अयोध्या की चौरासी कोसी परिक्रमा

84 parikramaडा. राधेश्याम द्विवेदी
भारतीय धर्मों (हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि) में पवित्र स्थलों के चारो ओर श्रद्धाभाव से चलना ‘परिक्रमा’ या ‘प्रदक्षिणा’ कहलाता है। मन्दिर, नदी, पर्वत आदि की परिक्रमा को पुण्यदायी माना गया है। धर्मों में चौरासी कोसी परिक्रमा, 14 कोसी परिक्रमा व पंचकोसी परिक्रमा आदि का विधान है। परिक्रमा की यात्रा पैदल, बस या दूसरे साधनों से तय की जा सकती है लेकिन अधिकांश लोग परिक्रमा पैदल चलकर ही पूर्ण करते हैं। हिंदुओं के प्रत्येक तीर्थ स्थल के आस-पास चौरासी और पंच कोस की परिक्रमा का आयोजन किए जाने का प्रचलन है। प्रत्येक तीर्थ क्षेत्र में इस आयोजन का अलग-अलग महत्व और परंपरा है। चौरासी कोसी परिक्रमा पूरी तरह से संतों और भक्तों द्वारा संचालित धार्मिक व परम्परागत है। इस परिक्रमा को किसी विशेष समय और स्थान पर लोग करते हैं जैसे- ब्रज क्षेत्र में गोवर्धन, अयोध्या में सरयू, चित्रकूट में कामदगिरि व दक्षिण भारत में तिरुवन्मलई की परिक्रमा यात्रा है। उज्जैन में चौरासी महादेव की यात्रा का आयोजन किया जाता है। ज्यादातर यात्राएं चैत्र, बैसाख मास में ही होती है चतुर्मास या पुरुषोत्तम मास में नहीं। कुछ विद्वान मानते हैं कि परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। शैव और वैष्णवों में परिक्रमा के अलग-अलग समय है। संतों में इस यात्रा को लेकर मतभेद हैं।
प्राचीन इतिहास के अनुसार अयोध्या पवित्रतम शहरों में एक शहर है,जहां हिंदू, बौद्ध, इस्लाम और जैन धर्म की धार्मिक आस्थाओं को एक साथ पवित्र महत्व की एक जगह के निर्माण के लिए की गई थी। अथर्ववेद में, इस जगह एक समृद्ध शहर था, जो देवताओं द्वारा स्वर्ग के रूप में ही के रूप में वर्णित किया गया था। प्राचीन कोशल की शक्तिशाली राज्य के रूप में अपनी राजधानी अयोध्या थी। इस शहर में भी 600 ईसा पूर्व में एक महत्वपूर्ण व्यापार केंद्र था। 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व व्यापक रूप से धारणा आयोजित है कि बुद्ध कई मौकों पर अयोध्या का दौरा किया है, जो यह 5वीं शताब्दी ईस्वी तक बने रहे के दौरान एक महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र होने के लिए इस जगह की पहचानकीहै।भगवान राम के जीवन काल में ही संतों ने चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत की थी। चौरासी कोसी यात्रा में साधु-संतों की अटूट आस्था है। संतों का मानना है कि जिस प्रकार गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से पुण्य की प्राप्ति है, उसी प्रकार चौरासी कोस की परिक्रमा करने से मुक्ति यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक विषयों के जानकर पंडित जयगोविंद शास्त्री बताते हैं कि बनारस के पंच कोसी की परिक्रमा करने से शिव लोक में स्थान प्राप्त होता है। गोवर्धन के सप्त कोसी की परिक्रमा से गोलोक और अयोध्या के चौरासी कोसी की परिक्रमा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
अयोध्या की परिक्रमा चौरासी कोस की इसलिए है ,क्योंकि भगवान श्री राम कौशल देश के राजा थे जिसकी सीमा चौरासी कोस में फैली थी और अयोध्या इसकी राजधानी थी। नियम है कि चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर बैसाख नवमी तक यह परिक्रमा चलती है। लेकिन श्रद्घालु भक्त कभी भी कौशल राज्य की पवित्र भूमि की परिक्रमा कर सकते हैं। भगवान श्री राम की जन्म भूमि अयोध्या बाबरी मस्जिद ढ़ांचा के गिराए जाने के बाद से विवादों में था और अब एक नया विवाद चौरासी कोस की परिक्रमा के लेकर खड़ा हो गया था । विश्व हिंदू परिषद ने चौरासी कोस की परिक्रमा का प्रस्ताव रखा था। माना जाता है कि चौरासी कोस की यात्रा चौरासी लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है। हमारा शरीर भी चौरासी अंगुल की माप का है। चौरासी कोस की यात्रा के धार्मिक महत्व के अलावा इसका सामाजिक महत्व भी है। 2016 में चौरासी कोस यात्रा पर हनुमान मंडल के आयोजकों ने यात्रा के बारे में निम्नलिखित जानकारी परिचालित किया है-
21 दिवसीय अवध धाम की चौरासी कोसी परिक्रमा हनुमान मंडल वैशाख कृष्ण प्रतिपदा 23 अप्रैल को मखभूमि मखौड़ा से प्रारंभ होकर 13 मई बैशाख शुक्ल सप्तमी को ही मखौड़ा में समाप्त होगी। इसके लिए श्रद्धालुओं ने परिक्रमार्थियों के स्वागत के लिए अभी से तैयारी बैठक शुरू कर दी है। चौरासी कोसी परिक्रमा हनुमान मंडल के प्रमुख सुरेंद्र सिंह तथा विहिप के विभाग संगठन मंत्री इंद्रबली ने परसपुर में बताया कि हमारे ऋषि मुनियों ने तीर्थ क्षेत्र की शाश्वत पहचान व उसकी परंपराओं को अक्षुण और जनमानस में आध्यात्मिक संस्कारों को टिकाये रखने के लिए तीर्थ क्षेत्र की सीमाओं का निर्धारण कर उसकी परिक्रमा करने का सांस्कृतिक विधान प्राचीन काल से जन-जन के हृदय में स्थापित किया है। उन्होंने कहा कि यह चौरासी कोसी परिक्रमा अयोध्या धाम मणिराम दास छावनी के महंत कमलनयन दास, श्री कुंज कथा मंडप के महंत रामानंद दास, लक्ष्मण किला के आचार्य मिथिलेश नंदिनी व कटरा कुटी धाम के महंत चिन्मय महाराज के सानिध्य में संपन्न होगी। उन्होंने बताया कि जो लोग हनुमान मंडल के साथ मिलकर चौरासी कोसी परिक्रमा करना चाहते हैं। वे अभी से ही कारसेवकपुरम जानकी घाट परिक्रमा मार्ग अयोध्या में पंजीकरण करा लें। नायब तहसीलदार परसपुर कर्नलगंज नवीन प्रसाद ने कहा कि परिक्रमार्थियों को सुविधाएं मुहैया कराने के लिए जिला प्रशासन एवं संबंधित विभागों को पत्र लिखा जाएगा।
हनुमान मंडल चौरासी कोसी परिक्रमा प्रमुख तथा विहिप के विभाग संगठन मंत्री इंद्रबली ने प्रदेश सरकार से मांग की है कि चौरासी कोसी परिक्रमा मार्ग को दुरुस्त कराया जाए। सरयू नदी पार करने के लिए सेरवा घाट तथा कमियार घाट पर पुलों का निर्माण कराया जाए। चौरासी कोसी हनुमान मंडल परिक्रमा 23 अप्रैल को मखौड़ा से चल कर कई जनपदों व अनेक आध्यात्मिक एवं धार्मिक स्थलों से होते हुए पांच मई को सरयू नदी पार कर गोंडा में दुलारे बाग बहुअन मदार माझा में रात्रि विश्राम करेगी। 23 अप्रैल वैशाख कृष्ण प्रतिपदा को मखभूमि मखौड़ा से प्रारंभ होकर संपन्न होगी। पांच मई को सरयू नदी पार कर गोंडा में दुलारे बाग बहुअन मदार माझा में रात्रि विश्राम करेगी। छह मई को यहां से चल कर ब्रह्मचारी चौराहा पर दोपहर में जलपान के बाद जंबूद्वीप फिर दोपहर विश्राम के बाद भौरीगंज पहुंचेगी, जहां से चल कर तुलसी जन्म भूमि राजापुर सूकरखेत में रात्रि विश्राम करेगी।सात मई को यात्रा यहां से चल कर नंदौर में जलपान के बाद पसका नरहरि आश्रम में दोपहर विश्राम के बाद नायब पुरवा होते हुए बखरिहा में रात्रि विश्राम करेगी। यहां से आठ मई को यह परिक्रमा बाराही देवी उमरी होते हुए डिकसिर पहुंच कर रात्रि विश्राम करेगी। 13 मई बैशाख शुक्ल सप्तमी को ही मखौड़ा में समाप्त होगी
डा. राधेश्याम द्विवेदी

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