सीवान में हुई पत्रकार राजदेव जी की हत्या के तार सीधे तौर से वर्षों से जेल में बंद अपराधी से नेता बने दुर्दांत शहाबुद्दीन से जुड़ते दिख रहे हैं l जेल में बंद रहने के बावजूद सीवान और इसके आस-पास के इलाकों में शहाबुद्दीन का नेटवर्क कभी भी कमजोर नहीं हुआ और अभी भी बेलगाम हो कर काम कर रहा है l विगत वर्षों में अनेकों हत्याएं शहाबुद्दीन से जुड़े गुर्गों ने बेख़ौफ़ हो कर की हैं l सुशासन के तमाम दावों के बावजूद जेल में बंद अपराधी सरगनाओं व् आपराधिक पृष्ठ-भूमि वाले नेताओं का तांडव बिहार में बदस्तूर जारी ही रहा है , ये सुशासन की सार्थकता पर बड़ा प्रश्न-चिन्ह है ?
बिहार की जेलों में क्या -कुछ होता है ये किसी से छुपा नहीं है l रसूखदार बंदियों के लिए बिहार की जेलें ऐसी सैरगाह हैं जहाँ की सुरक्षित चहारदीवारी में बैठ कर ऐसे लोग वो सब कुछ ज्यादा सुविधा व् सहजता से करते / करवाते हैं जो बाहर रह कर उतनी सहजता से नहीं किया जा सकता है l मेरा तो स्पष्ट तौर पर ये मानना है कि जेल – व्यवस्था को ही अगर सिर्फ दूरस्त कर दिया जाए और बाहुबली कैदियों के बाहरी दुनिया से संपर्क के नेटवर्क को सख्ती से ध्वस्त कर दिया जाए तो बिहार में अपराध का परिदृश्य बिल्कुल ही बदल जाएगा l
दूसरी सबसे बड़ी जरूरत अपराध पर एक आम राजनीतिक धारणा कायम किए जाने की है .. सारे राजनीतिक दलों को जनता के बीच ये विश्वास कायम कराना होगा कि अपराध पर कोई राजनीति नहीं हो रही है l निर्दोषों की जानें जाती हैं कुछ समय के लिए सनसनी कायम होती है , पक्ष-विपक्ष अपनी सुविधानुसार अपराध पर अपनी दुकानें सजाता है lमामला अगर सत्ताधारी दल से जुड़े का होता है तो विपक्ष के तेवर गर्म होते हैं , विपक्ष इसका पूरा ‘पॉलिटकल -माइलेज’लेने की कोशिश करता है और खुद को पाक-साफ़ बताने का स्वांग करते हुए चंद दिनों के पश्चात पूर्व की घटनाओं को भूला कर किसी नयी ‘सनसनी’ की प्रतीक्षा में रहता है , ऐसे ही जब कोई आपराधिक मामला विपक्ष से जुड़ा होता है तो विपक्ष मौन हो जाता है और यहाँ सत्ता -पक्ष आक्रामक – तेवर के साथ विपक्ष पर हमला व् दोषारोपण कर अपराध-नियंत्रण की अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ता हुआ दिखता है l ‘चूहे-बिल्ली के इस खेल ‘ में ठगी जाती है जनता l
आज बिहार का कोई भी राजनीतिक दल दूध का धुला हुआ नहीं है l सारे खेमों में नेता का चोला धारण किए हुए विशुद्ध अपराधियों की बड़ी जमात है जो राजनीति के संरक्षण में बिहार का क्षरण कर रही है l अपराध पर घड़ियाली – आँसू बहाने के खेल को देखना -सुनना ही शायद बिहार की नियति है ….!! हकीकत तो यही है कि ‘बिहार का कोई भी बाहुबली, कोई भी अपराधी सरगना जिसकी आज की पथ- भ्रष्ट चुनावी – राजनीति के सन्दर्भ थोड़ी भी उपयोगिता है वो ‘किसी’के लिए अछूता नहीं है l ऐसे में अगर ‘कोई’ भी अपराध -मुक्त बिहार की बात करता है तो मेरी राय में ये सिर्फ और सिर्फ जनता को उल्लू बनाना है और अपराध पर विलाप ‘गलथेथरी’ है l
आम जनता को भी अपनी राजनीतिक व् जातीय प्रतिबद्धताओं को भूला कर अपराध व् अपराधी को सिर्फ और सिर्फ अपराध व् अपराधी के एंगल से ही देखना होगा , तभी राजनीतिक तबके पर दबाब बनेगा और अपराध व् अपराधी पर राजनीति करने की राजनेताओं की ठगी से जनता को खुद को बचा पाएगी l
आलोक कुमार