माखनलाल पत्रकारिता विवि: पुष्पेंद्रपाल सिंह की करतूतें हुईं उजागर

पुष्पेंद्रपाल के खिलाफ राज्य महिला आयोग में कार्यस्थल प्रताड़ना और जाति आधारित भेदभाव की शिकायत दर्ज

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय इन दिनों आंतरिक उठापटक और अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। उल्लेखनीय बात यह है कि देश का एकमात्र पत्रकारिता विश्वविद्यालय होने के बाद भी पिछले बीस वर्षों में विश्वविद्यालय के स्तर का कोई प्रशासनिक ढांचा नहीं बन पाया था और इस कारण यहां कि अकादमिक स्थिति भी काफी लचर बनी हुई थी। उदाहरण के लिए विश्वविद्यालय में अभी तक कोई रजिस्ट्रार नहीं था और न ही अधिनियम में इसका प्रावधान रखा गया था। मध्यक्रम में भी उप कुलसचिव तथा सहायक कुलसचिव जैसे पदों का प्रावधान आवश्यकता से काफी कम थी, जबकि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मियों की अंधाधूंध भर्ती की गई थी। यह सारी कवायद इस लिए की गई थी ताकि विश्वविद्यालय में शैक्षणिक व अकादमिक दृष्टि से वरिष्ठ व्यक्तियों की संख्या न बढ़ पाए। इस बात पर ध्यान दिया नए आए कुलपति श्री बी. के. कुठियाला ने और उन्होंने जनवरी, 2010 में पदभार संभालने के बाद विश्वविद्यालय के प्रशासनिक और अकादमिक ढांचे को ठीक करने की कवायद शुरू कर दी। उल्लेखनीय है कि श्री कुठियाला को शैक्षणिक कार्यों का बीस वर्षों से भी अधिक का अनुभव है। इससे उन लोगों को परेशानी होने लगी जो इतने वर्षों में विश्वविद्यालय को अपने मठ के रूप में प्रयोग करने के अभ्यस्त हो चुके थे। उन्होंने कुलपति के निर्णयों का विरोध करने और उनके विशेषाधिकारों को चुनौती देने की अवैधानिक कोशिशें शुरू कर दी। कुलपति के विरूद्ध इस अराजक आंदोलन का नेतृत्व पत्रकारिता विभाग के प्रमुख श्री पुष्पेंद्रपाल सिंह ने संभाला हुआ है। सूत्र बताते हैं कि श्री सिंह वास्तव में विश्वविद्यालय में अपनी बादशाहत के हिलने से घबराए हुए हैं और शैक्षणिक व अकादमिक दृष्टि से स्वयं कमजोर होने के कारण गैरशैक्षणिक व अकादमिक तरीकों का सहारा ले रहे हैं। उल्लेखनीय है कि श्री सिंह ने अभी तक अपनी स्वयं की पी.एच.डी. पूरी नहीं की है। इसलिए श्री सिंह ने कलम के सिपाहियों के हाथों में लाठी थमा दिए। यह तो श्री सिंह ही बता सकते हैं कि कलम के सिपाही इन नए हथियारों से कौन सी नई बौद्धिक क्रांति इस देश में लाना चाहते हैं।

बहरहाल, पिछले दिनों जब कुलपति ने विश्वविद्यालय में नए प्रयोग करना प्रारंभ किया तो श्री पुष्पेंद्रपाल सिंह उनके विरूद्ध छात्रों को गोलबंद करने में जुट गए। श्री कुठियाला ने नए पाठ्यक्रमों का समावेश किया और परिणामस्वरूप प्रवेश हेतु पिछले सत्र के 700 आवेदनों की तुलना में इस सत्र में 3500 आवेदन आए। उन्होंने विश्वविद्यालय में नए प्राध्यापकों की नियुक्ति की प्रक्रिया भी प्रारंभ की। इससे घबराए श्री पुष्पेंद्रपाल सिंह और डा. श्रीकांत सिंह जैसे कुछ प्राध्यापकों ने विरोध प्रदर्शनों का आयोजन शुरू कर दिया। श्री पुष्पेंद्रपाल सिंह जोकि कई वर्षों से पत्रकारिता विभाग में रहे हैं, ने वहां से उत्तीर्ण होकर निकले पत्रकारों को गलत जानकारी देकर अपने विरोध में साथ ले लिया। उनके बहकावे में आकर तीन बार छात्रों ने हिंसक प्रदर्शन भी किए। इस बीच एक नया विवाद सामने आ गया। पिछले 21 सितंबर को श्री पुष्पेंद्रपाल सिंह ने स्वयं ही कुलपति को बताया कि उनके विरूद्ध उन्हीं की विभाग की अध्यापिका श्रीमती ज्योति वर्मा ने राज्य महिला आयोग में कार्यस्थल प्रताड़ना और जाति आधारित भेदभाव की शिकायत दर्ज की है। इस सिलसिले में वे कुलपति महोदय से कुछ दस्तावेजों को आयोग के सामने रखने की अनुमति चाहते थे। उन्हें इस बात की स्वीकृति देने के बाद ध्यान में आया कि शिकायतकर्ता डा. ज्योति वर्मा को भी दस्तावेज चाहिए होंगे जो कि उनके विभागाध्यक्ष यानि कि श्री पुष्पेंद्रपाल सिंह के अधीन में होंगे। यह ध्यान में आने पर निष्पक्ष न्यायिक प्रक्रिया के पालन हेतु कुलपति महोदय ने श्री सिंह से विभागाध्यक्ष का पदभार वापस ले लिया और उनके स्थान पर जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष श्री संजय द्विवेदी को पत्रकारिता विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपा। श्री सिंह इस पर अत्यंत उग्र हो गए और उनके भड़काने पर छात्रों ने श्री संजय द्विवेदी और श्री श्रीकांत सिंह के साथ दुर्व्‍यवहार किया। उसके बाद श्री सिंह के पूर्व व वर्तमान छात्रों ने कुलपति कार्यालय में घुसकर जमकर उत्पात मचाया और तोड़-फोड़ की। इसके विरूद्ध विश्वविद्यालय प्रशासन ने पुलिस में एफ आई आर दर्ज किया जिसमें 20 छात्रों के नाम दर्ज हैं। मामले को बिगड़ता देखकर श्री सिंह ने अपने छात्रों को भूख हड़ताल पर बैठा दिया है। हालांकि शिक्षक संघ के अध्यक्ष डा. श्रीकांत सिंह ने श्री पुष्पेंद्रपाल सिंह को समर्थन देने की घोषणा की है, परंतु विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के अध्यक्षों व शिक्षकों ने उनका साथ देने से मना कर दिया है। हैरत की बात यह हे कि श्री पुष्पेंद्रपाल सिंह कुलपति के विरोध करने में इतने आगे निकल गए हैं कि वे समाचार पत्रों में कुलपति के विरूद्ध खबरें प्लांट करने में जुटे हुए हैं। इसके लिए वे पूर्व छात्रों के साथ के अपने भावनात्मक संबंधों का सहारा ले रहे हैं जिसे एक प्रकार से भावनात्मक ब्लैकमेल ही कहा जा सकता है।

दूसरी ओर, कुलपति श्री कुठियाला देश के इतने प्रतिष्ठित और नामचीन विश्वविद्यालय का शैक्षणिक व अकादमिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कृत संकल्प हैं। यह हैरत का ही विषय है कि पत्रकारिता क्षेत्र के प्राध्यापक कम्प्यूटर, इंटरनेट जैसी नई तकनीकों से पूरी तरह अनभिज्ञ हों। सूत्र बताते हैं कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के विभागाध्यक्ष को भी इंटरनेट और ईमेल की जानकारी नहीं थी। यह तो कुलपति श्री कुठियाला का ही प्रयत्न है कि आज वहां के लगभग सभी प्राध्यापकों के अपने ईमेल पते बने हैं। बीच में जब श्री कुठियाला विदेश दौरे पर थे, तब उन्होंने ईमेल के जरिये विश्वविद्यालय के कार्यों का निर्देशन करना जारी रखा था।

बहरहाल, सवाल यह है कि क्या एक विश्वविद्यालय के शैक्षणिक व अकादमिक निर्णय भी छात्रों से पूछ कर किए जाएंगे? सवाल यह भी है कि क्या किसी भी प्राध्यापक को इतनी छूट मिलनी चाहिए कि वह विश्वविद्यालय को राजनीति के अड्डे में बदल डाले? सबसे महत्वपूर्ण सवाल तो यह है कि पढे लिखे और बुद्धिजीवी कहे जाने वाले पत्रकारों का ऐसा अवैधानिक आचरण देशहित में है?

4 COMMENTS

  1. खबर लिखने वाले भाई, तुम्‍हारी भाषा से तुम्‍हारी नीयत झलक रही है। शब्‍द गढते समय पत्रकारिता के मानक का तो ख्‍याल रखते। तुम कुटियाला जी या संजय द्विवेद्वी जी के मुखपत्र की भूमिका क्‍यों निभा रहे हो। मित्र पत्रकारिता करो, उसकी जुबान बोलो, सबको अच्‍छा लगेगा।
    खैर, खबर में कहा गया है कि पहले विवि में कोई बेहतर माहौल नहीं था। कुटियाला जी के आने के बाद बेहतर माहौल बन रहा था। मित्र ऐसी बात नहीं है। मैं वहां का पुराना छात्र रहा हूं। वहां हुए सबसे बड़े छात्र आंदोलन का नेतृत्‍व मैंने स्‍वयं किया था। शरतचंद बेहार हों या रामशरण जोशी या सचिदानंद जोशी जी, तीनों तीन विचारधार के थे। सभी छात्रों की बात न सिर्फ सुनते थे बल्‍िक उस पर अमल भी करते थे। उसी आंदोलन के कारण सबसे बड़ा कंप्‍यूटर लैब बना, प्रिंटिंग मशीन खरीदी गई, लाइब्रेरी का विस्‍तार हुआ, फोटोग्राफी की व्‍यापक स्‍तर पर पढ़ाई शुरू हुई। इन लोगों ने कभी किसी पर विचारधारा थोपने की पहल नहीं की, लेकिन कुटियाला जी जिस तरह इस विवि को आरएसएस का केन्‍द्र बनाना चाहते हैं उसे छात्र कभी मंजूर नहीं करेंगे। भाजपा की सत्‍ता उखड़ते ही कुटियाला अपनी कुटिया में समा जायेंगे। क्‍या यह सच नहीं है कि वे तमाम योग्‍य शिक्षकों को सिर्फ वामपंथी व समाजवादी विचारधार के होने के कारण हाशिए पर करते जा रहे हैं। पुष्‍पेन्‍द्र पाल सिंह को हटाकर संजय द्विवेदी को सिर्फ इसलिए जिम्‍मेदारी सिपुर्द की गई क्‍योंकि वे आरएसएस का मुखौटा ओढकर पत्रकारिता कर चुके हैं।
    जहां तक कार्यस्‍थल पर महिला कर्मी को प्रताड़ित करने संबंधी आरोपों की बात है तो मैं इससे सहमत नहीं हूं। पुष्‍पेन्‍द्र पाल सिंह के नेतृत्‍व में दर्जनों छात्राएं पढ़कर आज देश के विभिन्‍न मीडिया घरानों में कार्यरत हैं। कभी किसी छात्रा ने आरोप क्‍यों नहीं लगाया। आखिर क्‍या कारण थे कि तमाम छात्र छात्राएं उनसे सुख-दुख बांटने के लिए बेताब रहते थे। हर स्‍टूडेंट आखिर क्‍यों उनकी बात सहजता से मान लेता था। मित्रों, चरित्र पर कीचड़ उछालने से बड़ी बात है उसे साबित करना।
    हां, कुछ बातें अपने छोटे भाई तुल्‍य छात्रों से भी कहना चाहता हूं- मित्रों पुष्‍पेन्‍द्र पाल सिंह ही वह शख्‍स हैं जिन्‍होंने पत्रकारिता विभाग को बुलंदी पर पहुंचाने का काम किया है। उन्‍हीं का प्रयास रहा है कि पत्रकारिता विभाग के 99 फीसदी छात्र आज कहीं न कहीं नौकरी कर रहे हैं। उन्‍हीं का प्रयास रहा है कि मीडिया घराने पत्रकारिता विभाग में आकर छात्र चयिनत करने लगे। मेरी बातों पर यदि यकीन नहीं आए तो उनसे पहले के शिक्षकों का इतिहास उठाकर देखें, क्‍या पहले भी ऐसा होता था….। आपको जवाब मिल जाएगा।
    मित्रों जहां तक उनके पक्ष में आंदोलन की बात है तो इसमें कोई बुराई नहीं है। क्‍या किसी शिक्षक पर अत्‍याचार या जयादती देखकर छात्र आंदोलन नहीं कर सकते हैं। मैं बता दूं इसी विवि में जब शुतनू गुरु (वर्तमान में द संडे इंडियन के एमडी) के खिलाफ सियासत हुई थी तो छात्रों ने जमकर विरोध किया था। इसलिए आप उस परंपरा को बनाए रखे।
    जिंदाबाद।

  2. भूतपूर्व छात्रों ने अपनी मेहनत से संस्थान की जो छवि बनाई थी उसे संस्थान के इन स्वार्थी तत्वों ने धूल मैं मिला दिया.

  3. कॉमरेडों, समाजवादियों और छद्म संघियों ने गठजोड़ करके माखनलाल पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय को युद्ध का मैदान बना दिया है। इन्‍हें पढ़ाई लिखाई से कोई मतलब नहीं है बस छात्रों को उकसाना, उनके भविष्‍य के साथ खिलवाड़ करना, कैम्‍पस का माहौल दूषित करना, भ्रष्‍टाचार करना, यही इनका मुख्‍य काम है। और पुष्‍पेन्‍द्र इस घृणित अभियान की अगुआई करता रहा है। इस तरह की कारगुजारियों से तो माखनलाल विवि के छात्र परिचित थे ही लेकिन अब तो एक और तथ्‍य सामने आए है कि वह अपनी ही विभाग की महिला प्राध्‍यापिका को प्रताडि़त भी करता है। कुठियालाजी को चाहिए कि पुष्‍पेन्‍द्र को अविलंब विवि से बाहर का रास्‍ता दिखाएं।

  4. माखनलाल पत्रकारिता विश्‍वविद्यालय में पुष्‍पेंद्र ने वर्षों से गंध मचा रखी है। कुलपति कुठियालाजी ने उनको विभागाध्‍यक्ष पद से मुक्‍त करके बहुत ही नेक काम किया है। पीपी ने शिक्षा के मंदिर को अखाड़े में तब्‍दील कर दिया है। ऐसे व्‍यक्ति को विभागाध्‍यक्ष से मुक्‍त करना ही ठीक नहीं है अपितु इसे विश्‍वव‍ि
    द्यालय से मुक्‍त करने की दिशा में पहल हो।

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