हम पीला पानी क्यों पीते हैं?

वरूण सुथरा

images (1)संसार में रहने वाले हर एक मनुष्या की सबसे पहली ख्वाहिश यही होती है कि उसे पेट भरने के लिए दो वक्त की रोटी और प्यास बुझाने के लिए साफ़ पानी आसानी से मिल जाए। बाकी जिंदगी के एशो आराम की दूसरी चीज़ें वह दूसरे दर्जे की श्रेणी मे रखता है। भारत देश में भी बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां का पानी इस्तेमाल करने लायक ही नहीं है। ऐसे क्षेत्रों का पानी या तो खारा है या फिर बदबूदार है। इन क्षेत्रों में रहने वालों के लिए जिंदगी किसी अज़ाब से कम नहीं है। जम्मू कश्मी र के सरहदी जि़ले सांबा के ननगा पंचायत के बकहा चाक गांव के लोग भी कुछ इसी तरह की समस्या से दो चार है। बकहा गांव के सभी घरों में हैंडपंप से पीला पानी निकलता है । इस सच्चाई को जानते हुए भी यहां के लोग खाने, पीने और नहाने में इसी पानी इस्तेमाल करते हैं। समस्या के बारे में ननगा पंचायत के नायब सरपंच जनक राज कहते हैं ‘‘ नई नई योजनाएं लागू की जा रही हैं, मगर सरकारी दफ्तरों में भ्रश्टाचार के चलते इन स्कीमों का फायदा लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है।’’ लिहाज़ा साफ है की भ्रष्टा चार का ख़ामियाज़ा सीधे तौर पर लोगों को उठाना पड़ रहा है। पीले पानी की वजह से गांव के लोगों के दांत पीले पड़ गए हैं। जिसकी वजह से यहां के ज़्यादातर लोग दंत संबंधी समस्याओं के शिकार हैं। गांव के सरपंच जनक राज की पत्नी प्रीतो देवी का कहना है ‘‘ हमें न चाहते हुए भी पीले पानी का ही इस्तेमाल करना पड़ता है क्योंकि गांव के दूसरे हैंडपंपों की तरह हमारे हैंडपंप से भी पीला पानी ही निकलता है।’’ इस गांव के लोगों के ज़रिए अक्सर यह बात यह सुनी जा सकती है कि हम तो पीला पानी पीते हैं। इस बारे में बकहा गांव के आंगन बाड़ी सेंटर की इंचार्ज उर्मिला देवी का कहना है‘‘ मैंने हाल ही अल्ट्रासाउंड कराया था, इसके बाद डाक्टर ने बताया कि पीला अशुद्धियुक्त पानी पीने से आपके यकृत में सुजन आ गयी है।’’ पानी में अशुद्धियां साफ नज़र आती हैं बावजूद लोग इस पानी का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा पीला अशुद्धियुक्त पानी पीने से लोगों को सेहत संबंधी नई नई बीमारियां भी हो रही हैं। गांव में लोगों को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए अधिकारियों ने एक बार ज़रूर गांव का दौरा किया था और पानी को साफ सुथरा करने के तौर तरीकों के बारे में बताया था। लेकिन इसके बाद लोगों को न तो पानी को साफ करने के लिए टैस्टिंग किट दी गई और न ही क्लोरीन टैबलेट। लिहाज़ा इसका नतीजा यह हुआ कि चंद महीने पहले राज्य सरकार की ओर लोगों को पानी को साफ सुथरा करने की ट्रेनिंग देने के लिए एक जागरूकता कैंप लगाया गया था जिसमें बहुत कम लोगों ने हिस्सा लिया।

यहां के लोगों को इस बात का डर हमेषा सताये रहता है कि सरहदी इलाका होने की वजह से कब उनके घर बार छिन जाएंगे और वे बेघर हो जाएंगे। इस बारे मे गांव के स्थानीय निवासी तोशी देवी का कहना है ‘‘ मुझे रात को डरावने सपने आते हैं कि हमारा घर छिन गया है और हम बेघर हो गए हैं।’’ ऐसे में छत पर साए को बचाने के चक्कर में ये लोग पीले पानी के सेवन को मजबूर है। कोई इनकी सुनने वाला नहीं हैं सिर्फ एक दूसरे के साथ अपने दर्द को बांटकर ये लोग जिंदगी के सफर में आगे बढ़ रहे हैं। इसी गांव के रहने वाले रवि जो पेषे से एक बढ़ई हैं कहते हैं ‘‘ हम लोग सरहदी इलाके में रहते हैं जहां बुनियादी सुविधाओं की पहले से ही बड़ी किल्लत है तो ऐसे में हम मुश्किल से ही कभी अशुध्दियुक्त पानी से होने वाली बीमारी के बारे में सोचते हैं।’’ गांव की स्थानीय निवासी रजनी देवी बताती हैं कि मैं अपने बच्चों को पानी साफ करके पिलाती हूं क्योंकि मुझे उनके स्वास्थ्य की फिक्र है। गांव में रजनी देवी जैसे लोगों की तादाद लगभग न के बराबर है जिन्हें अपनी और अपने परिवार की सेहत की चिंता है। रजनी देवी का यह भी कहना है कि मुझे उस वक्त बहुत आश्चवर्य होता है जब कोई पीले पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए चर्चा करता है। इस समस्या से जूझते हुए यहां के लोगों को काफी लंबा समय हो गया है, मगर अभी तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं हो सका है।

‘‘कहते हैं जल ही जीवन है’’ इस बात को बकहा गांव के लोगों से अच्छी तरह कौन जानता होगा? ननगा पंचायत में बकहा गांव समेत कुल सात गांव हैं। बाकी गांवों में भी पानी की समस्या के अलावा और भी दूसरी बुनियादी सुविधाओं की हालत खस्ताहाल ही है। बकहा गांव में साफ पानी की समस्या एक लंबे अर्से से बनी हुई है ऐसे में इसका कोई समाधान न होना सरहदी इलाकों में राज्य सरकार के साथ साथ केंद्र सरकार की ओर से उठाए जा रहे विकास के कदमों की भी कलई खोलता है। सरहदी इलाकों मे रह रहे लोगों का क्या सिर्फ यही कुसूर है कि वे सरहदी इलाकों में रहते हैं? बकहा गांव में पीले पानी की समस्या का क्या कभी कोई हल निकल पाएगा? क्या बकहा गांव के लोग कभी साफ पानी पी पाएंगे? इन सवालों का जबाब जल्द ही राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार को ढ़ूढ़ना होगा। क्योंकि लोकतंत्र सभी के विकास की बात करता है। खासतौर से दूरदराज़ के इलाकों के लोगों को विकास से दूर रखकर हम षाइनिंग इंडिया का सपना नहीं देख सकते क्योंकि हमारे देश की 70 फीसदी आबादी गांवों में ही निवास करती है। लिहाज़ा इसके लिए देश में विकास के समावेशी माडल को अपनाने की सख्त ज़रूरत है। (चरखा फीचर्स)

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  1. इंसान जी,क्या नमो वैसा करेंगे,जैसा पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने चाहा था? अगर नहीं तो फिर किसी तरह की शासन की सुव्यवस्था भारत को उस दलदल से नहीं निकाल सकेगी,जिसमे वह आज फंसा हुआ है,क्योंकि जब बिस्मिल्ला ही गलत है,जब नीव ही कमजोर है ,तो आगे की इमारत क्या होगी? पश्चिम का पूँजीवाद जिसके समर्थक नमो हैं या कमनिस्टों का साम्य वाद का प्रयोग असफल हो चूका है,अतः आवश्यकता है ,उसी और लौटने की जिसका अलख महात्मा गांधी या पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने जगाया था.अरविन्द केजरीवाल का स्वराज उसी दिशा में अगली कड़ी है जिसके बारे में अन्ना ने लिखा था, “यह किताब व्यवस्था-परिवर्तन और भ्रष्टाचार के खिलाफ हमारे आंदोलन का घोषणा -पत्र है और देश में असली स्वराज लाने का प्रभावशाली मॉडल भी”
    जब तक ऐसा नहीं किया जाता,तब तक न भ्रष्टाचार पर काबू पाया जा सकता है और न बिसंगतियों पर.

  2. आर. सिंह जी द्वारा तथाकथित स्वतंत्रता के प्रारम्भ में महात्मा गांधी की कही बात अवश्य ही समय की मांग थी लेकिन तब से चारों ओर अयोग्यता और मध्यमता के बीच आज छियासठ वर्षों बाद अंग्रेजी वाक्यांश, “All things being equal” जैसी स्थिति कभी उत्पन्न नहीं हो पाई है कि उसकी पृष्ठभूमि पर इस आलेख के विषय, “हम पीला पानी क्यों पीते हैं?” पर किसी प्रकार की सार्थक परिचर्चा हो पाए| इंडिया पहचाने जाते भारत में फिरंगी द्वारा रचित “लोकशाही” (अ)व्यवस्था “भारत के सात लाख गाँवों” को जोड़ने के लिए एक सामान्य भाषा नहीं ढूंढ़ पाई है जिसके अभाव के कारण राष्ट्रवाद विभिन्न भाषाओं और प्रांतीय क्षेत्रों में उलझ कर रह गया है| तिस पर उस अव्यवस्था के चलते सर्वव्यापी भ्रष्टाचार ने सामान्य भारतीय नागरिक को असहाय बना छोड़ा है और ऐसी स्थिति में हम पीला पानी पीने को विवश हैं| इसका एक मात्र उपाय राष्ट्रवादी नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व के अंतर्गत देश में सुशासन की व्यवस्था हेतु भारतीयों को सभी प्रकार के भेद भाव से ऊपर उठ संगठित रूप से उन्हें आगामी चुनावों में अपना समर्थन दे विजयी करना होगा|

  3. महात्मा गांधी ने कहा था,”सच्ची लोकशाही केंद्र में बैठे हुए बीस लोग नहीं चला सकते. सत्ता के केंद्र बिंदु दिल्ली, बम्बई और कलकत्ता जैसी राजधानियों में है. मैं उसे भारत के सात लाख गाँवों में बाँटना चाहूंगा.” काश,ऐसा हो पाता,तो ये सब समस्याएं अपने आप हल हो जातीं.

    • आ. सिंह साहब —आपका उद्धरण ==> गांधीजी कहते हैं,—“लोकशाही भारत के सात लाख गाँवों में बाँटना चाहूंगा.”
      (१)ऐसे लोक शाही बाँटने की विधि भी संक्षेप में क्या है?
      (२)क्या चुनाव के अतिरिक्त भी कोई विधि है?
      (३)देश की सीमाओं की रक्षा कौन करेगा?
      (४) प्रदूषण नियमन, यातायात, लौह-मार्ग, सिंचाई, डाक व्यवस्था, शिक्षा का प्रबंध, पुलिस और ढेर सारी व्यवस्थाएं क्या सारी सात लाख गाँवों में बाँटी जाएंगी?
      आपको इसकी कल्पना होंगी।कृपया अनुग्रहित करें।
      सादर।

      • डाक्टर साहिब धन्यवाद. मैंने केवल महात्मा गांधी को उद्धृत किया था,अतः पहले तो यह सोचना पड़ेगा कि महात्मा गांधी ने ऐसा क्यों कहा?इसकी रूप रेखा उनके हिन्द स्वराज्य में मौजूद है.पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने भी आर्थिक विकेंद्री करण के साथ सत्ता के विकेंद्री करण की बात कही थी. जहाँ तक मेरा ज्ञान है ,अमेरिका में भी बहुत से फैसले शहरी निगम के स्तर पर लिए जाते हैं उनके लिए .संघीय राजधानी तक जाने की आवश्कता नहीं पड़ती. स्वराज्य में अरविन्द केजरीवाल ने भी यही लिखा है कि गांवों की भलाई के फैसलें ग्राम सभा स्तर पर, जिला के भलाई के फैसले जिला स्तर पर और इसी तरह कुछ फैसले ऐसे होंगे,जिसे राष्ट्र स्तर पर लेना आवश्यक होगा.सेना ,प्रतिरक्षा ., विदेश नीति आदि फैसले राष्ट्र स्तर पर लिए जायेंगे. उन तीनो महानुभावों ,जिसमे महात्मा गांधी और पंडित जी की गिनती तो युग प्रवर्तक के रूप में होती है ,इसी को विस्तार पूर्वक दर्शाया है. मेरी विचार धारा उससे भिन्न नहीं है. इस पर शायद मैं अपने विचार भी कुछ दिनों के बाद विस्तृत रूप में प्रस्तुत करूँ,पर शायद ,उसमे मौलिकता एकदम नहीं होगी,क्योंकि मैं इन्ही के द्वारा कही हुई बातों को अपने ढंग से प्रस्तुत कर दूंगा.

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