खुंखार कुत्ता भीगी बिल्ली बना


डा. राधेश्याम द्विवेदी
एक बादशाह अपने खुंखार कुत्ते के साथ नाव में बैठकर यात्रा कर रहा था। उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।
उस कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था। वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से बैठने नहीं दे रहा था ।
नाव का नाविक कुत्ते की उछल-कूद से परेशान था। उसे डर था कि कुत्ते की हरकतों की स्थिति में यात्रियों में हड़बड़ाहट हो सकती है और इससे नाव भी डूब सकती है। वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा। परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था ।
एसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था। पर, कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था। नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया ।
वह बादशाह के पास गया और बोला – सरकार ! अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ ।
बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी। दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया ।
कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा। उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे। कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया ।
वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया। नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ ।
बादशाह ने दार्शनिक से पूछा – यह पहले तो उछल-कूद की हरकतें कर रहा था, अब देखो कैसे यह पालतू बकरी की तरह भीगी बिल्ली बन बैठा है ?
दार्शनिक विनम्रता से बोला – सरकार ! खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है। इस बिगड़ौल कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी।
लम्बी सांसे लेकर वह आगे कहा – भारत में रहकर , भारत के करोड़ो लोगों के टैक्स के बलबूते, सबसिडी का सहारा लेकर पलने वाले जेएनयू के उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले हमारे देश के छात्र , कुछ राजनीतिक पार्टियों के बहकावे में आकर भारत के टुकड़े करने के नारे लगाते हैं। वही काश्मीर के लोग पूरे देश के कोने से देश की सेवा एवं रक्षा के लिए समर्पित भारतीय सेना के जवानों को पत्थरों से प्रहार करते हंै। एसा करने वाले को हम देशद्रोही भी नहीं कह सकते हैं। ये भारत के संसाधनों पर पलने वाले भारत का खाकर भारत को गाली देते हैं। इन्हें भी कुत्तों की तरह हेण्डिल किया जाना चाहिए। जब देश ही नहीं रहेगा तो वे विरोध किससे करेंगे ? वे पत्थर किस पर फेंकेगे ?
बादशाह ने उस दार्शनिक के बचन के अर्थ को समझ चुका था। उसे अपने पास बैठने का इशारा किया था। नाव नदी के दूसरे छोर पर लगने वाली थी। सब शान्ति से नाव से उतरने की तैयारी में थे।

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