गौ हत्‍या और कि‍सानों की आत्‍महत्‍या

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आजकल यह दोनों ही शब्‍दों का प्रयोग जरा ज्‍यादा ही हो रहा है. क्‍या इनका आपस में कुछ संबंध हैं? जो समझदार है वह तो समझ गए कि इनका क्‍या अंर्तसंबंध है. हालांकि‍ मैंकालियन शि‍क्षा पद्धति में पढें हुए लोगो को इन दोनों शब्‍दों में कोई अंर्तसंबंध न दि‍खाई दें. लेकि‍न इन दोनों शब्‍दों का बड़ा गहरा संबंध है. भारतीय दर्शनशास्‍त्र में गाय का कि‍तना महत्‍व है यह हमारे पूर्वज तो अच्‍छी तरह समझ गए थे, लेकि‍न मैकॉले महाराज हमें ऐसी पट्टी पढा गए कि‍ राहुल बाबा को यह लेख लि‍खना पड़ा.

गाय का कृषि में क्‍या महत्‍व है यह बताने के लि‍ए सभी ने अपने-अपने स्‍तर पर प्रयास कि‍ए, लेकि‍न बेचारी गरीब गाय अपने हत्‍यारों को सजा न दे सकी. कल रात कपीला गाय मेरे सपने में आयी. मैंने उसे पि‍छेसे प्रणाम करने की कोशि‍श की तो गाय ने मुझे जोर से लाथ मार दी. मैंने गाय से पूछा ”तुम मुझे क्‍यों लाथ मार रही हो, मैंने तुम्‍हारा क्‍या बि‍गाड़ा है? गाय मुझे कहने लगी ”तुमने मेरा कुछ नहीं बि‍गाडा है, बि‍गाडा तो लालु प्रसाद यादव ने है और वह अब बि‍हार में जीत गया है और मुझे डर है कि मेरी आगे की पि‍ढि‍यों को वह या तो खुद खा जाएगा या फि‍र मेरे और मेरे बच्‍चों के हि‍स्‍से का चारा खा जाएगा.” मैंने कहा ”इसमें मैं क्‍या कर सकता हूँ? ना तो मैं कोई मंत्री हूँ, जो गोहत्‍या कानून लाकर उस पर अमल करूँ और न ही कोई प्रवचन करने वाला बाबा हूँ.” गाय ने मुझे कहा ”राहुल, तुम बहुत अच्‍छे लेख लि‍खते हो और भाषण भी बहुत अच्‍छा देते हो. तुम एक काम करो! एक ऐसा लेख लि‍खों कि‍ जि‍ससे भारत जैसे कृषि‍ प्रधान देश की अर्थव्‍यवस्‍था में मेरा (गाय का) क्‍या महत्‍व है. यह सबके समझ में आ जाए और मैं अपने आगे आने वाली पीढी के बारे में नि‍श्‍चिंत हो जाउूँ.” इसलि‍ए एक ‘गौपुराण’ लि‍ख रहा हूँ.

हमारा भारत अंग्रेजो के पहले मुगलों का गुलाम था, मुगलों ने भी कभी भी गौहत्‍या की पैरवी नहीं की. टीपू सुलतान के पि‍ता ने तो गाय हत्‍या करने वाले व्‍यक्‍ति‍ को फॉसी की सजा सुनाने का प्रावधान बनाया था, आगे टीपू सुलतान ने इसमें सुधार करते हुए गौहत्‍या करने वाले व्‍यक्‍ति‍ के हाथ कॉंटने का कानून बनाया था. फि‍र आज हमारे हिंदू लोग ही गौहत्‍या की पैरवी क्‍यों कर रहे हैं. भाई राजीव दीक्षि‍त ने तो गाय पर पूरा रि‍सर्च करके बताया कि‍ गाय तो मरने के पहले के दि‍न तक गोबर और मूत्र देती है, जो खेती की जमीन के लि‍ए बहुत ही उपयोगी होता है. गाय के मूत्र में मि‍ट्टी में पाये जाने वाले वे 33 सूक्ष्‍म मूलद्रव्‍य प्रचूर मात्रा में होते है, जि‍नकी आवश्‍यकता हमारे शरीर के लि‍ए होती हैं. जि‍स घर में गाय होती है, उस घर में हमेशा खुशहाली रहती है. देशी गाय का चेहरा भी हसमुँख होता है. गाय के कंधे में सूर्य नाडी होती हैं, जो सीधे सूर्य से उर्जा ग्रहण करती है, गाय के दूध में कैसर जैसे रोगों से लड़ने की ताकत होती है. गाय का दूध बुद्धीवर्धक होता है, जबकि‍ भैस का दुध शक्ति‍वर्धक होता है. गाय के गोबर में और मूत्र में जमीन की उर्वरकता बढाने की शक्ति‍ होती है. इन सभी गुणों को समझने के कारण ही हमारे पूर्वजों ने गाय को माता का दर्जा दि‍या. लेकि‍न आज के मैकाले के मानस पूत्रों ने गाय के इस वैज्ञानि‍क अर्थ को नही समझा. बल्‍कि‍ जि‍नके द्वारा यह महत्व समझा जाना आवश्‍यक था, उन्‍होंने ही वि‍वाद बढा दि‍या. कोर्इ कहता है, ”गाय हमारी माता हैं!” मार्कडेय काटजू जैसे वि‍द्वान कहते हैं कि‍ ”गाय सि‍र्फ एक प्राणी है”, लेकि‍न कोई भी गाय के वैज्ञानि‍क और अर्थशास्‍त्रीय महत्‍व को नहीं जानना चाहता है.

”गाय हमारी मॉं है, बैल हमारा मामा है, घोडा हमारा चाचा है और बकरी हमारी बहन है”, यह सब कहने से पहले यदि‍ गाय के अर्थशास्‍त्र को समझते तो, यह वि‍वाद नहीं होता. भारत एक कृषि‍प्रधान देश है, जि‍समें प्राचीन काल से ही खेती व्‍यवसाय कि‍या जा रहा हैं और खेती से जुड़े हुए व्‍यवसायों के कारण ही भारत के व्‍यवसायों की बढौतरी हो रही थी. इसीलि‍ए गाय को धर्म के साथ जोड़ा गया और लोगों को यह बताया गया कि‍ गाय में 33 कोटी देवता होते हैं, इसलि‍ए लोग गाय की हत्‍या करने से डरते थे, क्‍योंकि‍ पाप-पुण्‍य के डर से लोगों के आचरण को नि‍यंत्रि‍त कि‍या जा सकता था. पाप-पूण्‍य की अवधारणा ही कानून के प्रावधानों का काम करते थें. लेकि‍न आज के वैज्ञानि‍क युग में पाप-पुण्‍य की अवधारणा धुमि‍ल होती जा रही है. लोग प्रत्‍येक कार्य के पीछे के कार्य-कारण संबंध को समझकर वैज्ञानि‍क दृष्‍टि‍कोण अपना कर व्‍यवहार करते हैं और वि‍ज्ञान के आधार पर कंस कर देखते हैं कि‍ इस क्रि‍या और कार्य का वैज्ञानि‍क संबंध क्‍या है. आज के भौति‍कवादी युग में भावना के स्‍थान पर लोग फायदे-नुकसान का अर्थशास्‍त्र देखते हैं, जि‍समें उन्‍हें फायदा दिखाई देता हैं उसमें उन्‍हें अधि‍क रूची होती है. पाप-पुण्‍य और लोक-परलोक की बातें वि‍ज्ञानवादी नहीं मानते है. लेकि‍न इन अवधारणाओं की वैज्ञानि‍कता और वास्‍तवि‍कता को हमें समझना होगा. पहले कि‍सी को आप बताते कि‍ अमूक काम करने से पाप लगता है तो लोग उसे कानून समझकर मान लेते थे लेकि‍न आज ऐसा नहीं होता है, इसीलि‍ए लोग जानबूझकर वही काम करने से नहीं डरते हैं जि‍न कार्यों को धर्मशास्‍त्र में नि‍षि‍द्ध माना जाता है. गलती उनकी भी नहीं है उन्‍हें आप स्‍कूल-कॉलेजों में जो पढाओंगे उसी को तो वह मानेंगे. स्‍कूल-कॉलेजों में पढाया जाता हैं कि‍ लोक-परलोक कुछ नहीं है, सब मनगढंत है, इनपर वि‍श्‍वास मत करों. गाय तो एक प्राणी है, उसमें 33 कोटी भगवान कैसे हो सकते है. यह अंधश्रद्धा है, वि‍ज्ञानवादी दृष्‍टीकोण अपनाइऐं, लेकि‍न यह सब सि‍खाते समय पढाने वाले इस बात को भूल जाते हैं कि‍ उपरोक्‍त कही गई बातों में भी एक वि‍ज्ञान ही था. लेकि‍न वह वि‍ज्ञान उस समय के अनुकूल था. आज के वि‍ज्ञान की दौड ने हमें पर्यावरण से दूर कर दि‍या. जो लोग स्‍कूलों-कॉलेजों में वि‍ज्ञान के पाठ पढ़ाते हैं उन्‍हें भारत में अंग्रेज आने के पहले भी कोई वि‍ज्ञान था, जि‍से हम धर्मशास्‍त्र के रूप में ही जानते थें यह पता नहीं है. हमारा पूरा धर्मशास्‍त्र और दर्शनशास्‍त्र सीधे प्रकृति‍ से जुड़ा हुआ है. सभी उत्‍सव-त्‍यौहार सीधे प्रकृती के परि‍वर्तनों के अनुसार आचरण करने का संदेश देते है. ज्ञान, वि‍ज्ञान, तकनीक, प्रौद्योगि‍कि‍ का सीधा संबंध प्रकृति‍ से जुडा हुआ है और उसे धर्मशास्‍त्र के माध्‍यम से संचालि‍त कि‍या जाता था. धर्म ही उस समय का कानून था, जि‍ससे समाज को नि‍यंत्रि‍त रखा जाता था.

खैर, हमारी गाय हमारी प्रति‍क्षा कर रही है. गाय में 33 कोटी देवता होते है. इसका वैज्ञानि‍क अर्थ यह हैं कि‍ गाय में 33 प्रकार के देवता होते हैं, कोटी से यहा प्रकार(टाईप) अर्थ है. अब यह 33 कोटी देवता ही वह 33 प्रकार के तत्व हैं, जि‍न्‍हें आज हम माइक्रोन्‍यूट्रीऐंन्‍टस् के रूप में जानते हैं. जो मि‍ट्टी की उर्वरकता के लि‍ए आवश्‍यक होते हैं, जो गाय के मूत्र और गोबर में पाए जाते हैं. गाय के गोबर और मूत्र के आयुर्वेदि‍क और वैज्ञानि‍क महत्‍व के कारण ही गाय का दर्शन आगे से अर्थात मुख से नहीं बल्‍कि‍ उसके पीछे से दर्शन करने शुरूआत हमारे पूर्वजों ने की थी. बाद में अंग्रेजों ने देखा कि‍ इस देश की कृषि‍व्‍यवस्‍था बहुत ही समृद्ध है और गाय इस कृषि‍व्‍यवस्‍था के रीढ़ की हड्डी हैं, तो उन्‍होंने उस पर प्रहार करना शुरू कि‍या. पहले तो उन्‍होंने हिंदू धर्म में पवि‍त्र मानी जाने वाली गायों को मुस्‍लि‍मों द्वारा कटवाने के लि‍ए हमारे देश में कत्‍तलखाने शुरू कि‍ए, जि‍समें जानबूझकर मुस्‍लि‍मों को गाय काटने काम दि‍या, ताकि‍ भारतीय गाय कॉटने का दोष अंग्रेजों को नहीं बल्‍कि‍ मुस्‍लि‍मों के सीर मढ सकें, ताकि‍ देश की धार्मि‍क एकात्‍मता पर प्रहार करते हुए यहां कि‍ सामाजि‍क व्‍यवस्‍था पर प्रहार कि‍या जा सकें और देश की आंतरि‍क एकात्‍मता को चोट पहुँचाकर हम भारतीय आपस में ही मर-मीट जाए ऐसी व्‍यवस्‍था की और अंग्रेजों को देश पर राज करने का मौका मि‍ल सकें. ”तोड़ो और राज करों” यही नीति‍ अपना कर अंग्रेजों में सदीयों तक हम पर राज कि‍या. बाद में जब अंग्रेजों जब ऐसा लगा कि‍ अंग्रेजों के जाने बाद यह देश पून्‍ह: एक हो सकता है, इसीलि‍ए पाकि‍स्तान जैसे धर्माधारि‍त राष्‍ट्र का नि‍र्माण करने के षडयंत्र के साथ उन्‍होंने देश छोड़ा.

भारत से अंग्रेजों के वापस लौटकर जाने के पहले उन्‍होंने देश की सामाजि‍क व्‍यवस्‍था में ऐसे परि‍वर्तन करवाए जि‍ससे हम आजादी के बाद आपस में ही मर-मीट जाने को तैयार हो जाए, इसलि‍ए अंग्रेजों ने एक अपने देश से एक ऐसे वि‍द्वानों को बुलाया जो देश की शि‍क्षा व्‍यवस्‍था में आवश्‍यक परि‍वर्तन कर सकें जो अंग्रेजों की व्‍यवस्‍था को और मजबुत बना सकें. इसीलि‍ए मैंकाले के उस भाषण पर ध्‍यान देना आवश्‍यक हैं, जि‍समें उन्‍होंने ब्रिटीश पार्लमेंट में कहा था कि, भारत की शि‍क्षा व्‍यवस्‍था ही इस देश की रीढ़ की हड्डी है, यदि‍ हम यह चाहते हैं कि‍ हम भारत पर राज करें तो इस देश की शि‍क्षा व्‍यवस्‍था में ऐसे परि‍वर्तन करने होगे जो देश की सामाजि‍क, आर्थि‍क और राजनीति‍क व्‍यवस्‍था इस प्रकार से परि‍वर्ति‍त कि‍या जा सकें कि‍ भारतीय केवल शरीर से भारतीय रहें और वि‍चारों से पूरी तरह अंग्रेज हो जाए. इसीलि‍ए उन्‍होंने हमारे देश की शि‍क्षा व्‍यवस्‍था में वि‍ज्ञान के नाम पर ऐसे वि‍षयों का समावेश करना शुरू कि‍या जो हमारे देश व्‍यवस्‍था के बि‍लकूल प्रति‍कूल थें. जि‍समें यह बताना कि‍ वि‍ज्ञान का उगम केवल उनके द्वारा अर्थात पश्‍चि‍म में होना और भारत में अंग्रेजों के आने के पहले कि‍सी भी प्रकार की वैज्ञानि‍क सोच का न होना, ऐसी बातों को प्रसारि‍त कि‍या गया और वि‍ज्ञान के नाम पर अपने राष्‍ट्र-वि‍घातक वि‍चारों को देश में प्रचारि‍त कि‍या था.

हम फि‍र गाय से भकटकर अंग्रेजों की नीति‍यों पर चर्चा करने चल रहे है. क्‍या करें इस वि‍षय की पृष्‍ठभूमी को समझना बहुत आवश्‍यक हो जाता है. गाय का और देश की अर्थव्‍यवस्‍था का सीधा संबंध है. हम वि‍ज्ञान में जि‍तनी चाहे प्रगति‍ कर ले आसमान में अनाज नहीं उगा सकते, उसके लि‍ए जमीन पर ही आना पड़ेगा. वि‍ज्ञान के प्रयोगों से हमने धुऑ छोड़ने वाले वाहन बनाए, लेकि‍न पेड़ों में ही वह ताकत है, आपके बनाए कार्बनडाय ऑक्‍साइड को अपने अंदर समा सकें और आपको शुद्ध ऑक्‍सीजन दे सकें. जमीन को जहरि‍ले बनाने वाले खादों के प्रभाव को नि‍ष्‍क्रीय करने की शक्‍ति‍ केवल गाय के मूत्र में ही है. गाय का गोबर और मूत्र ही खेती की जमीन का अमृत है.

आज जो कि‍सान आत्‍महत्‍या करने के लि‍ए मजबूर है, उसका सीधा सा संबंध गौहत्‍या और गोवंश का वि‍नाश है. गाय जो स्‍वयं घॉस-फॅूस खाकर आपको खेती के लि‍ए गोबर, मूत्र और दूध देती है, उसे केवल मॉंस के लि‍ए एक दि‍न में मार डालना और गोमाँस खाने की पैरवी करना, एक बहुत बड़ी महामुर्खता है. केवल यह समझना कि‍ ऐसा करने से मुस्‍लि‍म लोगों के वोट बटोरे जा सकते है, यह सोच ही देश के कि‍सानों की आत्‍महत्‍या का अप्रत्‍यक्ष कारण है. गाय सीर्फ पंचगव्य ही नहीं देती है बल्‍कि‍ इससे प्राप्‍त होने वाले बैंल भी ट्रैक्‍टर का खर्च बचाते है. ट्रैक्‍टर से खेती का काम जल्‍दी हो जाता है, लेकि‍न आपका ट्रैक्‍टर गोबर और मूत्र नहीं देगा जो खेती के लि‍ए आवश्‍यक है. आप अपने ट्रैक्‍टर का उपयोग माल की ढुलाई करने के लि‍ए नि‍श्‍चि‍त कर सकते हैं, लेकि‍न जब आप लाखों के टैंक्‍टर से यह अपेक्षा मत कि‍जि‍ए कि‍ आपका ट्रैक्‍टर खेती की उर्वरकता बढाने में कोई योगदान नहीं दे सकता. गाय अकाल के समय में उपयोग में आने वाल प्राणी है, जो आपको भुखा मरने से बचाता है, घर में अनाज न होने पर दुध से पेड़ भरकर गुजारा तो कर ही सकते है.

हमारे धर्मशास्‍त्रों में प्रत्‍येक देवी-देवता और अवतारों का कोई वाहन अवश्‍य होता है. यह वाहन उनकी शक्‍ति‍ को दर्शाता न कि‍ उनपर बैठने का साधन. श्रीकृष्‍ण और दत्‍तात्रेय का वाहन गाय है, इसका क्‍या अर्थ है? क्‍या आपने यह अर्थ नि‍काला कि‍ श्रीकृष्‍ण गाय पर बैठते थें? क्‍या आपने कभी श्रीकृष्‍ण की गाय के उपर बैठी तस्‍वीर देखी? नहीं. वे तो रथ पर बैठते थें? जि‍न्‍हें घोड़े खिंचते थें. गाय का पालन तो वे गाय से प्राप्‍त करने वाले दुध और गोमुत्र तथा गोघृत के लि‍ए कि‍या करते थें. बलराम ने अपने कंधों पर हल लि‍या कि‍सलि‍ए? क्‍या अपने शत्रुओं को मारने के लि‍ए, नहीं उनके पास इससे भी अच्‍छे शस्‍त्र थें. कौन मुर्ख व्‍यक्‍ति‍ इतने बड़े हल को अपने शत्रुओं मारेगा? उन्‍होने जो हल अपने कंधों पर उठाया था वह कृषि करने के लि‍ए न कि‍ शत्रु को मारने के लि‍ए. क्‍योकि‍ श्रीकृष्‍ण का समय आज से लगभग 5100 वर्षों पहले का है, जि‍समें भारत कृषि‍व्‍यवस्था अपने चरमोत्‍कर्ष पर थी. दत्तात्रेय को क्‍या गाय ही वाहन के रूप में मि‍ली? नहीं, वह तो आपको गाय पालने का संदेश दे रहे है, उनके चि‍त्र के पास के कुत्ते भी उनका वाहन नहीं है, कुत्ते तो मनुष्‍य के वि‍कास की यात्रा के रखवाले है, जि‍न्‍होंने खेतों में आनेवाले हिंसक जानवरों से हमें आगाह करने का काम कि‍या, इसलि‍ए हमने उन्‍हें दत्तात्रेय के पैरों के पास स्‍थान दि‍या.

गाय को माता क्‍यों कहते हैं यह जानने के लि‍ए गाय के धर्मशास्‍त्र, अर्थशास्‍त्र, समाजशास्‍त्र और दर्शनशास्‍त्र को समझना होगा. नहीं तो वहीं गाय हमारे कि‍सानों की आत्‍महत्‍या का कारण बन जाऐंगी. क्‍योंकि‍ धर्मशास्‍त्र यह भी कहता है कि‍ आप जैसा कर्म करते है, वैसा ही फल प्राप्‍त होगा. यदि‍ कि‍सान अपनी गाय को कसाई को बेंचेंगे तो  कि‍सान को भी कर्ज के बोझ से एक दि‍न फॉंसी चढना पड़ेगा क्‍योंकि‍ ”जो बोएगा सो पाऐगा, यही है गीता का ज्ञान’’.

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