नैपकीन दे रहा रोजगार भी स्वच्छता भी

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sanitaryउषा राय

“मैं पिछले छः महिनों से नैपकीन बनाने का काम कर रही हूँ हमारे समूह मे 7 लोग हैं और सब मिलकर 300 नैपकीन एक दिन मे तैयार करते हैं “। ये वाक्य हैं अमेठी जिला के शिंगपुर मे रहने वाली शबनम का जो पिछले कई सालो से सफाई कर्मचारी तो हैं ही अब सरकारी स्तर पर बनाए जाने वाली दिशा नामक सैनीटरी नैपकीन को बनाने का कार्य अपने समूह के साथ करती हैं।
प्राप्त आंकड़ो के मुताबिक भारत मे प्रतिवर्ष एक लाख 30 हजार महिलाएं गर्भाशय कैंसर का शिकार होती हैं। जिसमे जागरुकता और चिकित्सा क्षेत्र मे निवेश के अभाव के कारण 70 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है। पूरे विश्व में पांच लाख 61 हजार नए गर्भाशय कैंसर के मामले पाए गए हैं और इससे प्रतिवर्ष 2 लाख 85 हजार महिलाओं की मौत हो जाती है। गर्भाश्य कैंसर के मामले मे भारत का विश्व मे पांचवा स्थान है। बेशक ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं लेकिन इन आंकड़ो के पीछे एक बड़ा कारण है मासिक धर्म के दौरान महिलाओं द्वारा साफ सफाई का पूरा ख्याल न रखा जाना। विशेष रुप से बात अगर ग्रमीण महिलाओं की कि जाए तो शिक्षा और जागरुकता के अभाव मे अधिकतर महिलाओं को ये पता भी नही होता कि मासिक धर्म के दौरान कपड़ों और अन्य चिजों के अलावा सैनीटरी नैपकीन जैसी किसी चीज का भी प्रयोग होता है। कारण वश मासिक धर्म के शुरु होते ही लड़कियां कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं और साफ साफाई न रखने के कारण कुछ समय बाद संक्रमित हो जाती है। अधिकतर मामलो मे ये संक्रमण धीरे धीरे सर्वाइकल कैंसर और गर्भाश्य कैंसर का भी रुप ले लेता है। ऐसे मे पूरे देश मे महिलाओं के स्वास्थ को ध्यान मे रखते हुए कई योजनाओं के अंतर्गत महिलाओं को काफी कम लागत मे सैनीटरी नैपकीन उपलब्ध कराया जा रहा है इस संबध मे बात यूपी और बिहार की कि जाए तो मालूम होता है कि यहां भी बड़े स्तर पर महिलाओं को कम कीमत मे नैपकीन तो उपलब्ध कराया जाता है लेकिन इनकी गुणवत्ता अच्छी न होने के कारण महिलाएं इसका उपयोग नही के बराबर करती हैं। इस संबध मे समाजिक कार्यकर्ता और महिलाओं के विकास के लिए काम करने वाली उर्मिला चनम बताती हैं- हमारे देश मे सिर्फ 12 प्रतिशत महिलाएं मासिक धर्म के दौरान सैनीटरी नैपकीन का प्रयोग करती हैं। जबकि अन्य कपड़े या पॉलिथिन का प्रयोग करती है जिससे मासिक धर्म के दौरान संक्रमण का खतरा तो बना ही रहता है, गर्भवती होने के बाद भी मां और बच्चे दोनो में संक्रमण का खतरा बरकरार रहता है। 23% लड़कियाँ तो मासिक धर्म के दैरान स्कूल जाना ही छोड़ देती हैं या कई उन दिनों मे स्कूल ही नही जाती कारणवश वो पढ़ाई मे पीछे रह जाती हैं। ऐसे मे महिलाओं और विशेषकर स्कूल जाने वाली लड़कियों को सैनीटरी पैड के उपयोग के बारे मे बताना ही चाहिए साथ ही अगर वो आर्थिक स्थिति के कारण इसका प्रयोग नही कर पाती तो कपड़ो के प्रयोग मे भी बरती जाने वाली साफ सफाई के बारे उन्हे बताना चाहिए ताकि वो खुद को संक्रमण और उससे होने वाली कई बिमारीयों से सुरक्षित रख सकें। ज्ञात हो कि कई गैर सरकारी संगठन और स्वंय सहायता समूह इस क्षेत्र मे काम कर रहे हैं ताकि महिलाओं को स्वस्थ रखा जा सके। इसी प्रकार अमेठी जिला के शिंगपुर मे सरकारी स्तर पर दिशा नामक नैपकीन को बनाया जाता है जिसे स्त्री और पुरुष दोनो मिलकर बनाते हैं। ये सारे सफाई कर्मचारी हैं जो सफाई के काम के बाद सैनीटरी नेपकीन को तैयार करने मे लग जाते हैं। ऐसा करने से न सिर्फ सफाई कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति मे सुधार आ रहा है साथ ही दिशा नैपकीन के कम किमत मे उपलब्ध होने के कारण महिलाओं तक नैपकीन पहुंच रहा है। सफाई कर्मचारियों को इस काम के लिए सरकार द्वारा कुछ समय का प्रशिक्षण भी दिया गया है। नैपकीन बनाने का कार्य कैसे किया जा रहा है इस बारे मे शबनम बताती हैं- मैं पिछले छः महिनों से नैपकीन बनाने का काम कर रही हूँ हमारे समूह मे 7 लोग हैं और हम सब मिलकर 300 नैपकीन एक दिन मे तैयार करते हैं। लेकिन नैपकीन बनाने के लिए जिस मशीन का उपयोग करते हैं वो बिजली से चलती है अगर कभी बिजली चली जाए तो हमारा काम रुक जाता है और समय बर्बाद होता है। इसी समूह की प्रेमा देवी अपने काम के बारे मे बताती है- हम जो नैपकीन बनाते हैं उसका वजन 10 से 12 ग्राम होता है जो 15 रुपए की किमत मे उपलब्ध होता है, एक पैकेट मे 6 नैपकीन होते हैं । हम इसे अच्छी से अच्छी गुणवत्ता वाला बनाने की कोशिश करते हैं ताकि गांव की महिलाएं इसके प्रयोग के बाद पुरी तरह संतुष्ट हो जाए और किसी भी हाल मे इसका प्रयोग करना बंद न करें।
आज देश मे कई स्वंय सहायता समूह महिलाओं को न सिर्फ सैनीटरी नैपकीन के प्रयोग के लिए प्ररित कर रही हैं बल्कि सैनीटरी नैपकीन का बढ़ता कारोबार लोगो को रोजगार भी उपलब्ध करा रहा है। (चरखा फीचर्स)

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