यह बजट: शुभारंभ है!

वित्तमंत्री अरुण जेटली के बजट में कई अर्थशास्त्री और विपक्षी नेता कुछ खामियां जरुर खोज निकालेंगे लेकिन पूरा बजट भाषण सुनकर मुझे ऐसा लगा कि मोदी सरकार का आज पहला दिन शुरु हुआ है। पिछले पौने दो साल तो उसने सिर्फ ‘प्रचार’ में खो दिए, अब शायद वह काम करना शुरु कर दे। जो कुछ जेटली ने कहा है, अगर उसे सरकार लागू कर दे तो चुनाव-अभियान के दौरान जो वादे किए थे, वे ठोस उपलब्धियां बनकर जनता को दिखाई पड़ने लगेंगे।
खेती, गांव, गरीब और बीमार नागरिकों का जितना ध्यान इस बजट में रखा गया है, शायद पहले कभी नहीं रखा गया। सिंचाई, बिजली, पानी, गैस और सस्ती दवाएं देने का काम यदि पूरा हो गया तो करोड़ों लोगों का पेट भरेगा, नए रोजगार पैदा होंगे और गांव और शहर की खाई भी पटेगी। यदि वित्तमंत्री मध्यम वर्ग को आयकर में थोड़ी छूट दे देते तो वेतनभोगी भारत प्रसन्न हो जाता। यह छूट अभी भी दी जा सकती है।
वित्तमंत्री ने अपने आयकर विभाग में भ्रष्टाचार और टालमटोल से निपटने के लिए कुछ प्रावधान जरुर किए हैं लेकिन काले धन पर उनका रवैया सबसे ज्यादा लचर-पचर दिखाई दिया है। उनकी मजबूरी मैं समझता हूं। वे राजनीतिक कार्यकर्ता हैं। कालाधन तो राजनीति की प्राणवायु है। काल धन खत्म करके कौन नेता अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारेगा?
इसमें शक नहीं कि किसी भी सरकार या परिवार को चलाने में बजट की भूमिका महत्वपूर्ण होती है लेकिन उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी कि पैसे की होती है। इससे ज्यादा नहीं। यदि आपके पास कोई मूलदृष्टि नहीं है, मौलिक दिशा नहीं है, बुनियादी सोच नहीं है तो आप सिर्फ पैसे से क्या कर लेंगे, कितना कर लेंगे? इस बजट के सामने भी यह यक्ष-प्रश्न मुंह खोले खड़ा है।
क्या यह बजट हर नागरिक को रोटी, कपड़ा, मकान शिक्षा और चिकित्सा मुहैय्या करवाएगा? क्या यह शारीरिक और मानसिक श्रम का भेद घटवाएगा? शिक्षा और चिकित्सा में जो लूट मची हुई है क्या यह उसे रुकवाएगा? आरक्षण के नाम पर मलाईदार लोग, जो मलाई पर हाथ साफ कर रहे हैं, उन्हें थामेगा? क्या इसके पास रिश्वतखोरी का कोई इलाज है? इलाज़ तो हर बीमारी का है और वह बजट में पेश भी किया जा सकता है लेकिन हमारे नेता अगले चुनाव से आगे की सोचें, तब तो? यह बजट बढि़या है लेकिन बस शुभारंभ ही है। इसीलिए इसे 10 में से 6 नंबर!

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