अन्ना आंदोलन : श्राद्ध अभी बाकी है मेरे दोस्त!

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जगमोहन फुटेला

देहात की एक पुरानी कहावत है कि किसी से बदला लेना हो तो उस के बेटे को कार ले के दे दो. पहले तो वो घर का काम छोड़ के बाहर डोलता फिरेगा. बची बचाई पूँजी तेल में फूंक देगा. और फिर एक दिन दुनिया को अपनी ड्राइविंग दिखाने के चक्कर में कार कहीं ठोक के खुद दुनिया छोड़ जाएगा. मां बाप को खाट से लगा जाएगा. पार्टी बना लेने का ख़्वाब दे के अकलमंदों ने अन्ना के साथ वही किया है. भ्रष्टाचार मिटाने वाले मसीहा के रूप में उनकी छवि आज गई. राजनीतिक दल के रूप में औकात कल बाहर आ जाएगी. अन्ना आंदोलन की ये परिणति होनी ही थी.

 

मरवा दिया अनाड़ियों ने अन्ना को. अकल के अंधे तो पहले भी थे. अपने कपड़ों से बाहर भी. भीड़ देख के फ़ैल गए. खुद को पगलाने से नहीं रोक नहीं सके. और फिर मंत्री भी आने, समझाने लगे तो समझने लगे कि बस हवा सरक गई सरकार की भी. ऊपर से महान देश का महान मीडिया. उस के पास कुछ था नहीं चलाने को. कहीं से दो मिनट की एक शूट भी मंगाओ, लिखवाओ, कटवाओ, चलाओ तो पांच दस हज़ार लग जाते हैं. इधर फ्री में घंटों का साफ्टवेयर मिल रहा था. बना बनाया. मीडिया अपनी फटी सिलने में लगा था. अन्नाइयों को भ्रम हो गया कि उनका जंतर मंतर तहरीक चौक हो गया है और क्रांति बस हुआ ही चाहती है. केजरीवाल जैसे लोग, जिन्हें अन्यथा कोई हवलदार पुलिस चौकी के सामने खांसने तक न देता, संसद और सांसदों के लिए जो जी में आये बकने लगा. आम लोगों को भी लगा कि ले भई आदमी तो तगड़ा है. ये भरेगा भूसा एमपियों के.

 

और केजरीवाल कंपनी फ़ैल गई. हिसार तक. मुझे बताया भीतर के एक बंदे ने एक पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करने के लिए पचास लाख रूपये दिए इन लोगों को. सूचना गलत हो सकती है लेकिन इस में क्या शक है कि जब किसी के भी कहीं करोड़ों खर्च हो रहे हों .चुनाव में जा के आने, बोलने, करने से हार और जीत हो सकती हो तो कोई बिना सुरक्षा कवच दिए आपको बुलाएगा क्यों और आपको अपनी खाट खड़ी कर के बड़े आराम से निकल भी जाने कैसे देगा कोई? और फिर जब वैसे भी हार ही जाने वाली कांग्रेस हार भी गई तो आपने पूरे देश में ढोल बजा बजा के कहा कि देखो हमने हराया है. अरे भई, तुम ही मारने जियाने वाले खुदा थे उस के कोई महीने भर बाद रतिया क्यों न गए? जहां वही कांग्रेस पिछली बार हारी हुई सीट भी एक बहुत बड़े अंतर से जीती. आपका आंदोलन चल रहे होने के बीच.

 

जैसे हिसार में कहा लोगों ने ऐसे ही यूपी में आप की छवि ये थी कि मायावती से पैसे लिए आपने. वरना उन के तो अनुयाई कहाँ सुनते हैं किसी की. आने ही नहीं देते आप को और आ गए थे तो लौटने नहीं देते. वे हार गईं. आप को आंदोलन के लिए ‘ऊर्जा’ कहाँ से मिलती रही आप जानें. लेकिन सदबुद्धि कहीं से नहीं मिली. मुंबई में अनशन किया आपने. औकात बाहर आ गई. और फिर अब दिल्ली आये तो वहां भी. इस बार तो तय कर लिया था कांग्रेस ने कि मरने पे उतारू हो तो मर ही जाने देना है केजरीवाल को. मिलने तो क्या ही आना था किसी ने एक अपील तक नहीं हुई. भीड़ नहीं आई तो मीडिया को लगे गरियाने, धकियाने आप. और फिर अपना तुरुप भी नंगा कर दिया आपने. अन्ना को भी बिठा दिया अनशन पे. जैसे उन के आ जाने से सरकार बौखला उठेगी. हुआ क्या? न सरकार डरी, न भीड़ ही घर, दफ्तर, अस्पताल छोड़ के पिल पड़ी आपके आंदोलन में. सच तो ये है कि अपना इक्का चलने के बाद भी आप अनशन तोड़ लेने का बहाना खोज रहे थे. उस के लिए इस बार श्री श्री भी नहीं आए. राखी के दिन कोई राखी सावंत तक नहीं आई. अपना अनशन खुद ही तोड़ लेने का फैसला करना पड़ा आप को. बहाना बनाया इक्कीस लोगों की उस चिट्ठी को जिस में आपको पार्टी बनाने की कोई सलाह या उस में शामिल होने की कोई इच्छा नहीं लिखी गई.

 

समाजवादी नेता प्रो.मोहन सिंह को सुन रहा था मैं. बता रहे थे कि कैसे जय गुरुदेव को भी भीड़ देख कर भ्रम हो गया था कि देश उन के साथ है. उन ने पार्टी बनाई. चुनाव लड़ा. एक भी उम्मीदवार की ज़मानत तक नहीं बची कहीं भी पूरे देश में. मुझे पूरा यकीन है कि उन की तो सिर्फ ज़मानत तक नहीं बची थी. आपकी शायद अस्मत तक न बच पाए. पालिटिकल पार्टी बना और चला पाना आसान नहीं होता. और अगर आपको लगता है कि पैसों की कमी नहीं रहेगी तो कमी तो कभी उन अंबानियों, बिरलाओं और ताताओं को भी नहीं रही जिनके हर दिन हज़ार लफड़े होते हैं सरकारों से मगर फिर भी अपनी पार्टी के बारे में उन्होंने कभी सोचा तक नहीं. रही सोच और विचारधारा की बात तो बात तो आप फिर ग़लतफ़हमी में हो. दुनिया में साम्यवाद से बड़ी विचारधारा आज भी कोई नहीं है मगर इस के बावजूद रूस बिखर गया है, बंगाल में कामरेड आज कंगाल हैं और बाकी देश के कम्युनिस्टों को कभी पूँजीवाद के सब से बड़े हिमायती प्रणब मुखर्जी को वोट देना पड़ता है.

 

ये तो पढ़ा था कि लोकतंत्र मूर्खों का, मूर्खों के लिए भीड़ तंत्र है. मगर ये नहीं देखा था कि भीड़ देख के सयाने समझदार भी बेवकूफ बन जायेंगे. क्या समझ के चल रहे थे आप कि आपकी भीड़ में जो बस कंडक्टर आए वो सारे सारी सवारियां टिकटें काट कर चढ़ा रहे थे बसों में? या बाबू आ रहे थे बाकायदा छुट्टी ले और अपना सारा काम निबटा के? दुकानदार सारा सामान सिक्केबंद ही बेच रहे हैं और क्लर्क ऐसा कोई नहीं जिस ने कभी रिश्वत ली हो? क्या लगता है कि सब जीने मरने को तैयार हो के आए थे सब सोच समझ और ज़रूरी हो तो अपने माँ बाप को भी छोड़ देने की प्रतिबद्धता के साथ और उन में महज़ तमाशबीन कोई नहीं थे? …क्या आपको पता है कि सांसदों को खुलेआम गरियाने के बाद न सिर्फ शरद यादव और उन के साथ भाजपा समेत बाकी दलों से जुड़े छोटे बड़े लोग भी आपसे कन्नी काटने लगे थे. अब की दिख ही रहा था जंतर मंतर पे.

 

पालिटिकल पार्टी बनाने का फैसला भी आपका सोचा समझा कम, फ्रस्ट्रेशन की उपज ज्यादा है. सरकार सुने न, अरविन्द केजरीवाल मरे न तो और आप कर भी क्या सकते थे? दो ही विकल्प थे. या तो चुपचाप दुकान समेटें और घर चले जाएँ. कभी फिर वापिस न आने के लिए. या फिर कुछ ऐसा करें कि घाटे में चले बेशक मगर दुकान कुछ दिन और चले. आपने दूसरा विकल्प चुना और बहुत खतरनाक है. इस का सब से बड़ा खतरा तो यही है कि इस ने आपकी अब तक की सारी मेहनत और जैसी भी बनी उस छवि को पहले ही पल मिटा दिया है. आप की पहचान अब इस देश में उस संत की तरह है जिस का कोई धर्म नहीं है. उस नेता की तरह है जिस का कोई दल नहीं है और उस आदमी की तरह जिस का कोई स्टैंड नहीं है. टीम भी जिस के पास ऐसी है कि जो दूसरों का कम मगर अपना नुक्सान ज्यादा करती है.

 

अभी तक आप की टीम का बनाया जन लोकपाल बिल समझ में नहीं आया किसी की. अब उसे चुनाव में जा सकने लायक पूरे का पूरा एजेंडा तैयार करना है. आर्थिक, राजनीतिक, विदेशी नीति बनानी और बतानी है. संगठन तैयार करना है अपनी सियासी सोच से सहमत लोगों का. वो सोच क्या, किन के लिए होगी ये भी समस्या है. इस देश में राईट है, सेंटर है और जैसा भी है लेफ्ट भी है. बंगालियों के कामरेड, मुसलमानों के सिर्फ समाजवादी और सिखों के सिर्फ अकाली हो सकने का मिथक भी टूट चूका है. जाट एक साथ एक ही समय पर हरियाणा में किसी एक तो साथ लगे यूपी और राजस्थान में दो अलग पार्टियों के साथ होते हैं. तो आपका पालिटिकल प्रबंधन कौन सी नई अवधारणा ले के आने वाला है, अन्ना?

 

मुझे याद है जब भीड़ देख के ग़लतफ़हमी पल जाने की बात मैंने लिखी थी तो लोगों ने मुझे गालियाँ दीं थीं. अब समय आ गया है कि वो लोग आप को देंगे और आप अपने साथियों को. वीडियो फुटेज मिल जायेगी. अब आप अपनी पार्टी की तरफ से भीड़ जुटा के देखना कितने लोग आते हैं. कार्यकर्ता छोड़ो, कहीं से किसी भी टिकट ले के नेता हो सकने वाले लोग भी नहीं मिलने वाले हैं आप को. आप के साथ जिस आंदोलन के लिए मरने मारने तक पे उतारू हो गए थे लोग वो भी अब अपने आप को आप का साथी बता कर जैसी भी है उस व्यवस्था के दुश्मन नहीं दिखना चाहेंगे. आप की पार्टी की फ़्रैन्चाइज़ी भी कोई न लेगा स्टेटों में.

 

पंजाबी में एक कहावत है कि पीट देने से पीट देने का डर दिखाते रहना ज्यादा अच्छा होता है. जैसे, बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो राख की. बहुत बेहतर होता कि आप पहली बार ही अनशन पे बैठे न होते. बैठ ही गए थे तो जो लेना था ले के ही उठाना था. बीच में किसी को भी कहीं भी किसी भी चुनाव शुनाव में जा के कोई धंधा या उपकार करने की इजाज़त नहीं देनी थी. न किसी को संसद जैसी संस्थाओं को गरियाने की छूट. और अब जब नहीं हो पाया था कुछ तो ह़ार ही मान लेते अपनी. लोग सर आखों पे बिठा लेते आपको. पालिटिकल पार्टी बनाने की बात कतई नहीं कहनी थी. आप को पता नहीं है अन्ना जी कि आपने कितना बड़ा नुक्सान कर दिया है इस देश का. दुःख इस बात का है अन्ना, कि अब आप को भूल जाने तक इस देश में अब कोई किसी को अन्ना नहीं मान पाएगा !

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  1. लेखक ने इतना तो सही कहा है कि श्राध अभि बाकी है, पर किसका ? अन्ना को मिले ९६% जन समर्थन ने भ्रस्त नेताओ और उनके हाथ बिके मीडिया की नीन्द हराम कर दी है , सोनिया सरकार की कब्र खोद दी है, श्राध अभी बाकी है. इसके इलावा लेकक महोदय ने जो कहा व सब पुर्वाग्रह है, चापलुसी है.

  2. अब तो बस करिए सिंह साहब, अब तो अन्ना ने भी मान लिया कि गलतियां हुईं. उन ने खुद आंदोलन समाप्त कर दिया और समिति भी भंग कर दी. राम अयोध्या लौट गए हैं और आप हैं कि अभी भी पूंछ को आग लगाए फिरते हैं. कहा क्या है लोगों ने अन्ना के असम्मान में या कौन है भ्रष्टाचार के हक़ में या उन के आंदोलन के खिलाफ? क्यों नाहक अप सब को नाली का कीड़ा बताये जा रहे हैं? अपनी उम्र का ही कुछ ख्याल कीजिए. किसी और की भी आलोचना सहन नहीं होती तो पढ़ना बंद कीजिए और वो नहीं तो लिखना. ..क्या आपको अभी भी नहीं लगता कि आंदोलन अपनी मौत खुद मरा है. कुछ तो कमियाँ रही होंगी. और अगर आप सोचते हैं कि वो सिर्फ मेरे या सुतार जी जैसे समालोचकों की वजह से मरा है तो फिर डरिये हम से कि हम अन्ना आन्दोलन से बड़े हैं, सही भी.

    • आज पता नहीं कैसे आपकी इस टिप्पणी पर नजर पड़ गयी.अन्ना से गलतियाँ अवश्य हुई.उन्होंने समझा था कि वे अनशन द्वारा इन नीच ,हत्यारों और बलात्कारियों के सुप्त अंतरात्मा को जगाने में समर्थ हो जायेंगे,पर वैसा नहीं हुआ.उन्हें यह समझने में थोड़ी देर लगी कि जिन लोगों के विरुद्ध उन्होंने महाराष्ट्र में अनशन किया था और सफलता पायी थी,उनसे ये सब ज्यादा पहुंचे हुए हैं.इनके सामने उनकी कोई गिनती नहीं थी. वहां शायद आत्मा सोई हुई थी यहाँ तो आत्मा नाम की कोई चीज हो तो वह मर चुकी है.फुटेला जी आन्दोलन समाप्त नहीं हुआ है ऐसे आन्दोलन तब तक नहीं समाप्त हो सकते ,,जब तक सड़ांध और दुर्गन्ध समाप्त न हो जाये या जब तक सभी सड़ांध का लुफ्त न उठाने लगे.मैं नहीं समझता कि आज इन दोंनो स्थितियों में से कोई भी संभव है.अतः यह आन्दोलन किसी न किसी विकल्प की तलाश में अवश्य रहेगा.रह गयी बात नाली के कीड़े की,तो पहले मेरे उदगार कविता के रूप में फूटे थे,क्योंकि तब तक कहीं न कहीं कुछ ज्यादा उम्मीद थी.पिछले वर्ष उसी शीर्षक से लिखा गया लेख कुछ ज्यादा ही बेचैनी प्रकट करता है.यह आग तो उस समय से लगी हुई है,जब मैं कुछ समझने योग्य हुआ था,पर आज इस उम्र में भी वह आग बुझी नहीं है,क्योंकि यह तार्किक मष्तिषक अभी भी अपने तर्क द्वारा उस आग को प्रज्ज्वलित करता रहता है.आप जैसे लोगों को शायद ज्यादा प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं है,क्योंकि अगर अहिंसा द्वारा समाधान नहीं निकला तो यह चिंगारी हिंसक भी हो सकती है. सच पूछिये तो हिंसक आन्दोलन अभी भी चल रहा है,पर वे दिग्भ्रमित हैं.अगर सचमुच वे लोग भ्रष्टाचारियों को अपना निशाना बनाना आरम्भ कर दें तो उनको आम जनता का सम्मान भी मिलेगा और भ्रष्टाचारियों के भी इने गिने दिन रह जायेंगे.

  3. लेख और बहुत सारी टिप्पणियां स्तरहीन और पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं
    कुछ ल्गोने सही मुद्दे भी उठाये हैं
    वैसे अन्ना का आन्दोलन एकांगी है जिससे राजनीतिक दल चल नहीं सकता
    राजनीतिक दलों के लिए जन लोकपाल या कालाधन एक विषय मात्र है जिसे आन्दोलनों से महत्वपूर्ण बनाया जा सकता है विविध दलों के बीच में
    मन लीजिये की मैं भी केजरीवाल की तरह अपनी विधा में तेज छात्र रहा और कीसी भी देश में जाने के बजाय अपने लोगों की सेवा में रहा हूँ और इमानदार भी हूँ यदि मेरे अन्य कार्य ( मिथिला प्रान्त के गठन ) को वे या कोई रास्ट्रीय दल जोड़ लेते हैं तो मैं भी अपने डेढ़ लाख की सरकारी नौकरी छोड़ उस दल में लग सकता हूँ बशर्ते वह दल रास्ट्रीय विचारधारा रखता हो -हिंसा पर विश्वास नहीं रखता हो
    लोग एक मुद्दे पर वोट नहीं देते और कोई दल चल नहीं सकता
    अन्ना आन्दोलन में कुछ लोग संघ वा रामदेव के विरोधी रहे जो उचित नहीं है- राजनीती किसी को अलग कर नहीं चल सकती और इसमें वे विफल हो चले हैं यस्द्यापी यह एक दुखदायी समाचार है
    एक नेता के कर्श्मे से देश में चुनाव नहीं जीता जा सकता -इंदिरा, वाजपेयी भी अपने दल को नहीं जीता सके जता पार्टी की जीत का कारण अकेले जयप्रकाश नहीं थे -कभी जयप्रकाश की सोसलित पार्टी भी हरी थी
    अन्ना का राजनीतिक दल बनाना बुरा नहीं है पर इसके लए उन्हें विविध आयामों पर विचार करनी चाहिए
    देश में अच्छे राजनीतिक दलों की आवश्यकता है वर्तमान में बीजेपी समेत किओ दल आंकषाओं के अनुरूप नहीं है – जद(U ) में भी कैश , क्रिमिनल ,कास्ट पर टिकट बंटे थे – पर इस उम्र में आना एक वृहत रहनीतिक दल चलाने लायक नहीं हैं
    मैं उनका सामान करता हूँ वैसे मैं भी यह नहीं मानता की एक बिल से सब ठीक हो जाएगा या उसमे ही सभी कर्मचारियों को रख दिया जाय
    फिर भी जिन लोगों ने उनका साथ दिया वे धन्यवाद् के पात्र हिन्- झारखण्ड में मैंने सघ के स्वयंसेवकों को धबाद रांची में काफी सक्रीय देखा था जिनकी उपेक्षा नहीं होनी थी (वैसे मैं २००२ से संघ से अलग सा हूँ )
    अन्ना के आन्दोलन से देश में एक नया विश्वास जरूर जगा था जिसकी रक्षा आवश्यक है और उनकी अनावश्यक आलोचना यदि संघ के किसी स्वयमसेवक द्वारा की जाती है तो यह असान्घिक है – वामपंथियों को तो उनसे कोई लेना देना है ही nhaee

  4. लेख में बहुत सारी बातें लिखी गयी हैं, जिन पर यहाँ “चर्चा” के बजाय “बहस” हो रही है, जिसका कुछ तो परिणाम निकलना चाहिए!

    मैं इस बहस से अपने आपको तब तक पूरी तरह से दूर ही रखना चाहूँगा, जब तक की प्रस्तावित अन्ना टीम पार्टी की राजनेतिक विचारधारा का पिटारा जनता के सामने औपचारिक रूप से खुल नहीं जाता है!

    क्योंकि देश की सम्पूर्ण व्यवस्था को बदलना है तो हर एक मुद्दे पर पार्टी को अपना रुख तो साफ करना ही होगा!

    हो सकता है की कल को हम खुद ही प्रस्तावित पार्टी के साथ हों या विरोध में हों? अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, लेकिन ये सच है की ये निर्णय दूरगामी प्रभाव छोड़ने वाला है, बेशक निर्णय देश के हित में हों या खिलाफ!

    फ़िलहाल तो लोगों को देश में व्याप्त “मनमानी और भ्रष्ट कुव्यवस्था” से मुक्ति की उम्मीद टूटती नज़र आ रही है! इसलिए पार्टी का घोषणा पत्र सामने आने तक लेखक के लेख की निम्न पंक्ति को मेरा समर्थन है :-

    “आप को पता नहीं है अन्ना जी कि आपने कितना बड़ा नुक्सान कर दिया है इस देश का. दुःख इस बात का है अन्ना, कि अब आप को भूल जाने तक इस देश में अब कोई किसी को अन्ना नहीं मान पाएगा!”

    • सबेरे मैं जब टाईम्स आफ इंडिया पढ़ रहा था तब एक शीर्षक ने मेरा ध्यान खींचा. Team Anna and need for strategic clarity.वहां जो टिप्पणी की थी ,वह इस तरह है.
      Let us come straight to the point. Now once Team Anna has made announcement for entering in politics, there is no going back. There is only one path open to them. They have to live or die with that. Other path is of course there, but will disastrous not only for them but all future moral based agitation. That path is to leave public life and be happy with private life.
      Since now they have come so far they should not be quitters. So let us analyze their prospect in election .1977 and its aftermath is well documented. They can take lessons from that greed, which became the cause of catastrophe .Even after failure of that experiment V.P.Singh,a powerful cabinet minister in Rajiv’s government turned the table on him just after nine years in 1989.This group has many advantages over previous two changes. Anna is more charismatic than JP and VP combined. There is no leader of status on Indian Horizon. Modi has his own area of influence, but I am not sure of him being projected as PM candidate from his party. Any other leader who can challenge them is Nitish. Kumar .Suppose he along with his followers in JDU joins the party, as late Jagjivan Ram did in 1977.This yet to be announced party has many other advantages too. It has got its readymade manifesto, in the form of book SWARAJ by Kejriwal..
      If they adopt following catchy slogans along with travel by Anna Hazare all over India, it will be hard to defeat them in election in 2014. Of course they should be very careful in selecting candidates.
      1.Passing of Jan Lokpal bill and eradication of corruption.
      2. Affordable and uninterrupted power to every house and to every industry (big, medium and small) of India. Also irrigation to every field.
      3. Work to everybody and bread to each stomach. (Har Haath ko kam aur Har pet ko Roti)
      मेरे विचार से शायद इससे आपकी कुछ शंकाओं का समाधान हो सके.

  5. मेरे फेशबुक मित्रों के अनुग्रह से यह लेख फेशबुक पर पहले आया था.मैंने वहां ,जो टिप्पणी की थी,उसे यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ,
    “पहले तो इस विचार पूर्ण(?) लेख को आद्योपांत पढने का प्रयत्न किया ,पर इस बकवास को पढने में धैर्य जबाब दे गया.आपलोग पहले आन्दोलन की खिल्ली उड़ाते थे.न जाने आप जैसे एलोगों को भ्रष्टाचार से इतना प्यार क्यों है?क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि आपलोग भ्रष्टाचार के बल बूते पर पनप रहे हैं. आप तो प्रवक्ता पर भी दिख जाते हैं.वहाँ मेरा बहु चर्चित लेख है,नाली के कीड़े,जो मैंने मई २०११ में लिखा था.वह बहुतों को आईना दिखाने वाला लेखहै.
    .अरविन्द केजरीवाल आई.आई.टी का स्नातक है,जहाँ के ८०% लोग अमेरिका का रूख करते हैं.बचे हुए मेसे कुछ लोग केन्द्रीय विभागों में भी आ जाते हैं.अरविन्द केजरीवाल जहाँ था ,वह करोडो का वारा न्यारा कर सकता था.आपलोगों को यह तो समझ में आ नहीं सकता कि उस नौकरी से त्याग पत्र उसने क्यों दिया?अब आप जैसे लोग उस पर लाखों रूपये लेकर किसी का सपोर्ट करने का लांछन लगा रहे हैं.आखिर आप जैसे लोग क्या कभी नहीं सुधरेंगे.? आप जैसे लोगों को अन्ना और उनके टीम द्वारा राजनितिक दल बनाने की घोषणा पर भी एतराज है,जबकि अभी कुछ दिनों पहले तक कांग्रेसी चुनौती दे रहे थे कि चुनाव लड़कर संसद में क्यों नहीं आ जाते.”

  6. मुझे लगता है की आपका किसी को भी ‘अन्ना अंध भक्तों’ जैसे कहना उचित नहीं है
    आपके तर्क सही हो सकते हैं पर यह यद् रखें की थोड़े समय के लिए ही न सही जनता उनके साथ थी और जिस मुद्दे पर थी उसे ऐसे किसी प्रश्न में उलझाने से कुछ होगा नहीं
    माँ भारती के चित्र को उतरना गलत था वैसे उनका चित्रीकरण भी बहस का मुद्दा हो सकता है

    2- राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ अपमानित बही किया जाना था न ही बुखारी की आबभ गत ?

    3-बाबा रामदेव का अपमान अन्ना हजारे ने नहीं किया उन्हें गला मिलते देखा

    4- पहले अग्निवेश को बहार का रास्ता दिखा दिया वह ठीक ही .
    5- अन्ना गैंग जैसी बात उचित नहीं है उनके साथ कोई भी हो पर याद रखें की बहुत सारी जनता को उनके मुद्दे पसंद थे

    6- आपने जिन दर्जनों नाम गिनाये हैं उनसे भी जनता का महत्व कम नहे एहो जाता है

    7- एनजीओ जनलोकपाल के दायरे में आने चाहिए
    8-अरे भाई सोनिया का राज है तो किसे लिखें ?

    9- अन्ना जैसे लोंगों को कोई बुलावे जाना चाहिए

    10- शांति भूषण जप के समयमे भी आगे थें
    मुखे दुःख है की जनता की इच्छाओं को कौन पूरा करेगा?

  7. वाह बड़ी धारदार टिप्पड़ियां आईं हैं. मुबारक हो सबको.

  8. पिछले वर्ष फरवरी में बाबा रामदेव ने काले धन के विरुद्ध रामलीला मैदान में पहली बड़ी रेली की थी जिसमे तमाम बड़े नेता शामिल हुए थे.उस रेली में बहुत से ऐसे रहस्योद्घाटन हुए थे जिससे दिल्ली का राजनीतिक तापमान चढ़ गया. तुरंत मिडिया को साधने के उपक्रम शुरू हो गए. और फरवरी के अंत में हरयाणा के झझ्झर में होने वाली रामदेव जी की रेली के बारे में तमाम मिडिया ने चुप्पी साध ली यहाँ तक की बाबा के अपने चेनल आस्था को भी धमकी देदी गयी की उसे केवल धार्मिक प्रसारण की अनुमति दी गयी है और यदि रेली को सीधे प्रसारित किया गया तो उस पर पाबन्दी लगा दी जाएगी. इमरजेंसी दोबारा दस्तक दे रही थी.उस समय तक अन्नाजी और उनकी टीम का कहीं अता पता नहीं था. अप्रेल आते आते अन्नाजी और उनकी टीम मैदान में आ गयी और घमंड के मारे किसी को पास नहीं आने दिया गया. यहाँ तक की बाबा रामदेव जी और आर एस एस के प्रतिनिधियों तक को बेइज्जत करा गया. फिर भी बाबा रामदेव और संघ के लोगों ने अन्नाजी को पूरा समर्थन और सम्मान दिया. मंच से भारत माता के चित्र हटाये गए. ‘भारत माता की जय’ के नारों का विरोध किया गया. बुखारी जैसे फिरकापरस्त, मौकापरस्त लोगों के तलुवे कहते गए. सभी राजनीतिक दलों को बुरा भला कहा गया. अपने गुनाहों को छुपाया गया. लेकिन जब मुम्बई में साड़ी हेंकड़ी धरी रह गयी और आन्दोलन की टाँय टाँय फीस हो गयी तो मजबूरन उन्ही बाबा रामदेव के दरवाजे पर जाकर समर्थन मांगना पड़ा. अभी भी अन्नाजी को घेरे हुए कोकस को रामदेव जी फूटी आँखों नहीं सुहाते हैं. मई दावे से कहता हूँ की जन लोकपाल बिल बन भी जाये तो भी देश की वर्तमान व्यवस्था और अवस्था में कोई अंतर नहीं पड़ने वाला है. क्योंकि ये वास्तविक मुद्दे से भटकाने वाला रास्ता है.जबकि सुब्रमण्यम स्वामीजी ने ये सिद्ध कर दिया है की यदि सही नीयत से सही समझदारी से काम किया जाये ओ वर्तमान कानूनों से ही, जनलोकपाल के बिना भी, भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों को जेल भेजा जा सकता है. २-जी मामले में ऐ राजा, सिद्धार्थ बेहुरा और दर्जनों बड़े बड़े लोगों को महीनों तक जेल में रखना क्या कोई मजाक था. अन्नाजी की टीम में एक से बढ़कर एक ‘काबिल’ लोग हैं.कडियल माने जाने वाले पुलिस के पूर्व अधिकारी हैं, प्रतिष्ठित वकील हैं, लेकिन सब मिलकर भी किसी एक भ्रष्टाचारी को भी उस तरह से जेल नहीं भेज पाए जिस तरह से बिना जनलोकपाल कानून के सुब्रमण्यम स्वामीजी ने उन्हें भेजा. यहाँ तक की सी बी आई के वर्तमान स्वरुप में बदलाव के बिना भी सी बी आई पर सर्कार का दबाव नहीं बनने दिया और से बी आई को सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में जांच करनी पड़ी. क्यों अन्नाजी की टीम के सारे ‘काबिल’ पुलिस, आयकर, कानून के ज्ञाता किसी को अन्दर नही करा पाए? क्योंकि वो ऐसा चाहते ही नहीं थे. केवल अपना दबाव का तंत्र बनाना ही उनका उद्देश्य था. स्तर के दशक में जे पी ने भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध नवनिर्माण, सम्पूर्ण क्रांति के आन्दोलन छेड़े थे लकिन उन्होंने किसी संगठन या दल को तिरस्कृत नहीं किया और संघर्ष में साथ देने के लिए आर एस एस और भारतीय जनसंघ का भी साथ लिया. यहाँ तक की मार्च १९७५ में दिल्ली में भारतीय जनसंघ के अधिवेशन में विशेष आमंत्रित के रूप में जाकर उन्हें संबोधित भी किया और अपने पूरे जीवन के वैचारिक पूर्वाग्रहों को भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष में आड़े नहीं आने दिया. सत्ता तो परिवर्तित कर दी अगर कुछ वर्ष और जीवन मिलता तो शायद व्यवस्था परिवर्तन भी कर पाते. लेकिन ये टीम अन्ना तो शुरू में ही पथच्युत होकर धराशायी हो गयी है. फिर भी राजनीतिक दल के रूप में वो देश की सेवा कर पायें उसके लिए हमारी शुभकामना.

  9. FUTELA JI AAP CONGRESS KE AGENT KA KAAM BAKHOOBI ANJAAM DE RAHE HAIN. LEKIN CHINTA MT KRO ANNA SIYASAT ME KAMYAB HO YA NA HO CONGRESS KO USKE AHANKAAR AUR BHRASHTACHAAR KA SABQ ZROOR SIKHA KR DM LENGE.

  10. शानदार आकलन, बधाई…. अन्ना को कुए के मेंढक वाला मेनिया हो गया था. वे राजनीति का ककहरा भी नहीं जानते .सामान्य ज्ञान इतना कमजोर की ‘कमागातामारू’ शब्द का अर्थ तो दूर की बात इसका उच्चारण भी ठीक से नहीं कर सकते.देश में विना रिश्वत के काम नहीं होता यह सही है किन्तु ये समस्या इतनी विकराल है की लाखों लोकपाल भी इसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते .इसे ख़त्म करना है तो वाही करना होगा जो चीन ने ५० वर्षों में क्या है.

    • भाई तिवारीजी, चीन ने पिछले पचास क्या तरेसठ वर्षों में जो कुछ किया उसको यदि देखा जाए तो पहले तीस वर्ष तो सांस्कृतिक क्रांति हुई. हाँ इतना अवश्य हुआ की १९६४ में छें ने अपना परमाणु बम बनाकर दुनिया में अपने अलग पहचान बनायीं औत अगले दो तीन वर्षों के अन्दर वो सोवियत संघ के पिछलग्गू के तमगे से मुक्त हो गए और स्वतंत्र चीनी राष्ट्रवाद ने अपना असर दीखाना शुरू कर दिया. सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में पोस्ट माओ युग में वास्तविक परिवर्तन देंग जियाओ पिंग के समय आया जब उन्होंने अर्थ तंत्र को पूंजीवाद और बाजारवाद के साथ जोड़ना शुरू किया. और उसके लिए तमाम कम्युनिस्ट विचारों को एक तरफ रखकर चीन की आर्तिक तरक्की की रफ़्तार कैसे बढे और वो दुनिया के देशों में अपने कद के अनुरूप अपना अर्थतंत्र खड़ा कर सके इस विषय पर सभी से विचार लिए. सोनी कारपोरेशन के सह-संस्थापक अकियो मोरिता ने अपने आत्म कथा “मेड इन जापान” में इसका उल्लेख किया है. सोवियत संघ भी जो कुछ तरक्की कर पाया वह रूसी राष्ट्रवाद के कारन ही हो सकी थी. दुसरे विश्व युद्ध में जब हिटलर की फौजें सोवियत संघ में घुस गयीं तो रूसी सेना ने और समाज ने जिस प्रकार उसका मुकाबला किया उसका उल्लेख हेराल्ड ट्रिब्यून के विशेष संवाददाता मोरिस हिन्दस ने अपनी पुस्तक ” मदर रशिया” में विस्तार से किया है की वहां पर कम्युनिस्म के सिद्धांत नहीं बल्कि कम्युनिस्ट शाशन से पूर्व के रूसी राष्ट्रवाद के प्रेरणा प्रतीकों जैसे पिटर द ग्रेट ने लोगों को प्रेरित किया और वो हिटलर फौजों को परस्त कर सके. दुर्भाग्य से भारत के वामपंथी आज तक इस सच्चाई को समझ नहीं पाए और भारत में जब कभी राष्ट्रवादी स्वर उभरते हैं तो उनकी आलोचना और विरोध शुरू हो जाता है. एक गीत सुना था “राष्ट्रभक्ति ले ह्रदय में हो खड़ा यदि देश सारा, संकटों पर मात कर यह राष्ट्र विजयी हो हमारा.”विषयांतर हो गया है. बहरहाल चीन भी भ्रष्टाचार की बीमारी से जूझ रहा है. और आये दिन भ्रष्टाचार के आरोपों में पार्टी के वरिष्ट अधिकारीयों को सज़ा दिए जाने के समाचार अख़बारों में छापते रहते हैं. हाँ मैं तिवारीजी के इस कथन से सहमत हूँ की केवल एक लोकपाल या जनलोकपाल से इस देश का भला नहीं होगा. भला तो तभी होगा जब सारे देश का नेतिक स्टार ऊपर उठेगा. लेकिन जैसा की डॉ. कारन सिंघजी ने भी एक बार कहा था की इस सेकुलर एजुकेशन ने नेतिक शिक्षा को भी समाप्त कर दिया है. कानून का बेहतर इस्तेमाल और नेतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का सशक्त आन्दोलन ही स्थिति को स्थायी रूप से बदल पायेगा. अन्नाजी अपना ध्यान नेतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए भी लगायें तो शायद कुछ अंतर दिखाई पड़ना शुरू होगा.

    • तिवारी जी, मैं नहीं समझता कि इतनी टिप्पणियों के बाद भी आपको अलग से कुछ कहने की आवश्यकता पड़ेगी. ऐसे भी मैं समझने में असमर्थ हूँ कि जो आरम्भ से ही इस आन्दोलन के विरोध में खड़े थे,उनको टीम अन्ना के राजनीति में आने से क्यों बेचैनी हो रही है?

  11. बेशक लेखक वरिष्ट पत्रकार हैं ,अक्सर मेने इनको पढ़ा है,पर कुछ मसलों पर अपने पूर्वाग्रहों से ग्रस्त रहतें हैं, दल विशेष से प्रभावित रहने की मानसिकता छह कर भी छिपा नहीं पाते,कोई इलाज भी नहीं,कुछ अतिवादिता से सोचना और उसे गंभीर चिंतन क्र रूप में प्रस्तुत करना इनका अपना हक़ है .

    • परिवर्तन कोई एक दो दिन में नहीं होता बीस तीस साल भी लग सकता हा अन्ना व केजरीवाल ने एक अच्छी सुरुवात की जगमोहन फुटला का लेख पद कर वो अन्ना से काफी डरे हुआ लगा जगमोहन फुटला जी का लेख बहुत ही निमं स्तर का लगा

  12. आन्दोलन के साथ ही साथ अन्ना की भी मटिया पलीद हो गई. एक बहुत अच्छे शख्स का बहुत बुरा अंत. रही सही कसर चुनाव पूरी कर देगा. बाबा के सिर्फ जान बचाने वाले कदम ने उनकी साख को मिटटी में मिला दिया था. पिछले साल अच्छे भले चलते आन्दोलन को वापिस लेने के फैसले के वक्त ही मैं समझ गया था की अब आन्दोलन गया काम से. क्योंकि अब गाँधी का जमाना गया जो चलते आन्दोलन को वापिस ले के फिर से नया आन्दोलन खड़ा कर देते थे. अब न वो समय है न ही वो लोग. फिर भी अच्छे भविष्य के लिए शुभकामनाएं.

  13. सिर्फ 10 सवाल का जबाब दे दो अगर तुम सब अन्ना अंध भक्तों में से कोई वो भ जबाब दे दे तर्कों के साथ …

    1 – अन्ना के आन्दोलन से माँ भारती के चित्र को क्यों उतारा गया |

    2- अन्ना के आन्दोलन में भारत माता के लिए दिन रात एक करने वाले राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ को बार बार अपमानित किया गया जबकि बुखारी जो खुद को आई एस आई का एजेंट बताता है और वन्दे मातरम् भारत माता की जय को इस्लाम के खिलाफ बता कर फतवा जारी करता है उस बुखारी के तलुए क्यों चाटे गए ?

    3-बाबा रामदेव का अपमान स्वयं अन्ना हजारे ने क्यों किया और कई बार किया , क्या देश भक्त ऐसे ही होते है ,, यही काम अन्ना के साथ मैंने किया तो आप सब निंदा कर रहे हो ,, ये अच्छा है मैं करू तो ….. कोई बात नहीं मैं नहीं रुकुंगा ,, और बाबा भी अन्ना की असलियत समझ चुके है लेकिन बाबा संत है और संत सहज होता है मैं संत नहीं हूँ बाबा का अपमान नहीं भूल सकता ||

    4- पहले अग्निवेश ने भगवान् शिव का अपमान किया फिर कुमार विश्वाश ने बाबा रामदेव जी और ब्रह्मा विष्णु महेश का उपहास उड़ाया फिर भी वो टीम में बने रहे मगर जब अन्ना के खिलाफ अग्निवेश गया तो उसको निकाल दिया गया , क्या अन्ना भगवान् शिव से बड़ा है ? जो अन्ना गैंग को करोडो हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करने वाले अग्निवेश से आपत्ति नहीं हुयी लेकिन अन्ना के खिलाफ जाते ही बाहर का रास्ता दिखा दिया ? कुमार विश्वाश बाबा और त्रिदेव का अपमान करके आज भी बना हुआ है यानी अन्ना ही धर्म और देश से बड़ा है अन्ना अंध भक्तों के लिए ?

    5- अन्ना गैंग में शामिल संदीप पांडे , मेधा पाटकर , अखिल गोगोई ,हर्ष मंदर , तीस्ता जावेद शितालवाद , सोनिया गाँधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के सदस्य और जस्टिस फॉर अफज़ल गुरु के सदस्य , सेना के विशेषाधिकार हटाने की मांग करने वाले संगठन बैन अफसपा के सद्श्य भी है यानी सारी गतिविधियाँ राष्ट्रद्रोही है तो अन्ना टीम में ये सब क्या कर रहे है ?

    6- जनलोकपाल में लोकायुक्त की नियुक्ति कौन करेगा और लोकायुक्त कौन कौन होंगे ? अन्ना गैंग में शामिल मैगैसे पुरुष्कार विजेता , विधि विशेषज्ञ , रिटायर जज ,, और वो कौन है ?? स्वयम अन्ना , किरण बेदी , अरविन्द केजरीवाल , आतंकियों के लिए जस्टिस मांगने वाले मेधा पाटकर,संदीप पांडे , अरुंधती राय , अखिल गोगोई , स्टाम्प चोर शांति भूषण , सलमान खान को हिट एंड रन मामले में सलमान खान को मदद करने वाला संतोष हेगड़े , कश्मीर को तौड़ने की बात करने वाला शांति भूषण ,, अगर ये लोकायुक्त बनेगे तो अफज़ल और कसाब में से एक को जनलोकपाल नियुक्त करने की सिफारिस मैं कर देता हूँ इन हरामियों को …

    7- क्यों नहीं आयेगे एनजीओ जनलोकपाल के दायरे में ?

    8- सोनिया गाँधी देश के ऐसे कौन से सवैधानिक पद पर है जो अन्ना बार बार उसको पत्र लिखते है ? कैसे पुरे करेगी सोनिया अन्ना की मांगो को जब वो चुड़ैल किसी सवैधानिक पद पर नहीं है ?

    9- अन्ना 5 राज्यों के चुनाव में बीमार रहे लेकिन कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल के खानदानी अवार्ड समारोह में इनाम लेने चले गए और चुनाव खत्म होते ही फिर से अनशन का ड्रामा क्यों किया जा रहा है जबकि शिवराज सिंह चौहान सीबीआई जांच की मांग मान चूका है ?

    10- जब शांति भूषण पर न्यायालय ने लखनऊ में खरीदी गयी कोठी में स्टाम्प चोरी के मामले में दोषी मान लिया तो वो अन्ना गैंग का हिस्सा क्यों है ? क्या अन्ना को न्यायालय के आदेश का सम्मान नहीं करना चाहिए था ? क्या ऐसी देश द्रोहियों और धर्म द्रोहियों के गैंग से हम इन्साफ की उम्मीद करते है ?

    • राम नारायणजी आप को मालूम होगा की जब भी कोई आमूल बदलाव करना हो तो वो एक दम नाहि होता शुरुआत में जो भी संसाधन होते है उसके आधार और सहयोग से आगे बढ़ना होता है – आपकी सोच बचपन से ऐसी नाहि होगी उसमे भी समय समय पर बदलाव आया होगा या तो जरुरत के मुताबिक आप बदलाव लाये होंगे कई बाते छोड़ी होगी कई बाते स्वीकार करी होगी –बिलकुल वैसा ही है अन्नाजी के बारे में देश के लिए काम करने वाले कभी ये सोचते नाहि है की उनके बिच देश के खिलाफ विचारने वाले है है और दूसरी बात हमारी संस्कृति सुधरनेका मोका देती है इस विचारसे भी ऐसे लोग संगठन में आए होंगे ? और ऐसा भी हो सकता है की इन लोगो को अन्ना के विरोधियो ने ये सोचके भेजा हो की ये लोग जायेंगे तो अन्ना मना कर देंगे और हम इस को मुद्दा बनाकर आन्दोलन विफल कर देंगे !!!!!!!

      आप ठन्डे दिमाग से सोचे तो आप खुद ही आपके सवालों का जवाब पा सकोगे दुसरे से जवाब पाने की जरुरत नाहि है ?
      अगर आपने लिखा है उसमे सच्चाई है तो भी जो हुवा वो ठीक ही हुवा है क्योंकि अगर ऐसा नाहि होता तो अंग्रेज भक्त मानसिकता वाले अन्ना को कबके किनारे कर देते ?

    • कल देर रात मैंने यह लेख देखा.उस समय मैं सोचा कि हो सकता है,फुटेला जी ने मेरी फेशबुक वाली टिपण्णी नहीं देखी हो,इसीलिये केवल उसको उद्धृत करके मैंने इन्टरनेट बंद कर दिया.पर मेरी नजर पड़ चुकी थी,इन टिप्पणियों पर अतः, जब मैंने इंटरनेट खोला तो , फेशबुक मित्रों को फ्रेंडशिप दिवस की शुभ कामनाएं देने के बाद मैं सीधा इसी लेख पर आया.मैं ऐसे मूढ़ मतियों की मूढ़ता का जल्दी खंडन नहीं करता,पर इस बार बाध्य हो कर श्री राम नारायण सुथर का पॉइंट वाइज उत्तर देने का प्रयत्न कर रहा हूँ.
      सबसे पहले मैं अपनी स्थिति साफ़ कर देना चाहता हूँ कि मैं किसी का अंध भक्त क्या ,भक्त भी नहीं हूँ.विचारों में नास्तिक हूँ,अतः किसी तरह की मूर्ति या चित्र के प्रति श्रद्धा का तो प्रश्न ही नहीं उठता.जिन्दगी में केवल दो तीन बाते ध्यान में रही हैं.भगवद गीता का कर्मण्ये वाधिकारस्तु मा फलेषु कदाचन.और ताल्स्तॉय का यह बचन कि you can’t clean the linen with dirty hands जब लोगों ने गीता सार को मध्य प्रदेश के स्कूलों में पढाये जाने का विरोध किया था,तो मेरी टिप्पणी कुछ इस तरह की थी.हो सकता है सम्पूर्ण गीता में कुछ ऐसी बातें भी हो जो दूसरे मतावलंबियों को नागवार गुजरे,पर गीता सार को किसी धर्म या मजहब के दाएरे में नहीं बाँधा जा सकता.वह तो युगों के लिए नैतिकता का एक मापदंड है,पर इस पर चर्चा फिर कभी.
      अब मैं फिर आता हूँ आपकी टिप्पणी पर बिन्दुवार विचार के लिए.
      पहले बिंदु के बारे में तो अलग से टिप्पणी की आवश्यकता नहीं,फिर भी मैं दुहराता हूँ कि चितेरे के हाथ की खीची हुई एक तस्वीर को भारत राष्ट्र का पर्यायवाची मानना राष्ट्र प्रेम के लिए आवश्यक नहीं.कुछ लोग पत्थर में भगवान का दर्शन करते हैं,पर मैं स्वामी दयानंद को कम नहीं आंकता,जिन्होंने इस तरह की अंध श्रद्धा का विरोध किया था.
      २.आन्ना का आन्दोलन भ्रष्टाचार के विरुद्ध है.उसमे किसी को प्रश्रय या महत्त्व देने या न देने का मतलब नहीं कि वह अपने मूल उद्देश्य से भटक गया है.जो आर.एस.एस.. के समर्थक हैं,उनको न जाने क्यों लगता है कि जो आर.एस.एस सेअलग है,वह देशद्रोही है.मैं आर.एस.एस. के बहुत नजदीक रहा हूँ,अतः उसकी अच्छाईयों और बुराईयों से अवगत ,हूँ,अतः यह कहना कि इस तरह की हर लड़ाई में आर.एस.एस को महत्त्व देना ही है,यह गलत है.इसे मैं पूराव्ग्रह के अतिरिक्त कुछ नहीं समझता.
      ३.आपकी निगाह में रामदेव एक पहुंचे हुए संत हो सकते हैं,पर मेरी निगाह में वे एक अच्छे योग गुरु के साथ एक सफल व्यवसाई भी हैं.उनके व्यवसाय में भी मुझे पूरी पारदर्शिता नहीं दृष्टि गोचर होती है,क्योंकि मेरा मानना है कि सात आठ वर्षों में बिना अनुचित लाभ लिए,बिना किसी पूर्व आधार के इतना बड़ा व्यापार नहीं खड़ा किया जा सकता
      ४.मूर्ति पूजा,यहाँ तक कि धार्मिक आस्था भी व्यक्तिगत मामला है.उस पर टिप्पणी अनावश्यक है. आज धार्मिकता से नैतिकता अलग हो गयी है.अगर धार्मिकता से नैतिकता जुडी होती तो इस तरह के किसी आन्दोलन की आवश्कता ही नहीं होती.जब तक धर्म को चढ़ावे की मात्रा से जोड़ा जाता रहेगा तब तक धार्मिकता और दिखावे की ईश्वर भक्ति एक व्यापार से अधिक कुछ नहीं होगा.भारत में तथाकथित ईश्वर,अल्लाह या God पर विश्वास करने वालों की संख्या नास्तिकों से बहुत ज्यादा है,फिर यह पूरा देश गन्दगी का भण्डार क्यों बना हुआ है,क्यों भारत की जीवन दायिनी नदियाँ एक एक करके गंदे नालें में परिवर्तित होती जा रही हैं?
      ५.ये नाम जो आपने गिनाएं हैं,उनके विचार धारा के बहुत से अंशों से मैं सहमत नहीं हूँ,पर विचार वैभिन्य के कारण मैं उनको अभी भी देश द्रोही मानने को तैयार नहीं हूँ.उनकी व्यक्तिगत इमानदारी भी संदेह के परे है.
      ६.जन लोकपाल के मसौदे की हिंदी और अंगरेजी ,दोनों प्रारूप प्रवक्ता पर उपलब्ध हैं.,उसको पहले पढ़िए ,फिर मैं उसके प्रावधानों और उसकी कमियों पर विंदुवार वार्ता के लिए तैयार हूँ.मैं समझता हूँ कि अगर आप पूर्वाग्रह छोड़ देंगे और आप उसको समझने में समर्थ हैं तो शायद आगे किसी वार्ता या बहस की आवश्यकता ही नहीं होगी.
      ७.इस बिंदु पर नए सिरे कुछ न कहकर मैं अपनी फेशबुक पर की हुई तिपनी को उद्धृत कर रहा हूँ.
      “जो लोग यह प्रश्न उठाते हैं कि जन लोक पाल .एन.जी.ओ.और कंपनियों को लोकपाल के दायरे में शामिल करने की बात क्यों नहीं करता ,उनसे मेरा यही कहना है कि ऐसी बातों को उछालना सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के कवायद से ज्यादा कुछ नहीं है.एकबार अगर आपका शासन तंत्र ईमानदार हो जाए तो इनके लिए अलग से कुछ करने की आवश्यकता ही नहीं है.एक तो देश का वर्तमान क़ानून ही बहुत शख्त है जिनको ईमानदारी से पालन करने से ही इन पर लगाम कस जाएगा .अगर कुछ खामियाँ हैं तो ईमानदार शासन तंत्र कभी भी उनमें संषोधन ला कर उन खामियों को दूर कर सकता है.”
      ८.आपकी टिपण्णी के इस बिंदु पर मैं केवल हँस सकता हूँ
      ९.यह कुतर्क है.इसका उत्तर देना आवश्यक नहीं है,फिर भी अगर आप चाहेंगे तो इसका उत्तर देने का प्रयत्न करूंगा.आज तो इतना ही कह सकता हूँ कि कम से कम अन्ना को तो बख्स दीजिये.
      १०.मैं मानता हूँ कि अगर आप सही हैं तो वैसा होना चाहिए था जैसा आप कह रहे हैं.
      अंत में मैं एक बात मैं साफ़ साफ़ कह देना चाहता हूँ कि भारत के इस तरह के काबू से बाहर जाते हुए भ्रष्टाचार के लिए पूरे भारत को दोषी मानता हूँ.चूँकि तथाकथित हिन्दू यहाँ बहुसंख्यक हैं अतः उनका जुर्म भी उसी अनुपात में बढ़ जाता है.नदियों को गन्दा करने में तो मैं खास कर उनको दोषी मानता हूँ,जवकि भारत में नदियों को प्राचीन काल से ही पूज्य माना गया है.

  14. इससे ज्यादा देश की जनता के साथ खिलवाड़ हो ही नहीं सकता

    • सचमुच?आप जैसे लोगों के बारे मैं इतना ही कह सकता हूँ कि भारत इस समय एक गंदी नाली से से अधिक कुछ नहीं है और जो आज की परिस्थितियों में प्रसन्न हैं और उसमें कोई परिवर्तन नहीं चाहते ,वे उन्हीं नाली के कीड़ों के समान हैं,जिनको अगर स्वच्छ जल में रख दीजिये तो तड़प तड़प कर मर जायेंगे.

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