जीत कर भी हार गये सुशासन बाबू

nitishरविवार को सामने आये बिहार चुनावो के नतीजों ने ख़ुशी जो बिखेरी वह ख़ुशी सबके चेहरे पर साफ-साफ नजर आई। लालू तो इतने गदगद थे कि दिल्ली पर चढ़ाई करने को आतुर हो उठे लेकिन तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे नितीश कुमार जिन्हें लोग सुशासन बाबू के नाम से ज्यादा जानते हैं वह अपनी ख़ुशी चेहरे पर परिलक्षित नहीं कर पाये। बजह बहुत सीधी-साधी सी है और आसानी से समझी जा सकती है। दरअसल विहार चुनावों ने जिस फैसले को सुनाया है उसमें नितीश कुमार का सुशासन लोगों को कम पसंद आया है और लालू की हंसी ठिठोली ज्यादा। ऐसे में जब महागठबंधन के मुख्य तीनों घटकों की ताकत का विश्लेषण किया जाये तो यह साफ तौर पर सामने आया है कि इन तीनों घटकों जनता दल युनाइटिड, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल में से आरजेडी के लालू यादव का बजन और राजनैतिक ताकत बिहार में अप्रत्याशित तौर पर बढ़कर सामने आई है। यही मुख्य कारण है कि जीत कर भी हार गये, लगते हैं सुशासन बाबू। लालू की राजनीति से भला इस देश में कौन परिचित नहीं है। वे राजनैतिक रूप से कितने परिपक्व हैं इसका जीवंत उदाहरण उन्होंने अपनी पार्टी का लगभग हास हो जाने के बाद उसमें जान फूंककर सबके सामने लाकर प्रस्तुत कर दिया है। बजनदार लालू के सामने अब नितीश कुमार की कितनी बजनदारी चलेगी यह वक्त तो बताएगा ही लेकिन जिस तरह के कयास लगाकर आगामी समय का अंदाजा लगाया जा रहा है उसे समझकर यह तो कहा ही जा सकता है कि नितीश कुमार की डगर सुशासन पर चलने के लिये थोड़ी बहुत नहीं बल्कि बहुत ज्यादा कांटों भरी होगी। नंबर 1 लालू यादव जिस शक्ति के साथ इस महागठबंधन में उभरकर सामने आये हैं उससे उनकी महत्वकांक्षाओं का बढ़ना लाजमी है और लंबे समय के बाद हाथ आई सत्ता के लड्डू भला खाना कौन नहीं चाहता। वह बात अलग है कि लालू प्रत्यक्ष रूप से खुद तो सरकार में शामिल नहीं हो सकते लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से वह सरकार का एक महत्वपूर्ण सिरा जरूर होंगे इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता। नंबर 2 जब सुशासन बाबू नितीश कुमार की सरकार लालू यादव के इर्दगिर्द होगी तो इस सरकार में लालू अपनी सबसे बड़ी महत्वकांक्षा के रूप में अपने ज्येष्ठ पुत्र को डेपुटी चीफ मिनिस्टर के पद पर आसंद होते जरूर देखना पसंद करेंगे। ज्यादा चाहेंगे तो अपने छोटे पुत्र को भी नितीश कुमार के मंत्री मंडल में ताकतवर जगह दिलाने के लिये अड़ सकते हैं। नंबर 3 एक तरफ जब आरजेडी के विधायकों की संख्या ज्यादा और उनकी मांगे ज्यादा सामने आएंगी ऐसे में नितीश कुमार जी बिहार को जिस गति से पिछले 10 सालों से आगे ले जाने की नीति पर काम कर रहे हैं वह नीति नितीश की बरकरार रह पायेगी यह भी बेहद काबिले गौर होगा। जानकार मानते हैं कि इसमें लालू और नितीश की नीति का मिक्सबेज होगा और शायद उसमें थोड़ी कडवाहट कहीं न कहीं जरूर अपना असर दिखायेगी। नंबर 4 कांग्रेस भी चुनाव के परिणाम आने के बाद मन ही मन पक्षतावे के आंसू बहा रही है और सोच रही है कि उसने सीटों की बड़ी मांग क्यों नहीं की और अगर कांग्रेस ने बिहार विधानसभा चुनाव में ज्यादा सीटों से चुनाव लड़ा होता तो इसमें कोई दो राय नहीं कि वह भी मजबूत स्थिति में होती लेकिन वह कमजोर स्थिति में है यह भी कहना पूरी तरह से गलत है। इस चुनाव परिणाम की खास बात यह है कि हर दल के पास सरकार की चाबी जरूर है। नितीश की मुश्किलें बढ़ेंगी तो भाजपा थाली में विधायक लेकर खड़ी नजर आ सकती है। लालू आंख दिखायेंगे ये तो नितीश कांग्रेस को मनाएंगे और किसी भी कीमत पर सरकार चलायेंगे यह तो तय है लेकिन इस पांच साल चलने वाले रास्ते में कितनी मुश्किलें आयेंगी यह नितीश अच्छी तरह जानते हैं, मानते हैं और लालू को सिर से पांव तक रगरग से पहचानते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन पूरे सूरते हाल को बारीकी से हर कोने पर नजर रखकर समझने से साफ मालूम होता कि जब पूरा बिहार परिणाम सुनाता है। जो दल जीतते हैं उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है और जो हार जाते हैं उनके चेहरे सब साफ बयां कर जाते हैं पर नितीश बाबू क्यों नहीं मुस्कुराते।

अतुल गौड़
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व इलैक्ट्रोनिक एवं प्रिंट मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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