बेबसी के आंसू

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farmerअकाल तो दिख ही रहा था , और दूसरी ओर चुनाव कदमों में थे । मीरपुर गांव में इन दिनों विधायक के चुनाव होने वाले थे इस कारण हर जगह राजनीतिज्ञों का धूम धड़ाका हो रहा था । बरसात की ऋतु थी किन्तु इस बार अकाल ही दिख रहा था अर्थात अभी तक इन्द्र देव का आगमन नहीं हुआ था ,लेकिन राजनेताओं को तो सिर्फ अपनी पड़ी थी जैसे तैसे करके वोट पाना । गांव में किसी भी प्रकार की कोई सरकारी सेवा नहीं थी सिर्फ भगवान की मेहर हो जाती तो ठीक है अनाज हो जाता अन्यथा इसके लिए भी पाले पड़ते ऐसी ही स्थिति कुछ अब है । गांव के सभी सरकारी कर्मचारी सरपंच हो या ग्रामसेवक और विधायक सहित सभी अपनी – अपनी जेबें भरने में तुले थे ।

बारिश नहीं हो रही थी ,लोग अब पेड़ों की भांति सूख रहे थे ,लेकिन हमेशा की तरह चुप थे क्योंकि पता है सहायता करने वाला कोई नहीं है सिवाय भगवान के ,और इस बार तो भगवान भी रूठा हुआ सा है । इसी बीच हमेशा की तरह वोटों के भूखे नेता घर – घर भटकने लगे क्योंकि अब इन्हें घास की जरूरत थी अर्थात वोटों के लिए घूम रहे थे । ये लोग किसी को राजी मन से तो किसी को डरा धमका कर वोट लेने की बातें करते । साथ ही हर बार की तरह का दिखावटी भाषण भी प्रस्तुत कर रहे थे । और एक ही आवाज गूँज रही थी , ”अगर इस बार आप लोग हमारी सरकार बनाने में मदद करे तो निःसंदेह कुछ अलग करेंगे” ।

बरसात न होने के कारण इस बार ग्राम के सरपंच साहब रघुवीर सिंह में थोड़ी मानवता दिख रही थी ,इसलिए गांव के लोगो की सभा बुलाई और वहां पर लोगों की भीड़ इकट्ठा हुई और सभी को थोड़ा – थोड़ा अनाज देने की बात हुई । अन्त में सरपंच ने अपने भाषण में अपनी योजना का उल्लेख करते हुए सम्बोधित किया कि ”इस बार विधायक पद पर बब्बन और जोरावर है ,अगर आप लोगों में से किसी ने भी जोरावर को वोट देने की कोशिश भी की तो उसके साथ बहुत बुरा होगा” । लोगों को सरपंच की दरियादिली का पता भी चला कि यह सरपंच की दरियादिली नहीं अपने दुश्मन को हराने की चाल है ।
जोरावर पहले से ग्रामवासियों पर टूट पड़ा था, उसने साफ़-साफ़ कह दिया था कि अगर वोट किसी अन्य को दिया तो उसकी खैर नहीं । अब लोगों के दोनों और खतरे की खाई थी, एक तरफ जोरावर तो दूसरी और सरपंच रघुवीर सिंह ।

तत्पश्चात गाँव में बारिश हुई , लोगों के चेहरों पर थोड़ी बहुत खुशी झलकी, चुनाव तो अभी दूर थे लेकिन चिंता खाए जा रही थी की आखिर करें तो क्या करें ? इसी प्रकार फसल धीरे-धीरे पनप रही थी, वैसे-वैसे चुनाव के दिन नजदीक आ रहे थे और तकरीबन चुनाव को 17 दिन दूर थे । लोगों के मन में काफी डर था कि किसको वोट दें ? अंततः लोगों ने योजना बनाई कि सभी अपनी-अपनी मर्जी से वोट देंगे, क्योंकि खतरा तो दोनों और है ही ।

भगवान न जाने इस बार किस बात का न्याय कर रहा है, बात यह थी की फसल में कीड़े भी पड़ने शुरू हो गए थे जो फसल के नष्ट होने के साफ़ संकेत दे रहे थे लोगों की आँखों से आंसूओं की मूसलाधार बारिश हो रही थी और चुनाव भी शुरू होने वाले थे दूसरे दिन । और आखिरकार चुनाव का दिन आ ही गया, जो की फरवरी 12 को चुनाव रखा गया था । सभी लोग चिंतित मन से वोट देकर आ रहे थे, क्योंकि इन्हें पता था की अब हमारी जिंदगी कुछेक दिनों की ही है । छोटे बच्चों को पता नहीं था कि सभी घर वाले इतने डरे हुए से क्यों है ? पूछने पर बात टाल देते थे ।

चुनाव में सभी के वोट धक्का-मुक्की से लिए गए, जोरावर के कई आदमियों के पास बंदूकें थी तो कुछेक के पास तलवारें । दिन गुजरता रहा और वोट आते रहे, लोगों के साथ मारपीट हो रही थी, कई घायल हुए तो चार पाँच की तो अर्थियां भी उठ चुकी थीं गाँव में आक्रोश सा फैल गया था, लोगों के घरों से करूण रुदन सुनाई दे रहा था । चिताएं जल रही थी और दूसरी ओर बब्बन के घर पर ढोल नगाड़े बज रहे थे साथ ही सरपंच रघुवीर सिंह भी ख़ुशी से उछल रहा था । बात यह थी की विधायक चुनाव में बब्बन ने अपने प्रतिद्वंद्वी जोरावर को बुरी तरह से 160 सीटों से हरा दिया था । इस कारण जोरावर के घर पर भी मातम सा छाया हुआ था, हार के कारण घर में हंगामा कर रहे थे ।

दूसरे दिन जोरावर के कहे अनुसार गाँव में उसके आदमी टूट पड़ते है और गरीब किसानों की झोपड़ियां जलानी शुरू कर देते है पर इससे बचाने के लिए न तो बब्बन आता है और न ही सरपंच रघुवीर बेचारे किसानों की झोपड़ियां जल रही थी, फसलों को अनगिनत कीड़े खा रहे थे, रहने के लिए सभी के घर उजड़ गए थे दस बारह लोग आग में झुलस गए थे, इसी प्रकार गाँव के बेबस किसान अर्थियां उठाने में लगे हुए थे ।
ऐसे ही कुछ दिन गुजरते गए, और एक दिन न जाने भगवान ने एक फ़रिश्ते को कहाँ से भेजा, कुछ पता नहीं ? और वो था एक पत्रकार जिसका नाम था आशुतोष द्विवेदी । गले में कैमरा, हाथ में थैला देखकर किसानों ने सोचा और अपने दूसरे लोगों से बोले कि “हे भगवान! अब किसकी कमी थी जो इन लोगों को भेज रहा है हमारी जान लेने के लिए ?” पत्रकार ने बात सुन ली और झट से बोला “अरे काका! चिंता मत कीजिये मैं कोई लूटेरा नहीं जैसे यहाँ के सरपंच, विधायक इत्यादि है, मैं तो एक पत्रकार हूँ जो आपकी मदद करूंगा” ।

पत्रकार आशुतोष ने रिपोर्ट तैयार की जिसमें लोगों के बयान भी लिए गए और जली हुई झोपड़ियों के राख के चित्र भी लिये । इसी प्रकार दूसरे दिन अख़बार में समाचार छपा था जिसका शीर्षक “चुनावी रंजिश ने गाँव को किया तहस-नहस, सिर्फ वोट के भूखे है राजनेता” । समाचार के प्रमुख अंश में लिखा गया था कि वोटों के लिए लोगों को मौत के घाट उतार दिया, लेकिन न तो पुलिस प्रशासन पहुंची और न ही मंत्रिमंडल के लोग, साथ ही सभी के आशियाने भी जलाकर राख कर दिये । अख़बार इन राजनेताओं के पास भी पहुंचा, मंत्रिमंडल के पास भी और पुलिस प्रशासन के पास भी , मंत्रिमंडल और पुलिस प्रशासन दुःखी थे क्योंकि इनको खबर की भनक तक नहीं लगी ।

जोरावर जिसको एक डाकू भी कह सकते है वो अपने साथियों के साथ पत्रकार के पास पहुंचा, जोरावर का इरादा था की आज इस पत्रकार के साथ सभी को ख़त्म कर देंगे, लेकिन मौके पर पुलिस टीम पहुँच जाती है और जोरावर सहित बब्बन, सरपंच रघुवीर सिंह और इन सभी के आदमियों को गिरफ्तार करके काल कोठारी में डाल देती है | गिरफ्तारी के दूसरे दिन प्रदेश के मुख्यमंत्री ग्राम का दौरा करतें है और गरीब एवं बेबस किसानों की बातें सुनते है ।

कुछ दिन बाद गाँव में नए कर्मचारी भेजे जाते है, बेबस किसानों को अनुदान राशि दी जाती है, और पत्रकार आशुतोष को भी सम्मान दिया जाता है ।

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