हम और अहम

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“अहम” किसी भी इंसान के व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा है। कम या ज़्यादा लेकिन अहम हीमोग्लोबिन की तरह सबके खून में मौजूद है। हीमोग्लोबिन रुधिर बनाने में मदद करता है वही अहम अधीर बनाने में सहायक होता है। अगर खून में अहम की मात्रा नगण्य हो जाए तो इंसान स्वयं से सोऽहं की तरफ प्रवृत होने लगता है।

जैसे इंसान स्वस्थ्य होने पर रक्तदान कर सकता है उसी प्रकार “स्वस्थ अहमी इंसान”, ज़रूरत पड़ने पर “अहम रेखा” के नीचे गुज़र बसर करने वाले विनम्र लोगो को अहम-दान भी कर सकता है या “एक्स्ट्रा और अनयूज़्ड” अहम को किराए पर भी चढ़ा सकता है। अहम इंसान को अँधा बना देता है इसलिए अहमी इंसान कभी नेत्रदान नहीं करके पुण्य नहीं कमा सकता है, इसकी पूर्ति वो अपने जीवनकाल में ज़रूरत मंदो को अहम-दान करके कर सकता है।

सामान्यतया इंसान अहम को औकातानुसार ही धारण कर सकता है क्योंकि हैसियत की चद्दर के बाहर गुमान के पैर फ़ैलाने से, बाहर भिनभिनाते हकीकत के डेंगू मच्छर आपके खून में अहम के प्लेटट्स कम कर देते है। सरल इंसान मेहनत की खाता है जबकि घमंडी इंसान मुँह की खाता है।

हम “अहम” के बिना अधूरे है। गुरुर का सुरूर बहुत मुश्किल से उतरता है। हम हिंदुस्तानी, “ज़िंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा” की सनातन परंपरा के वाहक है और इस परंपरा को हमने अनादिकाल से जीवित रखा है जो परंपराओ के प्रति हमारे समर्पण और बिना शोषित हुए उन्हें पोषित करने की कला को दर्शाती है।

बिना अहम के हम सहम जाते है, अहम विहीन जीवन की कल्पना हम सपनो में भी नहीं करते क्योंकि अहम हमारे लिए वो टॉनिक है जो हमें दूसरो से बेहतर होने के वहम में रखता है। अभिमान अपने मान में खुद बढ़ोतरी करता है, मतलब यह स्वसेवा की और प्रेरित करता है। यह एक भारी सदगुण है जो इंसान की परनिर्भरता समाप्त कर उसे स्वालबंन और आत्मनिर्भरता की और अग्रसर करता है। अहम वह पुष्पगुच्छ है जिससे मानव स्व-सत्कार करता है।

अहम या घमंड को भले ही सामाजिक दुर्गुण माना जाता हो लेकिन यह केवल एक मान्यता मात्र है और समाज में ऐसी मान्यताओ का वही महत्व है जो महत्व “जियो सिमकार्ड” का “जुग-जुग जियो” वाले आशीर्वाद में होता है। घमंड को आभूषण की तरह धारण करने वाले नरश्रेष्ठ इस मान्यता को ठीक उसी तरह नज़रअंदाज़ कर देते है जैसे धूम्रपान करने वाले लोग सिगरेट या बीड़ी के पैकेट पर लिखी चेतावनी को नज़रअंदाज़ करते है।

अहम की उत्पत्ति बेहद सरल होती है। पदप्रतिष्ठा और धन-संपदा की उपजाऊ जमींन पर श्रेष्ठता का शुद्र आभास और दूसरो को कमतर आंकने की प्रवृति, अहम की फसल को पनपने के लिए अच्छा खाद और पानी उपलब्ध करवाती है। अहम की उपज कभी सूखे की मार नहीं झेलती है क्योंकि सर्वश्रेष्ठ होने का अभिमान हर मौसम में जम कर बरसता है।

अहम वो सफ़ेद हाथी है जो व्यक्ति की बुद्धि और प्रज्ञा को अपना भोज्य बनाता है। साथ ही अहम व्यक्ति को असहज भी बनाता है क्योंकि सहजता अपने साथ विवेक और सूझबूझ को आमंत्रित करती है जिनके साथ अहम का वहीं संबंध होता है जो संबंध, संबंधी बनने के बाद लड़के और लड़की के माँ-बाप के बीच होता है। घमंड सेहत के लिए हानिकारक होता है लेकिन ये दौर लापरवाही का है क्योंकि इस दौर में ” सेहत के लिए हानिकारक बापू” भी झेल लिए जाते है तो फिर घमंड कौनसे काले धन वाले 15 लाख रूपये माँग रहा है जो उसे कान पकड़कर बाहर निकाला जाए।

अहम के कारण व्यक्ति भले ही निंदनीय हो जाए फिर भी अहम हमेशा उसके लिए पूजनीय होता है। अहम के नशेड़ियों के लिए अहम का तुष्टिकरण ड्रग्स एडिक्ट लोगो के लिए ड्रग्स के डोज़ की तरह अत्यंत आवश्यक होता है। अगर समय पर डोज़ ना मिले तो नशेड़ी ,डोज़ की खोज में कोलंबस और वास्कोडिगामा को भी पीछे छोड़ सकता है। नशे की डोज मिलने पर आने वाली मौज को शब्दों में बयान करना मुश्किल होता है।

अहम की संतुष्टी उस पेपरवेट की तरह होती है जिससे इंसान स्वयं को अपने आपे से बाहर आने से रोकता है क्योंकि अहमतुष्टी के तले आपा दब जाता है और आपा खोने का डर नहीं रहता है।

परमात्मा का वास सभी जगह है, व्यक्ति के मन में भी। लेकिन हम जानते है कि एक म्यान में दो तलवारे नहीं रह सकती है, इसलिए घमंड मन में प्रवेश करते ही मन को फुला देता है जिससे परमात्मा और घमंड दोनों के रहने के लिए पर्याप्त जगह हो सके।

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