प्रेस वक्तव्य
गौरक्षा के पावन संकल्प को लांछित करने का षडयंत्र स्वीकार्य नहीं : डा सुरेन्द्र जैन
नई दिल्ली। जुलाई 4, 2017. हिन्दू समाज के गौरक्षा के पावन संकल्प को लांछित करने के षडयंत्रों से सावधान करते हुए विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने गौरक्षार्थ कठोर कानून बना कर कड़ाई से पालन करने की अपनी मांग दोहराई है. विहिप के अंतर्राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डा सुरेन्द्र कुमार जैन ने आज कहा कि गौरक्षा गौसेवा का अभिन्न अंग है. गौपालन, गौसंरक्षण, गोसंवर्धन व गौरक्षा गौसेवा के नाम को पूर्णता प्रदान करते हैं. इसके महत्त्व को समझते हुए ही महात्मा गांधी ने कहा था कि गौ रक्षा के बिना स्वराज अधूरा है. गौ रक्षा के लिए हिन्दू समाज के प्रबल संकल्प को समझकर ही महात्मा गांधी ने गौ रक्षा को स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बिन्दू बनाया था. स्वतंत्रता प्राप्त होते ही उन्होंने कहा था कि जिनको गौ मांस खाने की आदत है, उनको अपनी आदत बदल लेनी चाहिए. आचार्य विनोबा भावे ने गौरक्षा हेतु केन्द्रीय कानून बनाने के लिए आमरण अनशन किया था. पंडित दीनदयाल उपाध्याय भी गौवंश आधारित कृषि के माध्यम से भारत के उज्ज्वल भविष्य को प्रतिपादित करते थे. गौरक्षा के बिना यह भी असंभव है. डा जैन ने कहा कि हमारा स्पष्ट मत है कि भारत में गौरक्षा को लेकर निहित स्वार्थों द्वारा जो विषाक्त वातावरण बनाया जा रहा है, इसके समाधान का एक मात्र मार्ग है गौरक्षा के लिए केन्द्रीय कानून और उसका सख्ती से पालन. इसके लागू होने के बाद किसी को गौरक्षा के लिए संघर्ष की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
पिछले 10 वर्षों में केवल मीडिया में छपी इन घटनाओं का अगर विश्लेषण करेंगे तो ध्यान में आएगा कि 120 से अधिक बार गौ हत्यारों व जिहादियों द्वारा पुलिस व गौरक्षकों पर प्राणघातक बर्बर हमले किए गए हैं. वे खुलेआम सब प्रकार के शस्त्र लेकर चलते हैं. इसी अवधि में 50 से अधिक गौ रक्षकों व पुलिस कर्मियों की हत्या भी हो चुकी है. इस संख्या में केरल, कर्नाटक, तमिलनाडू व बंगाल आदि में की जा रही निर्मम हत्याएँ शामिल नहीं हैं. इससे सिद्ध होता है कि गोरक्षक अत्याचारी नहीं, पीडि़त हैं. इसीलिए, उत्तर प्रदेश के सर्वोच्च पुलिस अधिकारी को कहना पड़ा कि गौ हत्यारों से निपटने के लिए अधिक सुरक्षा बल लेकर जाएँ और उन पर रासुका लगाएँ.
विहिप संयुक्त महामंत्री ने संवाददाताओं से कहा कि पिछले कुछ दिनों से निहित स्वार्थी तत्व तरह-तरह के साइन बोर्डों का प्रयोग करके गौरक्षा के पवित्र काम को लांछित करने का दुष्प्रयास कर रहे हैं. इनमें सक्रिय लोगों के नाम पढ़ने पर ध्यान में आता है कि ये वही लोग हैं जो राजनैतिक कारणों से किसी मुद्दे को लेकर सड़क पर उतरते हैं और हिन्दू संगठनों के विरोध में व अराष्ट्रीय तत्वों के पक्ष में वातावरण बनाने का प्रयास करते हैं. जाने अनजाने में प्रचार तंत्र का एक वर्ग भी इनका सहयोगी बन जाता है. इस प्रयास में वे भूल गए हैं कि गौ हत्यारों के साथ घटित चंद घटनाओं के आधार पर वे भारत की संस्कृति को ही लांछित कर रहे हैं.
उन्होंने प्रश्न किया कि क्या याकूब प्रेमी माफिया, गौ हत्यारों व जिहादियों द्वारा की जा रहीं हत्याओं को छिपा कर उनका समर्थन करवाना चाहता है? क्या वह अपने इन कारनामों से आतंकियों के एजेंडे को लागू करने में सहायता नहीं कर रहां है? समाज में यह मान्यता बन रही है कि मांस निर्यातघटने की संभावना से त्रस्त सशक्त मीट लौबी की कठपुतली बनकर यह माफिया इस षड़यंत्र को अंजाम दे रहां है. इस माफिया का व्यवहार इस मान्यता को सही सिद्ध कर रहा है.
डा जैन ने यह भी कहा कि हमारा स्पष्ट मानना है कि गौसेवा के इस पवित्र कार्य में हिंसा का कोई स्थान नहीं. परन्तु जांच के परिणामों की प्रतीक्षा किए बगैर विहिप-बजरंग दल के नाम को जिस तरह से अनावश्यक रूप से उछाला जाता है, उससे ही उनके इरादे स्पष्ट हो जाते हैं. विहिप एवंसम्पूर्ण हिन्दू समाज गौरक्षा के पावन कार्य के लिए पूर्ण रूप से समर्पित है. देशभर में हमारी 450 से अधिक गौशालाएं चलती हैं इनके अलावा हमारे कार्यकर्ता 1500 अन्य गौ शालाएं भी चलाते हैं जिनमें, विहिप सहयोग करती है. देवलापार व अकोला में अनुसंधान केंद्र चलते हैं जहां कैंसर जैसे असाधारण रोगों के लिए भी औषधियों का निर्माण होता है. लगभग 350 गौ शालाओं में पञ्चगव्य से बनने वाले मानव उपयोगी एवं कल्याणकारी उत्पाद बनते हैं. हमारी सभी प्रदेश सरकारों, केंद्र सरकार व समाज से अपील है कि इस पुनीत कार्य में वे हमारा सहयोग करें और मानव जीवन को सुखद व समृद्धशाली बनाएँ.
जारी कर्ता:
विनोद बंसल
सामाजिक संचार माध्यम द्वारा बहुसंख्यक हिन्दू समाज में गौ-पालन, गौ-सेवा, व गौ-रक्षा के महत्त्व व सिद्धांत को समझाते भारतीयों में हिंदुत्व के आचरण को लोकप्रिय बनाना होगा ताकि उपयुक्त कानून व विधि व्यवस्था के अंतर्गत उसका अनुसरण भारतीय समाज में रहते सभी धर्मावलम्बियों को लाभान्वित कर उनमें आत्म-विश्वास व आत्म-सम्मान से सह-अस्तित्व की भावना जगाई जा सके|