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     मध्यप्रदेश में हुआ कम मतदान भाजपा को झटका

    प्रमोद भार्गव

                    मध्य प्रदेश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण में हुए छह सीटों पर कम मतदान के चलते भाजपा को झटका लग सकता है। जबकि अच्छे मतदान के लिए भाजपा ने प्रत्येक मतदान केंद्र पर सूक्ष्म प्रबंधन के दावे किए थे। कार्यकर्ताओं को जुटाकर अमित शाह तक ने मतदाता को मतदान केंद्र तक पहुंचाने के गुर सिखाए थे। उधर जिला प्रशासन भी अधिक मतदान के लिए उन सब टोने-टोटकों को आजमाता रहा है, जिन्हें मतदान बढ़ाने का परंपरागत फार्मूला माना गया है। हालांकि इन टोटकों में ज्यादा कुछ असरकारी कभी दिखाई नहीं दिया। प्रशासन की हुंकार पर सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों, आंगनवाड़ी महिला कार्यकर्ताओं और स्व-सहायता समूह की महिलाओं को इकट्ठा करके मानव श्रृंखला बनाकर और कुछ नारे लगाकर इन टोटकों की इतिश्री न केवल प्रदेश बल्कि पूरे देश में कर ली जाती है। जिसके नतीजे लगभग षून्य होते हैं। मध्यप्रदेश में मतदान का एक बड़ा कारण मुख्यमंत्री मोहन यादव की छवि भी रही है। उनका जनता को न तो भाषण  सुहा रहा है और न ही कार्यशैली। पिछले चार माह में वे कोई ऐसी नीति लागू करने में भी असफल रहे हैं, जो मौलिकता के साथ जनता के लिए लाभदायक लगी हो ?

                    बहरहाल भाजपा संगठन इस तैयारी में लगा रहा था कि मतदान लगभग 10 प्रतिशत  तक बढ़ जाए। परंतु हुआ इसका उल्टा, पहले चरण की छह सीटों पर 10 से 12 प्रतिशत  तक मत-प्रतिशत  कम हो गया। साफ है, वोट बढ़ाने का फार्मूला कारगर साबित नहीं हुआ है। 26 अप्रैल और 7 मई को होने वाले दूसरे और तीसरे चरण के मतदान में भी कमोबेश यही स्थिति रहने वाला है ? भाजपा ने विधानसभा चुनाव में युद्ध स्तर पर मतदान केंद्रों तक मतदाता को पहुंचाने की जिम्मेदारी लेते हुए वोट-प्रतिशत 48.55 प्रतिशत तक पहुंचा दिया था। इसी का नतीजा रहा कि 230 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 163 सीटों पर विजय प्राप्त कर ली थी। भाजपा के इस केंद्र प्रबंधन की तारीफ भाजपा के राष्ट्रीय  अधिवेशन  में भी हुई। अतएव इसी फार्मूले को लोकसभा चुनाव में भी अजमाने के प्रबंध किए गए। बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को कार्यशालाएं लगाकर प्रशिक्षित भी किया गया। लेकिन मत-प्रतिशत  बढ़ने की बजाय घट गया। कार्यकर्ता और मतदाता के उदासीन होने के कारणों में विधानसभा चुनाव परिणाम में स्पष्ट बहुमत के बावजूद मुख्यमंत्री के चयन में उम्मीद से ज्यादा देरी और फिर मंत्रीमंडल के गठन में भी इसी देरी को दोहराना प्रमुख कारण रहे हैं। इस उदासीनता के पीछे एक बड़ा कारण शिवराज सिंह चैहान को हाशिए पर डालना भी रहा है। जबकि विधानसभा चुनाव में जीत का प्रमुख आधार उनकी लाडली लक्ष्मियां और बहनें रही हैं। शिवराज की लोक-लुभावन भाषण  कला भी इस बड़ी जीत का एक राज रही है। जबकि मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद से लेकर अब तक उनका करिश्माई नेतृत्व किसी भी क्षेत्र में देखने में नहीं आया है।

                    19 अप्रैल को हुए पहले चरण के चुनाव में सीधी में मतदान का प्रतिशत 56.50 रहा, जबकि 2019 में 69.50 था। इसी तरह षडबल में 2024 में 64.68, जबकि 2019 में 74.73 था। जबलपुर में 61.00 रहा, जबकि 2019 में 69.43 प्रतिशत था। मंडला में 2024 में 72.84 प्रतिशत  रहा, जबकि 2019 में 77.76 था। बालाघाठ में 2024 में 73.50 प्रतिशत  रहा, जब 2019 में 77.61 प्रतिशत  था। प्रदेश की चर्चित और भाजपा की जीत के लिए चुनौती बनी सीट छिंदवाड़ा में इस बार 2024 में 79.83 प्रतिशत  मतदान रहा, जबकि 2019 में यह 82.39 प्रतिशत  था। छिंदवाड़ा में अर्से से भाजपा वे सब हथकंडे अपनाने में लगी हैं, जो कमलनाथ और उनके लोकसभा प्रत्याषी पुत्र नकुलनाथ की हार का कारण बन जाएं ? इस रणनीति के तहत छिंदवाड़ा में दल-बदल का भी खूब खेल खेला गया। मतदान के 18 दिन पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए छिंदवाड़ा के महापौर विक्रम अहाके एकाएक अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस के पाले में लौट आए। उन्होंने इंटरनेट पर एक वीडियो जारी करके नकुलनाथ के लिए भरपूर मत एवं समर्थन भी मतदाताओं से मांगा। इस वीडियो में उन्होंने कहा है कि मैंने कुछ दिन पहले किसी राजनीतिक दल को ज्वाइन किया था। उसी दिन से मुझे घुटन महसूस हो रही थी। लग रहा था कि मैं उस इंसान (कमलनाथ) के साथ गलत कर रहा हूं, जिसने छिंदवाड़ा का भरपुर विकास किया और यहां के लोगों की दुख-दर्द में मदद की।

                    विक्रम अहाके ने 1 अप्रैल को भोपाल में मोहन यादव, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के समक्ष भाजपा की सदस्यता ली थी। पूर्व कांग्रेस नेता सैयद जाफर उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाने मुख्यमंत्री निवास ले गए थे। लेकिन उनकी अंतरात्मा में कमलनाथ के साथ अन्याय करने की हूक उठी और उन्होंने अपने राजनीतिक गुरू कमलनाथ का दामन फिर से थाम लिया। याद रहे वे कमलनाथ ही थे, जिन्होंने अहाके को केटरिंग कार्याकर्ता से आगे बढ़ाकर छिंदवाड़ा नगर निगम का महापौर बनवाया था। हालांकि अहाके का भाजपा में शामिल होने की पृष्ठ भूमि में बड़ा कारण 14 पार्षदों का भाजपा में शामिल होना रहा है। इस कारण परिषद अल्पमत में आ गई थी और अविश्वास  प्रस्ताव का डर अहाके को सताने लगा था। इस कारण महापौर पद से पदच्युत होने का डर बैठ गया और वे भाजपा में शामिल हो गए। अब कमलनाथ के पाले में आने के बाद अहाके कह रहे हैं कि ‘मैंने अपनी भूल का प्रायश्चित कर लिया है। मुझे अब पद से हट जाने का भय नहीं रह गया है। अब मैं किसी दबाव में नहीं आऊंगा और अपने नेता कमलनाथ को नहीं छोडूंगा।‘ छिंदवाड़ा में कमलनाथ के करीबी रहे विधायक दीपक सक्सेना, कमलेश  शाह भी कांग्रेस छोड़ भाजपा में आ चुके हैं। लेकिन दोनों में से किसी ने भी कमलनाथ के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है। बल्कि दीपक ने कहा है कि यदि कमलनाथ चुनाव लड़ते हैं तो मैं उन्हीं का साथ दूंगा। साफ है, छिंदवाड़ा में अभी भी कमलनाथ का जलवा बरकरार है और उनके पुत्र की जीत लगभग तय है।

                    मध्यप्रदेश में कम मतदान की झलक यह जता रही है कि प्रदेश में कांग्रेस शून्य  नहीं हो रही है। पांच-छह सीटों पर कड़े मुकाबले के चलते वह जीत दर्ज करा सकती है। इनमें पहली सीट छिंदवाड़ा है, जहां से नकुल नाथ जीत की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। राजगढ़ से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्वििजय सिंह जीत की ओर बढ़ रहे हैं। मुरैना में कांग्रेस उम्मीदवार नीटू सिकरवार भाजपा के शिवमंगल सिंह तोमर को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। कमोबेष यही स्थिति चंबल-अंचल की सीट भिंड में दिख रही है। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार फूलसिंह बरैया और भाजपा की सांसद संध्या राय को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। रतलाम से कांग्रेस के उम्मीदवार कांतिलाल भूरिया, भाजपा के कमलेष्वर भील को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इसी तरह मंडला में भाजपा उम्मीदवार फग्गन सिंह कुलस्ते की हालत ठीक नहीं बताई जा रही है। यहां से कांग्रेस उम्म्ीदवार शिवराज शाह अपनी बढ़त बनाए हुए हैं। कुलस्ते 2023 में विधानसभा का चुनाव भी हार गए थे। भाजपा के साथ नया संकट यह पैदा हो रहा है कि वह एक धु्रव पर केंद्रित होती दिखाई देने लगी है। नतीजतन भाजपा कार्यकर्ता और आम मतदाता में उदासीनता बढ़ रही है।

    प्रमोद भार्गव

    क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन में कर्नाटक और गुजरात सबसे आगे: रिपोर्ट 

    कर्नाटक और गुजरात ने एक बार फिर क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन की दिशा में अपना नेतृत्व प्रदर्शित किया है। इस बात का खुलासा हुआ इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) और एम्बर की एक संयुक्त रिपोर्ट में।  

    इस दिशा में यह मूल्यांकन का दूसरा साल है जिसमें अब कुल 21 राज्य शामिल हैं, जो पिछले सात वित्तीय वर्षों में भारत की लगभग 95% वार्षिक बिजली मांग का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

    रिपोर्ट में कर्नाटक और गुजरात के निरंतर मजबूत प्रदर्शन को सामने रखा गया है। दोनों ही राज्य अपने बिजली क्षेत्रों में रिन्यूबल एनेर्जी स्रोतों को एकीकृत करने में सफल रहे हैं। इसके चलते इन राज्यों में विद्युत उत्पादन क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो रही है। साथ ही, यह रिपोर्ट झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में प्रगति की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है, जहां एनेर्जी ट्रांज़िशन की गति तुलनात्मक रूप से धीमी रही है। 

    भारत भर में तापमान बढ़ने और विद्युत मंत्रालय द्वारा 260 गीगावॉट की चरम बिजली मांग का अनुमान लगाने के साथ, राज्यों के लिए सौर ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन की सख्त जरूरत है। IEEFA की दक्षिण एशिया निदेशक विभूति गर्ग ने उप-राष्ट्रीय प्रगति की बारीकी से निगरानी करने के महत्व पर बल दिया, क्योंकि राज्य-स्तरीय पेचीदगियां देश के विद्युत परिवर्तन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती हैं। 

    एम्बर के एशिया कार्यक्रम निदेशक आदित्य लोला का कहना है कि कि जहां कुछ राज्यों ने क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन की दिशा में प्रगतिशील कदम उठाए हैं, वहीं कई अन्य राज्य अभी भी शुरुआती चरण में हैं। उन्होंने इन राज्यों से क्लीन एनेर्जी के लाभों को प्राप्त करने के लिए अपने प्रयासों में तेजी लाने का आग्रह किया। 

    रिपोर्ट उन राज्यों की भी पहचान करती है जो एनेर्जी ट्रांज़िशन को अपनाने के लिए तैयार हैं, लेकिन उन्हें विशिष्ट आयामों में सुधार करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली बिजली क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने के लिए तैयार दिखता है, जबकि ओडिशा के पास मजबूत बाजार सक्षमकर्ता हैं, फिर भी दोनों राज्य अपनी क्षमताओं का वास्तविक विद्युत क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने की प्रगति के साथ पूरी तरह से मिलान नहीं कर पाए हैं। 

    इसके अलावा, रिपोर्ट राज्य-स्तरीय विद्युत क्षेत्र को कार्बन मुक्त बनाने के प्रयासों में तेजी लाने के लिए बिजली पारिस्थितिकी तंत्र और बाजार समर्थकों को मजबूत करने के महत्व पर बल देती है। यह प्रत्येक राज्य द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने के लिए सिली नीतिगत हस्तक्षेप का सुझाव देता है। 

    IEEFA में भारत के क्लीन एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए ऊर्जा विशेषज्ञ सलोनी सचदेवा माइकल ने अनुपालन और विकास को बढ़ावा देने के लिए राज्य-स्तरीय नियामक पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया। 

    अंत में यह रिपोर्ट राष्ट्रीय-स्तर से राज्य-स्तर के अध्ययनों की ओर स्थानांतरण का आह्वान करती है ताकि एनेर्जी ट्रांज़िशन की बारीकियों को व्यापक रूप से समझा जा सके। राज्य स्तर पर प्रगति को ट्रैक करके और लक्षित हस्तक्षेपों को लागू करके, भारत क्लीन एनेर्जी कि ओर अपनी यात्रा को प्रभावी ढंग से तेज कर सकता है। 

    एशिया पर रहा जलवायु, मौसमी आपदाओं का सबसे अधिक प्रभाव: संयुक्त राष्ट्र

    संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व मौसम विज्ञान संगठन की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, साल 2023 में एशिया ने मौसम, जलवायु, और पानी से संबंधित खतरों का ऐसा खामियाजा भुगता कि यह दुनिया का सबसे अधिक आपदा प्रभावित क्षेत्र बन गया।
    विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एशिया में जलवायु स्थिति – 2023 रिपोर्ट में कहा गया है कि यहाँ बाढ़ और तूफान के कारण सबसे अधिक संख्या में लोग हताहत हुए, आर्थिक नुकसान हुआ, और हीटवेव का प्रभाव तेज हो गया। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर पश्चिमी प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान रिकॉर्ड ऊंचाई पर भी पहुंच गया और यहां तक कि आर्कटिक महासागर में भी समुद्री गर्मी का अनुभव हुआ।
    डब्ल्यूएमओ के महासचिव सेलेस्टे सौलो ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “इस क्षेत्र के कई देशों ने 2023 में अपने सबसे गर्म वर्ष का अनुभव किया, साथ ही सूखे और हीटवेव से लेकर बाढ़ और तूफान तक की चरम स्थितियों का सामना किया। जलवायु परिवर्तन ने इसकी आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ा दिया है।” उन्होने आगे कहा, “इस तरह की घटनाएं समाज, अर्थव्यवस्था और सबसे महत्वपूर्ण रूप से मानव जीवन और जिस पर्यावरण में हम रहते हैं, उस पर गहरा प्रभाव डालती हैं।”
    आपातकालीन घटनाओं के डेटाबेस का हवाला देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि 2023 में एशिया में जल-मौसम संबंधी खतरों से जुड़ी 79 आपदाएँ आईं, जिनमें 80 प्रतिशत से अधिक घटनाएं बाढ़ और तूफान के कारण हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 2,000 से अधिक मौतें हुईं और नौ मिलियन लोग प्रभावित हुए। 2023 में एशिया में सतह के निकट वार्षिक औसत तापमान रिकॉर्ड पर दूसरा सबसे अधिक था, 1991-2020 के औसत से 0.91 डिग्री सेल्सियस अधिक और 1961-1990 के औसत से 1.87 डिग्री अधिक था। जापान और कजाकिस्तान में से प्रत्येक में रिकॉर्ड गर्म वर्ष थे।
    मीडिया रिपोर्टों कि मानें तो भारत में, अप्रैल और जून में भीषण हीटवेव के कारण हीटस्ट्रोक के कारण लगभग 110 मौतें हुईं। अप्रैल और मई में एक बड़ी और लंबे समय तक चलने वाली गर्मी की लहर ने दक्षिण-पूर्व एशिया के अधिकांश हिस्से को प्रभावित किया, जो पश्चिम में बांग्लादेश और पूर्वी भारत तक और उत्तर से दक्षिणी चीन तक फैला हुआ था, जहां रिकॉर्ड तोड़ तापमान था।
    तुरान तराई के हिस्से (तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान); हिंदू कुश (अफगानिस्तान, पाकिस्तान); हिमालय; गंगा के आसपास और ब्रह्मपुत्र नदियों के निचले हिस्से (भारत और बांग्लादेश); अराकान पर्वत (म्यांमार); और मेकांग नदी के निचले हिस्से में सामान्य से कम वर्षा दर्ज की गई। दक्षिण-पश्चिम चीन सूखे से पीड़ित रहा, 2023 में लगभग हर महीने सामान्य से कम वर्षा हुई और भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून से जुड़ी बारिश औसत से कम रही। जून, जुलाई और अगस्त में, कई बाढ़ और तूफान की घटनाओं के परिणामस्वरूप भारत, पाकिस्तान और नेपाल में 600 से अधिक मौतें हुईं। सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और यमन में भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई। अगस्त और सितंबर की शुरुआत में, रूसी संघ के सुदूर पूर्वी हिस्से में हाल के दशकों में सबसे बड़ी आपदाओं में से एक में विनाशकारी बाढ़ आई, जिससे लगभग 40,000 हेक्टेयर ग्रामीण भूमि प्रभावित हुई। हाई-माउंटेन एशिया क्षेत्र तिब्बती पठार पर केंद्रित उच्च-ऊंचाई वाला क्षेत्र है और इसमें ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर बर्फ की सबसे बड़ी मात्रा होती है, जिसमें ग्लेशियर लगभग 1,00,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करते हैं। पिछले कई दशकों में, इनमें से अधिकांश ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं और इसकी गति भी तेज़ हो गई है। हाई-माउंटेन एशिया क्षेत्र में देखे गए 22 ग्लेशियरों में से 20 में लगातार बड़े पैमाने पर नुकसान देखा गया। पूर्वी हिमालय और अधिकांश टीएन शान में रिकॉर्ड तोड़ने वाले उच्च तापमान और शुष्क परिस्थितियों ने अधिकांश ग्लेशियरों के लिए बड़े पैमाने पर नुकसान को बढ़ा दिया। 2022-2023 की अवधि के दौरान, पूर्वी टीएन शान में उरुमकी ग्लेशियर नंबर 1 ने 1959 में माप शुरू होने के बाद से अपना दूसरा सबसे बड़ा नकारात्मक द्रव्यमान संतुलन दर्ज किया। डब्ल्यूएमओ ने कहा कि ऊपरी महासागर (0-700 मीटर) की वार्मिंग विशेष रूप से उत्तर में मजबूत है। पश्चिमी अरब सागर, फिलीपीन सागर और जापान के पूर्व के समुद्र, वैश्विक औसत से तीन गुना अधिक तेज़ हैं। समुद्री ऊष्मा तरंगें – लंबे समय तक अत्यधिक गर्मी जो समुद्र को प्रभावित करती है – आर्कटिक महासागर, पूर्वी अरब सागर और उत्तरी प्रशांत के एक बड़े क्षेत्र में उत्पन्न हुई, और तीन से पांच महीने तक चली। 2023 में, पश्चिमी उत्तर प्रशांत महासागर और दक्षिण चीन सागर के ऊपर 17 नामित उष्णकटिबंधीय चक्रवात बने। यह औसत से कम था लेकिन चीन, जापान, फिलीपींस और कोरिया गणराज्य सहित देशों में अभी भी बड़े प्रभाव और रिकॉर्ड-तोड़ बारिश हुई। उत्तरी हिंद महासागर बेसिन में, अत्यंत भीषण चक्रवाती तूफान मोचा ने 14 मई को म्यांमार के रखाइन तट पर दस्तक दी, जिससे व्यापक विनाश हुआ और 156 लोगों की मौत हो गई।

    तपती गर्मी में खारा पानी की सज़ा

    आरती लूणकरणसर, बीकानेर
    राजस्थान

    “जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है गांव में पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है. जो स्रोत उपलब्ध हैं उसमें इतना खारा पानी आता है कि हम लोगों से पिया भी नहीं जाता है. यदि मजबूरीवश पी लिया तो पेट में दर्द और दस्त होने लगते हैं. पिता जी और गाँव वाले मिलकर पानी का टैंकर मँगवाते हैं, जिससे हमें पीने का पानी उपलब्ध होता है. लेकिन स्कूल में ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं है. वहां हमें यही खारा पानी पीने पर मजबूर होना पड़ता है. इसलिए स्कूल भी जाने का दिल नहीं करता है.” यह कहना है 9वीं कक्षा की छात्रा 15 वर्षीय किशोरी पूजा राजपूत का, जो राजस्थान के बीकानेर स्थित लूणकरणसर ब्लॉक के कालू गांव की रहने वाली है. पूजा के साथ खड़ी उसकी हमउम्र दोस्त कविता कहती है कि घर पर टैंकर के माध्यम से पीने का पानी उपलब्ध हो जाता है, परंतु स्कूल में इतना अधिक खारा पानी आता है कि उसे पीने के बाद बच्चों की तबीयत खराब हो जाती है. जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है पानी की आवश्यकता भी बढ़ेगी, ऐसे में हमें स्कूल में वही खारा पानी पीना पड़ेगा.”

    वास्तव में, राजस्थान में जैसे जैसे गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है वैसे वैसे कालू गाँव और उसके जैसे अन्य गांवों में पीने के पानी की समस्या भी विकराल होती जा रही है. ब्लॉक मुख्यालय से 20 किमी और जिला मुख्यालय बीकानेर से 92 किमी दूर आबाद कालू गाँव की जनसंख्या लगभग 10334 है. अनुसूचित जाति बहुल इस गाँव के लोगों के लिए सितम यह है कि प्रचंड गर्मी के साथ साथ उन्हें पीने के साफ पानी की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है. गाँव में कुछ स्थानों पर पानी के जो स्रोत उपलब्ध हैं, इनमें फ्लोराइड की मात्रा इतनी अधिक है कि वह पानी खारा हो चुका है जो पीने के लायक नहीं होता है. इतना ही नहीं, पूरे गाँव में समान रूप से सभी घरों में पीने का पानी भी नहीं आता है. दरअसल गाँव की बसावट कुछ इस प्रकार है कि कुछ घर ऊंचाई पर हैं और कुछ घर नीचे की तरफ ढलान पर आबाद हैं. गांव में पानी ट्यूबवेल के माध्यम से आता है. सभी घरो में पाईप लाईन लगी हुई है. ऐसे में, जिनके घर ढलान (नीचे की तरफ) पर हैं उनके घरों में तो पानी आसानी से पहुंच जाता है. लेकिन जिनके घर ऊंचाई पर स्थित हैं वहां पानी पहुंचने में समस्या आती है.

    इस संबंध में 45 वर्षीय जगदीप कहते हैं कि “जैसे जैसे राज्य में गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है, वैसे वैसे पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है. पहले गाँव में बावड़ी समेत पानी के बहुत सारे प्राकृतिक स्रोत हुआ करते थे. लेकिन बेहतर रखरखाव नहीं होने के कारण धीरे धीरे या तो सभी सूख चुके हैं या उनमें इतना खारा पानी होता है कि उसे हम अपने मवेशियों को भी नहीं पिला सकते हैं. वर्तमान में गाँव में ट्यूबवेल के माध्यम से पानी आता है, लेकिन हमारे घर जो ऊंचाई पर स्थित हैं, वहां ट्यूबवेल के माध्यम से पानी आने में समस्या आती है. ऐसे में हमें या तो कहीं स्रोत ढूंढ कर पानी लाना होता है अथवा पैसे देकर टैंकर मंगवानी पड़ती है. जो बहुत ही महंगा पड़ता है. एक बार में टैंकर मंगवाने पर 1500 रुपए तक का खर्च आता है. हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि हम बार बार पानी का टैंकर मंगवा सकें. जब ज्यादा गर्मी पड़ती है तो टैंकर भी हमें कई बार समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता है. ऐसे में फिर मटके से ही पानी भरकर लाना पड़ता है, वह भी बहुत दूर दूर से.”

    खारे पानी की समस्या से परेशान गांव की एक महिला कमला देवी का कहना है कि “गर्मी के दिनों में ट्यूबवेल से बहुत कम समय के लिए पानी आता है. ऐसे में हम बहुत मुश्किल से दूसरी जगहों से पीने का पानी इकठ्ठा करते हैं. कभी कभी तो एक दिन में 5 से 6 बार पानी लेने जाना पड़ता है. पानी के लिए हम महिलाओं को तपते रेगिस्तान में मीलों चलना पड़ता है. यही कारण है कि हम कपड़े भी दो या तीन दिनों में एक बार धोते हैं.” जब मनुष्यों के लिए मुश्किल से पानी इकठ्ठा होता है तो पशुओं विशेषकर मवेशियों के लिए कितनी बड़ी समस्या होती होगी इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. कमला देवी कहती हैं कि “हमें अपने साथ साथ अपने मवेशियों के लिए भी पानी की चिंता करनी होती है. लेकिन जब हमें इतनी मुश्किल से पानी उपलब्ध होता है तो हम अपने मवेशियों के लिए कहां से प्रबंध कर सकते हैं? ऐसे में उन्हें वर्षा का इकठ्ठा किया हुआ पानी पिलाते हैं जो अक्सर दूषित होता है. इसे पीकर कई बार हमारे पशु बीमार भी पड़ जाते हैं. फ्लोराइड युक्त खारा पानी पीने से हमारी हड्डियां भी कमजोर होने लगी हैं. जिसकी वजह से चलने में बहुत थकान लगती है और कमजोरी भी महसूस होती है.”

    वही गांव की एक अन्य महिला शारदा का कहना है कि “हमें पीने के पानी के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है. गर्मी बढ़ने के साथ ही ट्यूबवेल से आने वाले पानी की समस्या भी बढ़ जाती है. हमारे घरों में सप्ताह में सात दिनों में केवल तीन दिन ही पानी आता है. वह भी कभी कभी इतना खारा होता है कि उससे पानी भर के केवल कपड़े ही धोने में इस्तेमाल किया जा सकता है. पीने का पानी हमें दूर दूर से लाना पड़ता है. पशुओं को पानी पिलाने के लिए घरों से दूर लेकर जाना पड़ता है.” वह बताती हैं कि “यहां के पानी में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है जिसके कारण हमें जोड़ों के दर्द की समस्या होने लगी है, थकावट जल्दी लगने लगती है. कम उम्र में ही युवा पीढ़ी भी बुजुर्ग जैसे दिखने लगी है. वह अक्सर बीमार रहते हैं. हमारे पशुओं को भी खारे पानी से बहुत दिक्कत होती है. इसकी वजह से असमय ही कई मवेशियों की मौत हो जाती है. जबकि वही हमारी आय का एक प्रमुख साधन होते हैं. गाँव के युवा अपनी पढ़ाई छोड़कर ऊंटों के साथ दिन भर पानी की तलाश में भटकते रहते हैं.”

    इस संबंध में गांव की सरपंच सुगनी देवी का कहना है कि “गांव में खारे पानी की समस्या को दूर करने के लिए 3 ट्यूबवेल लगवाए हैं, जिसमें पीने योग्य पानी आता है. हालांकि इतनी बड़ी आबादी के लिए यह तीनों ट्यूबवेल कम हैं. इसलिए पंचायत ने सर्वसम्मति से ब्लॉक अधिकारी के पास अभी एक और बोरवेल लगाने का प्रस्ताव भेजा है. इसे जल्द पूरा करवाने के लिए तहसील कार्यालय में बात चल रही है. यदि चौथा ट्यूबवेल भी लग जाता है तो गाँव में पानी की समस्या लगभग दूर हो जाएगी और इस गर्मी में भी गांव वालों को पानी के लिए दर-दर भटकने की जरूरत नहीं होगी.” सरपंच इस बात को स्वीकार करती हैं कि गाँव में कुछ स्थानों पर खारा पानी आता है. वह कहती हैं कि “हमने पानी की जांच करवाई है. कुछ जगहों पर पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा है, लेकिन इतना भी नहीं है कि वह शरीर के लिए नुकसानदायक हो.”

    बहरहाल, जैसे जैसे तापमान चढ़ेगा कालू गाँव के लोगों के लिए पानी की समस्या भी बढ़ती जाएगी. ऐसे में राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस बात को गंभीरता से लेने की जरूरत है कि इंसान और पशुओं सभी के लिए समान रूप से पानी उपलब्ध हो जाए. विशेषकर स्कूलों में इसका विशेष प्रबंध किया जाए. प्रशासन को इस बात को सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि कम से कम जहां पानी उपलब्ध है वह पीने योग्य हो ताकि कालू गाँव की महिलाओं और किशोरियों को तपते रेगिस्तान में पानी के लिए मीलों चलना न पड़े. (

    शिवराज की जीत का कीर्तिमान बनाएंगी लाडली बहनें 

    प्रमोद भार्गव

                    मध्य प्रदेश लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  को लाडली बहनाओं का साथ मिल गया तो, वे मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों से जीतने वाले प्रत्याशी हो सकते हैं ? वैसे भी मतदान में इस आधी आबादी की लगभग बराबर की हिस्सेदारी है। प्रदेश में 2,73,87,122 महिला मतदाता हैं, जो कुल मतदाताओं की 47.75 फीसदी हैं। इनमें से एक करोड़ 29 लाख से अधिक लाडली बहनाओं को 1250 रुपए प्रतिमाह मिल रहे हैं। उज्जवला योजना की 80 लाख और पात्र लाडली बहनों को 450 रुपए में रसोई गैस सिलेंडर मिल रहा है। महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान मुख्यमंत्री शिवराज के कार्यकाल में ही हुआ है। महिला स्व-सहायता समूह की 62 लाख सदस्यों में से 15 लाख लखपति दीदी हैं। विषेश पिछड़ी जनजाति बैगा, भारिया और सहरिया जनजाति की 2 लाख 33 हजार महिलाओं को पोषाहार भत्ता का प्रावधान शिवराज के समय ही हुआ था। इसीलिए हम देख रहे हैं कि विदिशा संसदीय क्षेत्र से शिवराज के प्रत्याषी घोत होने के बाद शिवराज भैया को चुनाव लड़ने के लिए धन दे रही हैं। विदिशा को शिवराज का गढ़ माना जाता है। 19 साल बाद शिवराज इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। जनता ने उनसे भाई और मामा का रिश्ता बना हुआ है। भांजे-भांजी उनके लिए गुल्लक में पैसे इकट्ठे करके दे रहे हैं। एक मोची ने शिवराज  को 10 रुपए का चंदा दिया। यहां धनराशि को छोटी या बड़ी राशि के रूप में देखने की बजाय उसे शिवराज की लोकप्रियता के रूप में देखने की जरूरत है।  

    2018 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 2023 में 1.52 प्रतिशत मतदान अधिक हुआ था। इसे लाडली बहनों का करिश्मा  बताया गया है। शहर से कहीं ज्यादा ग्रामीण मतदाता की मतदान के प्रति जागरूकता दिखी है। इसीलिए ग्रामों में महिलाओं की लंबी-लंबी कतारें देखने में आईं थीं। साफ है, जिस उत्साह से मतदाता घर से बाहर निकला उससे उसका लोकतंत्र के प्रति दायित्व बोध झलका ही, वराज के प्रति विश्वास भी नजर आया था। यही करिश्मा  विदिशा लोकसभा सीट पर दिखाई देगा। इस बहुचर्चित विदिशा संसदीय क्षेत्र में 7 मई को मतदान होना है। यह सीट वैसे भी जनसंघ और भाजपा का गढ़ मानी जाती रही है। यहां से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर सुषमा स्वराज भी लोकसभा का चुनाव जीत चुकी हैं। स्वयं वराज इस सीट से पांच बार चुनाव जीत चुके हैं। यहां से कांग्रेस ने प्रताप भानु शर्मा को उम्मीदवार बनाया है। शर्मा सातवीं और आठवीं लोकसभा में विदिशा से सांसद रह चुके हैं। वे कोई ज्यादा दमखम दिखा पाएंगे ऐसा लग नहीं रहा है। इसलिए शिवराज का पलड़ा ही भारी दिख रहा है।

    मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की उदार कार्यशैली का परिणाम ही रहा था कि विधानसभा चुनाव में भाजपा को 166 सीटों पर बड़ी जीत मिली थी। शिवराज सिंह चैहान के नवाचार निरंतर देखने में आते रहे हैं। बालिकाओं की संख्या कम होना किसी भी विकासशील समाज के लिए बड़ी चुनौती थी। इस चुनौती से तभी निपटा जा सकता है, जब स्त्री की आर्थिक हैसियत तय हो और समाज में समानता की स्थितियां निर्मित हों ? इस नजरिए से मध्यप्रदेश में ‘लाडली लक्ष्मी योजना‘ एक कारगर औजार साबित हुई और इसीलिए इसे देख के नवाचारी मॉडल के रूप में मान्यता मिली। दिल्ली, हरियाणा और पंजाब ने ही नहीं पूरे देश ने इस योजना का अनुसरण किया और बेटी बचाने के लिए जुट गए। क्योंकि बेटी बचेगी, तभी बेटे बचेंगे और सृष्टि की निरंतरता बनी रहेगी। जैविक तंत्र से जुड़े इस सिद्धांत को हमारे ऋषि -मुनियों ने भलि-भांति आज से हजारों साल पहले समझ लिया था, इसीलिए भगवान शिव-पार्वती के रूप में अर्धनारीश्वर के प्रतीक स्वरूप मंदिरों में मूर्तियां गढ़ी गईं, जिससे पुरुश संदेश  लेता रहे कि नारी से ही पुरुष  का अस्तित्व अक्षुण है। किंतु हमने शिव-पार्वती की पूजा तो की, परंतु उनके एकरूप में अंतर्निहित अर्धनारीश्वर के प्रतीक को आत्मसात नहीं किया।

    मुख्यमंत्री चैहान की करीब 18 साल के नेतृत्व की सार्वजनिक यात्रा का अवलोकन करें तो यह साफ देखने में आता है कि उनकी कार्य संस्कृति अन्य मुख्यमंत्रियों से भिन्न रही है। वे प्रकृति, कृषि व किसान प्रेमी हैं और युवाओं को कौशल दक्ष बनाने की प्रखर इच्छा रखते हैं। इसीलिए प्रदेश  में अनेक प्रकार की छात्रवृत्तियां हैं, जिससे छात्र को आर्थिक बाधा का सामना न करना पड़े। गांव से यदि पाठशाला कुछ दूरी पर है तो बालिका को आने-जाने में व्यवधान न हो, इस हेतु साइकिल है। होनहार छात्रों को पढ़ाई में बाधा नहीं आए, इस नाते विद्यार्थियों को मोबाइल और लैपटाॅप दिए। ये योजनाएं मुख्यमंत्री के अंतर्मन में आलोड़ित संवेदनशीलता को रेखांकित करती हैं। शिवराज कविता तो नहीं लिखते, लेकिन दूरांचल वनवासी-बहुल जिले झाबुआ में परंपरागत ‘आदिवासी गुड़िया हस्तशिल्प‘ कला को संरक्षित करने और इसे आजीविका से जोड़ने का उपाय जरूर करते हैं। फलस्वरूप अब स्थानीय लोगों के नाजुक हाथों द्वारा निर्मित यह कपड़े की गुड़िया मध्य-प्रदेश  सरकार के ‘एक जिला, एक उत्पाद‘ योजना के अंतर्गत व्यापारिक उड़ान भरकर जर्मनी और आस्ट्रेलिया के बच्चों का खिलौना बन गई है। सामाजिक सरोकार से इस संरचना की महिमा वही नवाचारी समझ सकता है, जो कल्पनाशील होने के साथ अपने दायित्वों के प्रति उदार और जनता के प्रति संवेदनशील हो। शिवराज के ये नवाचारी काम ऐसे हैं, जो उनकी जीत की आश्वस्ति प्रदान करते हैं। तय है, विदिशा संसदीय क्षेत्र में महिलाओं का धु्रवीकृत शिवराज के पक्ष में मतदान उनकी मप्र में सबसे बड़ी जीत का आधार बन सकता है।

    प्रमोद भार्गव

    उन्नत जीवन का आधार है हनुमान भक्ति

    हनुमान जयन्ती- 23 अप्रैल 2024 पर विशेष
    – ललित गर्ग –

    भगवान हनुमानजी को हिन्दू देवताआंे में सबसे शक्तिशाली माना गया है, वे रामायण जैसे महाग्रंथ के सह पात्र थे। वे भगवान शिव के ग्यारवंे रूद्र अवतार थे जो श्रीराम की सेवा करने और उनका साथ देने त्रेता युग में अवतरित हुए थे। उनको बजरंग बलि, मारुतिनंदन, पवनपुत्र, केशरीनंदन आदि अनेकों नामों से पुकारा जाता है। उनका एक नाम वायुपुत्र भी है, उन्हें वातात्मज भी कहा गया है अर्थात् वायु से उत्पन्न होने वाला। इन्हें सात चिरंजीवियो में से एक माना जाता है। वे सभी कलाओं में सिद्धहस्त एवं माहिर थे। वीरो में वीर, बुद्धिजीवियांे में सबसे विद्वान। इन्होंने अपने पराक्रम और विद्या से अनेकों कार्य चुटकीभर समय में पूर्ण कर दिए है। वे शौर्य, साहस और नेतृत्व के भी प्रतीक हैं। समर्पण एवं भक्ति उनका सर्वाधिक लोकप्रिय गुण है। रामभक्त हनुमान बल, बुद्धि और विद्या के सागर तो थे ही, अष्ट सिद्धि और नौ निधियों के दाता और ज्योतिष के भी प्रकांड विद्वान थे। वे उन्नत जीवन के आधार है। उनसे सफल एवं सार्थक जीवन के प्रबंधन की शिक्षा मिलती है। वे हर युग में अपने भक्तों को अपने स्वरूप का दर्शन कराते हैं और उनके दुःखों कोे हरतेे हैं। वे मंगलकर्त्ता एवं विघ्नहर्त्ता हैं।
    मंगलवार को हनुमानजी का जन्म हुआ, ऐसा माना जाता है। भिन्न-भिन्न लोगों ने इस महान् आत्मा का मूल्यांकन भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से किया है। हनुमान का चरित्र एक लोकनायक का चरित्र है और उनके इसी चरित्र ने उन्हें सार्वभौमिक लोकप्रियता प्रदान की है। तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं में मात्र हनुमान ही ऐसे हैं जिनकी आधुनिक युग में सर्वाधिक पूजा की जाती है और जन-जन के वे आस्था के केन्द्र हैं। उनके चरित्र ने जाति, धर्म और सम्प्रदाय की संकीर्ण सीमाओं को लांघ कर जन-जन को अनुप्राणित किया हैै। हनुमान का चरित्र बहुआयामी हैं क्योंकि उन्होंने संसार और संन्यास दोनों को जीया। वे एक महान् योगी एवं तपस्वी हैं और इससे भी आगे वे रामभक्त हैंे। हनुमान-भक्ति भोगवादी मनोवृत्ति के विरुद्ध एक प्रेरणा है संयम की, पवित्रता की। यह भक्ति एक बदलाव की प्रक्रिया है। यह भक्ति प्रदर्शन नहीं, आत्मा के अभ्युदय का उपक्रम है। इससे अहं नहीं, निर्दोष शिशुभाव जागता है। क्रोध नहीं, क्षमा शोभती है। कष्टों में मन का विचलन नहीं, सहने का धैर्य रहता है।
    उत्कृष्ट विलक्षणताओं के प्रतीक हनुमान पूर्ण मानव थे। कहते हैं कि ब्रह्मा ने जब मनुष्य का निर्माण किया तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई, क्योंकि उन्हें यह अनुभूत हुआ कि उनके द्वारा सृष्ट मानव ईश्वर का साक्षात्कार करने में समर्थ है। मानव न केवल संपूर्ण प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, प्रत्युत वह अपनी साधना के द्वारा ब्रह्मपद को भी प्राप्त कर सकता है। त्रेतायुग के सर्वाधिक शक्तिशाली मानव हनुमान जिन्हें भ्रमवश अनेक देशी-विदेशी विद्वान पेड़ों पर उछल-कूद करनेवाला साधारण वानर मानते रहे हैं, अपने अलौकिक गुणों और आश्चर्यजनक कार्यों के बल पर कोटि-कोटि लोगों के आराध्य बन गये।
    भारत ही नहीं, विश्व के इतिहास में किसी ऐसे मानव का उल्लेख नहीं मिलता, जिसमें शारीरिक बल और मानसिक शक्ति का एक साथ इतना अधिक विकास हुआ हो जितना हनुमान में हुआ था। प्राचीन भारत में ब्रह्मतेज से युक्त अनेक महामानव हुए। इसी प्रकार इस पावनभूमि में ऐसे विशिष्ट व्यक्ति भी हुए जो शारीरिक बल में बहुत बलशाली थे, परन्तु ब्रह्मतेज के साथ-साथ शास्त्र-बल का जो आश्चर्यजनक योग हनुमान में प्रकट हुआ, वह अन्यत्र दिखाई नहीं पड़ता। शुद्ध आचार, विचार और व्यवहार से जुड़ी हनुमान की ऐसी अनेक चारित्रिक व्याख्याएं हैं जिनमें जीवन और दर्शन का सही दृष्टिकोण सिमटा हुआ है।
    हनुमान को बुद्धिमानों में अग्रगण्य माना जाता है। ऋग्वेद में उनके लिए ‘विश्ववेदसम्’ शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका अभिप्रेत अर्थ है- विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ। हनुमान अपने युग के विद्वानों में अग्रगण्य थे। उनकी गणना सामान्य विद्वानों में नहीं, बल्कि विशिष्ट विद्वानों में की जाती थी। वाल्मीकि रामायण में हनुमान को महाबलशाली घोषित करते हुए ‘बुद्धिमतां वरिष्ठं’ कहना पूर्ण युक्ति संगत है। ‘रामचरितमानस’ में भी उनके लिए ‘अतुलित बलधामं’ तथा ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम’ इन दोनों विशेषणों का प्रयोग द्रष्टव्य है। ब्रह्मचारी हनुमानजी महान् संगीतज्ञ और गायक भी थे। इनके मधुर गायन को सुनकर पशु-पक्षी एवं सृष्टि का कण-कण मुग्ध हो जाता था।
    हनुमान की विद्वता के साथ-साथ तर्क-शक्ति अत्यंत उच्च कोटि की थी। ऐसे अनेक प्रसंग है जब हनुमान ने अपनी तर्क-शक्ति से अनेक जटिल स्थितियों को सहज बना दिया। उनकी अलौकिक साधना एवं नैसर्गिक दिव्यता का ही परिणाम था कि वे  भय और आशंका से भरे वातावरण में भी निःशंक और निर्भीक बने रहते थे। संकट की घड़ी में भी शांतचित्त होकर अपने आसन्न कर्तव्य का निश्चय करना उत्तम प्रज्ञा का प्रमाण है। हनुमान इस सर्वोत्कृष्ट प्रज्ञा से युक्त थे।
    प्राचीन भारत की सर्वश्रेष्ठ भाषा संस्कृत और व्याकरण पर हनुमान का असाधारण अधिकार था। हनुमान ने सूत्र, वृत्ति, वार्तिक, महाभाष्य तथा संग्रह का भली-भांति अध्ययन किया था। अन्यान्य ग्रंथों तथा छंद-शास्त्र के ज्ञान में भी उनकी समानता करनेवाला कोई नहीं था। संपूर्ण विद्याओं के ज्ञान में उनकी तुलना देवताओं के गुरु बृहस्पति से की गयी है। महर्षि अगस्त्य के अनुसार हनुमान नवों व्याकरणों के अधिकारी विद्वान थे। नोबेल पुरस्कार विजेता आक्टाभियो पाज का भी यह सुनिश्चित मत है कि हनुमान ने व्याकरण शास्त्र की रचना की थी।
    मारुति नंदन, परमवीर, श्रीराम भक्त हनुमानजी की पवित्र मन से की गयी साधना और भक्ति चमत्कारपूर्ण परिणाम देने वाली है। हनुमानजी शिव के अवतार माने जाते हैं और ग्यारहवें रुद्र के रूप में इनकी मान्यता है। कहते हैै-मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सार्वकालिक सेवा करने एवं रावण-वध में उनका सहयोग करने के लिए भगवान राम का अवतार लेने से पूर्व ही त्रेतायुग में शिवजी ने अपने ग्यारहवें रुद्र के रूप में अवतार लिया था। वह ‘हनुमानजी’ के पवित्र लोकोपकारी नाम से विख्यात हुए। महादेव का हनुमान के रूप में अवतरण लेने के सन्दर्भ में कहा जाता है कि भगवान विष्णु महादेव के इष्ट देव हैं। वे उनके श्रीचरणों के शाश्वत पुजारी हैं। त्रेतायुग में रावणादि राक्षसों का सकुल संहार करके उनका उद्धार करने के लिए ही भगवान विष्णु अयोध्या के महाराज दशरथ के यहां अपनी सोलह कलाओं सहित पुत्र रूप में अवतरित हुए। अतः उनकी सेवा करने के लिए महादेव ने हनुमान के रूप में अवतार लिया।
    तंत्र शास्त्र के आदि देवता और प्रवर्तक भगवान शिव हैं। इस प्रकार से हनुमानजी स्वयं भी तंत्र शास्त्र के महान पंडित हैं। समस्त देवताओं में वे शाश्वत देव हैं। परम विद्वान एवं अजर-अमर देवता हैं। वे अपने भक्तों का सदैव ध्यान रखते हैं। उनकी तंत्र-साधना, वीर-साधना है। वे रुद्रावतार और बल-वीरता एवं अखंड ब्रह्मचर्य के प्रतीक हैं। अतः उनकी उपासना के लिए साधक को सदाचारी होना अनिवार्य है। उसे मिताहारी, जितेन्द्रिय होना चाहिए। हनुमान साधना करने के लिए हर व्यक्ति उसका पालन नहीं कर सकता, इसलिए इस चेतावनी का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हनुमानजी को सिद्ध करने का प्रयास भौतिक सुखों की प्राप्ति या चमत्कार प्रदर्शन के लिए कभी नहीं करना चाहिए। उनकी भक्ति के माध्यम से भगवान राम के दर्शन तथा उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। यह भक्ति हृदय की पवित्रता से ही संभव है और इसी से व्यक्ति घर और मन्दिर दोनों में एक-सा होता है। कहा जाता है की श्री हनुमानजी का जन्म ही राम भक्ति और उनके कार्यो को पूर्ण करने के लिए हुआ है। उनकी सांस-सांस में, उनके कण-कण में और खून के कतरे-कतरे में राम बसे हैं। एक प्रसंग में विभीषण के ताना मारने पर हनुमानजी ने सीना चिरकर भरी सभा में राम और जानकी के दर्शन अपने सीने में करा दिए थे।
    हनुमान की भक्ति या उनको पाने के लिये इंसान को इंसान बनना जरूरी है। जब तक भक्ति की धारा बाहर की ओर प्रवाहित रहेगी तब तक भगवान अलग रहेंगे और भक्त अलग रहेगा। हनुमान भक्ति के लिये जरूरी है उनके जीवन से दिशाबोध ग्रहण करो और अपने में डूबकर उसे प्राप्त करो। ‘जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ’- यही है सच्ची हनुमान भक्ति की भूमिका। भक्ति का असली रूप पहचानना जरूरी है, तभी मंजिल पर पहुंचेंगे, अन्यथा संसार की मरुभूमि में ही भटकते रह जायेंगे।

    उन्नत जीवन का आधार है हनुमान भक्ति

    हनुमान जयन्ती- 23 अप्रैल 2024 पर विशेष
    – ललित गर्ग –

    भगवान हनुमानजी को हिन्दू देवताआंे में सबसे शक्तिशाली माना गया है, वे रामायण जैसे महाग्रंथ के सह पात्र थे। वे भगवान शिव के ग्यारवंे रूद्र अवतार थे जो श्रीराम की सेवा करने और उनका साथ देने त्रेता युग में अवतरित हुए थे। उनको बजरंग बलि, मारुतिनंदन, पवनपुत्र, केशरीनंदन आदि अनेकों नामों से पुकारा जाता है। उनका एक नाम वायुपुत्र भी है, उन्हें वातात्मज भी कहा गया है अर्थात् वायु से उत्पन्न होने वाला। इन्हें सात चिरंजीवियो में से एक माना जाता है। वे सभी कलाओं में सिद्धहस्त एवं माहिर थे। वीरो में वीर, बुद्धिजीवियांे में सबसे विद्वान। इन्होंने अपने पराक्रम और विद्या से अनेकों कार्य चुटकीभर समय में पूर्ण कर दिए है। वे शौर्य, साहस और नेतृत्व के भी प्रतीक हैं। समर्पण एवं भक्ति उनका सर्वाधिक लोकप्रिय गुण है। रामभक्त हनुमान बल, बुद्धि और विद्या के सागर तो थे ही, अष्ट सिद्धि और नौ निधियों के दाता और ज्योतिष के भी प्रकांड विद्वान थे। वे उन्नत जीवन के आधार है। उनसे सफल एवं सार्थक जीवन के प्रबंधन की शिक्षा मिलती है। वे हर युग में अपने भक्तों को अपने स्वरूप का दर्शन कराते हैं और उनके दुःखों कोे हरतेे हैं। वे मंगलकर्त्ता एवं विघ्नहर्त्ता हैं।
    मंगलवार को हनुमानजी का जन्म हुआ, ऐसा माना जाता है। भिन्न-भिन्न लोगों ने इस महान् आत्मा का मूल्यांकन भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से किया है। हनुमान का चरित्र एक लोकनायक का चरित्र है और उनके इसी चरित्र ने उन्हें सार्वभौमिक लोकप्रियता प्रदान की है। तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं में मात्र हनुमान ही ऐसे हैं जिनकी आधुनिक युग में सर्वाधिक पूजा की जाती है और जन-जन के वे आस्था के केन्द्र हैं। उनके चरित्र ने जाति, धर्म और सम्प्रदाय की संकीर्ण सीमाओं को लांघ कर जन-जन को अनुप्राणित किया हैै। हनुमान का चरित्र बहुआयामी हैं क्योंकि उन्होंने संसार और संन्यास दोनों को जीया। वे एक महान् योगी एवं तपस्वी हैं और इससे भी आगे वे रामभक्त हैंे। हनुमान-भक्ति भोगवादी मनोवृत्ति के विरुद्ध एक प्रेरणा है संयम की, पवित्रता की। यह भक्ति एक बदलाव की प्रक्रिया है। यह भक्ति प्रदर्शन नहीं, आत्मा के अभ्युदय का उपक्रम है। इससे अहं नहीं, निर्दोष शिशुभाव जागता है। क्रोध नहीं, क्षमा शोभती है। कष्टों में मन का विचलन नहीं, सहने का धैर्य रहता है।
    उत्कृष्ट विलक्षणताओं के प्रतीक हनुमान पूर्ण मानव थे। कहते हैं कि ब्रह्मा ने जब मनुष्य का निर्माण किया तो उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई, क्योंकि उन्हें यह अनुभूत हुआ कि उनके द्वारा सृष्ट मानव ईश्वर का साक्षात्कार करने में समर्थ है। मानव न केवल संपूर्ण प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है, प्रत्युत वह अपनी साधना के द्वारा ब्रह्मपद को भी प्राप्त कर सकता है। त्रेतायुग के सर्वाधिक शक्तिशाली मानव हनुमान जिन्हें भ्रमवश अनेक देशी-विदेशी विद्वान पेड़ों पर उछल-कूद करनेवाला साधारण वानर मानते रहे हैं, अपने अलौकिक गुणों और आश्चर्यजनक कार्यों के बल पर कोटि-कोटि लोगों के आराध्य बन गये।
    भारत ही नहीं, विश्व के इतिहास में किसी ऐसे मानव का उल्लेख नहीं मिलता, जिसमें शारीरिक बल और मानसिक शक्ति का एक साथ इतना अधिक विकास हुआ हो जितना हनुमान में हुआ था। प्राचीन भारत में ब्रह्मतेज से युक्त अनेक महामानव हुए। इसी प्रकार इस पावनभूमि में ऐसे विशिष्ट व्यक्ति भी हुए जो शारीरिक बल में बहुत बलशाली थे, परन्तु ब्रह्मतेज के साथ-साथ शास्त्र-बल का जो आश्चर्यजनक योग हनुमान में प्रकट हुआ, वह अन्यत्र दिखाई नहीं पड़ता। शुद्ध आचार, विचार और व्यवहार से जुड़ी हनुमान की ऐसी अनेक चारित्रिक व्याख्याएं हैं जिनमें जीवन और दर्शन का सही दृष्टिकोण सिमटा हुआ है।
    हनुमान को बुद्धिमानों में अग्रगण्य माना जाता है। ऋग्वेद में उनके लिए ‘विश्ववेदसम्’ शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका अभिप्रेत अर्थ है- विद्वानों में सर्वश्रेष्ठ। हनुमान अपने युग के विद्वानों में अग्रगण्य थे। उनकी गणना सामान्य विद्वानों में नहीं, बल्कि विशिष्ट विद्वानों में की जाती थी। वाल्मीकि रामायण में हनुमान को महाबलशाली घोषित करते हुए ‘बुद्धिमतां वरिष्ठं’ कहना पूर्ण युक्ति संगत है। ‘रामचरितमानस’ में भी उनके लिए ‘अतुलित बलधामं’ तथा ‘ज्ञानिनामग्रगण्यम’ इन दोनों विशेषणों का प्रयोग द्रष्टव्य है। ब्रह्मचारी हनुमानजी महान् संगीतज्ञ और गायक भी थे। इनके मधुर गायन को सुनकर पशु-पक्षी एवं सृष्टि का कण-कण मुग्ध हो जाता था।
    हनुमान की विद्वता के साथ-साथ तर्क-शक्ति अत्यंत उच्च कोटि की थी। ऐसे अनेक प्रसंग है जब हनुमान ने अपनी तर्क-शक्ति से अनेक जटिल स्थितियों को सहज बना दिया। उनकी अलौकिक साधना एवं नैसर्गिक दिव्यता का ही परिणाम था कि वे  भय और आशंका से भरे वातावरण में भी निःशंक और निर्भीक बने रहते थे। संकट की घड़ी में भी शांतचित्त होकर अपने आसन्न कर्तव्य का निश्चय करना उत्तम प्रज्ञा का प्रमाण है। हनुमान इस सर्वोत्कृष्ट प्रज्ञा से युक्त थे।
    प्राचीन भारत की सर्वश्रेष्ठ भाषा संस्कृत और व्याकरण पर हनुमान का असाधारण अधिकार था। हनुमान ने सूत्र, वृत्ति, वार्तिक, महाभाष्य तथा संग्रह का भली-भांति अध्ययन किया था। अन्यान्य ग्रंथों तथा छंद-शास्त्र के ज्ञान में भी उनकी समानता करनेवाला कोई नहीं था। संपूर्ण विद्याओं के ज्ञान में उनकी तुलना देवताओं के गुरु बृहस्पति से की गयी है। महर्षि अगस्त्य के अनुसार हनुमान नवों व्याकरणों के अधिकारी विद्वान थे। नोबेल पुरस्कार विजेता आक्टाभियो पाज का भी यह सुनिश्चित मत है कि हनुमान ने व्याकरण शास्त्र की रचना की थी।
    मारुति नंदन, परमवीर, श्रीराम भक्त हनुमानजी की पवित्र मन से की गयी साधना और भक्ति चमत्कारपूर्ण परिणाम देने वाली है। हनुमानजी शिव के अवतार माने जाते हैं और ग्यारहवें रुद्र के रूप में इनकी मान्यता है। कहते हैै-मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सार्वकालिक सेवा करने एवं रावण-वध में उनका सहयोग करने के लिए भगवान राम का अवतार लेने से पूर्व ही त्रेतायुग में शिवजी ने अपने ग्यारहवें रुद्र के रूप में अवतार लिया था। वह ‘हनुमानजी’ के पवित्र लोकोपकारी नाम से विख्यात हुए। महादेव का हनुमान के रूप में अवतरण लेने के सन्दर्भ में कहा जाता है कि भगवान विष्णु महादेव के इष्ट देव हैं। वे उनके श्रीचरणों के शाश्वत पुजारी हैं। त्रेतायुग में रावणादि राक्षसों का सकुल संहार करके उनका उद्धार करने के लिए ही भगवान विष्णु अयोध्या के महाराज दशरथ के यहां अपनी सोलह कलाओं सहित पुत्र रूप में अवतरित हुए। अतः उनकी सेवा करने के लिए महादेव ने हनुमान के रूप में अवतार लिया।
    तंत्र शास्त्र के आदि देवता और प्रवर्तक भगवान शिव हैं। इस प्रकार से हनुमानजी स्वयं भी तंत्र शास्त्र के महान पंडित हैं। समस्त देवताओं में वे शाश्वत देव हैं। परम विद्वान एवं अजर-अमर देवता हैं। वे अपने भक्तों का सदैव ध्यान रखते हैं। उनकी तंत्र-साधना, वीर-साधना है। वे रुद्रावतार और बल-वीरता एवं अखंड ब्रह्मचर्य के प्रतीक हैं। अतः उनकी उपासना के लिए साधक को सदाचारी होना अनिवार्य है। उसे मिताहारी, जितेन्द्रिय होना चाहिए। हनुमान साधना करने के लिए हर व्यक्ति उसका पालन नहीं कर सकता, इसलिए इस चेतावनी का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि हनुमानजी को सिद्ध करने का प्रयास भौतिक सुखों की प्राप्ति या चमत्कार प्रदर्शन के लिए कभी नहीं करना चाहिए। उनकी भक्ति के माध्यम से भगवान राम के दर्शन तथा उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। यह भक्ति हृदय की पवित्रता से ही संभव है और इसी से व्यक्ति घर और मन्दिर दोनों में एक-सा होता है। कहा जाता है की श्री हनुमानजी का जन्म ही राम भक्ति और उनके कार्यो को पूर्ण करने के लिए हुआ है। उनकी सांस-सांस में, उनके कण-कण में और खून के कतरे-कतरे में राम बसे हैं। एक प्रसंग में विभीषण के ताना मारने पर हनुमानजी ने सीना चिरकर भरी सभा में राम और जानकी के दर्शन अपने सीने में करा दिए थे।
    हनुमान की भक्ति या उनको पाने के लिये इंसान को इंसान बनना जरूरी है। जब तक भक्ति की धारा बाहर की ओर प्रवाहित रहेगी तब तक भगवान अलग रहेंगे और भक्त अलग रहेगा। हनुमान भक्ति के लिये जरूरी है उनके जीवन से दिशाबोध ग्रहण करो और अपने में डूबकर उसे प्राप्त करो। ‘जिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ’- यही है सच्ची हनुमान भक्ति की भूमिका। भक्ति का असली रूप पहचानना जरूरी है, तभी मंजिल पर पहुंचेंगे, अन्यथा संसार की मरुभूमि में ही भटकते रह जायेंगे।

    अपनी विरासत सहेजने की जद्दोजहद करता कालबेलिया समुदाय

    घनश्याम सादावत
    अजमेर, राजस्थान

    भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां सबसे अधिक संख्या में धर्म, जाति और समुदाय आबाद है. कुछ समुदाय का अस्तित्व हजारों वर्ष पुरानी मानी जाती है तो कुछ ऐसे भी समुदाय हैं जो इतने पुराने हैं कि उनके मूल अस्तित्व का कोई प्रमाण भी मौजूद नहीं है. कुछ समुदाय ऐसे भी हैं जिनकी उत्पत्ति 11वीं या 12वीं सदी की मानी जाती है. हालांकि इस आधुनिक काल में इनमें से बहुत सारे समुदाय ऐसे हैं जिन्होंने अपनी संस्कृति और विरासत को आज भी मूल स्वरूप में बचा कर रखा है. यह समुदाय आधुनिक चिकित्सा से कहीं अधिक अपने देसी इलाज पर न केवल विश्वास करता है बल्कि उसे अपनाता भी है. हालांकि उनकी चिकित्सा विधि किसी वैज्ञानिक प्रमाण पर आधारित नहीं होती है. ऐसे में उसे प्रमाणित और सटीक नहीं माना जा सकता है. लेकिन यह समुदाय वर्षों से उस विधि को अपनाता आ रहा है. इन्हीं में एक राजस्थान का कालबेलिया समुदाय भी है. जो पीढ़ी दर पीढ़ी देसी विधि से आँखों में लगाने वाला सूरमा (काजल) तैयार करता आ रहा है. इनका दावा है कि इस सूरमा के कारण ही इनके समुदाय में कभी किसी की आंखें खराब नहीं हुई हैं. हालांकि आधुनिकता की चकाचौंध और वैज्ञानिक चिकित्सा से प्रभावित होकर अब इस समुदाय की नई पीढ़ी अपनी इस विरासत से दूर होने लगी है.

    घूम घूम कर सांप पकड़ने के लिए विश्व विख्यात कालबेलिया समुदाय को सपेरा, जोगी अथवा घुमंतू समुदाय भी कहा जाता है. यह अपने नृत्य और संगीत के लिए भी विशेष पहचान रखता है. यह समुदाय अपनी उत्पत्ति 12वीं सदी में गुरु गोरखनाथ के शिष्य से जोड़ कर देखता है. अधिकतर कालबेलिया समुदाय खानाबदोश जीवन बिताते हैं. सरकार की ओर से इसे अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है. खानाबदोश जीवन गुज़ारने के कारण ही अक्सर यह अपना अस्थाई आवास गांवों के बाहरी हिस्सों में बसाते हैं. पीढ़ियों से चले आ रहे इस क्रम के कारण इन्हें स्थानीय वनस्पति और जीव-जंतुओं की ख़ासी जानकारी हो जाती है. इसी ज्ञान के आधार पर वे कई तरह के आयुर्वेदिक उपचार के भी जानकार हो जाते हैं. हालांकि पहले की अपेक्षा अब यह समुदाय एक जगह स्थाई निवास बना कर रहने लगा है. लेकिन इनमें से अधिकतर के पास पैतृक संपत्ति नहीं होती है.

    कालबेलिया जनजाति की सर्वाधिक आबादी राजस्थान के पाली जिले में है. अजमेर जिला और इसके आसपास के गांवों में भी इनकी बड़ी संख्या में आबादी पाई जाती है. जिला के गुघरा पंचायत स्थित नाचण बावड़ी गाँव में इस समुदाय की बड़ी संख्या आबाद है. इसके अतिरिक्त सरदार सिंह की ढाणी, किशनगढ़, काला तालाब, जुणदा रूपनगर और अराई में भी इस समुदाय की एक बड़ी संख्या आबाद है. समुदाय के देसी काजल के बारे में 80 वर्षीय बुजुर्ग बिदाम देवी कहती हैं कि “इसका प्रयोग समुदाय में जन्म लेने वाले बच्चे से लेकर 100 वर्ष की आयु वाले बुजुर्ग तक करते हैं. इसके प्रयोग से समुदाय के किसी सदस्य की आंखें कभी खराब नहीं हुई है. इस आधार पर वह दावा करती हैं कि इसका प्रयोग करने वाले उनके समुदाय के किसी भी सदस्य की प्राकृतिक रूप से कभी भी आंखें कमजोर नहीं हुई है और उन्हें कभी चश्मा पहनने की आवश्यकता नहीं हुई है.”

    बिदाम देवी बताती हैं कि “यह सुरमा शुद्ध देसी रूप से समुदाय के लिए तैयार किया जाता है. इसे सांप का जहर, रतनजोत, समुद्री झाग, इलायची के बीज, पताल तुंबडी और बेल की जड़ आदि के मिश्रण से तैयार किया जाता है. इसे लगाते समय समुदाय के गुरुओं द्वारा बताये गए मंत्रों का जाप किया जाता है. उनका दावा है कि इसके प्रयोग से उनके समुदाय के किसी भी सदस्य की न तो लंबे समय तक आँखों की रौशनी जाती है और न ही मोतियाबिंद या आई फ्लू अथवा आंखों से पानी आता है.” वह बताती हैं कि उनका समुदाय इस सूरमा को महंगे दामों में बेचता भी है जिसे देसी इलाज पर विश्वास करने वाले ग्रामीण समुदाय के कई लोग खरीदते भी हैं. हालांकि वह इसका किसी भी प्रकार से वैज्ञानिक प्रमाण नहीं दे पाती हैं. शायद इसीलिए वह मानती हैं कि तर्क और विवेक पर आधारित प्रमाण पर विश्वास करने वाले स्वयं उनके समुदाय की नई पीढ़ी अब इस पर विश्वास नहीं करती है और आधुनिक चिकित्सा पर अधिक विश्वास करने लगी है. इसीलिए पहले की अपेक्षा अब यह सूरमा कालबेलिया समुदाय में कम मात्रा में तैयार किया जाता है.

    नाचण बावड़ी में आबाद कालबेलिया समुदाय में बिदाम देवी सबसे अधिक उम्र वाले कुछ सदस्यों में एक हैं. उनके पति की 15 वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी है. उनके दोनों बेटों की भी कुछ वर्ष पूर्व मृत्यु हो चुकी है. दोनों की विधवा पत्नी अपने बच्चों के साथ बिदाम देवी के साथ रहती हैं. बिदाम देवी को जहां प्रतिमाह वृद्धा पेंशन मिलती है वहीं उनकी बहुओं को भी सरकार की ओर से दी जाने वाली विधवा पेंशन का लाभ मिलता है. फिलहाल घर में कमाने वाला उनका सबसे बड़ा पोता अनिल है जो कालबेलिया समुदाय के सांप पकड़ने के पारंपरिक काम की जगह पेंटर का काम करता है. बिदाम देवी कहती हैं कि “पहले की अपेक्षा अब नई पीढ़ी सांप पकड़ने या गांव गांव जाकर सांप का खेल दिखाने की जगह व्यापार, मज़दूरी, मार्बल फैक्ट्रियों में लेबर वर्क और गाड़ी चलाने जैसे कार्यों को प्राथमिकता देने लगी है. इसके अतिरिक्त नई पीढ़ी में शिक्षा प्राप्त करने के प्रति भी जागरूकता बढ़ी है. समाज के ज़्यादातर बच्चे स्थानीय स्कूलों में जाने लगे हैं.” हालांकि बालिका शिक्षा के प्रति अभी भी इस समाज में बहुत अधिक जागरूकता नहीं आई है. समाज की अधिकतर लड़कियां अभी भी दसवीं तक नहीं पहुंच सकी हैं. जो एक चिंता का विषय है. 

    कालबेलिया समाज की नई पीढ़ी का सांप पकड़ने से दूरी की एक वजह सांपों को लेकर सरकार द्वारा बनाये गए सख्त कानून भी हैं. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत सांपों को रखने पर जेल या जुर्माने का प्रावधान है. हालांकि बिदाम देवी उत्साह के साथ कहती हैं कि “आज भी गांव या शहर में कहीं भी घरों, मकानों, दुकानों या पुरानी इमारतों में सांप नज़र आता है तो उसे पकड़ने के लिए लोग हमें ही बुलाते हैं. सांप पकड़ने के एवज़ में लोग खुश होकर हमें पैसे और कपड़े भी देते हैं. वह कहती हैं कि उनके समुदाय में आज भी सांप को परिवार के एक सदस्य के रूप में माना जाता है. जब समाज में लड़की की शादी होती है तो उसे उपहार स्वरुप सांप और कुत्ता भेंट किया जाता है.” सांप के प्रति इसी लगाव ने समाज के बुज़ुर्गों को इसके ज़हर और अन्य जड़ी बूटियों को मिलकर देसी सूरमा बनाने के लिए प्रेरित किया था. जिसे यह पीढ़ी दर पीढ़ी बिना किसी ठोस वैज्ञानिक प्रमाण के अपनाते आ रहे हैं.

    बहरहाल, कालबेलिया समाज की नई पीढ़ी वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर भले ही इस देसी इलाज की जगह आधुनिक चिकित्सा को तरजीह देती हो, लेकिन बिदाम देवी जैसी बुज़ुर्ग अभी भी अपने समाज के इस विरासत पर न केवल गर्व करती हैं बल्कि वह इसे सहेज कर अगली पीढ़ी तक पहुंचाने की जद्दोजहद भी करती नज़र आ रही हैं.

    जलियाँवाला बाग़ नरसंहार क्या षड्यन्त्र था?

    – डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

                                    भारतीय पंचांग में वैशाख मास पवित्र माना जाता है । लोग नदियों में स्नान करते हैं । वैशाख पर्व या वैसाखी सर्वत्र अत्यन्त उत्साह से मनाई जाती है । नए वर्ष की शुरुआत भी वैशाख के प्रथम दिन से ही की जाती है । पश्चिमोत्तर भारत या सप्त सिन्धु क्षेत्र में वैशाख मास की एक अतिरिक्त महत्ता भी है । इसी मास में दशगुरु परम्परा के दशम गुरु गोविन्द सिंह जी ने शिवालिक की उपत्यकाओं में माखोबाल, जो अब आनन्दपुर के नाम से विख्यात है , में एक राष्ट्रीय सम्मेलन बुला कर 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी । लेकिन जिस बैसाखी की हम चर्चा कर रहे हैं , वह बैसाखी 1919 की थी । अब तक सप्त सिन्धु की नदियों में बहुत पानी बह चुका था । अब पंजाब पर इंग्लैंड की सरकार राज कर रही थी और उसने पंजाब के लोगों के आक्रोश का दमन करने के लिए रौलट एक्ट लागू कर दिया था । लेकिन उससे ग़ुस्सा कम होने की वजाए बढ़ने लगा था । इस समय 1919 की वैसाखी के अवसर पर  भारत का वायसराय Lord Chelmsford था ।  Edwin Montagu लंदन में भारत सचिव था ।  पंजाब का लेफ़्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओडवायर  था । जालन्धर में 45वीं इन्फैंटरी ब्रिगेड का कमांडर ब्रिगेडियर जनरल आर ई एच डायर ( R.E.H.Dyer) था । अमृतसर में तनाव और ग़ुस्से को देखते हुए प्रशासन ने ब्रिगेडियर जनरल आर ई एच डायर को जालन्धर से अमृतसर बुला लिया था । उसने आते ही  पूरे प्रशासन को अपने क़ब्ज़े में ले लिया । जलियाँवाला कांड पर अपने शोध कार्य के लिए ख्याति प्राप्त इतिहासकार कहते हैं कि लेकिन हैरानी की बात है कि उस समय अमृतसर में मार्शल ला नहीं लगा था । सिविल प्रशासन ही कार्यरत था । बिना मार्शल ला के जनरल डायर के हाथों सारा प्रशासन कैसे दे दिया गया ? अमृतसर में जनसभाओं को रोकना , भीड़ को हटाना सिविल प्रशासन का काम है । यह काम सेना ने कैसे संभाल लिया ? ज़िलाधीश तो अचानक पूरे परिदृश्य से गायब ही हो गया ।  ज़िलाधीश अनुपस्थित था और जनरल डायर की सेना ने मोर्चा संभाला हुआ था । यह जनरल डायर और पंजाब के तत्कालीन लैफ्टीनैंट जनरल माइकल ओडवायर के आपसी षड्यंत्र के बिना संभव दिखाई नहीं देता । 
    
         उधर अमृतसर में वैशाखी के उत्सव का परम्परागत उत्साह तो था ही , इस बार इस राजनैतिक उथल पुथल से वातावरण और भी गरमा गया था । जलियाँवाला बाग में वैशाखी पर्व की तैयारियाँ शुरु हो गईं । ऐसा नहीं कि आम लोगों को अंग्रेज़ों की नीचता का पता नहीं था । अमृतसर में उसका नंगा नाच कई दिनों से हो ही रहा था । लेकिन लोग इस बार केसरिया बाना पहन कर मानों शहादत देने के लिए ही निकले थे । देखना है ज़ोर कितना बाजुए क़ातिल में है । विदेशी शासक अपनी क्रूरता में किसी भी सीमा तक जा सकते थे । पंजाब में अब शासन रणजीत सिंह का नहीं था बल्कि इंग्लैंड के डायरों का था । 
                        श्रद्धालु सुबह से ही बाग में जुटने शुरु हो गए थे । साढ़े चार बजे तक पन्द्रह से लेकर बीस हज़ार के लगभग लोग जलियाँवाला बाग़ में एकत्रित हो चुके थे । चारों ओर नर मुंड ही दिखाई दे रहे थे । मिट्टी के एक ऊँचे टीले पर खड़े होकर जनता को सम्बोधित करने की व्यवस्था की गई थी ।  सभा शुरु हो चुकी थी । दो प्रस्ताव पारित किए जा चुके थे । तीसरे प्रस्ताव पर चर्चा शुरु हुई थी । यह प्रस्ताव  था कि ब्रिटिश सरकार भारत में अपनी दमन की नीति को बदले । लेकिन तब तक ब्रिटिश सरकार की दमन की नीति का नंगा प्रदर्शन करने के लिए डायर जलियाँवाला बाग के मुहाने पर हथियारबन्द फ़ौज लेकर पहुँच चुका था ।  पूरे पाँच बज कर पन्द्रह मिनट पर जनरल डायर पचास राइफ़लमैन और मशीनगन से लदी दो गाड़ियाँ लेकर बाग़ के मुख्य  प्रवेश द्वार पर आ डटा । प्रवेश द्वार पर उसने अपने राइफ़लमैन तैनात किए । उसकी इच्छा मशीनगन भी प्रवेश द्वार पर लाने की थी लेकिन द्वार इतना तंग था कि गाड़ी अन्दर नहीं आ सकती थी । बिना किसी चेतावनी के डायर की सेना ने वहाँ उपस्थित श्रद्धालुओं पर गोलीबारी शुरु कर दी । गोलियाँ उन दिशाओं में चलाई जा रही थीं , जहां के संकरे रास्तों से लोग निकलने की कोशिश कर रहे थे । अनुमान किया जाता है कि 1650 से भी ज़्यादा राउंड फ़ायर किए गए । अंग्रेज़ सरकार ने जो स्वयं आधिकारिक आँकड़े जारी किए उसके अनुसार 379 लोग शहीद हुए और 1100 घायल हुए । लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा की गई जाँच के अनुसार एक हज़ार से भी ज़्यादा श्रद्धालु शहीद हुए और पन्द्रह सौ से भी ज़्यादा घायल हुए थे । बाग के अन्दर एक कुँआ था , उसी  में से 120 से भी ज़्यादा लाशें निकाली गईं । इस कुकृत्यों से ब्रिटेन सरकार का अमानवीय और साम्राज्यवादी विकृत चेहरा नंगा हो गया । इस नरसंहार के बाद डायर ने पंजाब के लैफ्टीनैंट गवर्नर ओडवायर को सूचित किया , "मेरा सामना एक क्रान्तिकारी सेना से था ।"  लैफ्टीनैंट गवर्नर ओडवायर ने उत्तर दिया , " तुमने जो किया , बिलकुल ठीक किया । मैं इसका समर्थन करता हूँ ।" और लैफ्टीनैंट गवर्नर ने वायसराय को लिखा कि अब इस नरसंहार के बाद मार्शल ला की अनुमति दी जाए और वायसराय ने अनुमति दे दी । मार्शल ला के बाद अमृतसर निवासियों पर जो अमानुषिक अत्याचार हुए , उसने गोरों की साम्राज्यवादी चेतना और अमानवीय मानसिकता का पर्दाफ़ाश कर दिया । किसी गली में किसी मिशनरी चर्च की एक अंग्रेज़ औरत के साथ कुछ लोगों ने दुर्व्यवहार किया था लेकिन बाद में वहीं के लोगों ने उसे भीड़ से छुड़ा कर सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया था । उस गली में सभी हिन्दुस्तानियों को रेंग कर चलने के लिए विवश किया गया , ताकि उनको पता चले कि एक अंग्रेज़ औरत की क़ीमत तुम्हारे देवी देवताओं से भी ज़्यादा है , जिनके आगे तुम रेंगते हो । शहर में कर्फ़्यू होने के कारण जलियाँवाला बाग में कराह  रहे घायलों को हस्पताल नहीं पहुँचाया जा सका जिसके कारण उन्होंने वहीं तड़पते हुए दम तोड़ दिया । 

    क्या जलियाँवाला ब्रिटिश षड्यंत्र था ?

    कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो० विश्वनाथ दत्त ने बहुत परिश्रम करके इस नरसंहार से सम्बंधित ब्रिटिश राज की फ़ायलों का अध्ययन किया और कुछ चौंकाने वाले तथ्य प्रकाशित किए । उनके अनुसार अमृतसर में जलियाँवाला बाग में जनसभा का आयोजन हंसराज नामक व्यक्ति ने किया था । उसी की यह योजना थी । लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न है कि यह हंसराज कौन था ? हंस राज अमृतसर कांग्रेस में काफ़ी महत्वपूर्ण ही नहीं हो गया था बल्कि वह उस समय के क़द्दावर कांग्रेसी नेता सैफ़ुद्दीन किचलू का काफ़ी अन्तरंग भी हो चुका था । किचलू की गिरफ़्तारी के बाद वह ही परोक्ष रूप से कांग्रेस में निर्णय लेने की स्थिति में था । वह क्योंकि किचलू का काफ़ी नज़दीकी था इसलिए आम कांग्रेसियों को उसका नेतृत्व और निर्णय स्वीकारने में कोई दिक़्क़त नहीं थी । कांग्रेस में ब्रिटिश सरकार ने अपने कुछ पिट्ठु काफ़ी अरसे से सक्रिय कर रखे थे । हंसराज इनमें से ही प्रमुख व्यक्ति था । वी.एन.दत्त के अनुसार , ब्रिटिश सरकार की यह अपनी ही योजना थी कि बैसाखी के दिन किसी तरह हज़ारों भारतीयों को किसी ऐसे स्थान पर लाया जाए , जहाँ से भागने का कोई रास्ता न हो हो । इस प्रकार उनको घेर कर गोलियों से भून दिया जाए ताकि सदा के लिए उनके मन में ब्रिटिश सरकार का आतंक बैठ जाए । इस काम के लिए उन्होंने बैसाखी के दिन का चयन किया । लोगों को जलियाँवाला बाग में लाने का दायित्व हंसराज को दिया गया और उन्हें गोलियों से भून देने का कार्य अंजाम देने के लिए जालन्धर से विशेष तौर पर डायर को बुलाया गया था । अमृतसर में भी ब्रिटिश सेना के उच्च अधिकारी विद्यमान थे लेकिन ब्रिटिश सरकार को शायद लगता होगा कि वे इस हैवानियत के काम को अंजाम देने में शायद कहीं चूक न जाएँ । जनरल डायर , पंजाब के उस समय के लैफ्टीनैंट गवर्नर जनरल ओडवायर का दोस्त भी था और उसकी हैवानियत भरे स्वभाव की प्रसिद्धि भी थी । जनरल डायर के बाग के मुख्य द्वार पर मोर्चा संभाल लेने के बाद लोगों ने उठना भी शुरु कर दिया था लेकिन हंसराज में उन्हें मंच से आश्वस्त किया कि जाने की ज़रूरत नहीं है , सेना गोली नहीं चलाएगी । वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के इस आश्वासन के बाद लोग बैठ गए और डायर ने गोलीबारी शुरु कर दी और हंसराज मंच से ग़ायब हो गया । बाद में अंग्रेज़ सरकार ने उसे चुपचाप दूसरे देश मैसेपटामिया में स्थापित कर दिया । जब लोगों को हंसराज की करतूत का पता चला तो उन्होंने अमृतसर में उसका घर जला दिया ।

    कांग्रेस का सिमटता प्रभाव और उसकी ख़तरनाक सोच

    – कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

                    कर्नाटक विधान सभा में पिछले दिनों कांग्रेस के वरिष्ठ मंदिर डी के सुरेश ने कहा कि केन्द्र सरकार दक्षिण भारत के राज्यों को कम पैसा मुहैया करवाती है , इससे हो सकता है कि हम दक्षिण के राज्य भविष्य में भारत से अलग होने की सोचें । वैसे तो पूछा जा सकता है कि सुरेश बाबू को दक्षिण के राज्यों का प्रतिनिधि किसने बनाया ? तमिलनाडु में कांग्रेस कामराज के बाद से लुप्त प्रजाति में शामिल हो चुकी है । डीएमके, चुनाव के मौसम में उसे कन्धे पर इस लहजे में उठा लेती है जैसे नई पीढ़ी के ज्ञान के लिए ऐतिहासिक चीज़ों का प्रदर्शन किया जाता है । लेकिन सुरेश बाबू ने जब से यह रहस्योद्घाटन किया है तब से कम से कम प्रदेश में कांग्रेस के लोगों में यह भय बैठ गया है कि कहीं पार्टी विभाजन को लेकर किसी एजेंडा पर तो नहीं चल रही ? पिछले दिनों कर्नाटक में कांग्रेस की एक विशाल जन सभा हो रही थी । उसमें कांग्रेस में  सोनिया गान्धी परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाले पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी मंचासीन थे । कांग्रेस के एक विधायक लक्ष्मण संवादी भी मंच पर थे । वे भाषण दे रहे थे । उनके मन में इच्छा हो रही थी कि वे मंच पर से ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाएँ । लेकिन डर रहे थे कि कहीं इस नारे से पार्टी अध्यक्ष बुरा न मान जाएँ । कुछ देर तक लंक्ष्मण के मन में डर और श्रद्धा के बीच द्वन्द चलता रहा होगा । लेकिन अन्त में राष्ट्रीयता की जीत हुई । उन्होंने मंच पर से ही मल्लिकार्जुन खडगे से पूछा कि यदि आप बुरा न मनाएँ तो मैं ‘भारत माता की जय’ का एक नारा लगा लूँ ? आख़िर क्या कारण है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता जानते हैं कि अब पार्टी ‘भारत माता की जय’ या ‘जय श्री राम’ का जय घोष करना ख़तरे से ख़ाली नहीं है ? इसका अर्थ स्पष्ट है कि कांग्रेस का आम कार्यकर्ता तो देश को अखंड रखने के लिए या फिर अखंड भारत के लिए लालायित है लेकिन उसका नेतृत्व अपने संकुचित राजनैतिक हितो के लिए भारत को तोड़ने की हद तक भी जा सकता है । महात्मा गान्धी से लेकर सोनिया परिवार तर की यह यात्रा सचमुच चौंकाती है । यह यात्रा रघुपति राघव राजा राम से शुरू हुई थी और राम मंदिर के निर्माण के विरोध तक ही नहीं बल्कि राम के अस्तित्व को ही नकारने तक पहुँच गई है । यही कारण है कि पार्टी प्रधान की हाज़िरी में कांग्रेस का विधायक ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हुए भी डरता है कि कहीं पार्टी एक्शन न ले वे ।
     दरअसल पिछले कुछ अरसे से भाजपा ने जनसंघ के समय से चले आ रहे अपने अखंड भारत के संकल्प को ज्यादा ज़ोर से कहना शुरु कर दिया है । तब भी शायद कोई इसको ज्यादा तबज्जों न देता यदि भाजपा ने भारतीय संविधान में से अनुच्छेद 370 को न हटा दिया होता । इससे लोगों में यह विश्वास जगने लगा है कि पार्टी घोषणा पत्र/संकल्प पत्र में जो लिखती है , उसे पूरा करती है । चाहे उसमें कितना ही समय क्यों न लगे । इसके पहले चरण में तो पाकिस्तान के कब्जे से वे इलाक़े मुक्त करवाना है जो उसने 1947 में कश्मीर पर हमला करके भारत से छीन लिए थे । इसके संकेत प्रधानमंत्री मोदी अनेक बार दे भी चुके हैं । इससे पाकिस्तान का चिंतित होना स्वभाविक ही है । लेकिन लगता है पाकिस्तान से ज्यादा चिन्ता इससे कांग्रेस के नेतृत्व  को हो रही है । लेकिन उस का चिन्ता व्यक्त करने का तरीक़ा सामान्य नहीं है । उसका कहना है कि भारतीय जनता पार्टी देश को विभाजित करना चाहती है । आरोप इस प्रकार का है कि आम भारतीय को यह हज़म नहीं होता । सोनिया गान्धी परिवार ने ऐसा आरोप मुस्लिम लीग या सीपीएम पर लगाया होता तो शायद भारत के लोग इस पर ज्यादा आश्चर्यचकित न होते । लेकिन यह परिवार ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि इन दोनों के साथ केरल में परिवार का राजनैतिक समझौता है । इसलिए उसने यह आरोप भाजपा पर लगाना आसान मान लिया ।
                 लेकिन भाजपा आख़िर विभाजन करवाना कैसे चाहता है ? परिवार का कहना है कि भाजपा नार्थ-साऊथ डिवाइड के रास्ते पर चल रहा है । लेकिन लोग आख़िर इसके लिए प्रमाण की माँग करेंगे ही । वैसे यह जरुरी नहीं है कि राहुल गान्धी जो भी कहते रहते हैं , उसके लिए कुछ प्रमाण भी उनके पास होते ही हों । वे स्वयं को इस प्रकार के सभी बन्धनों से आज़ाद मानते हैं । सुरेश बाबू का तर्क यदि गहराई से देखा जाए तो कुछ बातें स्पष्ट हो रही हैं । कांग्रेस का कहना है कि-
    १. उत्तर भारत , पश्चिमी भारत और कुछ सीमा तक पूर्वी भारत के लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट देते हैं , इसलिए केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती है ।
    २. दक्षिणी प्रान्तों के लोग भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं देते , इसलिए भारतीय जनता पार्टी इन दक्षिणी क्षेत्रों से नाराज़ है ।
    ३. भारतीय जनता पार्टी अपनी यह नाराज़गी इन दक्षिणी राज्यों से बदला लेकर निकालती है । बदला लेने का तरीक़ा यही अपनाती है कि इन राज्यों को कम पैसा आवंटित किया जाता है ।
    ४. कांग्रेस के वरिष्ठ मंत्री डी के सुरेश इसका एक ही हल बताते हैं कि फिर दक्षिण के राज्यों को देश से अलग होना पड़ेगा ।
                         सुरेश बाबू के तर्कों को निश्चय ही देखना पड़ेगा । सुरेश बाबू कर्नाटक से ताल्लुक रखते हैं । कर्नाटक में मुख्य रूप से दो ही राजनैतिक दल हैं । भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस । वहाँ एक बार भाजपा और दूसरी बार कांग्रेस सत्ता में आती है । इससे कोई भी अक़्लमंद आदमी यह तो नहीं कहेगा कि कर्नाटक के लोग भाजपा को वोट नहीं देते । दूसरा उदाहरण तेलांगना का ले सकते हैं । तेलांगना में मुख्य रूप से तीन राजनैतिक दल हैं । कांग्रेस , भारत राष्ट्र समिति और भारतीय जनता पार्टी । इन तीनों दलों को कुछ अन्तर से सम्मानजनक वोट मिलते हैं । इस लिए तीनों राजनैतिक दलों की स्थिति राज्य में बराबर है । शेष दक्षिण के तीन राज्य हैं । आन्ध्र प्रदेश केरल और तमिलनाडु । तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा की स्थिति लगभग बराबर ही है । इन दोनों की स्थिति नगण्य है । इसका अर्थ हुआ कि दक्षिण के राज्यों में भाजपा और कांग्रेस की स्थिति लगभग बराबर ही है । फिर सुरेश बाबू किस हैसियत से मानते हैं कि कांग्रेस को सभी दक्षिणी राज्यों के प्रतिनिधि के तौर पर बोलने का अधिकार है ?  सुरेश बाबू एक बात शायद भूल रहे हैं कि पिछले दिनों जब राज्य सभा के चुनाव में कांग्रेस का एक प्रत्याशी जीता था तो कर्नाटक विधान सभा के भीतर ही उसके समर्थकों ने ख़ुशी में पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे लगाए थे । तब कांग्रेस के ही कुछ बड़े लोगों ने उसकी निन्दा करने की बजाए यह तर्क दिया था कि पाकिस्तान हमारा मित्र देश है , उसकी बात करना ग़लत कैसे हो गया । शायद उसी के कारण कांग्रेस के आम कार्यकर्ता के मन में कहीं न कहीं डर बैठ गया है कि भारत माता की जय से कांग्रेस नेतृत्व चिडता है और पाकिस्तान ज़िन्दाबाद से नाराज़ नहीं होता ।
                             बाबा साहिब आम्बेडकर को शायद कांग्रेस से इसी बात का अन्देशा था । इसीलिए उन्होंने संविधान सभा में अपने अंतिम सम्बोधन में चेतावनी दी थी कि हमें इस प्रकार की वृत्तियों से सावधान रहना होगा । इसी के कारण हमारा देश पूर्वकाल में गुलाम होता रहा है । हम अपने निजी स्वार्थों के कारण आपस में ही लडने लगते रहते हैं और विदेशी दुश्मन इसका लाभ उठाते हैं । आज लगता है आम्बेडकर को जिस बात का डर था कांग्रेस नेतृत्व अपने क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थों के कारण उसी रास्ते पर चल पड़ा है । पिछले कुछ साल से राहुल गान्धी के बयानों को भी इसी गहरी नज़र से देखना चाहिए । वे अमेरिका के लोगों को बताते रहे हैं कि भारत को पाकिस्तान समर्थक इस्लामी आतंकवादियों से इतना डर नही हैं जितना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से । सौभाग्य ले कांग्रेस का आम कार्यकर्ता और देश की जनता कांग्रेस नेतृत्व की भारत को विभाजित करने की इस थ्यूरी से सहमत नहीं है । सही कारण है कि वह कांग्रेस नेतृत्व की इन देश विरोधी रणनीति से सचेत होकर उसे नकार रही है ।

    आत्मपॅम्फ्लेट – भारत की अपनी फॉरेस्ट गंप जो मराठी में बनी है

    जावेद अनीस

    साल 2022 रिलीज हुयी आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा हॉलीवुड की कल्ट कलासिक फिल्म फॉरेस्ट गंप (1994) की आधिकारिक रिमेक थी, लेकिन इसमें रिमेक के दावे के अलावा फॉरेस्ट गंप जैसा कुछ भी नही था. यह एक डरी हुयी फिल्म थी जो गैर-विवादास्पद फिल्म बनने के दबाव में एक साधारण फिल्म बन कर रह गयी थी. वहीँ 2023 में रिलीज हुयी मराठी फिल्म ‘आत्मपॅम्फ्लेट’ एक मौलिक फिल्म है जो बिना किसी महानता का दावा किये हमें लाल सिंह चड्ढा के डिजास्टर को भूल जाने का मौका देती है और अनजाने में ही सही खुद को फॉरेस्ट गंप के वास्तविक भारतीय संस्करण के रूप में पेश करती है. यह एक बहुत ही प्यार से बनायी गयी फिल्म है जो हमें प्यार, दोस्ती और मासूमियत का जश्न मनाने का मौका देती है. पिछले दिनों मराठी भाषा की इस ब्लैक कॉमेडी को अंग्रेजी उपशीर्षक के साथ ओटीटी प्लेटफार्म जी-5 पर रिलीज़ किया गया है.

    फिल्म की कहानी

    हमारे यहाँ बहुत कम ऐसी फिल्में है जो सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर बात करते समय उपदेशात्मक नहीं होती जबकि ऐसी फिल्मों की संख्या तो बहुत ही कम है जो ऐसे मसलों को व्यंग्यपूर्ण तरीके से डील करती हैं, आत्मपैम्फ़लेट उन्हीं चुनिन्दा फिल्मों में से एक है जो बच्चों के नजरिए से भारतीय समाज पर एक मजेदार टिप्पणी करती है. आत्मपॉम्प्लेट हाल के दिनों में सामाजिक-राजनीतिक विषय पर आई सबसे प्रभावशाली व्यंग्यात्मक फिल्मों में से एक है.

    फिल्म का मुख्य किरदार महाराष्ट्र में दलित समुदाय एक किशोर लड़का आशीष बेडे है जिसे अपनी सहपाठी सृष्टि से प्यार हो जाता है जो ब्राह्मण समुदाय से है. इसमें उसके दोस्त जो अलग-अलग जाति और समुदायों (मुस्लिम, मराठा, ब्राह्मण और कुनबी) से हैं आशीष की मदद करते हैं. यह 80- 90 के दशक और उसके बाद के वर्षों का वो दौर है जब भारत अपने राष्ट्रीय चरित्र में बदलाव के दौर से गुजर रहा था. नतीजतन यह फिल्म आशीष की एकतरफा प्रेम कहानी के साथ-साथ उस समय भारत में हो रहे बदलाओं और प्रमुख घटनाओं को भी बहुत बारीकी से दर्शाती है. फिल्म की कहानी काफी हद तक आशीष के बचपन और किशोरावस्था की प्रमुख घटनाओं पर आधारित है. फिल्म आशीष की जिंदगी के अहम पड़ावों को देश के इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ों के साथ लेते हुये आगे बढ़ती है जिसमें इंदिरा गांधी की हत्या, मंडल आयोग की रिपोर्ट की घोषणा और बाबरी मस्जिद विध्वंस जैसी महत्वपूर्ण घटनायें शामिल हैं. इस सामान्य किशोर प्रेमकथा में दिलचस्प मोड़ तब आना शुरू होता है जब हमें फिल्म के प्रमुख पात्रों के सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में पता चलना शुरू होता है.

    वो बातें जो फिल्म को खास बनाती हैं  

    फिल्म शुरुआत में ही यह घोषणा कर देती है कि यह एक प्रेम कहानी है जोकि एक सफेद झूठ है. दरअसल फिल्म की पटकथा हल्की-फुल्की और सहज है लेकिन यह हमारे समय का एक काला हास्य है जो जाति, धर्म और अन्य गंभीर सामाजिक मसलों को हास्य के माध्यम से बहुत ही संतुलित तरीके से पेश करती है और ऐसा करते समय वो बिलकुल निर्भीक और निडर है. फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह दो अलग विषयों प्रेम और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को बहुत ही खूबसूरती से एक साथ लेकर चलती है, ऐसा करते समय संतुलन और प्रवाह पूरी तरह से बना रहता है और किसी भी चीज को अनावश्यक रूप से खींचा नहीं जाता है. फिल्म का मूल नैरेटिव विविधता में एकता है जो पूरे समय विभिन्न जातियों और धर्मों से ताल्लुक रखने वाले दोस्तों के माध्यम से नेपथ्य में चलता रहता है.

    दूसरी बड़ी खूबी इसकी सार्वभौमिकता है, यह फिल्म जिस तरह के भेदभाव और इंसानी विभाजन के  मसलों को दर्शाती है वो दुनिया भर में अलग-अलग रूपों में मौजूद हैं. हालाकिं इसकी कहानी महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर पे आधारित है लेकिन वो जिन व्यापक इंसानी मूल्यों की वकालत करती है उसके सरोकार वैश्विक हैं ऐसा करते समय वो कहीं भी उपदेशात्मक नहीं होती है.

    फिल्म की तीसरी खास बात इसमें बच्चों के नजरिये से कहानी को बताया गया है, बच्चों के दुनिया को देखने का नजरिया बड़ों से बिल्कुल अलग होता है, फिल्म बखूबी इस बात को उजागर करती है  कि कैसे समाज द्वारा बच्चों को अपने दकियानूसी और प्रतिगामी विचारों के सांचे में ढ़ालने की कोशिश की जाती है, जो बच्चों के मन में विभाजन के बीज बोने का काम करता है इसलिए जब बच्चे धीरे-धीरे अपने धर्म और जाति की मान्याताओं को समझना शुरू कर देते हैं, तो अक्सर उनका अपने सबसे अच्छे दोस्तों के साथ एक अनकहा सा विभाजन हो जाता है,. फिल्म में बच्चों के किरदारों को बहुत प्रभावशाली तरीके से पेश किया गया है जिसमें उनकी मासूमियत और विवेक के बीच की संतुलन बखूबी नजर आती है. यह फिल्म बताती है कि तमाम राजनीतिक-सामाजिक विभाजनों के बावजूद बच्चे प्यार, दोस्ती और बंधुतत्व को बड़ों से बेहतर समझते हैं और तमाम रुकावटों के बीच इसके लिए कोई-ना-कोई मासूम रस्ता निकाल ही लेते हैं.

    फिल्म भारत के जाति पदानुक्रम को बिलकुल अलग अंदाज में पेश करती है. फिल्म का मूल पात्र एक दलित है. फिल्म दर्शकों को उसे जातिगत बंधनों और दलित शरीर से बाहर देखने का मौका देती है क्योंकि परदे पर उसे एक दलित नायक की तरह नहीं बल्कि एक सामान्य नायक की तरह पेश किया गया है. इसी प्रकार से फिल्म में जाति-आधारित भेदभाव को हास्य के नजरिये से दिखाया गया है. यह एक जोखिम भरा काम था लेकिन इसमें विषय की गंभीरता को बरकरार रखा गया है.

    यह एक विलक्षण शैली की फिल्म है. पूरी फिल्म में वॉयसओवर लगातार चलता रहता है. इसके शुरुआती 25 मिनट में कोई संवाद ही नहीं है बल्कि सिर्फ वॉयसओवर द्वारा कुछ दृश्यों के साथ फिल्म आगे बढ़ती है. 

    कुल मिलकर करीब 95 मिनट की यह फिल्म हाल के दिनों में सबसे अधिक प्रासंगिक फिल्मों में से एक है. यह हमें हमारे ही बनाये गये ‘हम बनाम वे’ के दायरे से बाहर ले जाती है और हमारे सामने भारत के उस सपने को पेश करती है जिसकी हमें आज सबसे ज्यादा जरूरत है.

    ‘आत्मापैम्फलेट’ का निर्माण ज़ी स्टूडियोज, आनंद एल राय और भूषण कुमार द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है. फिल्म को नेशनल अवार्ड विजेता परेश मोकाशी द्वारा लिखा गया है जिन्हें अपनी हालिया मराठी ‘वालवी’ (2023) के लिए बहुत सराहना मिली है. फिल्म का निर्देशन आशीष बेंडे द्वारा किया गया है जो निर्देशिक के रूप में उनकी पहली फिल्म है. यहां ख़ास बात यह है कि फिल्म के केन्द्रीय पात्र का नाम भी आशीष बेंडे ही है. अदाकारी की बात करें तो किशोर आशीष के रूप में ओम बेंडखले का अभिनय प्रभावशाली है साथ ही उनके दोस्तों के समूह में शामिल बाल कलाकारों ने भी उनका अच्छा साथ दिया है.फिल्म के अन्य किरदार जिसमें आशीष के माता-पिता, दादा-दादी, शिक्षक, पड़ोसी शामिल हैं,अपनी भूमिका में प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कराते हैं. वरिष्ठ कलाकार दीपक शिर्के को एकबार फिर से पर्दे पर देखना अच्छा लगता है. वे आशीष के दादा की भूमिका में हैं.

    आत्मपॅम्फ्लेट 73वें बर्लिन अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में अपनी जगह बनाने में कामयाब रही है.

    प्लास्टिक नहीं, धरती बचाओ!

    निशान्त

    कुछ दिन पहले ही दुबई में एक दिन में इतनी बारिश हो गयी जितनी साल भर में होती है. इसकी वजहें समझने के लिए तमाम कयास लगाए जा रहे हैं. कोई क्लाउड सीडिंग बोल रहा है कोई क्लाइमेट चेंज. 

    क्लाउड सीडिंग अकेले जिम्मेदार नहीं हो सकती इस तीव्रता वाली बारिश के लिए. ऐसा माना जा रहा है कि बदलती जलवायु और क्लाउड सीडिंग का एक बिगड़ा प्रयोग इसके लिए जिम्मेदार है.

    जलवायु परिवर्तन की वजह होती है ग्लोबल वार्मिंग. और ग्लोबल वार्मिंग की वजह होती है ग्रीनहाउस गैसों का पर्यावरण में घुलना. ग्रीनहाउस गैसें तमाम कारणों से पर्यावरण में घुलती हैं. एक वजह प्लास्टिक भी है. प्लास्टिक के उत्पादन और उपभोग में पृथ्वी के कुल ग्रीनहाउस गैस एमिशन का लगभग 3.3 प्रतिशत हिस्सा शामिल होता है. ये देखने में मामूली लग सकता है लेकिन प्लास्टिक का हमारी पृथ्वी पर दुष्प्रभाव व्यापक है.  

    प्लास्टिक प्रदूषण अब सभी प्रमुख महासागर घाटियों, समुद्र तटों, नदियों, झीलों, स्थलीय वातावरण और यहां तक कि आर्कटिक और अंटार्कटिक जैसे दूरदराज के स्थानों में भी दर्ज किया गया है. प्लास्टिक प्रदूषण के सबसे बड़े कारणों में हैं मैक्रोप्लास्टिक्स और पानी की बोतलें. ये सभी पर्यावरण में आधे अधूरे कलेक्शन और डिस्पोसल सिस्टम की वजह से पहुँचती है. 

    आज अर्थ डे है. इस साल की अर्थ डे की थीम है “प्लास्टिक वरसेस प्लेनेट” या प्लास्टिक बनाम धरती. और इस साल के अर्थ डे की इससे बेहतर थीम नहीं हो सकती थी. ऐसा इसलिए क्योंकि हमारी जीवनशैली में प्लास्टिक पर निर्भरता बढ़ती ही जा रही है. 

    ऐसे में ये याद करना ज़रूरी है कि वो प्लास्टिक की थैली या पानी की बोतल जो आप फेंक देते हैं, वो हमारी धरती के लिए कितनी बड़ी मुसीबत बन गई है. 

    प्लास्टिक का कचरा न सिर्फ हमारे आस-पास गंदगी फैलाता है बल्कि ये धरती को गर्म करने वाली गंभीर समस्या, जलवायु परिवर्तन को भी और खराब बना रहा है. चलिए, इसे ऐसे समझते हैं:

    गर्मी बढ़ने से प्लास्टिक जल्दी टूटता है: वैज्ञानिकों को पता चला है कि जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है, प्लास्टिक भी तेजी से टूट रहा है. ये टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाता है जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं. ये माइक्रोप्लास्टिक हमारे समंदरों को प्रदूषित कर रहे हैं, जीवों को नुकसान पहुंचा रहे हैं और खाने में भी मिल रहे हैं!

    जलवायु परिवर्तन से प्लास्टिक की ज़रूरत बढ़ती है: गर्मी की वजह से अक्सर खाना और ज़रूरी सामान खराब हो जाते हैं. ऐसे में डिब्बाबंद चीज़ों का इस्तेमाल बढ़ जाता है, जिनमें ज़्यादातर प्लास्टिक की पैकिंग होती है.

    बस इतना ही नहीं, प्लास्टिक बनाना भी धरती के लिए अच्छा नहीं है:

    कार्बन का बड़ा भंडार: जैसे गाड़ियों से धुआं निकलता है वैसे ही प्लास्टिक बनाने से हवा प्रदूषित होती है. 2015 में ही प्लास्टिक बनाने से 1.96 अरब टन कार्बन डाईऑक्साइड हवा में मिली! ये बहुत बड़ी मात्रा है और वैज्ञानिकों का अंदाज़ा है कि 2050 तक प्लास्टिक बनाने से होने वाले प्रदूषण का हिस्सा 13% तक पहुंच सकता है.

    जीवाश्म ईंधन का साथी: 99% से ज़्यादा प्लास्टिक तेल और प्राकृतिक गैस से बनता है. ज़मीन से इन्हें निकालने में भी प्रदूषण होता है. सिर्फ अमेरिका में 2015 में प्लास्टिक बनाने के लिए ज़रूरी जीवाश्म ईंधन निकालने से करोड़ों टन कार्बन डाईऑक्साइड हवा में मिली!

    अब सवाल उठता है कि किया क्या जा सकता है? आइये कुछ बातों पर ध्यान दें जिनकी मदद से हम सब मिलकर बदलाव ला सकते हैं:

    कम से कम प्लास्टिक की थैलियां और बोतलें इस्तेमाल करें. क्या ज़रूरी है कि हर बार दुकान से प्लास्टिक की थैली लें? इसके बदले आप कपड़े की थैली इस्तेमाल कर सकते हैं.

    जो चीज़ें दोबारा इस्तेमाल की जा सकती हैं, उन्हें फेंके नहीं. प्लास्टिक के डिब्बों को फेंकने के बजाय उनमें दूसरी चीज़ें रखकर इस्तेमाल करें.

    सही तरीके से रीसायकल करें. अपने इलाके में कौन-सा प्लास्टिक रीसायकल होता है, ये पता करके ही चीज़ें फेंकें.

    प्लास्टिक बैन का समर्थन करें. बहुत से शहर और देश प्लास्टिक की थैलियों और डिब्बों पर पाबंदी लगाकर प्लास्टिक कम करने की कोशिश कर रहे हैं.

    दूसरों को बताएं! अपने दोस्तों और परिवार को प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या के बारे में बताएं और ये भी बताएं कि वो कैसे मदद कर सकते हैं.

    मिलकर हम प्लास्टिक का कम इस्तेमाल कर सकते हैं और जलवायु परिवर्तन से भी लड़ सकते हैं. इस अर्थ डे पर आइए हम सब ज़िम्मेदार बनें और “प्लास्टिक नहीं, धरती को बचाएं.””