जाट आंदोलन: आखिर कहा पहुंच गये ? जाटों को मिला क्या?

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jat andolanआखिर हरियाणा में ऐसा क्या हुआ जिसकी बदौलत बर्बादी के ढेर पर खडा हो गया। जाट आंदोलन पहले भी हुआ करते थे , खुद सीएम उनकी निगरानी करते थे और पुलिस का एक बडा घडा जो जाटोंजाटोंका है वह उनकी खिदमत में लगा रहता थां लेकिन आम आदमी को नुकसान नही होता था। हरियाणा जैसे चलता था वैसा ही बदस्तूर जारी रहता था । इस बार ऐसा क्या हुआ कि जाट आंदोलन इतना उग्र हो गया। कारण क्या था? वर्चस्व की प्रधानता या जाट मुख्यमंत्री का न बनना। यह बात अभी तक लोगों के गले से नीचे नही उतर रही है कि जिन जाटों ने यह आंदोलन खडा किया और अपनी बातें मंगवाने का ढिढौरा पीट कर खुश हो रहे है , उन्हें इस आंदोलन से मिला क्या। उनके अपने जाट मंत्री के मकान व दुकाने जला दी गयी। चाहे वह गीता भुक्कल हो या भूपेन्द्र सिंह हुड्डा या किरणचौधरी या खुद इनेलो के नेता अभय सिंह चौटाला, सभी इस आंदोलन से किसी न किसी रूप् में प्रभावित है। जबकि भाजपा के जाट नेता कैप्टन अभिमन्यु का प्रेस , घर व व्यवसायिक स्थल जला दिया गया। कुल मिलाकर पूरे हरियाणा में बीस हजार करोड की क्षति हुई ऐसा कहा गया है। यह दावे सरकार कर रही है जबकि वास्तविकता कुछ अधिक हो सकती है। जो जन हानि हुई वह अलग है।
इस आंदोलन की मुख्य बातों पर गौर करें तो यह आपेक्षित भी था । जैसा कि होता रहा है इनेलो के जेल में बंद नेेता ओमप्रकाश चौटाला पिछले दिनों पेरोल पर रिहा हुआ और रिहा होते ही मुख्य लोगों से अपने पार्टी के मिले , यह स्वाभाविक भी था क्योंकि ईनेलो की कमान जिस आदमी के हाथ है और जो विपक्ष के नेता है उन्हें पार्टी का एक बहुत बडा तबका नेता ही नही मानता। इसके अलावा दुष्यन्त है तो उनकी हालत भी बच्चों सी है । या यह कह लीजिये कि दूसरे अखिलेश यादव है जो चाचाओं से परेशान है।चौटाला ने सरकार को परेशान करने की बात की। मगर कैसे ? कुछ मान गये कुछ को मनाने का काम शुरू हो गया। अन्य नेताओं से भी बात होने लगी। बात बन गयी लेकिन बात बने कैसे। सभी इस बात पर सहमत थे कि सरकार किसी की बने उससे इतराज नही है लेकिन मुख्यमंत्री जाट ही होना चाहिये। खट्टर सरकार नान जाट मतो पर बन तो गयी लेकिन मुख्यमंत्री अब जाट बनाओ। इस बनिये को भगाओ।
इसके दो चार दिन बाद ही पानीपत में रोहतक के सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री के पुत्र दीपेन्द्र हुड्डा ने रैली की , जिसमें कई जाट नेता भाजपा से कांग्रेस में आये और आंदोलन की बात पर अपना समर्थन दिया । लेकिन यह भी कह दिया कि पूरी तरह से यह आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा।बस यही यह मोड था जहां से आंदोलन की नींव रखी गयी। अन्य दलो में रहने के बाद भी सभी जाट नेेताओं ने मिलकर सरकार को अस्थिर करने का काम शुरू कर दिया। इस पूरे मामले पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी होने के कारण हरियाणा सरकार में वित मेंत्री कैप्टन अभिमन्यु केन्द्र सरकार केा गुमराह करते रहे। ऐसा कहा जाता है। बहुत मुमकिन हो कि खट्टर सरकार केा इस मामले पर मौन रहने को कहा गया हो। ऐसा भाजपा में अधिकतर होता भी है, प्रदेश के मामले में केन्द्र के नेता व उनके चमचे कुछ ज्यादा ही निर्णय सुनाने वाले हो जाते है। सरकार पूरी तरह से इस मामले पर नजर रखी हुई थी और समय पर कार्रवाई करने के पक्ष में भी लेकिन नान जाट भी आंदोलन में तब कूद गये जब आरक्षण आंदोलन के कर्ताधर्ता हिंसक बनाने पर उतर आये। पूर्व मुख्यमंत्री के सलाहकार वीरेन्द्र सिंह इसी मामले केा लेकर सुर्खियों में है। आनेवाले समय में अब जब इंटरनेट चालू हो गया है तो कई और जाट नेता सामने आयेगें जिन्होने हिंसक समूहों का प्रतिनिधित्व किया या उसे बाहर बैठकर संचालित कराया।
आंदोलन की बात की जाय तो जाट को आरक्षण मिल गया। कई घर तबाह कर दिये गये। लोगों के चूल्हें ठंडे हो गये और जश्न का दौर जारी है। जश्न किसका , वह जो मार दिये गये, उन घरों का जो जला दिये गये, या उन जाट नेताओं को जिनके घर , आफिस या टोल प्लाजा या कारों को फूंक दिया गया। या फिर उन लोगो की दुकानों का , जो नान जाट के थे।किसी तरह दुकान से अपनी जीविका चलाते थे । वास्तव में जाटों को मिला क्या ? तो एक सच यह है कि वह अभी तक उजली कौम की श्रेणी में आते थे अब बैकवर्ड यानि पिछडी जाति बन गये। अफसोस की बात यह है कि पिछडी शब्द का मतलर्ब भी वह नही जानते , जानते है तो सिर्फ इतना की मैने आरक्षण ले लिया। इस आंदोलन के दोषियों को राजनैतिक लाभ मिलेगा , इसमें संदेह है क्योंकि अब देश जाग चुका है और सरकार से पहले , कानून से पहले खुद फैसला करना चाहता है। यही निर्भया में हुआ , यही कन्हैया में हुआ और यही जाट आंदोलन में हुआ। नुकसान  जाटों का ही नही हुआ है जहां वह कमजोर रहे वहाँ  उनका नुकसान उनके द्वारा किये गये नुकसान से कही ज्यादा था। अगर ऐसा न होेता तो टिकरी बार्डर पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह  हुड्डा व उनकी पत्नी आशा हुड्डा के आंसू न निकलते , शेर की तरह दहाडने वाली किरण चौधरी को दिल्ली में मीडिया के सामने न आना पडता।
खैर यह तो एक समय है जो निकल गया। किन्तु जो आंसू , गम दे गया , सरकार उनके साथ साझा नही हो सकती । सरकार को यह पता होना चाहिये था कि जाटोंके वोट से उसकी सरकार नही बनी है नान जाट से बनी है इसलिये पहले उनकी सुरक्षा करनी चाहिये थी क्योंकि आज भी जिन जगहों पर वह बैठे है वहां नान जाटोंके काम नही हो रहें है उनकी एक पैरल ल सरकार चल रही है। आखिर इतनी बडी गलती असली जाट लैड में हो गयी , जिसका खामियाजा पूरे हरियाणा को भुगतना पडा। क्या इसका दंड किसी को मिलेगा। शायद नही ? क्योंकि यह सब अज्ञात होता है लेकिन तस्वीरें तो बोेलगी कि किसने किया, और वर्चस्व की लडाई में अब तो हरियाणा जलता ही रहेगा। विकास की बात तो बेमानी है।अंत में यह बता दें कि माहौल जो कांग्रेसियों की तरफ से अब तैयार किया जा रहा है , उसमें सारा कुछ उन सैनी लोगों पर डालने की बात हो रही जिनके गांव झज्जर में जला दिये गये। कहा यह भी जा रहा है कि भाजपा के सांसद राजकुमार सैनी केा प्रदेश के वित मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने पार्टी से निकालने की बात की थी जिसके कारण हिंसा हुई , जबकि आंदोलन शातिपूर्ण चल रहा था। लेकिन आज के दौर में दोनो नेता राजकुमार सैनी व कैप्टन अभिमन्यु क्षेत्र से गायब है।

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