प्रसारण और पत्रोत्तर

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बी एन गोयल

आज हम बात करेंगे पत्रोत्तर की. मेरे विचार से पत्रोत्तर आकाशवाणी प्रसारण का एक महत्वपूर्ण अंग है यद्यपि इस पर अभी तक कहीं कोई चर्चा नहीं हुई है. इस से पूर्व के लेख में सन्दर्भ में बात हुयी थी. श्रोता संघो/क्लबो के सन्दर्भ में श्री सोनी ने लिखा है कि उन्होंने भी एक संघ बनाया था. आशा है इस तरह के अन्य लोग आगे आयेंगे.

पत्रोत्तर का कार्यक्रम हर केंद्र का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण (Most  Prestigious) कार्यक्रम होता है. इस में श्रोता केंद्र के विभिन्न कार्यक्रमों के बारे में पत्र लिखते हैं, कार्यक्रमों की समीक्षा करते हैं, प्रशंसा करते हैं और अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हैं. इसे हम प्रतिक्रियात्मक (Interactive) और प्रत्यक्ष बातचीत (Involvement) का कार्यक्रम कह सकते हैं. श्रोताओं के सभी प्रश्नों के उत्तर देना हमारा कर्तव्य होता है. मैं यहाँ अपने समय और अनुभव की बात कर रहा हूँ. यह कार्यक्रम आज भी चलता होगा और पहले से शायद अधिक अच्छी तरह से चलता होगा.

 

मैं साठ के दशक की बात कर रहा हूँ. उस समय अहमदाबाद- वड़ोदरा केंद्र पर पत्रोत्तर कार्यक्रम – ‘सविनय विनंती के’- का आलेख केंद्र के वरिष्ठ अधिकारी विष्णुभाई त्रिवेदी तैयार करते थे और जब तक केन्द्र निदेशक स्व० सुरेश ठाकुर एक एक अक्षर पढ़ कर अनुमोदित नहीं कर देते तब तक यह प्रसारण के लिए फाइनल नहीं होता था. जितना विष्णुभाई लिखते थे उस से कहीं अधिक सुधार, बदलाव, काटपीट (correction, alteration, addition) ठाकुर साब आलेख के हर पृष्ठ पर अपने खूबसूरत लिखाई से कर देते थे. विष्णुभाई उसे फिर से लिखते थे. उन के चेहरे पर सदा ही मुस्कराहट और संतुष्टि का भाव रहता था. विष्णुभाई को मैंने कभी किसी पर भी क्रोधित होते नहीं देखा. पत्रोत्तर कार्यक्रम की अवधि 15 मिनिट की होती थी. इस की प्रस्तुति विष्णु रावल और नलिनीबेन शाह करते थे. उस ठीक किये गए आलेख को मैं अपनी जिज्ञासावश  पढता था. इस से मुझे गुजराती भाषा सीखने में भी मदद मिली. इन में अधिकाँश पत्र यद्यपि विभिन्न कार्यक्रमों की प्रशंसा में होते थे जैसे ‘हमें अमुक कार्यक्रम अच्छा लगा आदि. लेकिन विष्णुभाई अधिकाँश ऐसे पत्रों को लेते थे जिन में कुछ कार्यक्रमों के बारे में कुछ सारगर्भित बात होती थी अथवा आलोचना होती थी.

हमारे केंद्र के प्रमुख कार्यक्रमों में नाटक, साहित्यिक वार्तायें, विशेष श्रोता समूह जैसे किसानों के लिए (खेडुत मंडल), श्रमिकों के लिए (मजूर भाइयो माटे), सद्य (Live) शास्त्रीय संगीत आदि थे.

यह बात आकाशवाणी अहमदाबाद – वड़ोदरा की है. लेकिन इसे एक उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है. सभी केन्द्रों पर इसी तरह होता है अर्थात हर केंद्र इस कार्यक्रम के प्रति सचेत, सजग और संवेदनशील है.

 

पत्रोत्तर कार्यक्रम की गुजराती की एक जोड़ी थी सुरेश ठाकुर और अरविन्दा दवे की. पांचवे दशक की यह पत्रोत्तर की जोड़ी बहुत अधिक प्रसिद्ध हुई. बाद में वे पति पत्नी बन गए. स्व० सुरेश ठाकुर साब से जुडी एक और कथा जो मैंने अपने साथियों से सुनी थी. यह तो मैंने देखा था कि वे अपने समय में एक अच्छे कार्टूनिस्ट थे क्योंकि प्रोग्राम मीटिंग में बैठे बैठे वे प्रायः कार्टून बनाते रहते थे. कहते हैं कि रेडियो में आने से पहले वे किसी समाचार पत्र में कार्टूनिस्ट थे. रेडियो में आने के बाद वे गुजराती के अच्छे ब्रॉडकास्टर बने. ठाकुर साब कार्यक्रम निदेशक कार्मिक के पद से रिटायर हुए. अरविन्दा दवे एक पतली दुबली, बहुत ही सुन्दर, शिष्ट और गरिमामयी महिला थी. वे समाचार प्रभाग की गुजराती एकांश की अध्यक्ष पद से सेवा निवृत्त हुई. 1973 से 1976 के मेरे विदेश प्रसारण विभाग में काम करने के दौरान उन से  प्रायः प्रतिदिन ही भेंट होती क्योंकि हमारा ड्यूटी रूम (CNO -45) और उन का एकांश साथ साथ ही था.

 

विष्णुभाई त्रिवेदी रेडियो के मेरे पहले घनिष्ठ मित्र बने थे और आज भी मेरे उन के साथ पारिवारिक सम्बन्ध हैं. वे रींवा के केंद्र निदेशक पद से रिटायर हुए और  वड़ोदरा में रहते हैं. पर्वों और त्योहारों के अवसर पर वर्ष में कम से कम दो बार हम एक दुसरे को फ़ोन अवश्य कर लेते हैं. 1994 में जब मैं विदेश सेवा में था तो मेरे बड़े बेटे – पुनीत की पोस्टिंग वड़ोदरा में हो गयी. विदेश से मेरा आना संभव नहीं था. मैंने त्रिवेदी को फ़ोन कर उन से पुनीत के लिए कहीं रहने आदि की व्यवस्था करने के लिए कहा. त्रिवेदी जी न केवल उसे स्टेशन पर लेने गए वरन उन्होंने तुरंत उस के लिए अपने घर में ही एक कमरा खाली कर दिया. वह वहां घर के सदस्य के रूप में एक वर्ष रहा. इस के लिए मैं उन का और उन की पत्नी अखिलाबेन का सदैव कृतज्ञ रहूँगा.

 

एक पाठक श्री योगी दीक्षित ने चर्चा की है गुलशन मधुर और मधु मालती जी की. मधु मालती जी की आवाज़ उनके नाम के अनुसार बहुत ही मीठी, सुरीली और मृदु थी. वे विविध भारती से 15 मिनिट का पत्रोत्तर कार्यक्रम देती थी. कहते हैं कि उस समय इस कार्य क्रम को सुनने के लिए हलवाई और पनवाडी की दुकानों पर भीड़ लग जाती थी क्योंकि उस समय अधिकाँशतः रेडियो इन्हीं दुकानों पर अधिक होते थे. इस बारे में श्री लोकेन्द्र शर्मा जी अधिक अच्छी तरह बता सकते हैं.

पत्रोत्तर का एक नया आयाम –  कार्यक्रम की  TRP – आज की भाषा में यदि मैं कहूँ कि पत्रोत्तर के कार्यक्रम से हम अपने ‘श्रम की TRP’ भी देखते थे तो यह गलत नहीं होगा. रोहतक केंद्र पर मुझे महिला और बच्चों के कार्यक्रमों का ज़िम्मा दिया गया. नया केंद्र था अतः पत्रोत्तर के माध्यम से हमने कुछ प्रयोग भी किये. 6 -12 वर्ष के आयु समूह के बच्चों के लिए कार्यक्रम सभी केन्द्रों से रविवार सुबह को होता है. इस में बच्चों के लिए स्वस्थ मनोरंजन, शिक्षा और ज्ञानवर्धन की सामग्री दी जाती है. मैंने बाल कार्यक्रम में पहला प्रयोग किया एक बच्चे को एंकर बनाकर. इस से पहले ऐसी कोई परंपरा नहीं थी. आज यह एक सामान्य बात है. इस के लिए कुछ बच्चों को तैयार किया.

दुसरे – हम हर सप्ताह बच्चो को ताज़ी घटनाओं पर आधारित 5 प्रश्न देने लगे – ये 5 प्रश्न अलग अलग विषयों से होते – इतिहास, खेल कूद, विज्ञान, सामान्य ज्ञान आदि से जुड़े. दूर दराज़ बैठे अथवा अपने घर पर कार्यक्रम सुनने वाले बच्चों से अनुरोध किया जाता कि वे पोस्टकार्ड पर पाँचों प्रश्नों के उत्तर लिख कर आने वाले शनिवार तक भेज दें. शर्त यही थी कि पोस्टकार्ड स्वयं बच्चे ने ही लिखा हो, एक पत्र में पांच से अधिक नाम न हों और बच्चे अपनी आयु और अपनी कक्षा अवश्य लिखें. अगले रविवार के कार्यक्रम में पत्र भेजने वाले बच्चों के नाम और उन के कौन कौन से उत्तर ठीक हैं –सुनाये जाते. इस कार्यक्रम में सक्रिय रूप से मेरा साथ दिया – श्याम गुप्ता, लोचनी अस्थाना, राजेश्वर वशिष्ठ और चौहान इन्दर मोहन सिंह ने. इसे श्रोता बच्चों ने अत्यधिक पसंद किया कि इस में पत्र रोहतक केंद्र के सर्विस क्षेत्र से बाहर जैसे शिमला जम्मु आदि से भी आने लगे. पत्रों की संख्या 200 तक हो गयी थी और हर पत्र में 4/5 नाम. पत्रोत्तर कार्यक्रम के सन्दर्भ में यह प्रकरण महत्वपूर्ण था.

 

नवें दशक में एक बार ऐसा लगने लगा था जैसे रेडियो की महत्ता कुछ घटने लगी है क्योंकि तब निजी रेडियो का सूत्रपात हो गया था. FM की शुरुआत हो गयी थी इस के विस्थापन में अधिक खर्चा नहीं था लेकिन FM के रेडियो/रिसीवर सरलता से उपलब्ध नहीं थे. धीरे धीरे यह कठिनाई भी दूर होने लगी. समय के साथ आकाशवाणी में भी परिवर्तन आने लगा और अब FM अपने पूरे यौवन पर था. परिणाम स्वरूप रेडियो श्रोता के प्रोफाइल में भी बदलाव आया. अब देश में रेडियो श्रोता दिवस मनाने की परम्परा शुरू हो गयी है.

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बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

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  1. इसमें दो राय नहीं कि पत्रोत्तर कार्यक्रम किसी भी केन्द्र का सबसे अहम कार्यक्रम होता है। लेकिन 60-70 के दशक की बात ही अलग थी। केन्द्र निदेशक स्वयं इस कार्यक्रम को गम्भीरता से लेते थे और उसे बेहतर करने के लिये दख़ल भी रखते थे। आखिर पत्रोतर कार्यक्रम किसी भी केन्द्र का चेहरा होता था। गोयल साहब ने आकाशवाणी के सुनहरे दिनों को जीया है। वो दिन भी क्या दिन थे। उस दौर की कहानियाँ ड्यूटी रूम में गोयल साहब की ज़ुबानी सुन सुन कर प्रसारण की एबीसीडी समझ में आई थी। आकाशवाणी में मेरा पदार्पण 70 के दशक के उत्तरार्ध में हुआ था। सुनहरे दिनों का हैंगओवर जारी था जिसकी खुमारी उतरने में एक दशक लग गया। उसके बाद तो जो हुआ वो सब जानते हैं। न वैसे अधिकारी रहे न वैसे प्रसारक। सबकी ज़ुबाँ पर एक ही बात – कौन सुनता है रेडियो।

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