चोरी और डकैती का लाइसेंस  

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सच कहूं, मैं कपिल सिब्बल से बहुत प्रभावित हूं। यद्यपि मेरी उनसे आज तक भेंट नहीं हुई। भगवान न करे कभी हो। चूंकि वकील, डॉक्टर और थाने के चक्कर में एक बार फंसे, तो जिंदगी भले ही छूट जाए, पर ये पिंड नहीं छोड़ते।

हमारे प्रिय शर्मा जी ने जवानी में डेढ़ साल कानून की पढ़ाई की थी। फिर उनकी नौकरी लग गयी और तत्काल ही शादी भी हो गयी। अतः उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी; लेकिन वे आज भी खुद को आधा वकील तो मानते ही हैं। इसलिए वे न्यायालय की बहस पर बहुत ध्यान देते हैं। इन दिनों सर्वोच्च न्यायालय में तीन तलाक का मामला गरम है। कल सुबह जब शर्मा जी पार्क में आये, तो वे तमतमा रहे थे। आते ही उन्होंने बिना किसी भूमिका के पूछा – क्यों वर्मा, चोरी और डकैती का प्रचलन कब से है ?

उस दिन सुबह दूध फट जाने के कारण मैं चाय नहीं पी सका था। इसलिए सिर और पेट दोनों ही भारी थे। मैं शर्मा जी की बात की बारीकी को पकड़ नहीं सका। अतः मैंने उन्हें बात को जरा और स्पष्ट करने को कहा।

– मैंने हिन्दी में पूछा है, किसी विदेशी भाषा में नहीं। ये बताओ कि दुनिया में चोरी और डकैतियां कब से हो रही हैं ?

– शर्मा जी, मैंने एक संस्कृत सुभाषित सुना है, जो बताता है कि किसी समय न राजा था और न राजदंड। चूंकि कोई गलत काम करता ही नहीं था। सब धर्म के आधार पर अपने-अपने कर्तव्य का पालन करते थे। अतः सब ओर सुख-शांति थी।

– ये वैदिक परिभाषा अपने पास रखो। ये बताओ कि रामायण और महाभारत काल में चोरी, डकैती, हत्या, जुआ, नारी का अपमान आदि थे या नहीं ?

– बिल्कुल थे।

– तो क्या इन सबको भी कानूनी मान्यता दे दें ?

– ऐसा कौन मूर्ख कह रहा है ?

– मूर्ख नहीं, सर्वोच्च न्यायालय के एक बड़े वकील कपिल सिब्बल साब कह रहे हैं।

– अच्छा ?

– जी हां। तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय में जो बहस चल रही है, वहां उन्होंने कहा कि जो प्रथा पिछले 1,400 साल से चली आ रही है, उसे गलत कैसे कह सकते हैं ? कोई उन्हें ये बतालाए कि तीन तलाक को दुनिया में भले ही 1,400 साल हो गये हों, पर है तो वह कुप्रथा ही। यदि इतनी पुरानी कुप्रथा कानून बन सकती हैं, तो चोरी और डकैती को भी मान्यता दे देनी चाहिए।

– शर्मा जी, ये तो बड़े लोगों की बड़ी बातें हैं। हमारे और आपके जैसे आम नागरिक इसमें क्या कर सकते हैं ?

– तुम्हारी बात तो तुम जानो; पर यदि मेरे हाथ में ‘भारत रत्न’ देना हो, तो मैं उन्हें आज ही दे आऊं। उनकी जैसी मौलिक खोज तो आइंस्टीन ने भी नहीं की होगी। इसलिए मैं उन्हें ये सम्मान देकर रहूंगा। यदि वे नहीं लेंगे, तो मैं अनशन पर बैठ जाऊंगा। पेड़ पर लटक जाऊंगा या आत्मदाह कर लूंगा। जब तक वे मानेंगे नहीं, मैं डटा रहूंगा। आखिर ये मेरे भी मूल अधिकार का मामला है।

शर्मा जी ने फिर क्या किया, ये तो मुझे नहीं पता; पर मैंने सोचा कि मान लो दस-बीस साल बाद फिर से कपिल सिब्बल वाली पार्टी सत्ता में आ जाए और वह चोरी, डकैती, बलात्कार, जातीय हिंसा आदि को कानूनी मान्यता दे दे, तो इससे रोजगार के कई नये अवसर खुल जाएंगे। सरकार शराब की ही तरह इनके भी लाइसेंस देने लगेगी। इसके लिए शिक्षित-अशिक्षित या जाति-बिरादरी का बंधन भी नहीं होगा। हर जिले में इसका अधिकारी होगा। यों तो ‘पहले आओ पहले पाओ’ की नीति ठीक है; पर जब काम सरकारी है, तो दलाल भी होंगे। वे अपनी फीस लेकर सब ठीक करा देंगे। वैसे ऑनलाइन होने पर काम में पारदर्शिता आ जाएगी। इन लोगों को काम के समय एक यूनिफार्म पहनना और सीने पर अपना लाइसेंसी बैज लगाना जरूरी होगा। चोरी से पहले लाइसेंस दिखाना भी अनिवार्य किया जा सकता है।

जब कानून बन जाएगा, तो उसे तोड़ने पर मुकदमे भी होंगे। सिविल या क्रिमिनल की तरह कई वकील इसके भी विशेषज्ञ हो जाएंगे। कोर्ट में बहस होगी कि मुन्ना के पास लाइसेंस तो राशन की दुकान में चोरी का था, पर वो सर्राफ के यहां घुस गया। या जुम्मन के पास लाइसेंस तो सिर्फ डकैती का था, पर उसने बलात्कार और फिर हत्या भी कर डाली।

ऐसे कई मौलिक विचार मुझे आये। मैं उन्हें बताने शर्मा जी के घर चला गया। चूंकि वे सिब्बल साब और उनकी पार्टी के काफी निकट हैं। पर पूरी बात सुने बिना ही वे लाठी लेकर मुझ पर पिल पड़े। मैंने कहा कि आप भी तो आधे वकील हैं। यह गैरकानूनी काम आपको शोभा नहीं देता। पीटने से पहले लाइसेंस दिखाओ, यूनिफार्म पहनो; पर कुछ नहीं।

इस बात को कई दिन हो गये। तब से मैं दवाई और सिकाई के सहारे हूं। हे सिब्बल साब, आप कहां हैं ? आपकी बहस पर निर्णय तो जब आएगा, तब देखा जाएगा; पर शर्मा जी ने जो मेरे साथ किया है, उसका हिसाब कौन देगा ?

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