व्यंग्य बाण : आह प्याज, वाह प्याज

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onionप्याज मूल रूप से भारतीय उपज है या विदेशी, इस पर शोधार्थियों को खोपड़ी लड़ाने दीजिये; पर हम तो इतना जानते हैं कि प्याज के छिलकों की तरह इसकी कहानी में बाहर से लेकर अंदर तक, और ऊपर से लेकर नीचे तक, कई रंग और आकार की परतें मौजूद हैं।

जो लोग प्याज नहीं खाते, मैं सबसे पहले उनसे क्षमा मांग लूं। एक बार मेरे ऐसे ही एक मित्र घर आने वाले थे। हमारे घर में बिना प्याज के भोजन की कल्पना ही नहीं की जाती। अतः उनके लिए अलग बरतन में सब्जी और दाल बनी; पर भोजन प्रारम्भ करते ही उन्होंने बता दिया कि इनमें प्याज है।

मैंने कहा कि आपके लिए दोनों चीजें अलग से बनी हैं; पर वे मानने को तैयार नहीं थे। बाद में पता लगा कि गृहमंत्री जी ने उनके लिए दाल-सब्जी अलग तो बनाई; पर अपने और उनके बरतनों में एक ही कड़छुल का प्रयोग कर लिया। मेरे मित्र ने तो हंसते हुए दही से खाना खा लिया; पर आज भी इस प्रसंग की याद आने पर मन की कोई चोट ताजा हो जाती है।

जहां तक प्याज की बात है, तो यह गुणों की खान है। नाक से लेेकर कान तक और आंख से लेकर पेट तक, हर मर्ज की दवा इसके रस में विद्यमान है। आयुर्वेद में प्याज की महिमा खूब बखानी गयी है; पर इसकी उस विशिष्ट गन्ध का क्या करें, जिसे कुछ लोग दुर्गन्ध कहते हैं। इसीलिए कई लोग इसे तामसिक भी बता देते हैं; पर सच तो यह है कि इसके बिना खाने में मजा ही नहीं आता ? दाल और सब्जी चाहे जो भी बने; पर राजा की तरह प्याज का हर जगह विद्यमान रहना जरूरी है। भगवान झूठ न बुलवाये; पर सच कहूं, तो दाल और सब्जी की आत्मा वस्तुतः प्याज ही है।

कहते हैं कि अकबर के दरबार में मुल्ला दो प्याजा नामक एक जन्तु भी थे। उनका ऐसा अजीब सा नाम क्यों पड़ा, ये तो अकबर जाने या वीरबल; पर यह सच है कि वीरबल से उनकी कभी नहीं पटी। मुल्ला जी बार-बार वीरबल को नीचा दिखाने का प्रयास करते थे; पर उसकी बुद्धिमत्ता के आगे उन्हें हर बार मुंह की खानी पड़ती थी। उनकी एक आंख सकुशल थी; पर दूसरी न जाने कब और कैसे दिवंगत हो गयी थी। हां, उसकी जगह प्याज जैसा एक गहरा गड्ढा जरूर था। शायद इसी से उनका यह नाम पड़ा हो। कहते हैं कि ‘प्याज भी खाए और जूते भी’ वाली घटना उन्हीं मुल्ला दो प्याजा से संबंधित है।

प्याज के कारण भोजन के स्वाद के बनने या बिगड़ने के सैकड़ों किस्से हैं। इसके कारण बारात लौटने की बात भी हमने सुनी है; पर दिल्ली वालों से पूछो, तो वे प्याज और सत्ता की जुगलबंदी भी बता देंगे। 15 साल पहले दिल्ली में प्याज की मेहरबानी से ही कांग्रेस सत्ता में आई थी। यद्यपि भाजपा वाले बाद में आरोप लगाते रहे कि कांग्रेसियों ने ही जानबूझ कर प्याज का कृत्रिम अभाव पैदा किया है; पर ‘मार पीछे की पुकार’ को कौन सुनता है ?

इस बार फिर ऐसा ही माहौल है, तो कांग्रेस वाले भाजपा पर यही आरोप मढ़ रहे हैं। प्याज सत्तर रु. किलो तक तो पहुंच गया है, अब उसके शतक की प्रतीक्षा है। दिल्ली में चुनाव लड़ने के इच्छुक सभी नेता अपने क्षेत्र में इन दिनों प्याज की मालाएं पहन कर झूठे वादों के साथ सस्ते प्याज भी बेच रहे हैं। भले ही वे खुद प्याज न खाते हों; पर प्याज बेचना उनकी मजबूरी बन गयी है। 15 साल पहले चुनाव के बाद कुछ लोग आह प्याज, तो कुछ वाह प्याज करते मिले। इस बार भी आह और वाह तो होगी; पर बोलने वाले पात्रों के बदलने की पूरी संभावना है।

प्याज की चर्चा ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ की तरह ही है। किसी ने संतों की महिमा बताते हुए लिखा है –

ज्यों केलन के पात में, पात पात में पात
त्यों संतों की बात में, बात बात में बात।

जिस किसी ने यह दोहा लिखा है, वह निश्चित रूप से प्याज नहीं खाता होगा, अन्यथा वह कहीं-कहीं मिलने वाले केले के वृक्ष की बजाय हर रसोई में मिलने वाले प्याज का ही उदाहरण देता। प्याज भी सिद्ध संतों की तरह ऊपर से रूखा होता है; पर जैसे-जैसे उसकी परत उतारिये, वह क्रमशः मुलायम और मीठा होता जाएगा।

यह प्याज चिंतन न जाने कितनी देर और चलता कि तभी शर्मा जी आ गये। उन्होंने इस विचार प्रवाह में हस्तक्षेप करते हुए एक पुरानी कहानी सुना दी। लीजिए, आप भी सुिनये।

एक राजा की बेटी को एक बार न जाने क्या हुआ कि वह रोना ही भूल गयी। जब देखो तब हंसी, ठहाके और खिलखिलाहट। हंसना यों तो बहुत अच्छी बात है। हंसने-हंसाने वाले लोगों का हर जगह स्वागत होता है और रोने वालों से लोग दूर रहना ही पसंद करते हैं; पर बिना बात हर जगह हंसना भी ठीक नहीं। चिकित्सक कहते हैं कि कभी-कभी रोना भी जरूरी है।

अब बात राजा और राजकुमारी की थी, सो दूर-दूर से चिकित्सक बुलाए; पर सब व्यर्थ। मारपीट से लेकर भयानक दृश्य दिखाने जैसे भीषण प्रयोग भी किये गये; पर उसकी आंख से आंसू ऐसे गायब थे जैसे गधे के सिर से सींग। अंततः ऐसी कहानियों में जो होता है, वही हुआ। राजा ने घोषणा कर दी कि बेटी को रुलाने वाले को आधा राज्य दहेज में देकर राजकुमारी से ही उसका विवाह कर दिया जाएगा।

कहते हैं कि एक सब्जी बेचने वाले को जब यह पता लगा, तो वह एक किलो प्याज लेकर गया और राजकुमारी से उन्हें काटने को कहा। राजकुमारी ने जैसे ही प्याज काटे, उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे। वह अपने हाथ से जितना उन्हें पोंछती, आंसू उतने ही अधिक निकलते। राजकुमारी के रोते ही सब ओर खुशी छा गयी और उसी दिन सब्जी वाले से उसका विवाह कर दिया गया।

वे इससे आगे कुछ कहते कि मैंने उन्हें टोक दिया – शर्मा जी, अब आप इस कहानी में कुछ संशोधन कर लें। आज यदि ऐसी कोई घटना हो, तो आधे राज्य की बजाय आधी बोरी प्याज ही दहेज में देने से काम चल जाएगा। मैडम इटली और मनमोहन जी के राज में यों तो हर चीज के दाम आकाश छू रहे हैं; पर जहां तक प्याज की बात है, तो अब उसे काटने की जरूरत नहीं है। अब तो बाजार में उसके दाम सुनकर ही आंसू आ जाते हैं।

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