अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल और उनके तीन शहीद साथियों को सादर नमन और श्रद्धांजलि’

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-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।

आज ऋषि दयानन्द के शिष्य और आर्यसमाज के अनुयायी अमर शहीद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल जी और उनके तीन साथी रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां तथा राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी का शहीदी दिवस अर्थात् पुण्य तिथि है। इन चार देशभक्त सपूतों को सन् 1927 में गोरखपुर की जेल में आज ही के दिन 19 दिसम्बर को फांसी देकर शहीद किया गया था। श्री राम प्रसाद बिस्मिल मैनपुरी और काकोरी काण्ड में मुख्य अभियुक्त थे। देश को आजाद करने के उद्देश्य से काकोरी में उन्होंने व उनके साथियों ने रेलगाड़ी को रोककर सरकारी खजाने को लूटा था। पं. राम प्रसाद बिस्मिल जी का मुख्य उद्देश्य स्वामी दयानन्द की शिक्षा के अनुसार देश को अंग्रे्रजों की दासता से मुक्त कराकर देश में अन्याय व शोषण से मुक्त वैदिक परम्पराओं के अनुरूप स्वदेशीय राज्य की स्थापना करना था। उन्होंने अपना बलिदान देकर अपने बाद के क्रान्तिकारियों का मार्ग प्रशस्त किया। पं. राम प्रसाद बिस्मिल जी ने जेल की फांसी की कोठरी में विपरीत परिस्थितियों में रहते हुए भी वहां योगाभ्यास कर बिना स्वास्थ्यवर्धक भोजन के ही स्वयं को न केवल पूर्ण स्वस्थ ही नहीं बनाया था अपितु उनके शरीर के भार में भी वृद्धि हुई थी। इस फांसी की कोठरी में उन्होंने अपनी आत्म कथा भी लिखी जो सभी देशवासियों के लिए सर्वोत्तम प्रेरणादायक है। इस आत्मकथा को सभी देशवासियों और युवकों को पढ़ना चाहिये। यदि भारत सरकार इसे पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर दे तो इससे देश के युवाओं को देश भक्ति का अनुपम पाठ पढ़ने का सुअवसर मिलेगा जिससे देश को लाभ होगा। केन्द्र सरकार से निवेदन है कि वह इस पर विचार करे और पूर्ण करे।

 

जब पं. रामप्रसाद बिस्मिल जी शहीद हुए तो उनकी आयु 30 वर्ष 6 महीने 8 दिन थी। आप उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में जन्में थे। आप योगी थे और योग के द्वारा आपने अपने स्वास्थ्य को ऐसा आकर्षक व प्रभावशाली बनाया कि आपका शरीर व चेहरा दर्शनीय हो गया था। दूर दूर से लोग आपके सौन्दर्य की प्रशंसा सुनकर आपको देखने आते थे। महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज के आप पक्के भक्त व अनुयायी थे। आजादी के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने की प्रेरणा व शिक्षा आपको अपने इष्ट देव महर्षि दयानन्द व उनके ग्रन्थों सत्यार्थ प्रकाश, आर्याभिविनय एवं संस्कृतवावक्यप्रबोध आदि के अध्ययन से मिली थी। आपकी बहिन शास्त्री देवी जी भी क्रान्तिकारी विचारों की महिला थी और आपको क्रान्तिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए सभी प्रकार से सहयोग करती थी जिनमें हथियारों को छुपा कर आपके गुप्त स्थानों में पहुंचाना भी शामिल था। दुःख है कि इस स्वतन्त्रता की देवी को किसी प्रकार की कोई सरकारी सहायता नहीं दी गई। आप रोग का बिना इलाज कराये ही स्वर्ग सिधार गई। दिल्ली के निकट आप एक चाय की ठेली से आजीविका कमाने का काम करती थीं। आपको सारा जीवन अभावों में व्यतीत करना पड़ा। इस देश में वोट बैंक की राजनीति करने वाले कुपात्रों को फर्जी सुविधायें तो दे सकते हैं परन्तु इस देश में बहुत से सच्चे स्वतन्त्रता सेनानियों को सम्मान नहीं मिलता। महर्षि दयानन्द ने लिखा है कि ईश्वर की सृष्टि में अन्यायकारियों का राज्य बहुत दिन तक नहीं चलता। इसी कारण अंग्रेजों व यवनों को भी राज्य से हाथ धोना पड़ा। यह वेद का शाश्वत् सन्देश है। देश की सेवा करने की इच्छा रखने ेवाले सुयोग्य व पात्र लोगों को ही राजनीति में भाग लेना चाहिये। यह सन्देश वेदाध्ययन व ऋषि दयानन्द का साहित्य पढ़ने पर प्राप्त होता है।

 

मरते बिस्मिल रोशन लाहिड़ी अशफाक अत्याचार से।

पैदा होंगे सैकड़ों इनके रूधिर की धार से।।

 

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर।

हमको भी मां बाप ने पाला था दुःख सह सह कर।।

 

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले।

वतन पे मरने वालों यही बाकी निशां होगा।।

 

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।

देखना है जोर कितना बाजुएं कातिल में है।

 

यह उपर्युक्त सभी पंक्तियां पं. रामप्रसाद बिस्मिल के कवि हृदय की देन है जो आजादी के आन्दोलन मुख्यतः क्रान्तिकारियों में बहुत लोकप्रिय थी।

 

हम आज पं. रामप्रसाद बिस्मिल और उनके तीन साथियों रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खां और राजेन्द्र सिंह लाहिड़ी के शहीदी दिवस पर उन्हें नमन करते हैं और श्रद्धांजलि देते है।

1 COMMENT

  1. आपने इन शहीदों को उनके शहीदी दिवस पर याद किया,यह देख कर अच्छा लगा…मेरी भी विनम्र और हार्दिक श्रद्धांजलि और शत शत नमन इन अमर शहीदों को.हो सकता है आपको बुरा लगे ,पर जब पूरा आलेख पंडित राम प्रसाद विस्मिल के बारे में लिख गए,तो आपको यह क्यों नहीं महसूस हुआ कि आप अन्य शहीदों को पूर्ण रूप से भूले जा रहे हैं और इस तरह आप प्रच्छन्न रूप से उनका अपमान कर रहे हैं. जिस तरह आपने यह आलेख लिखा है,यह पूर्ण आलेख उन शहीदों का यादगार नहीं ,बल्कि आर्य समाज का प्रचार मात्र बन कर रह गया है.

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