65वें गणतंत्र पर आत्मावलोकन

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-विनोद बंसल-   republic day

वर्ष 2014 में भारत अपने गणतंत्र की 65वीं वर्षगांठ मना रहा है। अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्रता प्राप्त करने के पश्चात भारत ने आज ही के दिन से अपना नया संविधान लागू किया था। विश्व के 21 देशों के संविधान को पढ़कर संविधान सभा के 286 सदस्यों द्वारा 395 अनुच्छेदों में समाहित अंग्रेजी मूल भाषा में लिखे गए हमारे इस संविधान को 26 नवम्बर 1949 को स्वीकृत करके 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया। गत 64 वर्षों में अब तक 125 संशोधनों के अलावा इस संविधान का अनुवाद अनगिनत भाषाओं में हो चुका है। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मूलाधार इस संविधान में निहित प्रावधानों की व्याख्या और विश्लेषण भारत ही नहीं विश्व के अनेक न्यायालयों द्वारा की गई  है।

किसी व्यक्ति के जीवन के 65वें वर्ष में प्रवेश को तो प्रौढ़ावस्था कहा जा सकता है किन्तु एक राष्ट्र के जीवन में तो इसे शैशवावस्था ही माना जाना चाहिए। किन्तु गत 64 वर्षों में हमने क्या खोया और क्या पाया, इसका आत्मावलोकन तो अवश्य करना ही चाहिए। हमने गण तंत्र दिवस तो मना लिया किन्तु क्या सच्चे माइने में हमारा यह तंत्र (व्यवस्था) गण (जनता) का है? अर्थात्, वर्तमान शासन व्यवस्था क्या वास्तव में जनता द्वारा जनता के लिए है? क्या भारत के प्रत्येक नागरिक को रोटी कपड़ा, मकान, सुरक्षा, शिक्षा व रोजगार के साथ अपने स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार मिल सका है। आजादी के बाद हमने भौतिक चकाचौंद तो प्राप्त किया, किन्तु अभी भी देश में चहुंओर व्याप्त भ्रष्टाचार, अपराधीकरण तथा छुद्र राजनैतिक लालच से प्रेरित निर्णयों के कारण हमारे सांस्कृतिक व नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन बहुत हुआ है। हमारा संविधान भारत के “समस्त नागरिकों को सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता” के साथ “प्रतिष्ठा व अवसर की समानता प्राप्त कराने” की बात तो करता है किन्तु देश के साधारण नागरिकों को ये सब अधिकार मिलेंगे कैसे? यह एक बहुत बड़ा विचारणीय प्रश्न है।

आज नारी या जाति को आरक्षण नहीं सम्मान चाहिए, हर वर्ग में समानता का भाव चाहिए, बाजारीकरण का अंधानुकरण रुकना चाहिए, शिक्षा का उद्देश्य लाभार्जन न होकर ज्ञानार्जन होना चाहिए, रोटी-पानी, कपड़ा, मकान, बिजली, सड़क, सुरक्षा, स्वास्थ्य व शिक्षा का सबको अधिकार मिलना ही चाहिए, न्यायालयों की भाषा सर्वग्राही हिंदी होनी चाहिए। फसलों के सही दाम मिले, कॄषि भूमि को खतरनाक रसायनों से मुक्ति मिले, नई हरित क्रांति को बढ़ाबा मिले, मजदूरों को उनका उचित वेतन मिले, वनों के उजाड़, प्राणियों के शिकार तथा बेज़ुबानों पर अत्याचार रुकें। कटती हुई पर्वत मालाओं, अवैध उत्थखनन और भू-माफ़ियों पर रोक लगे, पर्यावरण की रक्षा और स्वास्थ्य की सुरक्षा का कानून बने, जिहादी आतंकवाद, नक्सलवाद व माओबाद पर रोक लगे, बांग्लादेशियों से मुक्ति मिले, स्वावलंबी भारत को परावलंबी बनाने के षड्यंत्रों पर रोक लगे और सभी देशवासी मिलकर स्वदेशी को अपनाएं व विदेशी दासता को भगाएं।

वर्ष 2014 का चुनावी महा यज्ञ  सामने है। यदि हम सब देशवासी एकजुट होकर इस यज्ञ में अपनी-अपनी पुनीति आहुति सुनिश्चित करें तो अगले गणतंत्र दिवस तक देश की बहुदा समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। अभी हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय तथा आरटीआई ट्राइब्यूनल के ऐतिहासिक निर्णयों केअलावा चुनाव आयोग द्वारा भी अनेक सराहनीय कदम तो उठाए हैं किन्तु इन सभी निर्णयों को निष्प्रभावी बनाने हेतु भी राजनैतिक दलों में एक जुटता देखी जा रही है। देशवासियों के हितों के विरुद्ध राजनेताओं की यह एक जुटता किसी गंभीर खतरे से कम नहीं आंकी जा सकती है। देश की राजनीति को शुचितापूर्ण बनाने हेतु निम्नांकित बिंन्दू मील के पत्थर साबित होंगे:

1          मतदाता सूचियों की गहन छानबीन कर उसमें से फ़र्जी नाम हटाए जाएं तथा जो मतदान योग्य नागरिक छूट गए हैं वे सभी शामिल किए जाएं। किसी भी विदेशी नागरिक का नाम उसमें न हो इसकी पुख्ता व्यवस्था की जाए।

2         जाति, मत, पंथ, संप्रदाय, भाषा, धर्म व राज्य के आधार पर विभाजनकारी आंकड़ों के प्रसारण व प्रकाशन पर पूर्ण रोक के साथ प्रत्याशियों द्वारा इनके  उपयोग परप्रतिबंध हो इससे देश के सामाजिक व धार्मिक ताने-बाने को कोई नुकसान न पहुँचे।

3         वोट डालने के अधिकार के साथ मतदाता को, उसके कर्तव्य का बोध भी कराया जाए जिससे अधिकाधिक मतदाता जागरूक होकर बड़ी संख्या में मतदान कर सकें। मतदान हेतु अनिवार्य छुट्टी की व्यवस्था तो कर दी किन्तु जब तक नियोक्ता अपने सभी कर्मचारियों की उंगली देख कर यह सुनिश्चित न करे कि जिस कर्मचारी ने मतदान नहीं किया उसका वेतन काट दिया गया है, छुट्टी का कोई अर्थ नहीं है।

4         प्रत्येक मतदाता को अनिवार्य मतदान हेतु प्रेरित किया जाए। मतदान से जानबूझकर या निरंतर वंचित  रहने वाले नागरिकों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई भी की जा सकतीहै।

5         मतदान की प्रणाली को सरल, सुगम व सर्वग्राह्य बनाने हेतु इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों के अलावा ई-नेट वोटिंग जैसे प्रावधान करने चाहिए जिससे कोई भी और कहीं भीआसानी से मतदान कर सके। इनसे देश का तथाकथित उच्चवर्ग जैसे उद्योगपति, प्रशासनिक अधिकारी, बुद्धजीवी व बड़े व्यवसाइयों के अलावा चुनाव प्रक्रिया में सहभागीअधिकारी व कर्मचारी भी आसानी से किंतु अनिवार्य रूप से मतदान कर सकेंगे।

6         अपराधियों या अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोका जाए।

7         चुनाव लड़ने हेतु न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता, अनिवार्य स्वास्थ्य जांच, अधिकतम आयु सीमा निर्धारित हो।

8         किसी भी राजनेता को संवैधानिक पद दिये जाने से पूर्व उसकी वह सभी छानबीन की जानी चाहिए जो एक सरकारी कर्मचारी की नियुक्ति हेतु आवश्यक है।

9         राजनैतिक दलों को आरटीआई के अन्तर्गत लाया जाए।

10      प्रत्येक प्रत्याशी को एक न्यूनतम घोषणा पत्र और उसके पालनार्थ न्यूनतम मापदण्ड निश्चित किए जाएं।

11       चुनावों से पूर्व किसी बडी लोक-लुभावन वोट लालची योजना की घोषणा सम्बन्धी बडे बडे विज्ञापनों पर रोक लगे।

12       सभी सरकारी विज्ञापनों (विशेषकर नेताओं के जन्म दिवस या पुण्य तिथियों के अवसर पर) में नेताओं की फ़ोटो या उनका गुणगान नहीं हो। जिस फ़ोटो में किसी नेता का फ़ोटो या नाम हो, उसका खर्च उसी से लिया जाए। अन्यथा नाम के स्थान पर उसका पद ही पर्याप्त है।

13       दुराचारी, अपराधी, अशिष्ट या अनचाहे सभी प्रत्याशियों को चुनाव से दूर रखने हेतु “नो वोट” के गोपनीय मतदान की व्यवस्था तो हो गई किन्तु एक निश्चित प्रतिशत से अधिक नो वोट पडने पर सभी प्रत्याशी चुनाव में खडे होने के लिए अयोग्य घोषित किए जाएं।

14       धन-बल के दुरुपयोग को रोकने तथा योग्य उम्मीदवार को चुनाव लडने हेतु सबल बनाने के लिए चुनाव का समस्त खर्च सरकार वहन करे।

15       मतदान केन्द्र व निर्वाचन कार्यालयों की वीडियो रिकॉर्डिंग हो।

16       प्रत्येक मतदाता को उससे सम्बन्धित प्रत्येक प्रत्याशी का सम्पूर्ण विवरण सरल ढंग से चुनाव आयोग द्वारा भेजा जाए जिससे मतदान से पूर्व सही व्यक्ति के चुनाव हेतु मतदाता को सहयोग मिल सके।

17       प्रत्येक निर्वाचित प्रतिनिधि के अनिवार्य बहुमुखी प्रशिक्षण की व्यवस्था हो जिसमें उससे सम्बन्धित कार्य का विस्तृत प्रशिक्षण दिया जाए।

18       चुने हुए जन प्रतिनिधियों के कार्य का वार्षिक अंकेक्षण व मूल्यांकन करा रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए जिससे जनता अपने जन प्रतिनिधि के कार्य का सही सही दर्शन कर सके। इसमें आर्थिक पक्ष के साथ साथ जन प्रतिनिधि का सामाजिक चेहरा भी सामने आए कि वह कितनी बार जनता के बीच रहा और कितनी बार उसने जनता की आवाज सदन में उठाई।

19       प्रतिवर्ष प्रत्येक जन प्रतिनिधि के स्वास्थ्य, कार्यक्षमता व नैतिकता की जांच कर यह रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।

20      जन प्रतिनिधि को अपराधी ठहराए जाने या सजा सुनाए जाने के तत्काल बाद उसको पद्च्युत करने की व्यवस्था हो। इस कार्य की जांच पडताल हेतु प्रत्येक राज्य में एक निगरानी तंत्र की व्यवस्था हो जिसमें राज्य के महाधिवक्ता, अभियोजन महा निदेशालय, सूचना व प्रसारण विभाग व मीडिया के प्रतिनिधि शामिल हों ।

21       जिस सदन (यथा संसद, विधानसभा, विधान परिषद्) के लिए प्रत्याशी चुना जाए उससे अनुपस्थित रहने या जनता के बीच कार्य करने में अक्षम या उदासीन रहने पर जन प्रतिनिधि के विरुद्ध कार्यवाही की व्यवस्था हो। यानि, राइट टू रिकॉल की भी व्यवस्था हो।

भारतीय ग्रंथों में भी कहा गया है कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’ अर्थात जैसा राज वैसी ही उसकी प्रजा। उपर्युक्त सुझावों के सकारात्मक क्रियान्वयन हेतु न सिर्फ़ भारत के राष्ट्रपति, संसद तथा मुख्य चुनाव आयुक्त को बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक को आगे आना होगा। यदि इन पर त्वरित गति से अमल हुआ तो न सिर्फ़ गण के तंत्र की मजबूत नींव रख देश की दिशा व दशा दोनों ठीक होगी, बल्कि भारत पुन: सोने की चिड़िया बन राम राज्य की ओर लौटेगा।

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