शिव शरण त्रिपाठी
समाजवादी पार्टी के मुखिया यानि सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति के कद्दावर नेताओं में प्रमुख स्थान रखते हैं। उन्होने जिस तरह विपन्नता के बीच झंझावातों से जूझते हुये अकेले दम पर न केवल अपनी पार्टी खड़ी कर डाली वरन् उसे प्रतिष्ठिापित करके दिखा दिया, उसका दूसरा सफल उदाहरण भारतीय राजनीति में मिलना विरल है।
यूं तो उत्तरप्रदेश में बसपा का वर्चस्व, लोक दल का गठन ऐसे ही उदाहरण है पर जिस करीने से उन्होने राजनीति में अपने पूरे परिवार को सफ लता से आगे बढ़ाया व अंतत: भारी अंर्तविरोधों के बीच अपने इकलौते पुत्र अखिलेश यादव को देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की सत्ता का मुखिया बना डाला वह यकीनन मुलायम सिंह यादव के बूते की ही बात थी।
समय साक्षी है कि मुख्यमंत्री के रूप में अखिलेश यादव ने भी सुप्रीमों के ‘उन्हेÓ मुख्यमंत्री बनाने के निर्णय को गलत सिद्ध नहीं होने दिया। कोई यह तो नहीं कह सकता कि बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को भी पीछे छोड़ दिया पर यदि यह कहा जाय कि अखिलेश यादव ने अपनी शालीन, संवेदनशील राजनीति से प्रदेश वासियों का मन मोह लेने में सफ लता पाई तो कतई गलत भी न होगा। मुख्यमंत्री श्री यादव की मासूमियत, उनकी सहजता व सरल मुस्कान उन्हे समकालीन नेताओं से कहंीं इतर श्रेष्ठता प्रदान करती है। उनके सामान्य भाषणों की छोडि़ए विपक्षियों पर हमले बोलने वाले जैसे भाषणों में भी जिस संयमित, परिष्कृत भाषा का वो इस्तेमाल करते है, उसके उनके धुर विपक्षी भी कायल रहे है।
यदि आज राजनीति के मंझे खिलाड़ी व सुलझे पर्यवेक्षक भी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के हालिया कई निर्णयों से इत्तेफ क नहीं रखते तो उसकी गंभीरता को संजीदगी से लेना ही होगा।
सोमवार को जब उन गायत्री प्रसाद प्रजापति ने पुन: मंत्री पद की शपथ ली जिन्हे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कथित भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते अपने मत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था तो लोगो के मुंह से बरबस निकल पड़ा कि काश! सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने सुप्रीम मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पूर्व के निर्णय का सम्मान किया होता।
लोगों को यह कहीं और अटपटा लगा और समझ से परे भी कि जो सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव सुप्रीम मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकलापों व उनके निर्णयों की सराहना करते रहे है। जो उनके कार्यो, निर्णयों में कभी हस्तक्षेप न करने की बातें करते रहे हो आखिर उन्होने किन कारणों से मुख्यमंत्री को उनके एक बेहद तर्क संगत मौजूं निर्णय को बदलने को मजबूर कर दिया, इसका उत्तर आज नहीं तो कल मिल ही जायेगा पर इससे कोई अच्छा राजनीतिक संदेश तो नहीं ही गया है।
इसके पूर्व जिन अमर सिंह से बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव निरंतर दूरी बनाये रखने में यकीन रखते रहे हो, जिन पर उन्होने मौके बेमौके तंज कसने में चूक न की हो उन अमर सिंह क सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाकर क्या सुप्रीम मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मात देने जैसा काम नहीं किया।
आसन्न में विधान सभा चुनाव में सुप्रीमों श्री यादव की ऐसी राजनीतिक चालों का परिणाम कितना भी सकारात्मक क्यो न निकले पर उनकी ऐसी ही चालों से एक सफ ल युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का नाम इतिहास के पन्नों में एक बेबस मुख्यमंत्री के रूप में तो दर्ज हो ही गया।