लालू यादव बनाम चाणक्य

वीरेन्द्र सिंह परिहार

                        एक दिन यूं ही सुबह मार्निंग वाक में रामलाल जी मिल गये। मेरा उनसे बहस मुसाहबा चलता ही रहता है। मैनें कहा-सुना है, लालू यादव इन दिनों आचार्य चाणक्य के फैन हो गये हैं। रामलाल जी को बड़ा आश्चर्य हुआ, उन्होनें पूछा वह कैसे ? भला कहा लालू यादव और कहा चाणक्य । मैने कहा कि लालू यादव ने अभी हाल मे कहा है कि चाणक्य ने कहा है कि ‘‘जिस सभा में जायज  बातों को  न सुना जाये और बहुमत का भय दिखाकर लोगों को न बोलनें दिया जाय वह कोई सभा नहीं है।’’ इस पर रामलाल जी ने कहा कि आखिर मे ऐसा कहां हुआ कि जहां किसी की जायज बातें नहीं सुनी गई एवं बहुमत का भय दिखाकर लोगों को नहीं बोलने दिया गया। मैने कहा कि ये तो पता नहीं, अलबत्ता लालू जी तो अपने कारनामो के चलते न तो संसद के सदस्य है, न बिहार विधान सभा के न विधान परिषद के, इसलिये तो उनके साथ ऐसा होनें से कुछ रहा। अब किसके साथ ऐसा हुआ और किन लोगों ने ऐसा किया, यह तो वही बता सकते है। रामलाल जी ने इस पर कहा, यह नरेन्द्र मोदी के अलावा कौन हो सकता है, जो लालू यादव को कुनबे सहित जेल भेजने की तैयारी मे है। मैने कहा कि मेरी समझ मे तो ऐसा कुछ नहीं आता कि मोदी ने ऐसा कुछ किया हो, अलबत्ता यू-पी-ए-शासन के दौर में कंग्रेस और लालू जैसे उनके सहयोगी विरोधी दलों को हंगामा खड़ा कर जरूर नहीं बोलने देते थे। अब भी राज्यसभा मे बहुमत के चलते सत्ता पर्टी के लोगों को नहीं बोलने दिया जाता। मैने फिर कहा कि आचार्य चाणक्य ने तो यह भी लिखा है कि  ‘‘अति सुन्दर होनें के कारण सीता का हरण हुआ, अति अंहकार के कारण रावण मारा गया, अत्यधिक दान के कारण राजा बलि बांधा गया।’’ इसलिये अति ठीक नहीं है। बावजूद चाणक्य को अपना रोल माडल मानने के लालू यादव ने ऐसी अति क्यों कि कि मंत्री पद देने , सांसद विधायक बनाने से लेकर बी.पी.एल. कार्ड वालों को नौकरी देनें के एवज मे उनसे भी जमीनें लिखवा ली। ऐसी अति करने का सजा तो वह भुगतने जा रहे हैं। फिर मोदी को क्यों दोष दे रहे हैं। रामलाल जी ने कहा कि अरे लालूजी दिन-रात पूरा जीवन जनता की परिवार समेत सेवा करते रहे, ऐसी स्थिति मे हजार दो हजार करोड़ की संपत्ति जुटा ली तो कौन स गुनाह कर दिया? फिर धर्मनिरपेक्षता के झंण्डाबरदार और सामाजिक न्याय के मसीहा होनें के चलते यह उनका विशेषाधिकार था। फिर भला केन्द्र सरकार उनके पीछे क्यों पड़ी है ? मैने कहा कि ये तो मुझे पता नहीं। पर आचार्य चाणक्य ने ये भी कहा है कि प्रजा सुखे – सुखे राजा। यानी प्रजा के सुख मे ही राजा का सुख है, पर लालू यादव  ने इसे उलटा कर दिया यानी राजा सुखे – सुखे प्रजा, तभी तो बिहार मे उनके मुख्यमंत्री रहते एक ही उद्योग फला-फूला था वह था अपहरण उद्योग और लालू यादव अपने और अपने कुनबे को सुख के लिये कुछ इस अंदाज मे रूपये बटोर रहे थे कि निरीह पशुओं का चारा तक नहीं छोड़ा। भले ही इसके चलते वह जेल यात्रा कर आये और भविष्य भी जेल मे ही दिखता है। इस पर रामलाल जी ने फिर कहा कि ये तो ठीक है, पर जब लालू यादव ने जेल जाने के चलते अपनीं अपढ़ पत्नीं को बिहार का मुख्यमंत्री बनवाया, तो उनकी पार्टी के किसी विधायक या नेता ने तो ऐसे नाजायज कदम का विरोध क्यों नहीं किया? इसी तरह जब उन्होनें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दर किनार कर 26-27 साल के बेटे तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री बनवाया तो पार्टी में किस ब्यक्ति ने विरोध क्यों नहीं किया ? मैने कहा कि अरे भाई ऐसी मूर्खता कौन करता, सबको पता है कि ऐसी बातों का विरोध तो दूर चूं भी करनें पर राजनीतिक भविष्य पर पूर्ण विराम तो लग ही जायेगा, भाजपा और संघ का एजेंट भी घोषित कर दिया जायेगा। तभी तो बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर सी0बी0आई0 भी एफ.आई.आर. होनें पर लालू यादव की पूरी पार्टी एक स्वर से यह प्रस्ताव पारित करती है कि तेजस्वी जी इस्तीफा नहीं देंगे, उन्हें जनता ने चुना है। इसका मतलब साफ है कि लालू यादव न तो जायज बात सुन सकते, और दल के लोगों को ही भयभीत रखते हैं तभी तो उनके दल के लोग एक लोकतांत्रिक पार्टी के सदस्यों की तरह कार्य न कर गुलामों जैसा कृत्य करते हैं। इस पर रामलाल जी ने कहा कि यह तो ठीक पर क्या यह सच नहीं कि आचार्य चाणक्य ने विदेशी मूल की महिला हेलेना से उत्पन्न पुत्र जस्टिन को मगध का सम्राट इसलिये नहीं बनने दिया था कि विदेशी मूल के ब्यक्ति को तो दूर, उससे उत्पन्न संतान को भी प्रमुख पद पर नहीं बैठाया जा सकता, क्योंकि इससे राष्ट्रीय हितों में आंच आ सकती है। पर लालू यादव को विदेशी मूल की सोनिया गांधी के हाथ में सत्ता सूत्र केन्द्रित होने से कोई समस्या नहीं थी, उल्टे लालू यादव आये दिन सोनिया गांधी की दुहाई भी देते रहते हैं। ऐसी स्थिति मे लालू यादव का चाणक्य से क्या लेना – देना ? मैने कहा कि आचार्य चाणक्य तो अखंण्ड भारत का सपना भर नही देखते थे, बल्कि उसे पूरा करने के लिये प्राणप्रण से जुटे थे, पर लालू यादव के लिये तो उनका कुनबा ही सब कुछ है। आचार्य चाणक्य शासन के खजाने का एक पैसा भी निजी कामों मे उपयोग नहीं कर सकते थे, यहां तक कि निजी कामों में दीपक भी निजी खर्चे का जलाते थे, पर लालू यादव के लिये राज्य और देश का खजाना उनकी निजी जागीर है। इस पर रामलाल जी ने कहा ऐसी स्थिति में यह समझ मे नहीं आता कि फिर लालू जी चाणक्य की दुहाई क्यों दे रहे हैं ? यह तो ऐसा ही है कि जैसे ‘‘शैतान बाइबिल का उद्धरण दे रहा हो।’’

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