कश्मीर, 370 और अफस्पा

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article-370जन्नत कहे जाने वाले कश्मीर के फ़िज़ाओं में वर्षो पहले जो मजहबी, अलगाववादी, जहर घुली थी, उसका असर आज भी मौजूद है। जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक घटनाओं को देखा जाए तो उसमे “अनुच्छेद 370 और अफस्पा- AFSPA (Armed Forces Special Power Act), विवाद का सबसे बड़ा कारण बन कर उभरती हैं।
कश्मीरी हवाओं से ताल्लुक रखने वाले अफस्पा को अभिशाप मानते है, तो वहीँ दूसरी ओर भारत की अखंडता की वकालत करने वाले, अनुच्छेद 370 को एक अलगाववादी कानून के रूप में देखते हैं।
अफस्पा और अनुच्छेद 370, कैसे कश्मीर के अमन पे नज़र लगाये बैठी है, इसे समझने के लिए, कश्मीर के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को देखना होगा।
15 अगस्त 1947 को भारत एक आज़ाद भारत के रूप में दुनिया के सामने आयी। करीबन 526 छोटे-छोटे टुकड़े को जोड़कर, एक अखंड भारत बनाने के लिए लौह पुरुष सरदार पटेल ने वो सभी हथियारों का प्रयोग किया जो भारत को एक देश के रूप में ढ़ालने के लिए जरुरी था। उनमें से दो प्रमुख हथियार, “कूटनीति और आक्रामक तरीका”, आज भी हर देश की राजनीति में मुख्य भूमिका निभाती हैं।
कूटनीति सहारा लेकर सरदार जी ने कई सैकड़ो रजवाड़ों को अखंड भारत के सपने में समाहित कर लिया, मगर कुछ ऐसे भी घराने थे जहाँ आक्रामक तरीका अपनाना पड़ा, जिसमे हैदराबाद के निज़ाम और भारतीय सेना के बीच की लड़ाई मुख्य हैं।
महाराजा हरि सिंह का कश्मीर का रजवाड़ा, उन 526 रजवाड़ों में सबसे अलग और जटिल साबित हुआ। इसे समाहित करने के लिए, एक अखंड देश के सपने को ताख पे रख कर, कुछ ऐसे राजनीतिक समझौते करने पड़े जो की अखंड भारत जैसे शब्द पर एक प्रश्नचिन्ह उठा देता हैं। अनुच्छेद 370, उन्ही राजनीतिक समझौते की देन हैं।
कश्मीर की वादियों में खूनी होली खेलने की कवायद , सबसे पहले मोहम्मद अली जिन्ना के तरफ से हुई। अक्टूबर 1947 की घटना, जिन्ना के घिनौने मंसूबो की साक्षी हैं। जिन्ना के भेजे हुए कबीलाई गुंडों ने कश्मीर में अशांति का माहौल बनाया हुआ था। महाराजा हरि सिंह की सेना इस संकट को पार करने की ताकत नहीं रख रही थी। इस बीच सरदार जी ने भारतीय सेना को कश्मीर में इस शर्त पर भेजा कि जम्मू-कश्मीर राज्य, भारत देश का एक अभिन्न अंग होगा। लगातार फैलती अहिंसा को रोकने के लिए, अनेक प्रकार के तरीके अपनाये जा रहे थे। इसी दौरान, पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने इस संकट को संयुक्त राज्य के सामने रखने का फैसला किया।
कश्मीर की सियासत का सबसे बड़ा नाम, श्री शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 की सबसे पहले वकालत की और जम्मू-कश्मीर को और अन्य राज्य से अलग, विशेष दर्ज़ा की मांग की। दूसरी ओर महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर को भारत राज्य में शामिल करने का फैसला स्वीकार किया। यह दिन आज भी जम्मू-कश्मीर में राज्यारोहण दिवस के रूप में मनायी जाती हैं।
चलते शांति संघर्ष के बीच, संविधान में अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी उपबंध के रूप में जोड़ा गया। अनुच्छेद 370 के तहत, जम्मू-कश्मीर राज्य को कई विशेष अधिकार मिले जो कि आज के दौर में राष्ट्रिय एकीकरण की राह में रोड़ा बनता दिख रही हैं। देश के लगभग 134 कानून, जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हैं। राज्य को यदि विकास के रास्ते पर आगे बढ़ना है और वादी में अमन का पैगाम फैलाना है तो लोकतांत्रिक उपाय ही एकमात्र तरीका हैं।
तमाम विशेष अधिकार ऐसे है जो भारतीयता और शांति के संदेश को क्षति पहुँचाता आ रहा हैं। इसे यहाँ पर प्रकाश डालने की जरुरत हैं।

“कश्मीर में अगर कोई महिला, गैर कश्मीरी(भारतीय) से विवाह रचाती है तो उसकी नागरिकता को रद्द कर दिया जाता है, और उसके विपरीत अगर कोई महिला, किसी पाकिस्तानी से व्याह करती है तो उसकी नागरिकता पे कोई सवाल नही उठता और तो और उस पाकिस्तानी नागरिक को भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती हैं।”

ऐसे कानून, पाकिस्तान देश के तरफ, जम्मू-कश्मीर राज्य का झुकाव दिखाती हैं। वही पाकिस्तान जिसने  1947, 1965, 1971, 1984, 1999 में भारत की सरज़मी पर अपनी नापाक नज़र डाली और आज भी 26/11 और पठानकोट जैसे हमले को अंजाम देकर, षड्यंत्र रचता आ रहा हैं।
इस तरह के अधिकार, कश्मीर की घाटी में अलगावादी, देशद्रोही और आतंकी सोच को पनपाने के लिए काफी हैं। ऐसी ही अलगाववादी सोच को कुचलने के लिए, कश्मीर के युवाओं को पथभ्रष्ट होने से रोकने के लिए, भारत की अखंडता, एकता, और संप्रुभता को बचाए रखने के लिए, अफस्पा-AFSPA अधिनियम को कश्मीर में लागू करना जरुरी बन गया।
सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून-अफस्पा, 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था। बाद में जब 1987 में, कश्मीर में आतंकवादी घटना तेज़ हुई, तब 1990 में इसे कश्मीर भाग में लागू किया गया।
अफस्पा कानून कहीं भी तब लगाया जाता है जब वो क्षेत्र वहाँ की सरकार के द्वारा अशांत घोषित कर दी जाती है और इस कानून के लागू होने के बाद, सेना को कुछ असीमित अधिकार मिल जाते हैं। वे अधिकार निम्नलिखित इस प्रकार है:-

1. धारा 3 के तहत केंद्र और राज्य सरकार, किसी क्षेत्र को गड़बड़ी वाला क्षेत्र घोषित करती हैं। डिस्टर्ब एरिया घोषित होने के बाद सेना को बुलाया जा सकता हैं, तथा तभी अफस्पा लागू हो पाता हैं।

2. धारा 4 के तहत सेना को बिना वारंट तलाशी, गिरफ्तारी तथा जरुरत पड़ने पर शक्ति का इस्तमाल करने की इज़ाज़त हैं।

3. धारा 5 के तहत सेना गिरफ्तार व्यक्ति को जल्दी से जल्दी स्थानीय पुलिस को सौंपने को बाध्य हैं। लेकिन जल्दी से जल्दी की कोई व्याख्या नहीं की गई है और ना ही कोई समय सीमा तय हैं। इसकी आड़ में सेना असीमित समय तक किसी भी व्यक्ति को अपने कब्ज़े में रख सकती हैं।

4. धारा 6 के तहत इस कानून के दायरे में काम करने वाले सैनिक के खिलाफ केंद्र की अनुमति से ही मुकदमा चलाया जा सकता हैं।

इस कानून के खौफ से अब कश्मीर से कई आतंकी और अलगाववादी संघठनों का सफ़ाया हो चुका हैं। अराजकतावादी कश्मीर से अमन का संदेश देने वाले कश्मीर को बनाने की जो पहल चल रही है उसमे अफस्पा का बहुत बड़ा योगदान हैं।
हालांकि इस अधिनियम को हथियार को हथियार बना कर कुछ सेना के अफसर व अन्य जवान, आये दिन अपनी शक्ति का गलत उपयोग करते हैं। 1991 की कूपवाड़ा में सेना के द्वारा सामूहिक बलात्कार की घटना, 15 साल से मणिपुर की इरोम का अफस्पा के खिलाफ अनशन पर होना, कश्मीर के बदगाम जिले में सेना के द्वारा दो निर्दोष युवाओं को मौत के घाट उतारना और न जाने कई और अमानवीय घटना, हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि “क्या व्यवस्था को कायम रखने वाला हथियार, अफस्पा खुद अव्यवस्था का प्रतीक बनता जा रहा हैं..??
कश्मीर में अमन और चैन का माहौल फिर से कायम हो, इसके लिए मेरा संदेश यह है कि अनुच्छेद 370 के चलते किसी ना किसी रूप में जम्मू-कश्मीर राज्य, भारत से विभाजित होती दिखती हैं। यह अनुच्छेद, भारत की एकीकरण में एक बहुत बड़ा पहाड़ साबित हो रही है और इस रुकावट को उस दरवाजे से हटाना अनिवार्य हो गया है जो कश्मीर के नागरिकों को भारत सरकार के कई कानूनों और योजनाओं से वंचित रखती हैं।
रहा सवाल अफस्पा-AFSPA का तो श्रीनगर के लाल चौक पर कभी पाकिस्तान और ISIS का झंडा ना फहरे, जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रहे, कश्मीर में अमन का पैगाम फैले, उसके लिए इस अधिनियम का लागू रहना जरुरी है, मगर इस अधिनियम के कुछ धाराओं में उचित संशोधन हो, यही मेरा संदेश है और समय की भी माँग यही हैं।

जय हिन्द

अमन कौशिक

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