हिमालय के इस आँगन में
अभिनन्दन करती हुई
हिम से ढके पर्वतों को
सफ़ेद मोतियों से पिरोती हुई
श्यामल नभ में छोटे छोटे
बादल के कण
हिम पर्वतों को
चादर सी ढकती हुई
मदमस्त हो रही हैं
धीरे धीरे पहाड़ियां
आती जाती घटाओं में
बर्फीली हावाओं में
कुछ बारिश की बूदें
कुछ बर्फ के टुकड़े
झरनों का रूप लेती हुई
स्वछन्द मन से
अनवरत कुदरती धर्म
निभा रही हैं …