मन उदास हो तो,
चारों दिशायें भी,
उदास नज़र आती है।
बाहर चिलचिलाती धूप है,
पर काले बादल,
बारिश के नहीं,
उदासी के,
छा जाते है,
चकाचौंध रौशनी भी,
अंधेरों को पार,
नहीं कर पाती है।
ऐसे में, मन की ऊर्जा को,
जगाने का कोई उपाय करूं,
या वक्त पर छोड़ दूं कि
सब ठीक हो जायेगा।
पर काले बादल
बारिश के नहीं
उदासी के छ जाते हैं-
या वक्त पर छोड दूं कि
सब ठीक हो जाएगा.
कविता “उदासी” में आदमी की विवशता को बड़े सलीके से उकेरा है आपने.यही सब तो हमारे परिवेश में आज झलक रहा है.सुन्दर अभिव्यक्ति.