हैं। यह लोग ऐसी बस्ती में रहते हैं जहां शिक्षा नाममात्र की होती है। जहां लड़कियों को बिल्कुल पढ़ाया नहीं जाता है और लड़के केवल टाइम पास करने के लिए पढ़ते हैं। ऐसी बस्तियों के मर्दों को बच्चों के उज्ज्वल भविष्यि से कोई वास्ता नहीं होता है। उन्हें केवल सुबह-शाम शराब चाहिए।

देश के कई ग्रामीण हिस्सों में यह दृश्यल आसानी से देखा जा सकता है। खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में अवैद्य शराब के कारण होने वाली मौतों की खबरें प्रायः सुनने को मिलती रहती हैं। बिहार के मुज़फ्फरपुर जिले से करीब 50 किमी दूर और ब्लॉक हेडक्वार्टर से करीब 12 किमी की दूरी पर स्थित नेकनामपुर पंचायत भविष्य् में एक बार फिर समाचारपत्रों की सुर्खियां बन सकता है। यहां की दलित बस्तियों में अशिक्षा की वजह से नशापान का चलन तेजी से बढ़ रहा है। यह वही इलाक़ा है जहां वर्ष 2012 में जहरीली शराब पीने से करीब एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गयी थी। इस कांड को लेकर बिहार विधानसभा में भी जमकर हंगामा हुआ था। चैंकाने वाली बात यह है कि यहां के उपस्वास्थ्य केंद्र में इलाज व टीकाकरण की जगह दारू की भट्ठी चल रही थी। जो यहां के लोगों के लिए मौत का कारण बनी। घटना के बाद कुछ दिनों तक अवैद्य शराब के खिलाफ भाषणबाजी और नारेबाजी होती रही। वक्त बीतने के साथ ही जख़्म भरता गया और फिर इसका कारोबार धड़ल्ले से चल पड़ा है। करीब आठ हजार की जनसंख्या वाले इस पंचायत के अधिकांश लोगों के पास जीविका का कोई दीर्घकालीन साधन नहीं है। अवैध शराब की जगह सरकार ने लाइसेंसयुक्त शराब की दुकान खोल दी है जो बस्ती शुरू होते के साथ ही है। इसी बस्ती से कुछ आगे एक प्राथमिक विद्यालय संचालित है जो भवनविहीन खाने के लालच में स्कूल तक आते हैं और खाने के बाद अपने अपने घर को निकल जाते हैं। दूसरी ओर यहां पदस्थिापित शिक्षक भी शिक्षण कार्य को लेकर गंभीर नहीं हैं। उनके स्कूल आने का कोई टाइम-टेबल नहीं है। शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी के कारण माता-पिता भी बच्चों को स्कूल भेजने में कोई विषेश दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं। दूसरी ओर आंगनबाड़ी केंद्रों का भी हाल बुरा है। कई केंद्र नियमित रूप से नहीं चलते हैं। ऐसे में इस बस्ती के बच्चे जब शिक्षा नहीं प्राप्त करेंगे, तो बुरी आदतों के शिकार तो होंगे ही।

मुखिया तारकेश्वूर प्रसाद सिंह कहते हैं ‘‘इस दलित बस्ती के बच्चों के पढ़ने के लिए स्कूल भवन नहीं बन पाया है क्योंकि अभी तक जमीन उपलब्ध नहीं हो पा रही है। हालांकि राज्य सरकार ने एक अनोखी योजना चला रखी है जिसके तहत जमीन दान देने वाले के नाम से स्कूल का नामकरण किया जाएगा। बस्ती के करीब ही कई संभ्रात लोगों की काफी बड़ी जमीन है, लेकिन वह स्कूल के लिए किसी प्रकार का दान देने को तैयार नहीं हैं।’’ बस्ती की दुर्दशा सरकारी योजनाओं की पोल खोल रही हैं। बात केवल शिक्षा की ही नहीं है। जागरूकता की कमी के कारण अधिकांश गांव वालों को नहीं मालूम कि उनके पंचायत में कौन-कौन सी योजनाएं चल रही हैं। जहरीली शराब कांड के बाद उपस्वास्थ्य केंद्र प्रायः बंद रहता है। यहां के एक किसान सीताराम सिंह ने बताया ‘‘प्रखंड से लेकर पंचायत तक बीज वितरण में व्यापक गड़बड़ी होती है। लेकिन कागज़ पर इसे शत-प्रतिशत वितरण दर्षाया जाता है।’’ इसके पूर्व ढैंचा और मूंग का बीज असमय किसानों को मिला, जिसे किसान अपने खेतों में नहीं लगा सके। मूंग का बीज दाल के काम आया और ढैंचा का बीज लोगों ने दुकानदारों को बिक्री कर दिया। ऐसे में आवश्य्कता है कि सरकार यहां शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ-साथ नषे के दुष्पारिणामों को लेकर भी जागरूकता के लिए विषेश कार्यक्रम चलाए।

शिक्षा से संबंधित हाल ही में आई एक रिपोर्ट जिसमें यह बताया गया है कि स्कूलों में लड़कियों के दाखिले में वृद्धि हुई है, राहत देने वाली अवश्या है परंतु गौरवान्वित करने वाली खबर तो बिल्कुल नहीं कही जा सकती है। रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद यह वृद्धि स्कूल में बुनियादी सुविधाओं के विकास के कारण संभव हुआ है। सुधार का यह प्रतिशत यूपी और बिहार जैसे पिछड़े राज्यों में बेहतर होना अवश्ये प्रभावित करता है। भवन बनने के कारण छात्र-क्लासरूम अनुपात में भी सुधार हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले कुछ सालों में बिहार सरकार ने शिक्षा के प्रति विशेष गंभीरता दिखाई है। इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में मुख्यमंत्री ने बालिका शिक्षा को राज्य में पूरी तरह से फ्री कर दिया है। वहीं दूसरी ओर अस्थाई शिक्षकों के वेतन भत्ते में भी वृद्धि की गई है। लड़कियों को स्कूल आने और जाने के लिए सायकिल और छात्रवृत्ति जैसी कारगर योजनाओं पर अमल ने भी इस दिषा में सार्थक परिणाम को उल्लेखित किया है। लेकिन नेकनामपुर जैसे इलाक़े में अभी भी शिक्षा की लौ को जलाने के लिए सार्थक पहल की आवष्यकता है। (चरखा फीचर्स)

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