देश के सरकारी अस्पताल आज खुद किस कदर बीमार है शायद सरकार को ये बताने की जरूरत नही। आज देश की गरीब जनता के लिये इन अस्पतालो में दवाई और इलाज के नाम पर सिर्फ खाना पूरी कर के डाक्टर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते है। मरीज घंटो तडपने के बाद दम तोड देता है। और सरकारी डाक्टर प्राईवेट नर्सिग होमो में मोटी कमाई में लगे रहते है या फिर अपने अपने घरो में एसी कमरो में पडे रहते है आज देश के अनेको ग्रामीण सरकारी अस्पाल वार्ड बॉय, नर्स, एएनएम, और जूनियर डाक्टरो के भरोसे चल रहे है जिस का सरकार को पता है पर सरकार क्यो खामोश है इस की एक बड़ी ये वजह है कि अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाही बरतने वाले डाक्टरो पर यदि सरकार कोई कार्यवाही करती है तो सारे डाक्टर एकजुट हो जाते है और तुरन्त हड़ताल कर देते है मजबूरन सरकार को अपना कदम वापस लेना पड़ता है। यें ही वजह है कि देश में दिन प्रतिदिन सैकडो ऐसे केस उजागर होते है जिन में डाक्टर पूरी तरह से डाक्टर दोषी होते है पर आप लोगो को ये पढकर ताज्जुब होगा कि इंडियन मेडीकल एसोसिएसन की ओर आज तक देश के किसी भी डाक्टर की डिग्री या उस की स्वास्थ्य सेवाए इन कारणो से समाप्त नही कि गई। ये ही कारण है कि आज देश, प्रदेश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रो का बुरा हाल है दवाए, सर्जन, विशेषज्ञ डाक्टर, बिस्तर पलंग, आपरेशन थिएटर, एक्स-रे मशीने, पैथोलॉजी लैब, एम्बुलेंस, बाल रोग विशेषज्ञ और महिला विशेषज्ञ डाक्टरो की भारी कमी है। वही शहरो के मुकाबले ग्रामीण और कस्बाई सरकारी अस्पतालो में इलाको में तो स्वास्थ्य सेवाए आज न के बराबर है।
पिछले दिनो लंदन के वैज्ञानिको ने ये खुलासा किया था कि अस्पतालो का शोरगुल व देखभाल में लापरवाही मरीजो को बीमारी से उबरने की संभावना को कम कर देती है। जिससे न केवल मरीजो की बीमारी लंबी खिचती है बल्कि अनावष्यक पैसे भी उसे गंवाने पड़ सकते हैं। कभी कभी तो इस कारण मरीजो की जान भी जा सकती है। शोधकर्ताओ के मुताबिक अस्पतालो के साफ सुथरे, शोर शराबे से मुक्त रोजाना अच्छी नींद लेने वाले मरीज बीमारी से उबरने में काफी कम समय लेते है। हम सब जानते है कि आज हमारे देश के सरकारी अस्पतालो का क्या हाल है। सरकारी अस्पतालो में गंदगी के अम्बार गले रहते है। सरकारी अस्पतालो में डाक्टर, नर्स, वार्ड बॉय यूनीफार्म में बहुत कम नजर आते है। देश के कुछ बडे अस्पतालो को छोड दे तो कस्बे अथवा छोटे शहरो में आपरेशन करने वाले उपकरणो को ठीक से धोया और उबाला नही भी नही जाता। सरकार भले ही कितने ही दावे करे पर आज हमारे देश के अस्पतालो का जो हाल है उस से खुदा सब को महफूज रखे। खुदा न करे की कभी किसी अस्पताल में दाखिल होने की नौबत आये। वैसे अगर देखा जाये तो दिल्ली, मुम्बई, लखनऊ जैसे बडे शहरो के सरकारी अस्पतालो में 90 प्रतिशत मरीज गरीब और देश के ग्रामीण इलाको से आये लोग ही होते है। क्यो कि आज देश के छोटे शहरो और कस्बो में दवा और इलाज के नाम पर जो धंधा चल रहा है वो चिकित्सा के नाम पर पूरी तरह से व्यापार हो रहा है। ऐशो आराम की चाहत और पैसे कि चमक ने आज इस पेशे को पूरी तरह से बदल दिया है। आज सरकारी अस्पतालो के डाक्टर मरीजो को कस्टमर समझने लगे है और ऐसे ऐसे हथकंडे अपना रहे कि आज सरकारी अस्पतालो में मरीज इन डाक्टरो के लिये दुध देने वाली गाय बन गये है। आज देश में पैथोलोजीकल लैब और डाइग्नोसिस सैंटर कुकरमुत्तो की तरह खुल रहे है। जिन की दुकानदारो इन डाक्टरो के भरोसे ही चल रही है। जिस की आड़ में खूब कमीशन बाजी हो रही है मरीज के बिना जरूरत मंहगे महंगे टेस्ट कराए जा रहे है लैब सेंटर वाले कमीशन का बोझ मरीज के कंधे पर डालकर मरीज से टेस्ट की आड़ में मोटी रकम वसूलकर डाक्टरो को खुश कर देते है।
ये ही वजह है कि आज बीमारी के नाम से गरीब की रूह कांप जाती है। इस के अलावा आज देश के छोटे बडे तमाम शहरो में आज बडे बडे पूजीपतियो ने चिकित्सा के नाम पर जगह जगह दुकाने खोल ली है जिस कारण आज देश में प्राईवेट अस्पतालो की बाढ सी आई हुई है। इन में अधिकतर अस्पताल फाईव स्टार सुविधाओ से युक्त होने के साथ ही आम आदमी की पहुच से दूर रहते है यदि मजबूरन इन अस्पतालो में किसी गरीब को इलाज करवाना पढ जाये तो उसे एक जान बचाने के लिये अपने परिवार के न जाने कितने लोगो के भविष्यो को बनिये के यहा गिरवी रखना पडता है और कभी कभी इन अस्पतालो में इलाज कराने आये रोगी की मृत्यू होने पर मृत शरीर को छुडाने के लिये उस के परिवार के पास पैसे भी नही होते कि वो अपने मृत रिष्तेदार या संबंधी के शरीर को इन लालची भेड़ियो के चंगुल से कैसे निकाला जाये।
आज देश के सरकारी अस्पतालो की हालत देश के गरीबो की तरह ही दिनो दिन खस्ता और बद से बदतर होती जा रही है। आजादी के बाद चिकित्सा के क्षेत्र में निजी क्षेत्रो का हस्तक्षेप केवल 8 फीसदी था जो आज सरकार की उदासीनता के कारण 80 फीसदी तक हो चुका है। आज देश में जगह जगह मानको की अनदेखी करते हुए मेडीकल शिक्षा, प्रशिक्षण, मेडीकल टेकनीक और दवाओ पर नियंत्रण से लेकर अस्पतालो के निर्माण और चिकित्सा सुविधाओ देने में निजी क्षेत्रो का बोलबाला होने के साथ ही चिकित्सा के क्षेत्र में प्राईवेट अस्पतालो के मालिक भरपूर पैसा कमाने के साथ ही सरकार का मुॅह भी चीढा रहे है। अब से दो तीन दशक पहले तक चिकित्सा को समाज सेवा का पेषा माना जाता था। समाज में डाक्टर की इज्जत होती थी नाम होता था। लोग डाक्टर को भगवान का अवतार मानते थे और डाक्टर भी मरीज और अपने पेषे के लिये पूरी तरह समर्पित और ईमानदार होते थे। सादा जीवन और समाज सेवा की उन की सोच ही ऐसे लोगो की पहचान हुआ करती थी। जब में बहुत छोटा तो नजीबाबाद स्वास्थ्य केंद्र पर ‘‘सिंह’’ साहब नाम के एक डाक्टर साहब बैठते थे। बहुत ही हंस मुख गरीब परवर मरीज को देखकर मुस्कुराकर बात करना उसे दिलासा देना और बढिया दवाईया अस्पाल के स्टोर रूम से निकाल कर देने के साथ ही गरीब लोगो की अपनी जेब के पैसे से भी मदद किया करते थे। लोग उन्हे भगवान का अवतार मानते थे अपनी अपनी आस्था के अनुसार उन्हे दुवाए देते थे सिंह साहब एक दिन में लगभग 400 से 500 सौ मरीज देखते थे।
आज हम लोग आये दिन टीवी और अखबारो में पढते और सुनते है कि फला नर्सिग होम में लोगो ने डाक्टर के साथ मारपीट की, कही से खबर आती है कि डाक्टर या वार्ड बॉय ने आपरेशन थियेटर में मरीज महिला से बलात्कार किया। आखिर क्यो चंद पैसो के लालच में कुछ लालची लोगो ने इस मुक्क्दस पेषे को गंदा कर दिया। आज हमारे देश की सरकार स्वास्थ्य के नाम पर करोड़ो रूपया खर्च कर रही है गरीबो के लिये सस्ती चिकित्सा के नाम पर प्रदेश सरकारो को केंद्र से भर पूर पैसा मिल रहा है देश में नई नई बीमारी के साथ ही बीमार बुजुर्गा की संख्या दिन रात बढ रही है सरकार खुद कह रही है कि सन् 2013 तक देश में बुजुर्गा का सरकारी आंकड़ा 10 करोड़ को पार कर जायेगा पर सरकार क्या इन 10 करोड़ बुजुर्गा को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाए दे पायेगी या यू ही देश में उत्तर प्रदेश की तरह राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) 5000 करोड़ के घोटाला होते रहेगे और देश की गरीब जनता सरकारी अस्पतालो में सस्ती दवाई और सस्ते इलाज को तरस्ती रहेगी और कुछ भ्रष्ट सरकारी डाक्टर, अफसर, राजनेता मजे उड़ाते रहेगे।