बेटी तो ससुराल चली जाएगी, बेटा हमेशा रहेगा साथ ।

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untitledसुशीला

भारत की शीर्ष महिला बैंकर एसबीआई प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य, आईसीआईसीआई बैंक प्रमुख चंदा कोचर और एक्सिस बैंक की मुख्य कार्यकारी शिखा शर्मा अमेरिका से बाहर विश्व की 50 सबसे शक्तिशाली महिलाओं मे शामिल हैं। यह बात फाच्यूर्न द्वारा जारी एक सूची मे कही गई। इस सूची मे अमेरिका से बाहर की महिलाओं को भी शामिल किया गया है। इस रिपोर्ट द्वारा भारतीय महिलाओं की क्षमता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। परंतु जहां एक तरफ इस रिपोर्ट की सच्चाई है वहीं दूसरी तरफ समाज के एक बड़े हिस्से की सोंच आज भी लड़कियों के प्रति काफी पिछड़ी हुई है।
राजस्थान के बीकानेर जिले की तहसील लूनकरनसर के कालू गांव मे जिसकी कुल आबादी 20,000 है, मे रहने वाली सिता देवी कहती है “हमारे यहां लड़कियों की जल्दी शादी करके विदाई कर देते हैं ज्यादातर हम 12 साल की उम्र मे ही लड़कियों की शादी कर देते हैं क्योंकि आज का जमाना अच्छा नही है लड़कियां पढ़ाई-लिखाई के लिए अगर बाहर जाए तो उनके साथ कुछ भी बुरा हो सकता है इसलिए अच्छा है कि वो जल्द अपने ससुराल चली जाएं। वो आगे कहती हैं “ज्यादातर हमारे गांव मे लोगो की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नही होती इसलिए हम आमने सामने की शादी कर देते हैं यानी एक ओर से एक लड़का और लड़की और दूसरी ओर से दूसरा लड़का और लड़की, ऐसे हमारा काफी पैसा बच जाता है और आसानी से शादी भी हो जाती है”।
कालू गावं मे लड़कियों की कम और बेमेल लड़को से उनकी शादी की बात आम है। कारण है आर्थिक रुप से लोगो का मजबूत न होना जिस कारण कई बार बड़ी बहन के साथ छोटी बहन की भी शादी करा दी जाती है। भले ही उस समय उसकी उम्र 10 या 11 वर्ष ही क्यों न हो। कारणवश लड़कियां कई बार छाटी उम्र मे मां बन जाती है, परंतु उनका और उनके बच्चे का स्वास्थय खराब हो जाता है। ,
यह समस्या सिर्फ कालू गांव की ही नही है बल्कि लूनकरनसर की दूसरी तहसील नकोदेसर भी इस समस्या से अछूता नही है । इस समस्या के बारे मे गांव की एक वृद्धा कमला जी ने बताया” कम उम्र मे लड़कियों की शादी कर देने की वजह सिर्फ ये नही है कि लोगो के पास ज्यादा पैसा नही होता बल्कि लोग लड़के-लड़कियों मे भेदभाव भी बहुत करते हैं इसलिए लड़कियों को पढ़ाने लिखाने पर पैसा बर्बाद करने से ज्यादा अच्छा जल्द से जल्द उनकी शादी कर देना समझते हैं”।
भेदभाव की बात पर जब लेखिका ने एक गर्भवती महिला से यह सवाल किया कि आपको बेटा चाहिए या बेटी तो महिला ने जवाब दिया- बेटा।
लेखिका ने फिर सवाल करते हुए पूछा कि क्यों बेटी क्यों नही? तो महिला ने मुस्कुराते हुए कहा कि “बेटी तो कुछ दिनो बाद ससुराल चली जाती है, लेकिन बेटा हमेशा साथ रहेगा और उपर से पैसे कमाएगा सो अलग। हमारे खानदान की हर लड़की सोचती है कि उसका पहला बच्चा बेटा ही हो क्योंकि फिर हम नसबंदी करा लेते हैं। क्योंकि बेटा होने के बाद दुबारा गर्भवती नही होना पड़ता लेकिन अगर पहला बच्चा बेटी हो गई तो फिर जबतक बेटा न हो हमे गर्भवती होना पड़ता है। आखिर बेटा ही तो बुढ़ापे का सहारा होता है न। उसे ही वंश चलाना होता है”।
लड़कियों को पढ़ाने को पैसे की बर्बादी क्यों समझा जाता है? इस सवाल के जवाब मे गांव के एक किसान रामेश्वर जी ने बतया “लड़कियां चाहे जितना भी पढ़ लिख लें, जाएगी तो पराये घर ही। फिर उनकी पढ़ाई पर जितना खर्च आएगा उतने मे तो उनकी शादी हो जाएगी। तो क्या करना है लड़कियों को पढ़ाकर”।
उर्युक्त वाक्य से मालुम होता है कि लड़कियों के प्रति लोगो की सोच सूचना और क्रांति के इस दौर मे भी वैसे ही पिछड़ी है जैसे कई हजारो साल पहले थी और भेदभाव की यह समस्या सिर्फ कालू और लूनकरनसर गांव तक ही सीमित नही है बल्कि अब भी डिजिटल इंडिया के नाम से मशहुर भारत के कई हिस्सों मे है। इसका सबसे बड़ा साक्ष्य है- जनगणना 2011 के आंकड़ो जो बताते है कि पिछले 10 वर्षो मे हमारी जनसंख्या बढ़कर 121 करोड़ जरुर पहुंच गई है लेकिन इसमे 6 वर्ष की आयु पर प्रति एक हजार बालक पर मात्र 914 लड़कियां ही बची हैं। विशेष रुप से बात अगर राजस्थान की करें तो हम पाएंगे कि राजस्थान मे प्रति एक हजार लड़को पर मात्र 883 लड़किया रह गई है। जबकि गोवा मे 920, हरियाणा मे 830, दिल्ली मे 866, महाराष्ट्र मे 883, गुजरात मे 886, और पंजाब मे यह संख्या 846 है ।
इसके अतिरिक्त यूएडीपी के लिंग असमानता सूचकांक के 152 देशो की सूची मे भारत 127 वें स्थान पर है। तमाम आंकड़ो से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वर्तमान समय मे लड़कियों की सुरक्षा के लिए चलने वाली राष्ट्रीय एंव राजकीय योजनाओ के बावजुद हमारे देश मे लड़कियों को सुरक्षा नही मिल पा रही है । इसलिए जरुरत इस बात की नही है कि हर वर्ष सिर्फ नई-नई योजनाओं को लागू किया जाए बल्कि लड़कियों के प्रति लोगो की मानसिकता को बदलने के लिए भी निरंतर प्रयास करने होंगें ताकि फिर कोई मां अपनी बेटी के लिए ये न कहे कि “बेटी तो ससुराल चली जाएगी, बेटा हमेशा रहेगा साथ”।(चरखा फीचर्स)

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